Monday, February 6, 2017

ग्रहों के बल और उनकी अवस्थाए

*ग्रहों  के  बल  और उनकी  अवस्थाएं*

कुछ  लोगो की  आदत  हो  गई है  की  कोई  भी ज्योतिष  की  पोस्ट  हो  वो  अपनी  कुंडली के ग्रह  की सिथ्ती  बताकर  ये  पूछने लगते  है  की  इसके  फल  और  उपाय  क्या होंगे।
इसिलय  ये  पोस्ट  उन  मित्रों  के  लिय  है  की जब भी  कोई  कुंडली  देखते  है  तो ग्रहों  के  अवस्था  और  उनके बल  देखने  भी आवश्यक होते  है  |  हालाँकि   इस  के  साथ  कुंडली  में अन्य  भी बहुत  कुछ  देखना  होता  है  जैसे  की  दशा  अस्ठ्क्वर्ग  आदि......

*********************
ग्रहों की दिप्तादि अवस्थाएँ
**********************
1. दीप्त- जो ग्रह अपनी उंच या मूलत्रिकोण राशि में हो दीप्त अवस्था का कहलाता है। उत्तम फल देता है।
2. स्वस्थ- जो ग्रह अपनी ही राशि में हो स्वस्थ कहलाता है शुभफलदायी होता है।
3. मुदित- जो ग्रह अपने मित्र या अधिमित्र की राशि में हो मुदितवस्था का ग्रह होता है और शुभफलदायी होता है।
4.शांत- जो ग्रह किसी शुभ ग्रह के वर्ग में हो वो शांत कहलाता है और शुभ फल प्रदान करता है।
5. गर्वित- उच्च मूलत्रिकोण राशि का ग्रह गर्वित अवस्था में होता है उत्तम फल दायी होता है।
6. पीड़ित - जो ग्रह अन्य पाप ग्रह से ग्रस्त हो पीड़ित कहलाता है और अशुभफलप्रदान करता है।
7. दीन- नीच या शत्रु की राशि में दीन अवस्था का होता है अशुभफलदायि होता है।
8. खल- पाप ग्रह की राशि में गया हुवा ग्रह खल कहलाता है और अशुभ फलदायी होता है।
9. भीत- नीच राशि का ग्रह भीत अवस्था का होता है और अशुभफलदायि होता है।
10.विकल - अस्त हुवा ग्रह विकल कहलाता है शुभ होते हुवे भी फल प्रदान नही कर पाता।

