ज्योतिष राशियों के बारे में जानकारी का आपका परम स्रोत.....
अगर आप पता लगाना चाहें कि आपकी राशि क्या है और आपकी संगत राशियां कौन सी हैं, तो आप सही जगह पर हैं। यहाँ आप राशि ज्योतिष, राशि संगतता और राशि की तिथियों के बारे में सभी जानकारी प्राप्त कर पाएंगे।
कुल १२ ज्योतिष राशियाँ होती हैं, और प्रत्येक राशि की अपनी ताकत और कमजोरियां, अपने स्वयं के विशिष्ट गुण, इच्छा एवं जीवन तथा लोगों के प्रति रवैया होता है। आकाश की छवियों, या जन्म के समय ग्रहों की स्थिति के विश्लेषण के आधार पर ज्योतिष हमें एक व्यक्ति की बुनियादी विशेषताओं, प्राथमिकताओं, कमियों और भय की एक झलक दे सकता है। अगर हम राशियों की बुनियादी विशेषताओं को जान लें तो हम वास्तव में लोगों को बहुत बेहतर जान सकते हैं।
राशिफल की १२ राशियों में से प्रत्येक एक विशिष्ट राशि तत्व के अंतर्गत आती हैं। चार राशिचक्र तत्व हैं: वायु, अग्नि, पृथ्वी और जल और उनमें से हरेक हमारे भीतर कार्यरत एक अनिवार्य प्रकार की उर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ज्योतिष का लक्ष्य हमें सकारात्मक पहलुओं पर इन ऊर्जा का ध्यान केंद्रित करना और हमारे सकारात्मक गुणों की एक बेहतर समझ पाने और नकारात्मकता से निपटने में मदद करना है।
हम सभी में यह चार तत्व मौजूद हैं और वे ज्योतिषीय राशियों से जुड़े चार विलक्ष्ण व्यक्तित्व प्रकारों का वर्णन करते हैं। चार राशिचक्र तत्व बुनियादी चरित्र गुणों, भावनाओं, व्यवहार और सोच पर गहरा प्रभाव दर्शाते हैं।
*जल राशि....*
जल राशि के जातक असाधारण भावनात्मक और अति संवेदनशील लोग होते हैं। वे अत्यंत सहज होने के साथ ही समुद्र के समान रहस्यमयी भी हो सकते हैं। जल राशि की स्मृति तीक्ष्ण होती है और वे गहन वार्तालाप और अंतरंगता से प्यार करते है। वे खुले तौर पर अपनी आलोचना करते हैं और अपने प्रियजनों का समर्थन करने के लिए हमेशा मौजूद रहते हैं।
*▶जल राशियाँ हैं: कर्क, वृश्चिक और मीन।*
*अग्नि राशि....*
अग्नि राशि के जातक भावुक, गतिशील और मनमौजी प्रवृति के होते हैं। उन्हें गुस्सा जल्दी आता है, लेकिन वे सरलता से माफ भी कर देते हैं। वे विशाल ऊर्जा के साथ साहसी होते हैं। वे शारीरिक रूप से बहुत मजबूत और दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं। अग्नि राशि के जातक हमेशा कार्रवाई के लिए तैयार, बुद्धिमान, स्वयं जागरूक, रचनात्मक और आदर्शवादी होते हैं
*▶अग्नि राशियाँ हैं: मेष, सिंह और धनु।*
*पृथ्वी राशि....*
पृथ्वी राशि के लोग ग्रह पर "धरती" से जुड़े हुए होते हैं और वे हमें व्यवहारिक बनाते हैं। वे ज्यादातर रूढ़िवादी और यथार्थवादी होते हैं, लेकिन साथ ही वे बहुत भावुक भी हो सकते हैं। उन्हें विलासिता और भौतिक वस्तुओं से प्यार होता है। वे व्यावहारिक, वफादार और स्थिर होते हैं और वे कठिन समय में अपने लोगों का पूरा साथ देते हैं।
*▶पृथ्वी राशियाँ हैं: वृष, कन्या और मकर।*
*वायु राशि....*
वायु राशि के लोग अन्य लोगों के साथ संवाद करने और संबंध बनाने वाले होते हैं। वे मित्रवत्, बौद्धिक, मिलनसार, विचारक, और विश्लेषणात्मक लोग हैं। वे दार्शनिक विचार विमर्श, सामाजिक समारोह और अच्छी पुस्तकें पसंद करते हैं। सलाह देने में उन्हें आनंद आता है, लेकिन वे बहुत सतही भी हो सकती है।
*▶वायु राशियाँ हैं: मिथुन, तुला और कुंभ।*
*राशि प्रेम संगतता चार्ट*
ज्योतिष में कोई भी असंगत राशि नहीं होती जिसका अर्थ है कि कोई भी दो राशि अधिक या कम संगत होती हैं। जिन दो लोगों की राशियों में अत्यधिक संगतता होती है, वे सरलता से निर्वाह करेंगे क्योंकि उनकी प्रवृति एक समान है। परंतु, ऐसे लोग जिनकी राशियों में संगतता कम होती हैं, उन्हें एक खुश और सौहार्दपूर्ण संबंध हासिल करने के क्रम में अधिक धैर्यवान एवं विनम्र बने रहने की आवश्यकता होगी।
*जैसा कि हम सभी जानते हैं, राशियाँ चार तत्वों से संबंधित हैं:*
▶अग्नि: मेष, सिंह, धनु
▶पृथ्वी: वृष, कन्या, मकर
▶वायु: मिथुन, तुला, कुंभ
▶जल: कर्क, वृश्चिक, मीन
राशियाँ जिनके तत्व एक समान हैं, स्वाभाविक रूप से उनमें संगतता होती है क्योंकि वे एक दूसरे को सबसे बेहतर समझते हैं। ज्योतिष की एक शाखा काम ज्योतिष है जहाँ के बीच प्रेम संबंध की गुणवत्ता जानने के लिए दो जातक कुंडलियों में तुलना करते हैं। काम ज्योतिष या एक लग्न राशिफल उन जातकों के लिए एक उपयोगी उपकरण हो सकता है, जो अपने रिश्ते में शक्तियों और कमजोरियों का पता लगाना चाहते हैं। राशियों की तुलना करना जीवनसाथी को बेहतर समझ पाने में भी मदद सकता है।
कुंडली का पहला भाव यानी लग्न
मित्रों जन्म कुंडली विश्लेष्ण में यदि किसी का सबसे ज्यादा महत्व है तो वो लग्न का है हालांकि अन्य भाव और वर्ग कुंडलियों का भी अपनी अपनी जगह महत्व है लेकिन जब तक लग्न और लग्नेश की सिथ्थी सही नही हो अच्छे से अच्छा योग भी अपना पूर्ण प्रभाव नही दे पाता है| वैसे तो और भाव किसी न किसी अंग को दर्शाता है लेकिन लग्न हमारे पुरे शरीर को दर्शाता है |
लग्न से किसी इंसान के व्यव्क्तित्व का पता चलता है समाज में जातक का नाम किस हशिय्त का होगा जातक कितना परोपकारी होगा हालांकि ये भाव 25% ही परोपकारी दर्शाता है बाकी ७५% परोपकार का नवम भाव से पता चलता है|
ये भाव हमारे जीवन के पहले भाग यानी 25 वर्ष तक की उम्र को विशेष रूप से दर्शाता है जातक अपने पुराने रिति रिवाजों पर कितना चलताहै उसका इस भाव से पता चलता है| हम पिछले जन्म के कर्मों का कितना भाग इस जन्म में लेकर आये है और उनका कितना फल हमे मिलना है वो इसी भाव से पता चलता है| पहला भाव पूर्व दिशा को दर्शाता है इसिलिय जिस जातक का सूर्य पहले भाव में हो या बहुत अच्छी सिथ्ती में हो उसे पूर्व दिशा का मकान शुभ फल देता है|
