मन्त्रों की शक्तियां तथा उनका महत्त्व
ऊर्जा अविनाशिता के नियमानुसार
ऊर्जा कभी भी नष्ट नहीं होती है, वरन् एक रूप से दूसरे
रूप में परिवर्तित होती रहती है। अतः जब हम
मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो उससे उत्पन्न ध्वनि एक
ऊर्जा के रूप में ब्रह्मांड में प्रेषित होकर जब उसी प्रकार
की ऊर्जा से संयोग करती है तब हमें उस ऊर्जा में
छुपी शक्ति का आभास होने लगता है। ज्योतिषीय
संदर्भ में यह निर्विवाद सत्य है कि इस धरा पर रहने
वाले सभी प्राणियों पर ग्रहों का अवश्य प्रभाव
पड़ता है..चंद्रमा मन का कारक ग्रह है, और यह पृथ्वी के सबसे नजदीक होने के कारण खगोल में अपनी स्थिति के अनुसार मानव मन को अत्यधिक प्रभावित करता है। अतः इसके अनुसार जो मन का त्राण (दुःख) हरे उसे मंत्र कहते हैं.. मंत्रों में प्रयुक्त स्वर, व्यंजन, नाद व बिंदु देवताओं या शक्ति के विभिन्न रूप एवं
गुणों को प्रदर्शित करते हैं.. मंत्राक्षरों, नाद, बिंदुओं में
दैवीय शक्ति छुपी रहती है..मंत्र उच्चारण से
ध्वनि उत्पन्न होती है, उत्पन्न ध्वनि का मंत्र के साथ
विशेष प्रभाव होता है.. जिस प्रकार किसी व्यक्ति,
स्थान, वस्तु के ज्ञानर्थ कुछ संकेत प्रयुक्त किए जाते हैं,
ठीक उसी प्रकार मंत्रों से संबंधित देवी-देवताओं
को संकेत द्वारा संबंधित किया जाता है, इसे बीज
कहते हैं.. विभिन्न बीज मंत्र इस प्रकार हैं :ॐ-
परमपिता परमेश्वर की शक्ति का प्रतीक है.ह्रीं-
माया बीज,श्रीं- लक्ष्मी बीज,क्रीं- काली बीज,ऐं-
सरस्वती बीज,क्लीं- कृष्ण बीज...बीजमंत्र लाभकं-
मृत्यु के भय का नाश, त्वचारोग व रक्त-
विकृति में..ह्रीं- मधुमेह हृदय की धड़कन में....घं-
स्वप्नदोष व प्रदररोग में ....भं- बुखार दूर करने के
लिए...क्लीं - पागलपन में ...सं- बवासीर मिटाने के
लिए.....वं- भूख प्यास रोकने के लिए...लं- थकान दूर
करने के लिए ...बं - वायु रोग और जोदो के दर्द के
लिये ....बीज मंत्रों के अक्षर गूढ़ संकेत होते हैं..
इनका व्यापक अर्थ होता है... बीज मंत्रों के उच्चारण
से मंत्रों की शक्ति बढ़ती है.. क्योंकि, यह विभिन्न
देवी-देवताओं के सूचक है....ह्रीं इस मायाबीज में ह्=
शिव, र= प्रकृति, नाद= विश्वमाता एवं बिंदु= दुखहरण
है... इस प्रकार मायाबीज का अर्थ है- "शिवयुक्त
जननी आद्य शक्ति मेरे दुखों को दूर
करें..श्री [श्री बीज या लक्ष्मी बीज]: इस
लक्ष्मी बीज में श्= महालक्ष्मी, र= धन संपत्ति, ई=
महामाया, नाद= विश्वमाता एवं बिन्दु= दुखहरण है..
