बारवां भाव और कुंडली
बारवें भाव की गिनती त्रिक भाव में की जाती है | ये भाव हमारे लग्न यानी की शरीर के व्यय का भाव होता है और शरीर का व्यय इंसान का सबसे बड़ा व्यय माना जाता हिया इसिलिय इस भाव की गिनती बुरे भाव में की जाती है और मह्रिषी पराशर जी ने तो इस भाव के मालिक को उसकी सिथ्ती के आधार पर मारक ग्रह भी निर्धारित किया हुआ है यानि की इस भाव का मालिक कई बार कुंडली में मारक ग्रह भी बन जाता है \ बाकी मुख्य रूप से इसे सम भाव की संज्ञा दी है जिसके अनुसार इस भाव का मालिक कुंडली में जिस अन्य ग्रह के साथ या जिस भाव में होता है वैसा ही अपना फल देता है \
मित्रों ये भाव मुख्य रूप से व्यय भाव भी है और व्यय चाहे हमारे धन का हो या शरीर का | हमारे खर्च का भाव | हमारे खर्च कैसा होगा उस पर हम काबू लेंगे या नही या हमारा खर्च शुभ कार्य पर होगा या अशुभ कार्य पर होगा वो सभी इसी भाव पर निर्भर करता है \ जैसे की विवाह मकान आदि और खर्च शुभ खर्च होता है तो मुकदमे बिमारी आदि पर खर्च अशुभ होता है और ये सब इसी भाव पर निर्भर करता है \ इसी के साथ ये भाव होस्पिटल का भाव जेल यात्रा का भाव भी होता है \
इस भाव से जातक का शैया सुख भी देखा जाता है यदि ये भाव शुभ है तो जातक को जीवन साथी से अच्छा शैया सुख मिलता है और उसे अच्छी नींद भी आती है जबकि अशुभ होने की हालत में इन दोनों ही सुखों में कोई न कोई कमी रह जाती है \ जीवन में हमे कितने ऐश आराम के साधन मिलेंगे हम उनका कितना उपभोग कर पायेंगे ये सब इसी भाव पर निर्भर करता है |
ये भाव हमारे दीमक में अचानक से पैदा होने वाले विचारों और ख्यालात को भी दर्शाता है इसिलिय आशीर्वाद या श्राप से भी इस भाव का सम्बन्ध है \ हमारी दी हुई दुआ या बददुआ कितनी और कैसी असर करेगी वो सभी इसी भाव पर निर्भर करता है \
हमारे घर के अंदर कितनी रोनक है या कितना विराना है वो सब इसी भाव के उपर निर्भर करता है \
भाग्य से हम कितना सुख आराम पाएंगे वो सब इसी भाव से देखा जाता है \ हमे भोग सुख आराम के साधन कितने मिलेंगे या जीवन गरीबी में ही बीतता जाएगा वो सब इसी भाव परनिर्भर करेगा \
इस भाव को समाधि का भाव भी कहा जाता है | हम अपने ध्यान में कितने सफल हो सकते हिये सभी इसी भाव परनिर्भर करता है \ इसिलिय इस भाव को मोक्ष भाव भी कहा जाता है और इस भाव की सिथ्ती जातक को जन मरण के चक्कर से छुटकारा दिलाने वाली मानी जाती है \
दुनियादारी के सम्बन्ध में ये हमारे पड़ोसियों से हमारे सम्बन्ध का भी है पड़ोसी से हम कितना सुख आराम या दुःख आदि पायेंगे ये सब इसी भाव पर निर्भर करता है \
यदि भाव भावात सिद्धांत से देखें तो ये भाव सप्तम भाव से छटा भाव है इसिलिय विवाहिक जीवन से सम्बन्धित होने वाले झगड़ो मुकदमे आदि के लिय इसी भाव को देखा जाता है \ अस्ठ्म भाव से ये पंचम भाव है मृत्यु के बारे में ज्ञान का अनुभव इसी भाव के द्वारा किया जाता है \ दसम भाव से ये भाव तीसरा होने से हमारे कार्य छेत्र में हमारी मेहनत को ये भाव दर्शाता है ।
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