पितृ ऋण
1.पितृ ऋण : कुंडली में बृहस्पति (गुरु) अपने पक्के घर 2, 5, 9, 12 भावों से बाहर हो और बृहस्पति स्वंय 3,6,7,8,10 भाव में स्थित हो और बृहस्पति के पक्के घरों (2,5,9,12) में बुध या शुक्र या शनि या राहु या केतु बैठा हो, तो व्यक्ति पितृ ऋण से पीड़ित होता है। इसके अलावा पांचवें, नौवें या बारहवें भाव में जब शुक्र, बुध या राहु या फिर इनकी युति हो, तो जातक पर पितृ-ऋण ग्रस्त माना जाता है।
कारण : पितृ ऋण के कई कारण है। प्रारब्ध के कारण भी पितृ ऋण होता है। इसके अलावा तात्कालिक भी पितृ ऋष या दोष पैदा हो जाता है जैसे कि यदि आपने पास के मंदिर में तोड़ फोड़ हो, बढ़, पीपल, नीम, तुलसी सहित सात प्रमुख वृक्षों को काटा या कटवाया हो या पिता, दादा, नाना, कुल पुरोहित, पंडित आदि का अपमान किया हो।
समाधान : इस ऋण को कुछ लोग पितृदोष भी कहते हैं। इस दोष में सूर्य का उपाय करना चाहिए। इसके अलावा यह उपाय घर के सभी सदस्यों को मिलकर ही करना चाहिए। परिवार के सभी सदस्यों से बराबर धन एकत्रित करके किसी मंदिर में दान कर दें। किसी पीपल के वृक्ष को लगातार 43 दिन तक पानी अर्पित करें।
2.मातृ ऋण : जब कुंडली में चन्द्रमा द्वितीय एवं चतुर्थ भाव से बाहर कहीं भी स्थित हो तथा चतुर्थ भाव में केतु हो तो व्यक्ति मातृ-ऋण से पीड़ित रहता है। अर्थात चन्द्रमा विशेषतः 3,6,8,10,11,12 भावों में स्थित हो तो। इसके अलावा जब केतु कुंडली के चौथे भाव में बैठा हो तब भी मातृ ऋण माना जाता है।
कारण : जातक के कुल में किसी बड़े या पूर्वज ने विवाह या बच्चा होने के बाद अपनी मां को छोड़ दिया हो, नजरअन्दाज किया हो, मां के दुखी और उदास होने पर उसकी परवाह न की हो या मां को किसी भी रूप में दुखी किया हो।
समाधान : इस में सर्वप्रथम मां की सेवा करना चाहिए। चंद्र का उपाय करना चाहिए। बहते पानी या नदी में एक चांदी का सिक्का बहाना चाहिए। माता दुर्गा से क्षमा मांगनी चाहिए।
3.स्त्री ऋण : जब शुक्र कुंडली के 3,4,5,6,9,10,11 भावों में स्थित हो तथा द्वितीय या सप्तम भाव में सूर्य, चन्द्र या राहु स्थित हो तो जातक स्त्री (पत्नी) के ऋण से ग्रस्त होता है। इसके अलावा सूर्य, चन्द्र या राहु या उनकी युति कुंडली के दूसरे अथवा सातवें भाव में हो, तो जातक स्त्री-ऋण से ग्रसित माना जाता है।
कारण : इसका कारण लोभ या विवाहेतर संबंधों के चलते पत्नी या परिवार की किसी स्त्री की हत्या की संभावना या किसी गर्भवती महिला को हानि पहुंचाना हो सकता है। पत्नी का मन दुखाने और उसका अपमान करने से यह ऋण निर्मित होता है जो व्यक्ति की बर्बादी का कारण भी बन जाता है।
समाधान : स्त्री या पत्नीं का सस्मान करना और उन्हें खुश रखना सीखें। दिन के किसी समय पर 100 गायों को हरा चारा खिलाया जाना चाहिए। चरित्र को उत्तम बनाए रखें और माता लक्ष्मी की पूजा करें। पांच शुक्रवार को व्रत उपवास रखें।
4.पुत्री-बहन का ऋण : जब कुंडली में बुध 1,4,5,8,9,10,11 भावों में स्थित हो तथा 3,6 भावों में चन्द्रमा या बुध हो तो व्यक्ति बहन के ऋण से ग्रस्त होता है। यह ऋण है तो नौकरी और व्यापार में व्यक्ति कभी तरक्की नहीं कर सकता और वह हमेशा चिंता से ही घिरा रहता है।
कारण : इसका कारण किसी की बहन या बेटी की हत्या या उन्हें परेशान करने की संभावना हो सकती है या फिर किसी अविवाहित स्त्री या बहन के साथ विश्वासघात किया हो।