इस प्रकार इस का अर्थ है धन
संपत्ति की अधिष्ठात्री जगजननी मां लक्ष्मी मेरे दुख
दूर करें।....ऎं [वाग्भव बीज या सारस्वत बीज]: इस
वाग्भव बीज में ऎ= सरस्वती, नाद= जगन्माता और
बिंदु= दुखहरण है... इस प्रकार इस बीज का अर्थ है-
जगन्माता सरस्वती मेरे ऊपर
कृपा करें....क्लीं [कामबीज या कृष्णबीज]: इस
कामबीज में क= योगस्त या श्रीकृष्ण, ल= दिव्यतेज, ई=
योगीश्वरी या योगेश्वर एवं बिंदु= दुखहरण... इस
प्रकार इस कामबीज का अर्थ है-
राजराजेश्वरी योगमाया मेरे दुख दूर करें... कृष्णबीज
का अर्थ है योगेश्वर श्रीकृष्ण मेरे दुख दूर
करें...क्रीं [कालीबीज या कर्पूरबीज]: इस बीज मंत्र में
क= काली, र= प्रकृति, ई= महामाया, नाद=
विश्वमाता, बिंदु= दुखहरण है.. इस प्रकार इस बीजमंत्र
का अर्थ है, जगन्माता महाकाली मेरे दुख दूर करें...गं
[गणपति बीज]: इस बीज में ग्= गणेश, अ= विघननाशक एवं बिंदु= दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ विघननाशक श्रीगणेश मेरे दुख दूर करें।दूं [दुर्गाबीज]: इस दुर्गाबीज में द्= दुर्गतिनाशनी दुर्गा, = सुरक्षा एवं बिंदु= दुखहरण है... इस प्रकार इसका अर्थ है
दुर्गतिनाशनी दुर्गा मेरी रक्षा करे और मेरे दुख दूर
करे...हौं [प्रसादबीज या शिवबीज]: इस प्रसाद बीज में
ह्= शिव, औ= सदाशिव एवं बिंदु= दुखहरण है... इस
प्रकार इस बीज का अर्थ है, भगवान शिव एवं सदाशिव
मेरे दुखों को दूर करें..इस प्रकार बीज
मंत्रों की शक्ति इतनी असीम होती है, कि देवताओं
को भी अपने वशीभूत कर लेती है, तथा जप अनुष्ठान
द्वारा देवता का साक्षात्कार करा देती है...बीज
मंत्रों के अक्षर उनकी गूढ़ शक्तियों के संकेत होते हैं...
इनमें से प्रत्येक की स्वतंत्र एवं दिव्य शक्ति मिलकर
देवता के विराट् स्वरू प का संकेत
देती है...मंत्रों का प्रयोग मानव ने अपने कल्याण के
साथ-साथ दैनिक जीवन की संपूर्ण समस्याओं के
समाधान हेतु यथासमय किया है, और उसमें
सफलता भी पाई है, परंतु आज के भौतिकवादी युग में यह
विधा मात्र कुछ ही व्यक्तियों के प्रयोग की वस्तु
बनकर रह गई है...मंत्रों में छुपी अलौकिक
शक्ति का प्रयोग कर जीवन को सफल एवं सार्थक
बनाया जा सकता है.... सबसे पहले प्रश्न यह उठता है,
कि 'मंत्र' क्या है, इसे कैसे परिभाषित
किया जा सकता है.. इस संदर्भ में यह कहना उचित
होगा कि मंत्र का वास्तविक अर्थ असीमित है...
किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए प्रयुक्त शब्द
समूह मंत्र कहलाता है... जो शब्द जिस
देवता या शक्ति को प्रकट करता है, उसे उस
देवता या शक्ति का मंत्र कहते हैं... मंत्र एक ऐसी गुप्त
ऊर्जा है, जिसे हम जागृत कर इस अखिल ब्रह्मांड में पहले से ही उपस्थित इसी प्रकार की ऊर्जा से एकात्म कर उस ऊर्जा के लिए देवता (शक्ति) से सीधा साक्षात्कार कर सकते हैं...मंत्रों में देवी- देवताओं के नाम भी संकेत मात्र से दर्शाए जाते हैं, जैसे
राम के लिए 'रां', हनुमानजी के लिए 'हं', गणेशजी के
लिए 'गं', दुर्गाजी के लिए 'दुं' का प्रयोग
किया जाता है... इन बीजाक्षरों में जो अनुस्वार
या अनुनासिक (जं) संकेत लगाए जाते हैं, उन्हें 'नाद'
कहते हैं.. नाद द्वारा देवी-देवताओं की अप्रकट
शक्ति को प्रकट किया जाता है...लिंगों के अनुसार
मंत्रों के तीन भेद होते हैं-पुर्लिंग : जिन मंत्रों के अंत में
हूं या फट लगा होता है..स्त्रीलिंग : जिन मंत्रों के अंत
में 'स्वाहा' का प्रयोग होता है...नपुंसक लिंग : जिन
मंत्रों के अंत में 'नमः' प्रयुक्त
होता है..अतः आवश्यकतानुसार मंत्रों को चुनकर उनमें
स्थित अक्षुण्ण ऊर्जा की तीव्र विस्फोटक एवं
प्रभावकारी शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है...
