Tuesday, February 28, 2017

रजस्वला को अश्पशर्या क्यों माने ?? मासिक धर्म को अछूत क्यों माने ?

रजस्वला को अश्पशर्या क्यों माने   ??
मासिक धर्म को अछूत क्यों माने   ?

समस्त माता और बहिनो को प्रणाम

रजस्वला धर्म अशौच का ही एक प्रकार है ! यह जनानाशौच एवं मृताशौच से भिन्न है ! 
आधुनिक लोगो ने रजस्वला स्पर्श का ""अशौच"" काल बाह्य मान लिया है !
कारण
🏻शहर में निवास स्थान का अभाव, जगह की समस्या,नौकरी बंधन,और अपने आपको बहुत ""ज्यादा """स्मार्ट """और पढी- लिखी समझना, धर्म को """ढकोसला समझना,  क्षमा चाहता हू !

समस्त माता और बहिनो से आधुनिक महिलाओ को समझाने के लिये '''''आधुनिक शब्दो का इस्तमाल किया ! इन सब के कारण रजस्वला को अस्पर्श्या मानना काफ़ी समस्य पूर्ण एवं कष्टकारक हो गया है ! वास्तव में रजस्वला का अस्पपर्शत्व संस्कृति का एक हिस्सा है !

🏻माना या ना मानो रजस्वला स्त्री रजस्वला समय अशुद्ध होती है और अशुद्ध ही कहलायेगि !

जिन लोगो को धार्मिक एवं सान्स्कृतिक स्तर पर यह  अस्पर्शत्व मान्य नही है उन्हे भी शाश्त्रो के आधार पर यह अशौच मानना ही पडेगा !

इसका कारण यह की रजस्वला के स्पर्श के कारण विविध वस्तुओ पर प्रभाव पडता है ! इसके अलावा रजोदर्शन काल में अग्नि साहचर्य के कारण ( रसोई बनाते समय ) उसे शारीरिक हानि होती है

🏻वर्तमान में रजस्वला स्त्री घर के एक कोंने में बैठी रहे,किसी से बात न करे या किसी को स्पर्श न करे आदि बातें ""हास्यास्पद """हो गई है !

लेकिन धार्मिक कार्यो में शरिक होने या मंदिर में जाकर मूर्ति का दर्शन करने की अनुमति अब भी रजस्वला स्त्री को नहीं है ! इसका मतलब यह है की रजोदर्शनअवस्था अन्य अवस्थाओ से अलग है !

  हमारे विद्वान, और बुजुर्ग लोगो ने ये सिद्ध करके ये दावा किया है की रजस्वला स्त्री के हस्त स्पर्श से तुलसी तथा अन्य पौधे फुल भी मुरझा जाते है !

👉इसका कारण यह की रजस्वला के शरीर से अति सुक्ष्म उपद्र्वी स्पंदन लहरि बाहर निकलती है ! विशेष रूप सेमासिक धर्म के प्रथम दिन इसकी तीव्रता अधिक महशूस होती है ! दूसरे दिन वह कम होती है और तीसरे दिन उससे कम हो जाती है ! इसलिये रजस्वला स्त्री को """जहरीली वनस्पति""" की उपमा दी गई है ! यही नहीं, कुछ किट भी रजस्वला का स्पर्श सहन नहीं कर पाते !

👉विशेष 👈नाग आदि जंतु रजस्वला के स्पर्श से अपने आपको दुर रखते है ! वे उसकी आवाज सुनते ही तिर्व गति से  भाग जाते है !

👉रजस्वला के शरीर से निकलने वाले स्पंदन मंत्र - शक्ति के लिये अनुपकारक सिद्ध होते है ! स्पंदन गिनने वाले अत्याधुनिक यंत्र से जो निश्कर्ष प्राप्त हुए है ,उनको नकरा नहीं जा सकता !

यदि सितार के निकट कोई रजस्वला बैठी हो तो सितार के तार हमेशा की तरह नही जमते ! इस बात का अनुभव सितारवादको को हमेशा हुआ है ! यदि रजस्वला के स्पर्श का प्रभाव प्राणी एवं वनस्पति पर होता है तो मानव पर भी होगा !

मानो या न मानो

    रजस्वला के हाथों बना अन्न ग्र्हण करने से शरीर और मन दोनो को विकारग्र्स्त हो जाते है !""

ऐसी स्थिति में गर्भधारण की समभावना न होने पर भी  उसके शरीर से बाहर निकलने वाली स्पंदन लहरि में विशाक्त बीज सुप्त अवस्था में भरे रहते है

👉यहा यह बात विशेष रूप से आपको बताना चाहता हू ! मानवेतर प्राणी इस समय अपनी मादा को स्पर्श तक नही करते ! परंतु मानव द्वारा स्पर्श करने से काम-वासना का भाव जा सकता है !

ऋतुकाल के अतिरिक्त अन्य समय भी विषयपूर्ति की भावना केवल मानव के मन में उत्पन हो सकती है ! सार्वजनिक रुप में रजस्वला के स्पर्श की तीव्रता हवा के कारण कम होती है इसके  विपरीत घर में रजस्वला स्त्री से हुए स्पर्श की तीव्रता अधिक रहती है !

घ्यान और प्रभाव -दोनो मनोधर्म होने से एक बार उसका विचार छोड़ सकते है ! परंतु शारीरिक स्पर्श का  परिणाम आसानी से नहीं टाला जा सकता !

मानो या न मानो

रजस्वला का स्पर्श अशुचि होता है ! इसलिये यह
अस्पशर्या होती है ! उस समय उसके देह में विशिष्ट फेरबदल होने के कारण शारीरिक परिश्रम करने पर विविध विकार उत्पन्न होने की संभावना रहती है !

कई पंडितो की राय के अनुसार रजोदर्शन स्त्री के लिये विरेचन है ! इसलिये विरेचन क्रिया में शरीर को पूर्ण विश्राम मिलना आवश्यक होता है ! रजोदर्शन की समयावधि में स्त्री- पुरुष संबंध होने से संतति विकृत एवं मंद रहती है !

👉आज कल बडे शहरो में एक कमरे में अनेक पारिवारिक सदस्य रहते है ! इस कारण हर महीने पारी-पारी से स्त्रियो का मासिकधर्म शुरू ही रहता है ! कुछ विद्वान लोग इसके प्र्याय के रूप में पुजाघर पर परदा डालते है ! तो कुछ लोग देवताओ पर तुलसी पत्र रखकर देवदर्शन स्थगित कर देते है !

इससे आगे बढकर कुछ लोग इस कालावधि में स्तोत्र पठन, मंत्र पठन, संध्या एवं देवदर्शन बंद कर देते है ! इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है की स्त्रियो का रजोदर्शन समय अपवित्र होता है

यदि ऐसे समय धर्म का कडा पालन करना स्त्रियो के लिये संभव न होतो वैद्धकिय एवं रजस्वला धर्म का पालन अवश्य करे !

क्या नहीं करना चाहिए।

वे कपडे के ढेर को स्पर्श न करे !
रजस्वला शरीर को कोई अन्य व्यक्ति स्पर्श न करे ! पहले ,दूसरे , तीसरे दिन रजोदोष अधिक होता है ! इस समय स्पर्श अग्नि  सम्पर्क ,रसोई , देव पुजन, अन्नस्पर्श को टालना अत्यंत आवश्यक है ।

मानना या नही मानना आपका विचार
नहीं मानने पर , पागलपन, मानसिक विकार, दरिद्रता, ओर लाइलाज बीमारी होती है।

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