Monday, July 31, 2017

वीर कंगन यंत्र क्षेत

वीर कंगन यंत्र क्षेत

साधक मित्रों को बताना चाहूंगा संक्षिप्त में......
वीर कंगन यंत्र क्षेत्र का एक ऐसा  दुर्लभ  और  दिव्य बलशाली यन्त्र हैं जो कंगन रूपी आकार में ,होता हैं।  जो की नाथ प्रणाली में सदियों से प्रचलित हैं , जिसका उपयोग ५२, वीरों को सिद्ध कर के उनसे भिन्न भिन्न कार्यों के लिए उपयोग में लाया जाता हैं। हालाँकि ये आजकल बहोत ही  दुर्लभ हैं यह कंगन । .इस कंगन को  बनाने वाले भी और सिद्ध करनेवाले भी गिने चुने हीरह गए... हैं वो भी जिनके पास खानदानी यह विद्या उपलब्ध हैं । ( हमारे परम गुरु औघडनाथ गुरूजी  )उनमे से एक हैं } .इस कंगन की सिद्धि आम तौर पर मशान में की जाती हैं.... जो की हर एक के लिए इसकी साधना असम्भव हैं... (  मगर  कुछ लोग इंटर  नेट पर  लोगो को गुमराह कर के झूठा आश्वासन देते हैं की। ..  हम कंगन सिद्ध कर के दे रहे हैं... ५२ वीर आपके सामने आकर खड़े हो जायँगे ऐसा होगा वैसा होगा ) और मनघडंत विधि सामग्री बता कर  ये लोगो को बरगला कर  नकली कंगन बेचते हैं जो की किसी काम का नहीं होता महज धातु के बर्तन के सिवा । लोगो को आकर्षित करने के लिए उसमे क्या क्या डाला जाता  है कितना ग्राम डाला जाता हैं , ऐसे विधि का मूल्यांकन बता कर अपना नकली माल बेचने प्रयास चल रहा हैं कृपया ऐसे नेट मार्केटिंग वालो से बच के रहिएगा ).इस प्रकार कीबाते बता कर अपना व्यापार कर  रहे हैं। .कृपया साधक गन सावधान रहे  ( साधक मित्रो जरा सोचिये ) अगर एक मामूली पिशाच का साया इंसान पर पड जाये तो मामूली सा  साया भी इंसान की टट्टी पिशाब गुल कर देता हैं। .यहाँ पर तो वीरों को अपने बस में कर के उनसे काम लेने की बात हैं। ..क्या इतना आसान हैं ये...?। मित्रो ये नकली कंगन बेचने वाले यहाँ तक दावा करते हैं की ५२ बीर  सामने आकर  खड़े हो जायेंगे ) मैं उन चूतियों से पूछना चाहता हूँ की तुम्हारे बापने कभी एक बीर सिद्ध कर के    सामने खड़ा किया हैं क्या। ... जो झूठा दावा करते हैं ,  मित्रो आप् खुद ही सोचो आप अपने इष्ट को सिद्ध करते हो तब कितना कठोर प्रयास करने बाद भी  सामने नहीं आते और  न उनका असर पता चलता हैं , पता  चलने में भी काफी समय लग जाता हैं   .क्या आप उतनी क्षमता रखते हैं के इन वीरो को आप अपने बस में रख सको। . और विरोंसे  आसानी से कामले पाओगे । .. अगर हाँ तो ये कंगन आप अवश्य हमसे प्राप्त कर  सकते हैं ज्यादा इस कंगन के  बारे में लिखना उचित नहीं लगता क्यों  की बिर कंगन अपने आप में  एक दिव्य और दुर्लभ  वस्तु हैं। .इसे कुछ विशेष धातुओं से बनाना पडता हैं विशेषतांत्रिक क्रिया  सिद्धि के माध्यम से मंत्र संस्कार कर के तैयार किया जाता हैं  .और इस कंगन को  पूर्णताह विवस्र हो कर बनाया जाता हैं। ..    विशेष सिद्धियोग पर्वकाल ,अथवाग्रहण काल  में सिद्ध किया जाता हैं..... बहोत नियम में रह कर इसे सिद्ध कर के उपयोग में लाना पड़ता हैं। .अन्यथा स्वयं को हानि हो सकती हैं। . इस कंगन के ऊपर बावन बीरों को छोटी छोटी मूर्ति रूपी अकार में स्थापित किया जाता हैं...  जो की अभिमंत्रित   करके  स्थापित किया जाता हैं  । .कंगन के सिद्ध होने के पश्चात  इस कंगन से आप हर एक  प्रकार के भिन्न  कार्यों को कर   सकते  हैं।  साधक मित्रों से निवेदन हैं की कृपया इस कंगन का गलत उपयोग ना करे लोककल्याण के लिए इसे उपयोग में लाये अन्यथा स्वयं के हानि के जिम्मेदार आप स्वयं ही होंगे। ... .क्रमश। 