इसी भाव के द्वारा हमारा वर्तमान कैसा बित रहा है हम अपने दम पर कितना धन कम सकते है उसका पता ये भाव ही बतलाता है|
हमारे घर में ड्राइंगरूम या बैठक जहाँ पर बैठकर हम दूसरों से बात करते है वो भी ये ही भाव दर्शाता है| साथ ही ये भाव दर्शाता है की हम अपनी नोकरी व्यवसाय में कितने ऊँचे पद को प्राप्त करेंगे|
इस भाव में बैढे हुवे गरहो से हम अपने काम में आने वाली दवाइयों के बारे में जान सकते है की हमे आयुर्वेदिक दवाई कार्य करेगी या कोई अन्य और किस प्रकार से कार्य करेगी|
मुख्य रूप से ये भाव हमारे माथे और चहेरे को दर्शाता है साथ ही हमारे अभिमान की मात्रा को भी दर्शाता है| अपने पारब्र्ध के कर्मों के कारण हम इस शरीर में क्या क्या भुगतेंगे और इस शरीर से क्या क्या कमाएंगे उसका पता इसीभाव से चलता है|
लाल किताब के १९४२ के संस्करण में इसे "झगड़ा मनुष्य और माया" का कहा गया था जबकि १९५२ के संस्करण में इसे झगड़ा जहाँ रूह माया का कहा गया |
पहले घर का कारक ग्रह सूर्य है इसिलिय पहले भाव के फल देखते समय हमे कुंडली में सूर्य की सिथ्ती भी देखनी होती है | कालपुरुष की कुंडली में मंगल की मेष राशि इस भाव में आती है और वो इस भाव के मालिक बन जाते है और ऐसे में मंगल यहाँ ग्रहफल का होगा यानी की ऐसा ग्रह जिसके फल को किसी भी उपाय से बदला नही जाता इसिलिय इस भाव में मंगल होने पर मंगल का उपाय नही किया जाता बल्कि किसी अन्य ग्रह की मदद से मंगल को ठीक किया जाता है |
कहने का अभिप्राय ये है मित्रों की इस भाव की शुभ अशुभ सिथ्ती हमारे जीवन में सबसे ज्यादा प्रभाव डालने वाली है | चूँकि ये पूरा शरीर को दर्शाता हैं और कहा भी जाता है पहला सुख निरोगी काय | यदिये भाव सही है तो अन्य भाव के फल आप अपने शरीर की महनत के द्वारा प्राप्त करने की कोशिस क्र सकते हो| इस भाव के को वैदिक ज्योतिष में भी इसी कारण सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है और इसी कारण इस भाव को केंद्र और त्रिकोण दोनों में सामिल किया गया है | यदि आपका शरीर ठीक है तो आप अन्य भावों की फल का आनंद आसानी से ले सकते है जैसे की यदि शरीर ठीक है तो धन का सुख आप ले सकते है आपमें पराक्रम बहुत होगा मकान वाहन का सुख आप अच्छी तरह भोग सकते है सन्तान उत्पति में समस्या नही आती तो आप अच्छी शिक्षा और बुद्धि के मालिक बन सकते है ऋण रोग सत्रु आप पर हावी नही हो सकता आप का जीवनसाथी के साथ साथ लंबा और अच्छा होगा तो जातक की उम्र लम्बी होगी और वो जीवन में आने वाली मुसीबतों का आसानी से मुकाबला कर सकता है अपने भाग्य का पूर्ण प्रयोग कर सकता है और कर्म छेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकता है अपने जीवन की इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है तो होस्पिटल आदि के व्यर्थ के खर्च से बच सकता है ये सब तभी होगा जब लग्न और लग्नेश बली होगा लेकिन इसके साथ हमे भाव विशेष का भी साथ में अध्ययन करना होगा जैसे सन्तान के लिय पंचम भाव का अध्ययन करते समय पंचमेश का अध्ययन भी आवश्यक होगा लेकिन बिना लग्न लग्नेश का अध्ययन किये ये अधूरा अध्ययन होगा इसी कारण लग्न को सभी ज्योतिष विद्याओं में सबसे ज्यादा महत्व दियया है |
मित्रों किसी भी भाव के फल को देखते समय हमे भाव भावात सिंद्धांत का भी ध्यान रखना होगा जैसे पहला भाव दुसरे भाव यानी की धन भाव का खर्च व्यय भाव है यानी की हम अपने संचित धन का कितना व्यय अपने शरीर के उपर करेंगे वो इसी भाव पर निर्भर करता है | इसी प्रकार ये नवम भाव यानी की पिता के भाव से पंचम यानी की का पुत्र यानी की हमारे खुद के बारे में ज्ञान करवाता है पिता की बुधि विद्या का ज्ञान हमे करवाता है | इसी प्रकार ये छ्टे भाव यानी ऋण रोग शत्रु से अस्ठ्म भाव है हम किस प्रकार ऋण से निपटेंगे शत्रु को किस प्रकार हानि पहुंचाएंगे आदि का पता इसी भाव से चलेगा |
मित्रों आज से सभी भावों के बारे में पोस्ट करूंगा की कौन से भाव किस चीज का प्रतीक है |
कुंडली में दुसरा भाव
मित्रों ज्योतिष में दुसरे भाव को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है | ये सबसे मुख्य बात की हमारे कुटुंब परिवार को दर्शाता है ,हमारे द्वारा किये जाने वाले संचित धन और परिवार से मिलने वाले धन को ये भाव दर्शाता है इसिलिय सोने चांदी का सम्बन्ध इसी भाव से मना गया है | हमारे शरीर में ये दाई आँख चेहरे और गले को दर्शाता है | इस भाव को वाणी भाव भी कहा जाता है इसिलिय हमारी वाणी मीठी होगी या नही और गायन छेत्र में हमे कैसी सफलता मिल सकती है वो इसी भाव पर निर्भर करता है \ हमारी वाणी का प्रभावशाली होना भी इसी भाव पर निर्भर करेगा \ हमारे द्वारा सही और उचित तरीके से कमाए हुवे धन को ये ही भाव दर्शाता है |.एक बात खास है की पहले भाव से हमारे शरीर को दर्शाया जाता है लेकिन आपको पता है की बिना भोजन के शरीर नही चल सकता इसिलिय खाद्य पदार्थ को इस भाव द्वारा दर्शाया जाता है
मित्रों दुसरे भाव का कारक ग्रह गुरु है इसिलिय हमारे अंदर आध्यात्मिकता की भावना कितनी होगी , उसका हमे कितना ज्ञान होगा उसका अनुमान भी इसी भाव द्वारा लगाया जाता है \हमारे जीवन के पहले पढ़ाव यानी की उम्र के 25 वें साल तक हम कितना ज्ञान अर्जित करते है उसका अनुमान इसी भाव से लगाया जाता है \ इसी लिय आरम्भिक शिक्षा के लिय इसी भाव का अध्ययन आवश्यक हो जाता है \चूँकि शुक्र की विर्ष राशि यहाँ काल पुरुष की कुंडली में आती है इसिलिय हम अपने धन का कितना ऐश आराम के लिय प्रयोग कर सकते है उसका भी पता इस भाव से चल जाता है \ ऐसा पोधा जिसकी कलम काटकर उसे लगाया जता है उसका भी काराक ये ही भाव है जैसे की मनीप्लांट का पोधा \
हमारे अंदर दूसरों से अपना काम निकलवा लेने की जो कला होती है उसका भी ये ही भाव कारक होता है |