समाधान : बहन को खुश रखने के उपाय पर विचार करें। बहन नहीं है तो बहन बनाएं और उसको हर तरह से सम्मानित करें। सारे परिजन पीले रंग की कौड़ियाँ लेकर एक जगह इकट्ठी करके जलाकर राख कर दें और उस राख को उसी दिन नदी में विसर्जित कर दें।
5.भाई का ऋण : लाल किताब के अनुसार जब बुध या शुक्र किसी कुंडली के पहले या आठवें भाव में स्थित हों, तो उस जातक को भ्रातृ-ऋण या संबंधी-ऋण का भागी माना जाता है। इसे इस तरह समझें- कुंडली में मंगल 2,4,5,6,9,11 एवं 12 भावों में स्थित हो तथा प्रथम व अष्टम भाव में बुध, केतु स्थित हो, तो व्यक्ति रिश्तेदारी के ऋण से ग्रस्त होता है।
कारण: किसी पूर्वज द्वारा किसी दोस्त या रिश्तेदार के खेत या घर में आग लगाना या फिर भाई या संबंधी के प्रति द्वेष का भाव हो सकता है। दूसरा कारण घर में बच्चे के जन्म या उत्सव विशेष के वक्त घर से दूर रहना भी हो सकता है।
समाधान : भाई और रिश्तेदारों से संबंध अच्छे बनाएं। सभी परिजनों से रकम इकट्ठी करके किसी हकीम या वैद्य को दान करें।
6.आत्म-ऋण : पांचवें भाव में जब शुक्र, शनि, राहु या केतु स्थित हों या इनमें से किसी की युति पंचम भाव में हो, तो जातक आत्म-ऋण का भागी माना जाता है।
कारण : इसका कारण पूर्वजों द्वारा परिवार के रीति-रिवाजों और परम्पराओं से अलग होना या परमात्मा में अविश्वास हो सकता है।
समाधान : सभी संबंधियों के सहयोग से सूर्य यज्ञ का आयोजन करना चाहिए
क्रूरता-ऋण : सूर्य, चन्द्रमा या मंगल या इनमें से किसी की युति कुंडली के दसवें या बारहवें भाव में हो, तो जातक को इस ऋण से ग्रसित माना जाता है।
कारण: इसका कारण किसी की जमीन या पुश्तैनी घर जबरन हड़पना या फिर मकान-मालिक को उसके मकान या भूमि का पैसा न देना हो सकता है।
समाधान: अलग-अलग जगह के सौ मजदूरों या मछलियों को सभी परिजन धन इकट्ठा करके एक दिन में भोजन कराएं।
अजात-ऋण या पैदा ही न हुए का ऋण : लाल किताब के मुताबिक जब सूर्य, शुक्र या मंगल या फिर इन ग्रहों की युति कुंडली के बारहवें भाव में हो, तो जातक इस ऋण का भागी कहलाता है।
कारण : इसका कारण ससुराल-पक्ष के लोगों के साथ छल या फिर किसी को धोखा देने पर उसके पूरे परिवार का बर्बाद हो जाना है।
समाधान : सभी परिजनों से एक-एक नारियल लेकर उन्हें एक जगह इकट्ठा करें और उसी दिन नदी में प्रवाहित कर दें। ससुराल पक्ष से संबंध अच्छे बनाए रखने से यह ऋण नहीं होता।
जाति ऋण : जब कुंडली में 1,5,11 भावों को छोड़कर सूर्य कहीं भी स्थित हो तथा पंचम भाव में शुक्र, शनि, राहु या केतु स्थित हो, तो व्यक्ति जाति के ऋण से पीड़ित होता है।
जालिमाना ऋण: जब कुंडली में शनि 1,2,5,6,8,9,12 भावों में स्थिति हो तथा 10 या 11 भावों में सूर्य, चन्द्र और मंगल स्थित हो तो व्यक्ति जालिमाना ऋण से पीड़ित होता है।
अजन्मे का ऋण : जब कुंडली में राहु 6,12,3 भावों के अतिरिक्त किसी भी भाव में हो तथा 12वें भाव में सूर्य, मंगल और शुक्र मौजूद हो तो व्यक्ति अजन्मे के ऋण से ग्रस्त होता है।
आध्यात्मिक ऋण : जब कुंडली में केतु 2,6,9 के अतिरिक्त किसी भी भाव में हो तथा छटे भाव में चन्द्रमा और मंगल स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति पर आध्यात्मिक ऋण होता है।
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