Saturday, July 29, 2017

अकस्मात मृत्यु के योग

अकस्मात मृत्यु के योग : आत्म हत्या से मृत्यु योग :शांति के उपाय :Accidental death Yoga: Yoga sudden death: death from suicide :Upay
अकस्मात मृत्यु के योग एवं शांति के उपाय
प्रश्न: अकस्मात मृत्यु के कौन-कौन से योग हैं?
विस्तार से इनकी व्याख्या करें तथा ऐसी मृत्यु से बचाव के लिए किस प्रकार के उपाय सार्थक हो सकते हैं? मानव शरीर में आत्मबल, बुद्धिबल, मनोबल, शारीरिक बल कार्य करते हैं।
चन्द्र के क्षीण होने से मनुष्य का मनोबल कमजोर हो जाता है, विवेक काम नहीं करता और अनुचित अपघात पाप कर्म कर बैठता है। अमावस्या व एकादशी के बीच तथा पूर्णिमा के आस-पास चन्द्र कलायें क्षीण व बढ़ती हैं इसलिये 60 : ये घटनायें इस समय में होती हैं। तमोगुणी मंगल का अधिकार सिर, एक्सीडेन्ट, आगजनी, हिंसक घटनाओं पर होता है तो शनि का आधिपत्य मृत्यु, फांसी व वात सम्बन्धी रोगों पर होता है। छाया ग्रह राहु-केतु का प्रभाव आकस्मिक घटनाओं तथा पैंर, तलवों पर विशेष रहता है। ग्रहों के दूषित प्रभाव से अल्पायु, दुर्घटना, आत्महत्या, आकस्मिक घटनाओं का जन्म होता है।
आकस्मिक मृत्यु के स्थान का ज्ञान
1- लग्न की महादशा हो और अन्तर्दशा लग्न के शत्रु ग्रह की हो तो मनुष्य की अकस्मात मृत्यु होती है।
2- छठे स्थान के स्वामी का सम्बन्ध मंगल से हो तो अकस्मात आपरेशन से मृत्यु हो।
3- लग्न से तृतीय स्थान में या कारक ग्रह से तृतीय स्थान में सूर्य हो तो राज्य के कारण मृत्यु हो।
4- यदि शनि चर व चर राशि के नवांश में हो तो दूर देश में मृत्यु हो।
5- अष्टम में स्थिर राशि हो उस राशि का स्वामी स्थिर राशि में हो तो गृह स्थान में जातक की मृत्यु होती है। 6- द्विस्वभाव राशि अष्टम स्थान मं हो तथा उसका स्वामी भी द्विस्वभाव राशिगत हो तो पथ (रास्ते) में मृत्यु हो।
7- तीन ग्रह एक राशि में बैठे हों तो जातक सहस्र पद से युक्त पवित्र स्थान गंगा के समीप मरता है।
8- लग्न से 22 वें द्रेष्काण का स्वामी या अष्टमभाव का स्वामी नवम भाव में चन्द्र हो तो काशीतीर्थ बुध$शुक्र हो तो द्वारिका में मृत्यु हो।
9- अष्टम भाव में गुरु चाहे किसी राशि में हो व्यक्ति की मृत्यु बुरी हालत में होती है।
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मृत्यु फांसी के द्वारा
1- द्वितीयेश और अष्टमेश राहु व केतु के साथ 6, 8, 12 वें भाव में हो। सारे ग्रह मेष, वृष, मिथुन राशि में हो।
2- चतुर्थ स्थान में शनि हो दशम भाव में क्षीण चन्द्रमा के साथ मंगल शनि बैठे हों
3- अष्टम भाव बुध और शनि स्थित हो तो फांसी से मृत्यु हो।
4- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ 9, 5, 11 वे भाव में हो।
5- शनि लग्न में हो और उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा सूर्य, राहु क्षीण चन्द्रमा युत हों तो जातक की गोली या छुरे से मृत्यु अथवा हत्या हो।