दुसरे भाव को धर्म स्थान की संज्ञा लाल किताब में दी गई है लेकिन घर के अंदर पुराने समय में जहां घर में लोग गाय को बांधते थे वो इसी भाव को इंगित करता है | दिशा में इस भाव को उतर पश्चिम दिशा दी गई है इसिलिय इस भाव में यदि कोई ग्रह शुभ फल दे रहा है तो हम उसकी वस्तु को इस दिशा में घर में कायम कर सकते है उसके ज्यादा शुभ लेने के लिए\ साथ ही इसे ससुराल का भाव भी माना गया है ससुराल से आपको कितना धन लाभ या अन्य कोई लाभ मिलेगा उसका पता इसी भाव से चलता है \
मित्रों प्राचीन ज्योतिष में इसे मारक भाव की श्रेणी में रखा गया है इसिलिय इस भाव का मालिक कुंडली में मारक ग्रह माना जाता है \
भाव भावात के सिद्धांत के हिसाब से यदि हम देखें तो ये भाव चोथे भाव से ग्यारवाँ भाव है यानी की हमे अपनी माता जन्म भूमि आदि कितना लाभ मिलेगा साथ ही हमारी माता जी की कितनी इच्छाओं की पूर्ति होगी उसे ये ही भाव दर्शाता है | ये भाव पंचम से दसम होने से सन्तान का कर्म भाव बन जाता है तो सप्तम से अस्ठ्म होने के कारण जीवन साथी की आयु का भाव \ लेकिन भाग्य से भाव से ये छटा भाव होने के कारण हमारे भाग्य का शत्रु भाव भी हो जाता है तो पिता के लिय ये रोग का भाव बन जता है | इसी प्रकार आप अन्य सभी भावों के द्वारा इसका अनुमान लगा सकते है ।
तृतीय भाव और ज्योतिष
मित्रों तीसरे भाव को ज्योतिष में साहस और शोर्य का भाव की संज्ञा दी गई है क्योंकि ये हमारी बाजुओ की ताकत को दर्शाने वाला भाव है हम में कितना साहस आत्मविश्वास है उसे ये ही भाव दर्शाता है \ इसका एक प्रमुख कारण ये है की मंगल इस भाव का कारक ग्रह है और मंगल को ज्योतिष में उतेजना साहस हिम्मत का कारक ग्रह माना गया है | इसी के साथ ये जातक के द्वारा अपना फर्ज किस हद तक निभा सकता है उसके बारे में भी हमे जानकारी देता है \साथ ही दूसरों के साथ लड़ाई झगड़े में हमारी हालत कैसी होगी उसे भी ये भाव दर्शाता है |
रिश्तेदारी में ये भाव हमारे छोटे भाई को इंगित करता है हमारे भाईयों की सिथ्ती कैसी होगी वो इसी भाव पर निर्भर करता है \ दिशाओं में ये भाव दक्षिण दिशा का कारक भाव है इसिलिय इस भाव में यदि मंगल अच्छी सिथ्ती में हो तो उस जातक को दक्षिण दिशा के दरवाज़े वाला मकान भी नुक्सान नही करता क्योंकि मंगल दक्षिण दिशा का कारक ग्रह होता है \ शरीर में ये हमारे बाजुओं दाए कान और फेफड़ो को दर्शता है इसिलिय इस भाव की अशुभता होने पर जातक को इनमे से किसी एक अंग में समस्या का सामना करना पड़ जाता है \
इस भाव का सम्बन्ध घर में रखे जाने वाले हथियारों से भी है इसिलिय यदि इस भाव में बहुत ही शुभ ग्रह हो और घर में यदि जंग लगे हुवे बिना धार के ये खराब हो चुके हथियार रखे जाए तो उनका जातक को अशुभ फल मिलता है |
फलदार पोधे भी इसी भाव द्वारा देखें जाते है इसिलिय यदि इस भाव में अच्छे फल देने वाले ग्रह है तो ऐसे पोधे घर में लगाने से लाभ मिलता है |
वैसे तो व्यय भाव बारवां होता है लेकिन तीसरे भाव को भी धन की हानि का मना जाता है इसिलिय चोरी आदि होना इसी भाव से देखा जाता है |
मित्रों ये भाव किसी भी चीज में एक्स्ट्रा मेहनत और देरी करवाने का भी कार्य करता है जिस भी भाव के मालिक का सम्बन्ध इस भाव से बनता है उसके फलों में देरी ये भाव करवा देता है जैसे की पंचमेश यहाँ हो तो सन्तान होने में देरी हो जाती है यदि सप्तमेश यहाँ हो तो विवाह होने में देरी हो जाने के योग बन जाते है | साथ ही जिस भाव उस भाव से सम्बन्धित फलों की प्राप्ति के लिय जातक को एक्स्ट्रा मेहनत और भाग्दौर करनी पडती है जैसे की चतुर्थेश यहाँ हो तो जातक को मकान वाहन लेने के लिय सामान्य से ज्याददा मेहनत और भाग्दौर करनी पडती है |
चूँकि ये भाव अस्ठ्म भाव से अस्ठ्म होंता है इसिलिय ये कुछ हमारी आयु को भी दर्शाता है इसिलिय इसे “ दुनिया से हमारा नाता खत्म “ कहकर संबोधित किया गया है |
इस भाव में यदि ग्रह अच्छे फल नही दे रहे हो तो हमे हमारी मेहनत का पूर्ण फल नही मिल पाता है जीवन में संघर्ष और भाग्दौर बहुत करनी पडती है | भाइयों की हालत भी जायदा अच्छी नही रहती |
चोथा भाव और हमारी कुंडली
मित्रों आज कुंडली के एक अहम भाव के बारे में लिख रहा हूँ | आज के इन्सान की सबसे मुख्य समस्या यदि कोई है तो मानसिक सुख ग्रहस्थ सुख मकान वाहन आदि के सुख की है जातक को इनमे से किसी न किसी समस्या का सामना अक्सर करना पड़ता है और ये सभी चीजें चोथे भाव से देखि जाती है | चोथे भाव में अशुभ ग्रह होने पर जातक की मन की शान्ति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है यानी जातक के पास कई बार सब कुछ होते हुवे भी कुछ पास में न होने का अहसास होता है | जीवन में विघ्न आते रहते है | जातक का मन मुरझाये हुवे फुल की तरह रहता है और उसके जीवन के जह्दोजहद में उसके होसले में काफी कमी आ जाती है |
दिशा की दृष्टी से चोथा भाव उतर दिशा का है इसिलिय यदि इस भाव में शुभ ग्रह हो तो उस ग्रह से सम्बन्धित वस्तु घर की उत्तर दिशा की दिवार के पास कायम करनी चाहिए इसके विपरीत यदि अशुभ ग्रह हो तो उस से सम्बन्धित वस्तु इस दिशा ने बिलकुल भी कायम नही करनी चाहिए |
चोथे भाव का सम्बन्ध माता के पेट से भी है यानि गर्भ अवस्था को भी ये भाव इंगित करता है साथ ही ये हमारे लिय हमारी माता का भी भाव होता है इसिलिय यहाँ अशुभ ग्रह होने पर माता को जीवन में कोई न कोई समस्या का सामना करना पड़ता है या हमे उनका सुख कम मिल पाता है |
इस भाव को लक्ष्मी स्थान यानी की घर में धन रखने का स्थान भी कहा है ऐसे में इस भाव में शुभ ग्रह होने पर घर में इसी की दिशा में धन रखने से विशेष बरकत होती है | इस भाव को चास्मारिज्क की संज्ञा दी गई है यानी की हमारे धन के सम्बन्ध में हमारी किस्मत का चस्मा फूटेगा या नही वो इसी भाव पर निर्भर करता है | इसिलिय इस भाव के चन्द्र को खर्च करने पर आमदनी का बढने वाला जरिया कहा गया है | चूँकि चन्द्र इस भाव का कारक है इसिलिय इस भाव के फल कुंडली में चन्द्र की सिथ्ती पर भी निर्भर करते है |
रसों वाले फलों के पेड़ को भी ये भाव दर्शता है |
हमारे शरीर में ये हमारे ह्दय का प्रतिनिधित्व करता है ऐसे में इस भाव में अशुभ ग्रह होने पर ह्दय सम्बन्धित रोग की सम्भवना बढ़ जाती है | औरत की कुंडली में ये नाभि के आसपास के छेत्र को दर्शाता है ऐसे में अशुभ ग्रह इस भाव में होने पर गर्भावस्था के समय स्त्री के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है |
धन के सम्बन्ध में ये हमारे पिछले जन्म के बंद मुठी में लाये हुवे धन को प्रदशित करता है यानी पिछले जन्म के कर्मो के आधार पर जो धन का लाभ हमे मिलेगा उसको ये द्रष्टा है | साथ ही ये भाव जातक की खुद की कमाई से बनाये हुवे मकान गाडी आदि का भी है |
ये भाव चन्द्र का है और इसिलिय इस भाव में शुभ ग्रह होने पर रात्री में किये हुवे कार्य में विशेष लाभ मिलता है या फिर किसी भी कार्य की योजना यदि रात्री में बनाई जाए उसमे सफलता के ज्यादा चांस बन जाते है | लेकिन यदि यहाँ अशुभ ग्रह हो तो विपदा भी ज्यादातर रात्री के समय ही आती है | शुभ ग्रह यदि यहाँ हो तो वे हमारे जीवन की हर विप्प्दा में हमारा साथ देने वाले होंगे |
ये भाव पंचम भाव से बारवां भाव है इसिलिय विद्या के सम्बन्ध में भी इस भाव का अध्ययनं किया जाता है यानी की हम अपनी शिक्षा को किस प्रकार खर्च करेंगे उसका इसी भाव से पता चलता है \ भाग्य भाव से अस्ठ्म भाव होने से ये हमारे भाग्य में आने वाले उतार चढ़ाव को भी प्रभावित करता है \ ये भाव सप्तम से दसम होने के कारण हमारे जीवन साथी के कर्म छेत्र को भी इंगित करता है | इस प्रकार हम अन्य भाव से इसका सम्बन्ध जान सकते है \
मित्रो इस प्रकार इस भाव में विराजमान ग्रह और इस भाव के कारक ग्रह चन्द्र की सिथ्ती के आधार पर अप इस भाव के फलों का अनुमान लगा सकते है |
पंचम भाव
मित्रों भाव के सम्बन्ध में आज हम पंचम भाव से क्या क्या देखते है उस पर कुछ लिख रहा हूँ | पंचम भाव कुंडली के मुख्य भावों में स्थान प्राप्त है क्योंकि इसकी गिनती त्रिकोण में होती है |पंचम भाव से मुख्य रूप से सन्तान विद्या बुद्धि को देखा जाता है \ ये हमारी समझ का भाव होता है की हमारी समझ कैसी है हम अपनी बुद्धि का किस प्रकार से कितना प्रयोग करते है | मानसिक तौर पर हमारी चेतनता कितनी है , हमारे मन में इमानदारी किस हद तक है , जमाने में हमारा नाम मान कैसा है यानी की समाज में हमारा मान सम्मान कैसा है उसका पता भी इसी भाव से चलता है | पंचम भाव के द्वारा ही हमारे पूर्ण जन्म के कर्म के बारे में अनुमान लगाया जाता है \ सबसे मुख्य बात की पंचम भाव हमारे ईस्ट का भी होता है \ हम ज्योतिषीय दृष्टीकोण से किसे हम अपना ईस्ट मानकर पूजा करे उसे ये ही भाव दर्शाता है \ बिना सन्तान के मानव जीवन अधूरा सा होता है सन्तान सुख के लिय इस भाव की अहम भूमिका होती है \ आपकी उंच शिक्षा के लिय कैसी होगी उसके लिय भी इसी भाव का अध्ययन किया जाता है \
पंचम भाव मुख्य रूप से प्रेम सम्बन्धों का भी भाव है आपको आपके प्यार में सफलता मिलेगी या नही ये इसी भाव पर निर्भर करता है \ प्रेम सम्बन्ध का आपके जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ेगा उसका अध्ययन भी इसी भाव को ध्यान में रखकर किया जाता है \
अचानक मिलने वाले धन लाभ जैसे की सटे लोटरी से धन मिलने के योग भी इसी भाव से देखें जाते है \
हमारे भाग्य की चमक कैसी होगी उसका पता इसी भाव से चलता है चूँकि ये भाव भाग्य भाव से नवम पड़ता है इसिलिय हमे भाग्य की कितनी मदद मिलेगी उसका पता इसी भाव से चलता है | कई लोग थोड़ी सी मेहनत से ही सफलता की नई ऊँचाइयों को छु लेते है उसका एक मुख्य कारण उसका पंचम भाव स्ट्रोंग होना होता है |
शरीर में ये हमारे पेट को मुख्य रूप से इंगित करता है \ जब भी ये भाव दूषित हो रहा हो तो जातक को स्वास्थ्य में पेट से सम्बन्धित परेशानियों का सामना करना पड़ता है \
पेड़ पोधों के सम्बन्ध में ये भाव ऐसे पोधे से है जिनकी कलम काटकर लगाया जाता है इसिलिय यदि ये भाव शुभ ग्रह से युक्त है तो घर में ऐसे पोधे लगाने शुभ फल दे देते है \
चूँकि ये हमारे ईस्ट का भी भाव है इसिलिय इसी भाव पर हमारी अध्यात्मिकता निर्भर करती है की हम कितने आध्यात्मिक परवर्ती के इंसान है \
दूसरों से जीवन में आगे आने के लिय प्राप्त किये जाने वाले धन ज्ञान आदि को भी ये ही भाव दर्शाता है | गुरु इस बहव का कारक ग्रह है |
लाल किताब में इस भाव को घर की पूर्वी दिवार के पास की संज्ञा दी गई है इसिलिय इस भाव में यदि शुभ ग्रह हो तो उनकी वस्तु घर में इस दिवार के पास स्थापित करनी चाहिए \
भाव भावत सिद्धांत को हम देखें तो ये भाव छ्टे भाव से बारवां भाव है याने की हमारी ऋण रोग शत्रु को कम करने वाला भाव \ जब भी इंसान पर इन चीजों से दुस्र्भाव होता है तो उसकी समझ उसकी सनातन उसकी विद्या ही उसे इन सबसे निपटने में सहायता करती है \ इसी प्रकार ग्यारवाँ भाव से ये भाव सप्तम होने के कारण हमारी भाभी का भी हो जता है \ तो व्यय भाव से छटा होने से हमारे खर्च के शत्रु का भाव ये बन जाता है \चूँकि ये दुसरे भाव से चोथा है इसिलिय पारिवारिक सम्पति से हमे कितना सुख मिलेगा उसे भी इसी भाव से देखा जा सकता है \ इस प्रकार आप अन्य भाव से इस भाव का सम्बन्ध स्थापित कर सकते है \
छटा भाव
मित्रों आज की भागमभाग की जिन्दगी में इंसान की जो सबसे बड़ी समस्या होती है वो ऋण रोग शत्रु मुख्य रूप से होते है और यदि इंसान इनसे बचा रहता है तो उसे हम एक सुखी इंसान की संज्ञा दे सकते है और इन सभी चीजो को जो भाव कुंडली में दर्शाता है वो छटा भाव होता है |