*मित्रों इस प्रकार ये ग्रह की अवस्था हुई जिनसे आप पता लगा सकते हो की कोई ग्रह आपको कितना और कैसा फल देगा ।ग्रहों की लज्जितादि 6 अवस्थाएं*
************************
1. लज्जित - जो ग्रह पंचम भाव में राहु केतु सूर्य शनि या मंगल से युक्त हो वह लज्जित कहलाता है जिसके प्रभाव स पुत्र सुख में कमी और व्यर्थ की यात्रा और धन का नाश होता है।
2. गर्वित- जो ग्रह उच्च स्थान या अपनी मूलत्रिकोण राशि में होता है गर्वित कहलाता है। ऐसा ग्रह उत्तम फल प्रदान करता है और सुख सोभाग्य में विर्धि करता है।
3. क्षुधित - शत्रु के घर में या शत्रु से युक्त क्षुधित कहलाता है अशुभ फलदायी कहलाता है।
4. तृषित -जो ग्रह जल राशि में सिथत होकर केवल शत्रु या पाप ग्रह से dirsth हो तृषित कहलाता है। इस से कुकर्म में बढ़ोतरी बंधू विवाद दुर्बलता दुस्ट द्वारा क्लेश परिवार में चिन्ता धन हानि स्त्रियों को रोग आदि अशुभ फल मिलते है।
5.मुदित- मित्र के घर में मित्र ग्रह से युक्त या dirst मुदित कहलाता है शुभफलदायी होता है।
6.छोभित- सूर्य के साथ सिथत होकर केवल पाप ग्रह से दीर्स्ट होने पर ग्रह छोभित कहलाता है।
जिन जिन भावों में तृषित क्षुधित या छोभित ग्रह होते है उस भाव के सुख की हानि करते है।
ग्रहों की जागृत आदि अवस्थाएं
****************
मित्रों ग्रहों की तिन अवस्था होती है 1. जागृत 2. स्वप्न और तीसरी सुषुप्ति अवस्था।
प्रत्येक राशि को 10 10 के तिन अंशो में बांटे। विषम राशि यानी पहली ,तीसरी ,पाँचमि ,सातवीं ,नोवी और ग्यारवीं के पहले भाग यानी एक से दस अंश तक कोई ग्रह हो तो वो जागृत अवस्था में होगा, 10 से 20 तक स्वप्न और 20 से 30 अंश तक हो तो सुषुप्ति अवस्था में होगा।
इसके विपरीत सम राशि यानी दूसरी ,चौथी ,छटी, आठवीं ,दसवीं और बारवीं में यदि कोई ग्रह 1 से 10 अंश तक का हो तो सुषुप्ति अवस्था में ,11 से 20 तक में स्वप्न अवस्था और 20 से 30 तक जागृत अवस्था में होगा । ग्रह की जागृत अवस्था जातक को सुख प्रदान करती है और ग्रह पूर्ण फल देने में सक्षम होता है । स्वप्न अवस्था का ग्रह मध्यम फल देता है और सुषुप्ति अवस्था का ग्रह फल देने में निष्फलि माना जाता है।
इसी प्रकार ग्रहों की बालादि अवस्था होती है।
विषम राशि में 1 से 6 अंश तक बाल्यावस्था, 6 से 12 अंश तक कुमारावस्था ,12 से 18 अंश तक युवा ,18 से 24 विरद्ध और 24 से 30 अंश तक मिर्त अवस्था होती है।
सम राशि में 1 से 6 मिर्त ,6 से 12 विरद्ध ,12 से 18 युवा ,18 से 24 कुमार ,24 से 30 बाल्यावस्था का काल होता है।
बाल्यावस्था में ग्रह अत्यंत न्यून फल देता है। कुमारावस्था में अर्द्ध मात्रा में फल देता है । युवावस्था का ग्रह पूर्ण फल देता है। विर्धावस्था वाला अत्यंत अल्प फल देता है और मिर्त अवस्था वाला ग्रह फल देने में अक्षम होता है।
इसी कड़ी में कल हम ग्रहों की अन्य सिथति की चर्चा करेंगे ताकि आप पता लगा सको की कोई ग्रह आपकी कुंडली में कितना फल देने में सक्षम है ।
ग्रहों का बलाबल
********************
मित्रों फलित ज्योतिष में जातक के फलादेश में और अधिक स्पष्ठता और सूक्ष्मता लाने हेतु ग्रहों के बलाबल और अवस्था का ज्ञान होना परम् आवश्यक है। आज से हमी इसी कड़ी में कुछ पोस्ट हर रोज करेंगे। ग्रहों के बलाबल 6 प्रकार के होते है जो इस प्रकार है:::::::-----
1. स्थान बल - जो ग्रह उंच राशिस्थ सवगरहि मित्र राशिस्थ मूलत्रिकोण राशिस्थ सवद्रेष्कनस्थ आदि सववर्गों में सिथत हो , इसके अतिरिक्त अष्टक वर्ग में 4 से अधिक रेखाएं प्राप्त हो तो वो स्थानब्ली कहलाता है। । इसके अतिरिक्त एक अन्य मान्यता के अनुसार स्त्री ग्रह स्त्री राशि में और पुरुष ग्रह पुरुष राशि में बलि माने जाते है।
2.दिक् बल - बुद्ध गुरु लग्न में चन्द्र शुक्र चोथे भाव में शनि सप्तम भाव में और सूर्य मंगल दसम भाव में दिक् बलि माने जाते है ।
3. काल बल- चन्द्र मंगल शनि राहु रात्रि में और सूर्य गुरु दिन में बलि होते है । शुक्र मध्यान्ह में और बुद्ध दिन रात दोनों में बलि होता है।
4. नैसर्गिक बल - शनि से मंगल ,मंगल से बुद्ध ,बुद्ध से गुरु, गुरु से शुक्र ,शुक्र से चन्द्र, चन्द्र से सूर्य क्रमानुसार ये ग्रह उत्तरोत्तर बलि माने जाते है।
5. चेष्ठा बल - सूर्य चंद्रादि ग्रहों की गति के कारण जो बल ग्रहों को मिलता है उसे चेष्ठा बल कहते है। सूर्य से चन्द्र उतरायनगत राशियों (मकर से मिथुन राशि पर्यन्त) में हो तो चेष्ठा बलि होते है । तथा क्रूर ग्रह सूर्य द्वारा दक्षिणायन गत ( कर्क से धनु राशि पर्यन्त )
राशियों में बलि माने जाते है। मतांतर से कुंडली में चन्द्र के साथ मंगल बुद्ध गुरु शुक्र शनि हो तो कुछ ब्लॉन्तित हो जाते है। कुछ विद्वान चेष्ठा बल को अयन बल भी कहते है। इसी प्रकार शुभ ग्रह वक्री हो तो राशि सबंधी सुखो में विर्धि करते है और पाप ग्रह वक्री हो तो दुःखो में विर्धि करते है।
6. दृक् बल- जिस ग्रह पर शुभ ग्रहों की dirsti पड़ती हो उसे दृक बलि कहते है।
बुद्ध गुरु शुक्र और बलि चन्द्र यानी पूर्णमाशी के आसपास का चन्द्र शुभ ग्रह कहलाते है मंगल सूर्य क्रूर और राहु केतु शनि पापी ग्रह कहलाते है।

No comments: