नीच केग्रह के फल का अवलोकन कैसे करे
नीच के ग्रह के बुरे फल जातक को मिलते है ऐसा माना जाता है| इसका कारण ये है की जब कोई ग्रह नीच की राशि में हो तो उसका बल काफी कम हो जाता है जिसके कारण वो अपना शुभ फल जातक को दे नही पाता है लेकिन मेरा ये मानना है की हमे किसी ग्रह को केवल नीच की राशि में देखते ही उसके बुरे फल के बारे में नही सोचना चाहिए कुछ ऐसी प्रिसिथियाँ होती है जिसमे नीच काग्रह भी हमको शुभ फल दे सकता है| एक खास बात की अक्सर लोग ग्रह के नीच होने पर उसके बुरे फल ही गिनते है हमे ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए की ग्रह के नीच या उंच होने से उसके शुभ अशुभ से मतलब न होकर उसके बली होने या न होने से होता है | यदि कोई भी ग्रह नीच है तो इसका ये मतलब होगा की उस ग्रह में उसके कार्क्त्वों की कमी होगी और वो ग्रह जिन तत्वों का कारक है और कुंडली में जिन भावों का स्वामी है उनसे सम्बन्धित पूर्ण फल नही दे पायेगा | अब ,मान लीजिये की व्यय भाव का मालिक नीच का है तो ये एक तरह से जातक के लिय अच्छा होगा क्योंकि जातक के व्यर्थ के खर्च आदि में कमी हो जायेगी |
सबसे पहले तो हमेये देखना होगा की ग्रह का नीच भंग हो रहा है या नही | नीच भंग के लिय ये माना जाताहै की यदि कोई ग्रह किसी राशि में नीच का है और उस राशि का स्वामी उस ग्रह के साथ हो या उस ग्रह को अपनी पूर्ण दृष्टी से देखता हो या बलि होकर केंद्र में हो तो उस ग्रह का नीच भंग हो जाता है जैसे विर्स्चिक के चन्द्र के साथ मंगल हो या मंगल की पूर्ण दृष्टी चन्द्र पर हो या मंगल स्वराशी या उंचराशि में केंद्र में हो| साथ ही यदि किसी नीच के ग्रह के साथ उंच का ग्रह हो तो भी नीच भंग हो जाता है जैसे मकर राशि के गुरु के साथ ही मकर में ही मंगल हो| इसके साथ ही यदि कोई ग्रह लग्न कुंडली में तो नीच का हो लेकिन नव्मांस में उंच का हो तो उसका नीच भंग हो जाता है|
मित्रों ये तो हुई नीच भंग की बात| अब कोई ग्रह की नीचता भंग नही हो रही हो तो उसका फल हम कैसे मिलेगा| उसके लिय सबसे पहले तो हम देखेंगे की उस नीच के ग्रह की राशि का स्वामी की सिथ्ती कैसी है यदि उसकी सिथ्ती अच्छी है तो उस नीच के ग्रह के अशुभ फल में कमी होगी|
मुख्य बात है की ग्रह किस नक्षत्र में है| जैसे हम चन्द्र को लेते है | चन्द्र हमारी कुंडली में मन काकारक है| चन्द्र नीच होने पर जातक दिल काकमजोर होता है बहुत जल्दी व्यथित होने वाला होता है लेकिन मुख्य प्रभाव इस बात का है की चन्द्र किस नक्षत्र में है| विर्श्चिक राशि में तीन नक्षत्र आते है विशाखा अनुराधा और ज्येस्ठा | अब विशाखा नक्षत्र में यदि चन्द्र होगा तो उसके बुरे फल काफी कम होंगे क्योंकि इस नक्षत्र का स्वामी गुरु चन्द्र का मित्र है| जातक के मन पर गुरु का प्रभाव होगा और यदि गुरु का साथ किसी भी प्रकार से चन्द्र को मिला तो चन्द्र नीच का होते हुवे भी बुरे फल नही देगा| दूसरा नक्षत्र अनुराधा होताहै और जिसका स्वामी शनि देव होते है और शनि देव को उदासी वैराग्य का कारक माना जाता है ऐसे में जातक पर नीच के चन्द्र का पूरा फल मिलेगा जिस से जातक के मन पर हर समय उदासी छाई रहती है जातक ख़ुशी केमाहोल को भी अच्छी तरह महसूस नही कर पाता | तीसरा नक्षत्र ज्येष्ठा है जिसका स्वामी बुद्ध है | अब हमे देखना होगा की बुद्ध का पंचधा मत्री चक्र के अनुसार चन्द्र से क्या सम्बन्ध बन रहा है और बुद्ध की कुंडली में क्या सिथ्ती है| बुद्ध का जातक के मन पर पूर्णप्रभाव होगा और यदि बुद्ध कुंडली में अशुभ फल देने वाला हुआ जैसे की मेष लग्न मेंहोता है तो जातक को नीच के चन्द्र के पूर्ण फल मिलेंगे| इस प्रकार कोई भी ग्रह किस नक्षत्र में है और उसके स्वामी की सिथ्ती क्या है उसकापूर्ण प्रभाव जातक पर पड़ताहै|
जैसे सूर्य जोकी हमारी आत्मा का कारक होताहै और तुला राशि मेंनीच का होता है | तुला में सूर्य उतने बुरे फल विशाखा नक्षत्र में नही देगा जितने बुरे फल स्वाति नक्षत्र में देगा क्योंकि विशाखा नक्षत्र का स्वामी गुरु तो स्वाति का स्वामी राहू होता है| ऐसे में जातक की आत्मा पर राहू का पूर्ण दुस्प्रभाव होगा|
साथ ही कोई ग्रह यदि नीच का होकर भी अस्ठ्क्वर्ग में ५ या ६ बिंदु उस नीच की राशि में लिय हुवे है तो भी उसका इतना बुरा फल जातक को नही मिलता है|
अत मेरा यही कहना है की हमे किसी भी ग्रह के शुभाशुभ फल को देखते समय उसके सभी पहलुओं को देखना आवश्यक होताहै|
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