छटा भाव हमारे आंतरिक मन के साथ साथ बाहरी शरीर को भी दर्शता है | छटा भाव हमारे मानसिक संताप , दुश्मनी , बिमारी ,ननिहाल , नौकरी , रखैल , भुत बाधा , पेट पाचन शक्ति , कर्ज और फौजदारी मुकदमे का कारक भाव है |
यदि इस भाव में कोई ग्रह न हो वो जातक के लिय बहुत शुभ रहता है ऐसे में जातक को शरीरिक या मानसिक संताप से काफी हद तक बचा रह सकता है |
लाल किताब में इस भाव को पाताल का भाव कहा गया है और इसी कारण इस भाव से सम्बन्धित उपाय अक्सर ग्रह से सम्बन्धित वस्तु को कुवे में डालने से सम्बन्धित बताये जाते है | इस भाव का सम्बन्ध हमारे पैसे के लेन देन से भी है | यदि हम किसी को कर्ज देते है और उसके वापिस मिलने या पैसा डूबने का सम्बन्ध मुख्य रूप से इसी भाव से किया जाता है या हम खुद कर्ज में डूबें रहेंगे या कर्ज से मुक्त होंगे या नही वो भी इसी भाव से पता चलता है | हमारे घर में यदि कोई तहखाना है या ऐसी जगह जो जमीन के अंदर हम पैसे रखने के लिय बनाई हुई होती है उसे ये ही भाव दर्शाता है |
ये भाव हमारी अंदरूनी अक्ल को भी दर्शता है यानी किसी विषय को बिना किसी तर्क के समझ लेना इसी भाव पर निर्भर करता है इसिलिय इस भाव के फल यदि किसी जातक को मिल रहे होते है तो वो अधिकतर प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होता है | साथ ही जातक अपने मतलब का बात बहुत जल्दी समझ लेता है |
भाग्य के सम्बन्ध में हमारे भाग्य में किस हद तक गिरावट होगी उसको ये दर्शता है | हमारे रिश्तेदारों से हमे लाभ या हानि इसी भाव द्वारा पता चलता है | जानवरों के सम्बन्ध में ये बकरी तोता मैना आदि को दर्शाता है ऐसे में इस भाव में शुभ ग्रह हो तो इन्हें पालने से शुभ फल बडोतरी होगी |
जातक अपने ग्रहस्थ आश्रम का पालन करते हुवे किस हद तक साधुपन अपना सकता है उसे भी ये भाव दर्शता है |शरीर में ये हमारी कमर और पठ्ठो को दर्शाता है तो साथ ही नाड़ियों को भी | हमारे शत्रु किस प्रकार के होंगे और वो हमे कितना नुक्सान पहुंचा सकते है उसका अनुमान भी इसी भाव से लगाया जाता है |
इसिलिय मित्रों इस भाव से सम्बन्धित ग्रहों को मजबूत करने से बचे क्योंकि ये हमारे शरीर के शत्रु का भाव है जो किसी भी प्रकार का हो सकता है |
ये भाव हमारी प्रतियोगिता की छमता को भी दर्शाता है चाहे वो प्रतियोगिता किसी निजी जीवन में शत्रु से लड़ने की हो या किसी नोकरी के लिय होने वाली परीक्षा की या फिर चाहे शरीर में रोग प्रतिरोधक छमता की सब इसी भाव पर निर्भर करता है \ दसम भाव कर्म का भाव होता है लेकिन जब नोकरी के दृष्टीकोण से जन्मकुंडली का अध्ययन किया जाता है तो इसी भाव क देखा जाता है \
हमारे शत्रु किस प्रकार के होने या हमे किस प्रकार की स्वास्थ्य की समस्या काक सामना करना पड़ेगा उसका पता इसी भाव से चलता है \ जैसे यहाँ शनी हो तो शत्रु मकार किस्म के इंसान होते है जो जातक को नुक्सान पहुचाने के लिय किसी भी हद तक गिर सकते है जबकि यहाँ चन्द्र या शुक्र जैसे स्त्री ग्रह हो तो स्त्री टाइप के शत्रु होते है जो ज्यादा से जायदा जातक की चुगली करके नुक्सान पहुचाने की कोसिस करते है और यदि यहाँ बुद्ध हो तो जातक के मित्र ही कई बार उसके शत्रु बनकर उसे नुक्सान पहुंचा देते है \ इस प्रकार हर ग्रह के हिसाब से अनुमान ;लगाया जा सकता है \
भाव भावत सिद्धांत के अनुसार ये भाव सप्तम भाव यानी की विवाहिक जीवन का व्यय भाव होता है इसिलिय विवाहिक जीवन के सुखों में कमी करने में ये अहम भूमिका निभाता है \
भाग्य भाव से दसम होने के कारण ये भाग्य के छेत्र में हमारे कर्म को दर्शाता है की हमे अपने भाग्य के लिय कितनी और कैसी मेहनत करनी होगी |
सप्तम भाव और ज्योतिष
मित्रों ज्योतिष सप्तम भाव को अहम भूमिका सोंपी गई है \ सप्तम भाव से मुख्य रूप से विवाह के बारे में देखा जाता है \ शादी सही समय पर होगी या नही , कितनी शादिया होगी और विवाहिक जीवन कैसा रहेगा इन सभी प्रश्नों के उतर खोजने में इस भाव की अहम भूमिका होती है \ जातक का जीवन साथी कैसा होगा उसका रूप रंग स्वभाव सब कुछ इसी भाव पर निर्भर करता है \ शुक्र और बुद्ध इस भाव का कारक ग्रह है इसिलिय शुक्र बुद्ध की कुंडली में सिथ्ती पर इस भाव के फल मुख्य रूप से निर्भर करते है \
{आप हमारे जीवन को एक आटा पसीने वाली चाकी मान लेते है तो उसका उपर का जो पाट होता है तो लग्न है तो सप्तम उसका निचे वाला पाट और जिस लोहे की किली पर ये पाट घूमते है वो अस्ठ्म भाव है | इस चाकी के पाट जो की बुद्ध है में आटा शुक्र पिसा जाता है \ इसिलिय आपने देखा होगा की पुराने समय में जब तक घरों में ये आटा पिसने वाली चाकी होती थी विवाह विच्छेद कम हुआ करते थे क्योंकि सप्तम भाव के दोनों कारक ग्रह बुद्ध शुक्र इस चाकी के कारण घर में कायम रहते थे }ये तो है लाल किताब की बात|||||
सप्तम भाव को साझेदारी और व्यवसाय का भाव भी कहा जाता है \ आपको किस चीज के व्यापार में लाभ मिलेगा और आपका व्यापार कैसा रहेगा उसमे इस भाव की अहम भूमिका होती है तो साथ ही यदि आप किसी के साथ साझेदारी में कोई कार्य करने की सोच रहे है तो साझेदारी आपको लाभ देगी या नुकसान वो सब इसी भाव पर निर्भर करता है \
शरीर में ये हमारे मुख्य रूप से चमड़ी को दर्शाता है इसिलिय यदि यहाँ शुक्र दूषित अवस्था में हो तो चमड़ी से सम्बन्धित रोग होने की सम्भवना हो जाती है \
मित्रों सप्तम भाव की गिनती कुंडली के मारक भाव में की जताई है क्योंकि ये हमारी आयु के भाव याने की अस्ठ्म भाव का व्यय भाव है यानी की हमारी आयु को खर्च को दर्शाने वाला भाव इसिलिय इस भाव का स्वामी ज्योतिष में मारक ग्रह कहलाता है \
दिशा के सम्बन्ध में ये भाव पश्चिम दिशा को दर्शाता है और ये ही कारण है की शनी देव इस भावमें दिशाबली हो जाते है \
हमारी किस्मत का फैलाव किस हद तक हो सकता है और किस्मत का लाभ हमे कितना मिल सकता है ये सब इसी भाव पर निर्भर करता है \