मंत्र, साधक व ईश्वर को मिलाने में मध्यस्थ का कार्य
करता है... मंत्र की साधना करने से पूर्व मंत्र पर पूर्ण
श्रद्धा, भाव, विश्वास होना आवश्यक है, तथा मंत्र
का सही उच्चारण अति आवश्यक है... मंत्र लय, नादयोग के अंतर्गत आता है... मंत्रों के प्रयोग से आर्थिक,सामाजिक, दैहिक, दैनिक, भौतिक तापों से उत्पन्न व्याधियों से छुटकारा पाया जा सकता है.. रोग
निवारण में मंत्र का प्रयोग रामबाण औषधि का कार्य
करता है.. मानव शरीर में 108 जैविकीय केंद्र (साइकिक सेंटर) होते हैं जिसके कारण मस्तिष्क से 108 तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) उत्सर्जित करता है...शायद इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने मंत्रों की साधना के लिए 108 मनकों की माला तथा मंत्रों के जाप की आकृति निश्चित की है.. मंत्रों के बीज मंत्र उच्चारण की 125 विधियाँ हैं.. मंत्रोच्चारण से या जाप करने से शरीर के 6 प्रमुख जैविकीय ऊर्जा केंद्रों से 6250 की संख्या में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जो इस प्रकार हैं :
मूलाधार 4x125=500स्वधिष्ठान
6x125=750मनिपुरं 10x125=1250हृदयचक्र
13x125=1500विध्रहिचक्र 16x125=2000आज्ञाचक्र
2x125=250कुल योग 6250
(विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगों की संख्या)...भारतीय
कुंडलिनी विज्ञान के अनुसार मानव के स्थूल शरीर के
साथ-साथ 6 अन्य सूक्ष्म शरीर भी होते हैं... विशेष
पद्धति से सूक्ष्म शरीर के फोटोग्राफ लेने से वर्तमान
तथा भविष्य में होने वाली बीमारियों या रोग के
बारे में पता लगाया जा सकता है.. सूक्ष्म शरीर के
ज्ञान के बारे में जानकारी न होने पर मंत्र शास्त्र
को जानना अत्यंत कठिन होगा...मानव, जीव-जंतु,
वनस्पतियों पर प्रयोगों द्वारा ध्वनि परिवर्तन
(मंत्रों) से सूक्ष्म ऊर्जा तरंगों के उत्पन्न होने
को प्रमाणित कर लिया गया है.. मानव शरीर से 64
तरह की सूक्ष्म ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जिन्हें
'धी' ऊर्जा कहते हैं.. जब धी का क्षरण होता है
तो शरीर में व्याधि एकत्र हो जाती है..मंत्रों का प्रभाव वनस्पतियों पर भी पड़ता है... जैसा कि बताया गया है
कि चारों वेदों में कुल मिलाकर 20 हजार 389 मंत्र हैं,
प्रत्येक वेद का अधिष्ठाता देवता है.. ऋग्वेद
का अधिष्ठाता ग्रह गुरु है। यजुर्वेद का देवता ग्रह शुक्र,
सामवेद का मंगल तथा अथर्ववेद का अधिपति ग्रह बुध
है... मंत्रों का प्रयोग ज्योतिषीय संदर्भ में अशुभ
ग्रहों द्वारा उत्पन्न अशुभ फलों के निवारणार्थ
किया जाता है...ज्योतिष वेदों का अंग
माना गया है। इसे वेदों का नेत्र कहा गया है.. भूत
ग्रहों से उत्पन्न अशुभ फलों के शमनार्थ वेदमंत्रों,
स्तोत्रों का प्रयोग अत्यन्त
प्रभावशाली माना गया है..उदाहरणार्थ आदित्य
हृदयस्तोत्र सूर्य के लिए, दुर्गास्तोत्र चंद्रमा के लिए,
रामायण पाठ गुरु के लिए, ग्राम देवता स्तोत्र राहु के
लिए, विष्णु सहस्रनाम, गायत्री मंत्रजाप, महामृत्युंजय
जाप, क्रमशः बुध, शनि एवं केतु के लिए, लक्ष्मीस्तोत्र
शुक्र के लिए और मंगलस्रोत मंगल के लिए...
मंत्रों का चयन प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथों से
किया गया है.. वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित
हो चुका है, कि ध्वनि उत्पन्न करने में नाड़ी संस्थान
की 72 नसें आवश्यक रूप से क्रियाशील रहती हैं...
अतः मंत्रों के उच्चारण से सभी नाड़ी संस्थान
क्रियाशील रहते हैं...मंत्र विज्ञान मंत्र एक गूढ़ ज्ञान
है.. सद्गुरु की कृपा एवं मन को एकाग्र कर जब
इसको जान लिया जाता है, तब यह साधक
की सभी मनोकामनाओं को पूरा करता है.. मंत्रागम के
अनुसार दैवी शक्तियों का गूढ़ रहस्य मंत्र में अंतर्निहित
है... व्यक्ति की प्रसुप्त या विलुप्त शक्ति को जगाकर
उसका दैवीशक्ति से सामंजस्य कराने वाला गूढ़ ज्ञान
मंत्र कहलाता है... यह ऐसी गूढ़ विद्या है,
जो साधकों को दु:खों से मुक्त कर न केवल
उनकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है,
बल्कि उनको परम आनंद तक ले जाती है.. मंत्र
विद्या विश्व के सभी देशों, मानवजाति, धर्मों एवं
संप्रदायों में हजारों-लाखों वर्षो से आस्था एवं
विश्वास के साथ प्रचलित है..मंत्रों के प्रकार-मंत्र
दो प्रकार के होते हैं- वैदिक मंत्र एवं तांत्रिक मंत्र....
