राहू केतु का योगकारक होना
राहू केतु के बुरे प्रभाव को ही ज्यादा सूना है और अक्सर जातक को कालसर्प या फिर पितृ दोष होने के नाम का भय दिखाकर डराया जाता है लेकिन मह्रिषी पराशर जी ने कुछ ऐसे नियम भी बताये थे जिनके आधार पर राहू केतु भी योगकारक होकर जातक को शुभ फल दे सकते है | आज हम इसी विषयपर चर्चा करेंगे|
राहू केतु को किसी भी राशि का अधिपत्य नही सोंपा गया है इसिलिय राहू केतु जिस भी भाव में हो उसी के अनुसार अपना फल देते है|
इनके फल का अध्ययन करने के लिय ये देखेंकी ये जिस भाव में है वो भाव शुभ है या अशुभ| यदि ये शुभ भाव यानी की त्रिकोण या लग्न में होंगे तो इनका शुभ फल मिलेगा| यदि ये केंद्र या दुसरे या द्वादस भाव में होंगे तो इनके फल सम होंगे| त्रिसढाये यानी की 3 6 ११ में ये पापी और अस्ठ्म में अति पापी होंगे| ये तो इनका भाव के अनुसार फल हुआ| अकेले होने पर ये सम हो जाते है |
राहू केतु अपने साथ सिथत ग्रह का भी फल देते है| इनके फल का अध्ययन करने के लिय देखें की ये जिस ग्रह के साथ है वोकुंडली में कैसा फल देने वाला निर्धारित हुआ है जातक के लिय| यदि वो शुभ हुआ तो राहू केतु भी जातक को शुभ फल देंगे और उस ग्रह की शक्ति को दूना कर देंगे जैसा भी उस ग्रह का शुभाशुभ फल होगा| यदि इनके साथ वाला ग्रह मारक हुआ तो ये भी प्रबल मारक बनकर जातक को बुरी मौत देते है|
इसी कारण राहू केतु यदि केंद्र या त्रिकोण में इनके मालिक के साथ ही विराजमान हो तो योगकारक होंगे|
साथ ही राहू केतु जिस भी राशि मेंविराजमान हो उस राशि के स्वामी के अनुसार अपना फल जातक को देते है अत इनके फल का अध्ययन करते समय इस बात का अध्धयन करना आवश्यक है कीभवेस का फल कैसा है|
यानी की इनके फल काअध्ययन करते समय ये ध्यान रखना होगा की किस भाव में है , किस ग्रह के साथ है और इनके द्वारा अधिष्ठित राशि का स्वामी कैसा फल जातक को दे रहा है उसी के अनुसार इनका फल होगा|
यदि ये केंद्र या त्रिकोण के मालिको के साथ सम्बन्ध स्थापित करते है और इन्ही शुभ भावों में करते है तो ये भी राजयोग कारक हो जाते है जैसे की कर्क लग्न की कुंडली में राहू मंगल के साथ दसम भाव में हो तो राजयोग कारक होगा|
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