जन्न अंगो से होने वाली बिमारी का सम्बन्ध भी काफी हद तक इस भाव से है \मुख्य रूप से सेक्स से सम्बन्धित बिमारी के लिय इस भाव का अध्ययन अहम भूमिका निभाता है \
हालाँकि शत्रु के लिय छ्टे भाव का अध्ययन किया जता है लेकिन दीवानी मुकदमे के लिय इसी भाव का अध्ययन किया जाता है
हमारी दैनिक आमदनी को भी ये भाव दर्शाता है \
यदि हम भाव भावात सिद्धांत देखें तो तीसरे भाव से पंचम भाव होने के कारण ये भाव हमारे भतीजे भतीजी को दर्शाता है याने की भाई बहन की सन्तान \ इस प्रकार पंचम से तीसरा होने के कारण ये भाव हमारी दूसरी सन्तान को दर्शाता है क्योंकि पंचम हमारी पहली सन्तान है तो उसका छोटा भाई या बहन उस से तीसरा यानी की हमारी कुंडली का सप्तम भाव होगा \ कर्म भाव से दसम भाव होने के कारण ही इस भाव का व्यवसाय से मुख्य सम्बन्ध मना जाता है \ इस प्रकार आप अन्य भाव से इस भाव का सम्बन्ध जान सकते है \
अस्ठ्म भाव और ज्योतिष
मित्रों ज्योतिष में कुंडली में सबसे ज्यादा बुरे भाव की संज्ञा दी गई है वो अस्ठ्म भाव है जिसका कारण ये है की नवम भाव हमारे भाग्य का भाव होता है और ये भाव भाग्य भाव से व्यय भाव होने से दुर्भाग्य का भाव कहलाता है याने हमारे भाग्य का खर्च | भाग्य में आने वाली रुकावट को ये ही भाव दर्शता है | किस्मत से मिलने वाले दोखे को ये भाव ही दर्शाता है | किस्मत के हाथों हम कितना दोखा खायेंगे और जीवन में कितनी जेह्दोजह्द करेंगे वो इसी भाव पर निर्भर करता है |
जीवन में अचानक आने वाले विपति और ऐसी समस्याये जिनके कारण जल्दी से समझ में नही आते उनका भी ये भाव कारक माना गया है | अस्ठ्म भाव को आयु का भाव मना गया है इसिलिय जातक की आयु कितनी होगी वो इस भाव के द्वारा देखा जाता है साथ ही जातक की मृत्यु किस प्रकार से हो सकती है उसके लिय भी इसी भाव को केन्द्रित करते हुवे गणना की जाती है |
मित्रों ये भाव छुपी हुई रह्श्य और शक्तियों का है यानी हमे किस प्रकार इस प्रकार की शक्तियों से सहायता मिल सकती है या हम किसी प्रकार किसी साधना में सफल हो सकते है वो भी इस भाव पर निर्भर करता है | हमारे मन में किस हद तक साधुपन आ सकता है उसे ये भाव दर्शाता है | कोई गडा हुआ धन या छुपा हुआ धन मिलने के योग भी हमे यही भाव बतलाता है |
ये भाव दर्शाता है की हमारा कार्यस्थल किस प्रकार का होगा सुंदर होगा या बहुत ही बुरी हालत में होगा | यानी आपकी कुंडली में इस भाव की सिथ्ती कैसी है उसका अनुमान आप अपने कार्यस्थल की दशा से भी लगा सकते है |
शरीर में ये कच्ची चर्बी और पीठ के दर्द का भी कारक भाव है |पिछले जन्म से हम बिमारी का क्या कारण लेकर इस जन्म में आये है उसे भी ये ही भाव दर्शाता है | साथ ही शरीर में मेदे में पित की मात्रा और हम भोजन पचा पायेंगे ये नही वो इसी भाव से जाना जा सकता है |
मकान के सम्बन्ध में ये भाव दर्शाता है की हमारा मकान आलिशान होगा या समसान जैसा विराना वहां होगा | वृक्षों के सम्बन्ध में ये भाव उन को दर्शाता है जिनके न फल लगते है और न फुल और न ही जिनकी छाया होती है | जानवरों के सम्बन्ध में ये जहरीले जानवरों को दर्शाता है |
घर में ये भाव जहां पर दवाइयां रखी जाती है उस भाव को दर्शता है | धन के सम्बन्ध में हमे किस हद तक नुक्सान हो सकता है या हमारा धन दूसरों के लिय किस हद तक काम आएगा उसे ये भाव दर्शाता है | दूसरी औरंतो से सम्बन्ध भी ये ही भाव दर्शता है |
चूँकि ये भाव छुपे हुवे रहस्यों का भी है इसिलिय इस भाव में जिस जातक के अधिक ग्रह होते है उस जातक को समझना आम इंसान के बस के बाहर की बात होती है | उसमे कुछ छुपी हुई खूबियाँ भी बहुत होती है और ऐसे लोग अच्छे साधक भी बन सकते है \
ये भाव छुपे हुवे खजानों को , विरासत में मिलने वाली सम्पति को यानी की किसी की वसीयत से मिलने वाले लाभ को और किसी की मृत्यु से होने वाले लाभ को भी दर्शाता है |
जिस जातक की कुंडली में इस भाव में अधिक ग्रह होते है उनकी विशेष रूप से गूढ़ विषयों में रूचि पाई जाती है जैसे की ज्योतिष, जादू , जिन्न , भोतिक विज्ञान , भूगर्भ शास्त्र यानी की जमीन के अंदर छुपे हुवे रहस्यों को खोजने वाली विद्या , परा शक्तियों को जाननें और उन्हें बस में करने की विद्या आदि |
इस प्रकार इस भाव का बहुत महत्व है हमारे जीवन में जिस संछिप्त में लिखने की कोसिस की है |
भाव भावत सिद्धांत के अनुसार हम देखें तो ये हमारे पंचम भाव सेर चोथा भाव है यानी की हमारी संतान से हमे कैसा सुख मिलेगा उसके बारे में भी इस भाव से जानकारी प्राप्त की जा सकती है | इसी तरह छटा भाव शत्रु भाव उस से ये भाव हमारे शत्रु के बाहुबल के बारे में भी जानकारी देता है ।
नवम भाव भाग्य भाव
मित्रों ज्योतिष की लगभग सभी विधियों में नवम भाव को भाग्य भाव की संज्ञा दी गई | ये भाव हमारे भाग्य की बुनियाद यानी की नीव होता है | हमारा भाग्य कैसा है भाग्य का जीवन में कितना साथ मिलेगा आदि सभी इसी भाव के द्वारा देखें जाते है |
नवम भाव धर्म कर्म दान पुण्य का भाव भी कहलाता है | धर्म के प्रति हमारी कितनी आस्था है दान पुण्य हम कितना करते है धार्मिक यात्रा हम कितनी कर सकते है इन सभी बातों a अनुमान भी इसी भाव से लगाया जता है | हमारे बड़े बुज्रुगों को भी ये भाव दर्शाता है और उनसे हमे मिलने वाले लाभ को भी येभाव इंगित करता है |
मानसिक रूप से ये हमारी जागृत अवस्था का कारक है , हम अंदर से कितने रूहानी हो सकते है , कितने आध्यात्मिक परवर्ती के इंसान हम हो सकते है , अधाय्तं के छेत्र में हम किस हद तक जा सकते है और उसमे हमे कितनी सफलता मिलेगी उसे ये ही भाव दर्शाता है | हमारी दूसरों के उपर परोपकार करने की परवर्ती भी इसी भाव पर निर्भर करती है \
