कुंडली में दसम भाव
कुंडली में दसम भाव हमारा कर्म स्थान है जिसके मालिक कालपुरुष की कुंडली के अनुसार शनी देव बनते है और शनी देव को लाल किताब में नजर का मालिक माना गया है ऐसे में जब शनी देव के इस भाव यानी की दसम भाव में दो या दो से ज्यादा शत्रु ग्रह एक साथ बैठ जाए तो शनी देव उनकी नजर को खराब कर देते है और वो ग्रह जातक को फिर अन्धो की तरह फल देते है | उदारहरण के लिय मान लीजिये दसम भाव में सूर्य गुरु और राहू विराजमान है ।ऐसे में सूर्य गुरु शनी के भाव में होने से कमजोर हो गये है साथ ही राहू के साथ होने से वो और ज्यादा खराब हो गये ऐसे में वो अपना पूर्ण फल जातक को नही दे पायेंगे | यहाँ शनी देव इनकी नजर को खराब कर देंगे |
दसम भाव हमारे कर्म छेत्र का होता है ऐसे में जातक को अपने कर्म छेत्र में विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है } व्यवसायिक छेत्र में काफी उतार चडाव का सामना जातक को करना पड़ता है | ऐसे में जातक के कार्य छेत्र में असिथिरता के हालात बने रहते है ।अब बात आती है की इनका उपाय क्या किया जाए ।
इसके लिय लाल किताब में एक बहुत ही आसान उपाय बताया है की दस अन्धो को एक साथ भोजन करवा दिया जाए तो जातक के कार्य छेत्र में आ रही बाधाये दूर हो जाती है | ये बात ध्यान रखनी होती है की दस को एक साथ भोजन करवाना होता है न की उन्हें भोजन के लिय पैसा आदि देना | इसके साथ ही हमे दसम में बैठे हुवे ग्रह के अलग अलग उपाय भी करने की आवश्यकता होती है जैसे की दसम में बैठे हुवे गुरु के लिय हम चने की दाल मन्दिर में दान कर सकते है क्योंकि गुरु की पंचम दृष्टी दुसरे भाव जो की धर्म स्थान है उसके उपर है | राहू के लिय जो को दूध से धोकर जल प्रवाह कर सकते है क्योंकि राहू की सप्तम दृष्टी चोथे भाव पर है | इसी तरह सूर्य के लिय ताम्बे का पैसा पानी में बहाने से वो चोथे भाव में चला जाता है । इस प्रकार गुरु दुसरे भाव में स्थापित हो जायेंगे तो सूर्य राहू चोथे भाव में | और दसम भाव में इन ग्रहों के मिल रहे प्रभाव जातक पर नही पड़ेंगे |
आपको एक बात हमेशा ध्यान रखनी होगी की किसी भी ग्रह को किसी अन्य भाव में पहुचाने के लिय रास्ता अवस्य बना हुआ होना चाहिए यानी की उस भाव पर उस ग्रह की दृष्टी अवस्य होनी चाहिए । जैसे की यहाँ गुरु की पंचम दृष्टी दुसरे भाव पर थी तो हमने उसकी वस्तु को धर्म स्थान में दान करने के लिए कहा ।
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