वैदिक संहिताओं की समस्त ऋचाएं वैदिक मंत्र
कहलाती हैं, और तंत्रागमों में प्रतिपादित मंत्र
तांत्रिक मंत्र कहलाते हैं.. तांत्रिक मंत्र तीन प्रकार के
होते हैं— बीज मंत्र, नाम मंत्र एवं माला मंत्र.. बीज मंत्र
भी तीन प्रकार के होते हैं — मौलिक बीज, यौगिक
बीज तथा कूट बीज.. इसी तरह माला मंत्र दो प्रकार
के होते हैं— लघु माला मंत्र एवं बृहद माला मंत्र..बीज
मंत्रदैवी या आध्यात्मिक शक्ति को अभिव्यक्ति देने
वाला संकेताक्षर बीज कहलाता है.. इसकी शक्ति एवं
रूप अनंत हैं.. बीज मंत्र विभिन्न देवताओं, धर्मो एवं उनके
संप्रदायों की साधनाओं के माध्यम से साधक
को भिन्न-भिन्न प्रकार के रहस्यों से परिचित
करवाता है। शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन एवं बौद्ध
धर्मो के सभी संप्रदायों में ‘ह्रीं’, ‘कलीं’ एवं ‘श्रीं’
आदि बीजों का मंत्रसाधना में समान रूप से प्रयुक्त
होना इसका साक्ष्य है।बीज मंत्र समस्त
अर्थो का वाचक एवं बोधक होने के बावजूद अपने आपमें
गूढ़ है। अपने आराध्य देव का समस्त स्वरूप इसके बीज मंत्र
में निहित होता है। ये बीज मंत्र तीन प्रकार के होते हैं
— मौलिक, यौगिक व कूट। इनको कुछ आचार्य
एकाक्षर, बीजाक्षर एवं घनाक्षर भी कहते हैं.. जब बीज
अपने मूल रूप में रहता है, तब मौलिक बीज कहलाता है,
जैसे- ऐं, यं, रं, लं, वं, क्षं आदि.. जब यह बीज दो वर्षो के
योग से बनता है, तब यौगिक कहलाता है, जैसे- ह्रीं,
क्लीं, श्रीं, स्त्रीं, क्ष्रौं आदि...इसी तरह जब बीज
तीन या उससे अधिक वर्षो से बनता है, तब यह कूट बीज
कहलाता है... बीज मंत्रों में समग्र शक्ति विद्यमान
होते हुए भी गुप्त रहती है..नाम मंत्र -बीज रहित
मंत्रों को नाम मंत्र कहते हैं, जैसे- ‘ॐ नम: शिवाय’, ‘ॐ
नमो नारायणाय’ एवं ‘..ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’
आदि.. इन मंत्रों के शब्द उनके देवता, उनके रूप एवं
उनकी शक्ति को अभिव्यक्ति देने में समर्थ होते हैं...
इसलिए इन मंत्रों को भक्तिभाव से कभी भी सुमिरन
किया जा सकता है..माला मंत्रकुछ आचार्यो के
अनुसार 20 अक्षरों से अधिक और अन्य आचार्यो के
अनुसार 32 अक्षरों से अधिक अक्षर वाला मंत्र
माला मंत्र कहलाता है, जैसे- ‘ऊँ क्लीं देवकीसुत
गोविंद वासुदेव जगत्पते, देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं
गत:..माला मंत्रों के वर्णो की पूर्व मर्यादा 20 या 32
अक्षर हैं, लेकिन इनकी उत्तर मर्यादा का मंत्रशास्त्र में
उल्लेख नहीं मिलता.. इसलिए माला मंत्र कभी-
कभी छोटे और कभी-कभी अपेक्षाकृत अधिक लंबे होते
हैं......आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने चाहे
जितनी प्रगति कर ली हो,........ पर बीमारियों पर
नियंत्रण का उसका सपना आज तक अधूरा है.. आंकड़े
तो यहां तक बयान करते हैं, कि दवाओं के अनुपात में -
रोगों की वृद्धि अधिक तेजी से हो रही है.........
किन्तु ऐसी विकट स्थिति में भी निराश होने
की आवश्यकता नहीं है.. प्राचीन समय में भारत में यंत्र-
तंत्र और मंत्र के रूप में एक ऐसे विज्ञान का प्रचलन
रहा है, जो बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारी है..
आज जिन बीमारियों को लाइलाज
माना जा रहा है, उनका मंत्रों के द्वारा स्थाई
निवारण संभव हे।
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