घर में हमारे ये उस भाग को दर्शता है जिस जगह बैठकर हम पूजा पाठ करते है | मकान के सम्बन्ध में ये हमारे बड़े बुजुर्गो के मकान के बारे में हमे जानकारी देता है \
पेड़ पोधो के सम्बन्ध में ऐसे पोधे जिनके फल उनकी जड़ में लगते है उसे ये भाव दर्शाता है तो पंछियों में ऐसे जो पानी के उपर तैरते है |
अधिकतर ज्योतिष ग्रंथो में इस भाव का सम्बन्ध हमारे पिता के सतह जोड़ा गया है पिता की हालत कैसी होगी उनका आर्थिक सिथ्ती कैसी होगी आदि का अनुमान इसी भाव से लगाया जाता है | ये भाव हमारे जीवन की व्य्यस्ता और संघर्ष को भी दर्शाता है जिसका कारण ये है की ये भाव हमारे कर्म भाव का व्यय भाव है हम अपने कर्मो को किस प्रकार खर्च करेंगे ] हमारे कार्य व्यर्थ जायेंगे या हम हमारा कार्य ज्यादा व्यर्थ की चीजों में खर्च करेंगे उन सभी पर इस भाव का मुख्य रूप से प्रभाव पड़ता है |
पंचम भाव से पंचम होने के कारण ये हमारी पोत्र यानी की पुत्र के पुत्र का भाव भी बन जाता है तो साथ ही ये हमारी तीसरी सन्तान को दर्शाने वाला भाव भी है |
सप्तम भाव से तीसरा भाव होने के कारण जीवनसाथी के साहस और शोर्य को ये भाव दर्शाता है तो माता के भाव से छटा होने के कारण माता की बीमारी को भी ये भाव इंगित करता है \
मित्रों ये भाव कुंडली के त्रिकोण भाव में आता है और मह्रिषी पराशर जी ने कुंडली में इस भाव को सबसे ज्यादा महत्व दिया है | त्रिकोनेश में इस भाव के मालिक का महत्व अन्य त्रिकोनेश से कुछ न कुछ ज्यादा ही होता है तुलनात्मक रूप से | ये ही करान है की इस भाव का मालिक जब दशमेश साथ सम्बन्ध बनता है तो उसे सबसे बड़े राजयोग की श्रेणी में गिना गया है।
इस प्रकार आप इस भावके महत्व को आसानी से जान सकते है |
दसम भाव और ज्योतिष
मित्रों ज्योतिष में दसम भाव को हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाग यानी की कर्म को सोंपा गया है इसी कारन केंद्र में इस भाव को सबसे बलि भाव भी मना जाता है | हमारा कार्य छेत्र हमारे कार्य व्यवसाय नोकरी आदि सब कुछ मुख्य रूप से इसी भाव पर निर्भर करते है | इस भाव की शुभता अशुभता के द्वारा ही ये निर्धारित होता है की हमारे कार्य कैसे होंगे उनमे हमे कितनी सफलता मिलेगी और कर्म छेत्र में हमे कितना संघर्ष करना पड़ेगा \
मतांतर से इस भाव से पिता के लिय भी अध्ययन किया जता है इसी लिय पिता की सिथ्ती का अध्ययन भी इस भाव से होता है वैसे भी ये भाव नवम भाव से दूसरा भाव है ऐसे में पिता की आर्थिक सिथ्ती को तो ये भाव हर दृष्टीकोण से अवस्य हो दर्शाता है |
दिशा के सम्बन्ध में ये भाव दक्षिण दिशा को दर्शाता है और सूर्य मंगल इस भाव में दिशा बलि हो जाते है इसिलिय उनके यहाँ होने पर जातक को जन्म स्थान से दक्षिण दिशा में सफलता मिलने के य्प्ग ज्यादा बन जाते है |
हमारे शरीर में ये भाव पिड्लियों को दर्शाता है इसिलिय इस भाव के दूषित होने प्र्जात्क को पिंडलियों में दर्द की समस्या का सामना करना पड़ सकता है |
ये भाव हमारे काल्पनिक शक्ति का भी कारक है वो काल्पनिक शक्ति जिसका हम अपने कार्य छेत्र में प्रयोग करते है \ इस भाव को जीवन के छेत्र में ठगी के द्वार की संज्ञा भी दी गई है इसिलिय अपना काम निकलवाने के लिय हम दुसरो को किस हद तक दोखा दे सकते है ये भी इसी भाव पर निर्भर करता है | ये भाव भाग्य भाव से दूसरा होने के कारण हमारी किस्मत का मैदान भी है ऐसे में हम हमारी किस्मत को कितना फैला पायेंगे वो सब इसी भाव पर निर्भर करता है | भाग्य के कारण हम कितने धन की मात्रा हम अपने जन्म के साथ लेकर आये है उसे भी ये भाव दर्शाता है |
सरकारी छेत्र में जातक को मिलने वाली सफलता भी इसी भाव पर निर्भर करती है | अच्छी सरकारी नोकरी या सरकार से लाभ ये ही भाक्व दर्शाता है तो राजनीति में सफलता के लिय इस भाव का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है \ साथ ही राजनीति से जुड़े हुवे लोगों से जातक को क्या लाभ मिल सकता है उसके उपर भी ये भाव प्रकाश डालता है |
भाव भावात सिधान्तसे हम देखें तो ये भाव पंचम बहव से छटा भाव होता है इसिलिय हमारी सन्तान के ऋण रोग शत्रु को भी ये भाव दर्शाता है तो हमारी उंच शिक्षा की प्राप्ति एम् आने वाले विर्धोधियों को भी ये भाव | इंगित करता है | सप्तम भाव से ये भाव चोथा है इसिलिय जीवन साथी को मिलने वाले सुख को भी ये भाव दर्शाता है तो साथ ही सास के लिय भी इसी भाव का अध्ययन किया जाता है | ये ग्यारवें भाव से द्वादश बहव होने के कारण हम अपनी कितनी इच्छाओं का त्याग करते है वो भी इसी भाव पर निर्भर करता है तो व्यय भाव से एकादश भाव होने के कारण विदेश में हमारी आय और इच्छाओं कीपूर्ति को भी ये भाव दर्शाता है | सूर्य बुद्ध गुरु और शनी इसभाव के कारक ग्रह है इसिलिय इस भाव का अध्ययन करते समय हमे इन ग्रहों की कुंडली में सिथ्ती काअध्ययन करना आवश्यक हो जाता है | कालपुरुष की कुंडली में यहाँशनी की मकर राशि आती है इसिलिय जातक के कर्म को यदि कोई ग्रह सबसेज्यादा प्रभावित करता है तो वो शनी ग्रह होता है |
मित्रों इस प्रकार सारांस में आप इस भाव के महत्व को समझ सकते है ।
ग्यारवाँ भाव और ज्योतिष
मित्रों ज्योतिष में ग्यारवें भाव को आय का भाव माना गया है | ये भाव हमारे लालच को भी दर्शाता है की हम अपने लालच को पूराकरने केलिय किस हद तक जासकते है|| ये भाव हमारे घरकी बाहरी शोभा को भी दर्शाता है की घर बाहर से देखने पर आमिर का लगता है या गरीब का|
हमारे जिस्म में ताकत के रूप ये भाव दर्शाता है की अपना फर्ज निभाने के प्रति हम किस हद तक सुस्त या लापरवाह हो सकते है| यानी इस भाव में शुभ ग्रह होने पर जातक अपने जीवन के अवसरों को खोता नही है वरना बहुत से अवशर अपने हाथ से खो देता है अपनी लापरवाही के कारण |
ये भाव हमारी चेतना को दर्शाता है जो हम दूसरों की भलाई के लिय रखते है |
ये भाव हमारी किस्मत की उंचाई का है यानी हमारी किस्मत हमे कितनाऊँचा उठा सकती है उसे ये ही भाव दर्शाता है|
ये भाव हमारी आमदनी का भाव है यानी की हमारी आय क्या होगी हम अपनी कोशिश से कितना धन कमा पाएंगे उसे ये ही भाव दर्शाता है यदि इस भाव में शुभ ग्रह है तो शुभ कार्यों द्वारा आय की प्राप्ति होती है और यदि अशुभ ग्रह है तो अशुभ साधनों से आय प्राप्ति के योग बनते है |
ये भाव हमारे जन्म के समय हमारे माता पिता की आर्थिक हालत पर भी प्रकाश डालता है इस भाव में अशुभ ग्रह होने पर जन्म समय माता पिता की आर्थिक हालत अच्छी नही मिलती|
ये भा हमारे धन कमाने के साधनों को भी दर्शाता है की हमारे धन कमाने के कितने साधन होंगे| हमारे धर्म की प्रति हमारा कितना झुकाव होगा उसी को ये भाव दर्शाता है साथ भी ये भी दर्शाता है की धार्मिक होने से हमे कितना नफा या नुक्सान हो सकता है | पेड़ में ये भाव छाया वाले पेड़ों को दर्शाता है जिनके कांटे नही होते जैसे पीपल बरगद आदि |
मकान के सम्बन्ध में ये हमारे ख़रीदे हुवे मकान को दर्शाता है यानी जो मकान न तो हमे बुजुर्गों से मिला है और न ही हमने खुद बनाया है यानी बना बनाया खरीदा है |
किसी के साथ हमारी पहली मुलाक़ात कैसी होगी उसको भी ये भाव दर्शाता है जैसे की हमारी नोकरी के पहले दिन हमारा जो पहला अफसर होगा कैसा होगा उसका व्यवहार हमारे साथ कैसा होगा | इसके साथ हम दूसरों से क्या पायेंगे वो भी ये भाव दर्शाता है |
इसके साथ ही ये भाव हमारे मित्रों का भी है हमारे मित्र कैसे होंगे उनसे हमे लाभ हानि कैसी मिलेगी वो सब इसी भाव से पता चलता है \ इसके साथ ही ये भाव हमारे बड़े भाई को भी इंगित करता है \
ये भाव हमारे जीवन की इच्छा पूर्ति का भाव है जीवन में हमारी इच्छाओ की पूर्ति किस हद तक हो पाएगी आदि सब इसी भाव पर निर्भर करता है |
भाव भावत सिधानत से देखें तो ये भाव पंचम से सप्तम होने के कारण हमारे पुत्र की पत्नी यानी की पुत्र वधु a भी भाव है तो साथ ही विद्या अध्ययन में मिलने वाले सहयोगियों याने के हमारे सहपाठी को भी ये बहव दर्शाता है |
ये भाव छ्टे भाव से छटा होने से हमारे शत्रु के शत्रु का भाव होता है और शत्रु के शत्रु मित्र होता है इसिलिय भी ये भाव मित्र का भाव माना जाता है \ सप्तम भाव से ये भाव पंचम भाव होता है इसिलिय पत्नी से सन्तान की प्राप्ति इसिलिय सनातन का अध्ययन करते समय इस भाव को भी केन्द्रित करते हुवे कुंडली का अध्ययन किया जाता है \
कहने का भाव ये है की ग्यारवाँ भाव काफी कुछ दर्शाता है हमारे बारे में यदि इस लेख में वर्णित चीजों आपको शुभ फलदे रही है तो इसकाअभिप्राय हुआ की आपकी कुंडली के इस भाव में सिथत ग्रह आपको शुभ फल दे रहा है||
बारवां भाव और कुंडली
मित्रों ज्योतिष में बारवें भाव की गिनती त्रिक भाव में की जाती है | ये भाव हमारे लग्न यानी की शरीर के व्यय का भाव होता है और शरीर का व्यय इंसान का सबसे बड़ा व्यय माना जाता हिया इसिलिय इस भाव की गिनती बुरे भाव में की जाती है और मह्रिषी पराशर जी ने तो इस भाव के मालिक को उसकी सिथ्ती के आधार पर मारक ग्रह भी निर्धारित किया हुआ है यानि की इस भाव का मालिक कई बार कुंडली में मारक ग्रह भी बन जाता है \ बाकी मुख्य रूप से इसे सम भाव की संज्ञा दी है जिसके अनुसार इस भाव का मालिक कुंडली में जिस अन्य ग्रह के साथ या जिस भाव में होता है वैसा ही अपना फल देता है ।
मित्रों ये भाव मुख्य रूप से व्यय भाव भी है और व्यय चाहे हमारे धन का हो या शरीर का | हमारे खर्च का भाव | हमारे खर्च कैसा होगा उस पर हम काबू लेंगे या नही या हमारा खर्च शुभ कार्य पर होगा या अशुभ कार्य पर होगा वो सभी इसी भाव पर निर्भर करता है \ जैसे की विवाह मकान आदि और खर्च शुभ खर्च होता है तो मुकदमे बिमारी आदि पर खर्च अशुभ होता है और ये सब इसी भाव पर निर्भर करता है \ इसी के साथ ये भाव होस्पिटल का भाव जेल यात्रा का भाव भी होता है \
इस भाव से जातक का शैया सुख भी देखा जाता है यदि ये भाव शुभ है तो जातक को जीवन साथी से अच्छा शैया सुख मिलता है और उसे अच्छी नींद भी आती है जबकि अशुभ होने की हालत में इन दोनों ही सुखों में कोई न कोई कमी रह जाती है \ जीवन में हमे कितने ऐश आराम के साधन मिलेंगे हम उनका कितना उपभोग कर पायेंगे ये सब इसी भाव पर निर्भर करता है |
ये भाव हमारे दीमक में अचानक से पैदा होने वाले विचारों और ख्यालात को भी दर्शाता है इसिलिय आशीर्वाद या श्राप से भी इस भाव का सम्बन्ध है \ हमारी दी हुई दुआ या बददुआ कितनी और कैसी असर करेगी वो सभी इसी भाव पर निर्भर करता है ।
हमारे घर के अंदर कितनी रोनक है या कितना विराना है वो सब इसी भाव के उपर निर्भर करता है ।
भाग्य से हम कितना सुख आराम पाएंगे वो सब इसी भाव से देखा जाता है \ हमे भोग सुख आराम के साधन कितने मिलेंगे या जीवन गरीबी में ही बीतता जाएगा वो सब इसी भाव परनिर्भर करेगा ।
इस भाव को समाधि का भाव भी कहा जाता है | हम अपने ध्यान में कितने सफल हो सकते हिये सभी इसी भाव परनिर्भर करता है ।इसिलिय इस भाव को मोक्ष भाव भी कहा जाता है और इस भाव की सिथ्ती जातक को जन मरण के चक्कर से छुटकारा दिलाने वाली मानी जाती है ।
दुनियादारी के सम्बन्ध में ये हमारे पड़ोसियों से हमारे सम्बन्ध का भी है पड़ोसी से हम कितना सुख आराम या दुःख आदि पायेंगे ये सब इसी भाव पर निर्भर करता है।
यदि भाव भावात सिद्धांत से देखें तो ये भाव सप्तम भाव से छटा भाव है इसिलिय विवाहिक जीवन से सम्बन्धित होने वाले झगड़ो मुकदमे आदि के लिय इसी भाव को देखा जाता है ।अस्ठ्म भाव से ये पंचम भाव है मृत्यु के बारे में ज्ञान का अनुभव इसी भाव के द्वारा किया जाता है। दसम भाव से ये भाव तीसरा होने से हमारे कार्य छेत्र में हमारी मेहनत को ये भाव दर्शाता है ।
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