6- नवमांश लग्न में सप्तमेश राहु, केतु से युत 6, 8, 12 वें भाव मं स्थित हों तो आत्महत्या करता है।
7- चैथे व दसवें या त्रिकोण भाव में अशुभ ग्रह हो या अष्टमेश लग्न में मंगल से युत हो तो फांसी से मृत्यु होती है
8- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ पंचम या एकादश स्थान में हो तो सूली से मृत्यु होती है।
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दुर्घटना से मृत्यु योग
1- चतुर्थेश, षष्ठेश व अष्टमेश से सम्बन्ध हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना मं हो। 2- यदि अष्टम भाव में चन्द्र, मंगल, शनि हो तो मृत्यु हथियार द्वारा हो।
3- चन्द्र सूर्य मंगल शनि 8, 5 तथा 9 में हो तो मृत्यु ऊँचाई से गिरने समुद्र, तूफान या वज्रपात से हो।
4- अष्टमेश तथा अष्टम, षष्ठ तथा षष्ठेश और मंगल का इन सबसे सम्बन्ध हो तो मृत्यु शत्रु द्वारा होती है।
5- अष्टमेश एवं द्वादशेश में भाव परिवर्तन हो, इन पर मंगल की दृष्टि हो तो अकाल मौत हो। जन्म विषघटिका में होने से विष, अग्नि क्रूरजीव से मृत्यु हो।
6- जन्म लग्न से दशम भाव में सूर्य चतुर्थ भाव में मंगल हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना तथा सवारी से गिरने से होती है।
7- मंगल और सूर्य सप्तम भाव में, शनि अष्टम भाव में क्षीण चन्द्र के साथ हो तो पक्षी के कारण दुर्घटना में मृत्यु हो।
8- सूर्य, मंगल, केतु की यति हो जिस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो अग्नि दुर्घटना में मृत्यु हो। चन्द्र मेष$ वृश्चिक राशि में हो तो पाप ग्रह की दृष्टि से अग्नि अस्त्र से मृत्यु हो। 9- द्विस्वभाव राशि लग्न में सूर्य+चन्द्र हो तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से हो।
10- लग्नेश और अष्टमेश कमजोर हो, मंगल षष्ठेश से युत हो तो मृत्यु युद्ध में हो। द्वादश भाव में मंगल अष्टम भाव में शनि से हथियार द्वारा हत्या हो।
11- यदि नंवाश लग्न में सप्तमेश शनि युत हो 6, 8, 12 में हो जहर खाने से मृत्यु हो ।
12- चन्द्र मंगल अष्टमस्थ हो तो सर्पदंश से मृत्यु होती है।
13- लग्नेश अष्टमेश और सप्तमेश साथ बैठे हों तो जातक स्त्री के साथ मरता है।
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आत्म हत्या से मृत्यु योग
1- लग्न व सप्तम भाव में नीच ग्रह हों
2- लग्नेश व अष्टमेश का सम्बन्ध व्ययेश से हो। 3- अष्टमेश जल तत्व हो तो जल में डूबने से, अग्नि तत्व हो तो जलकर, वायु तत्व हो तो तूफान व बज्रपात से अपघात हो । 4- कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में पानी में डूबकर आत्मघात कराता है 5- यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हो तो जातक हत्या, अपघात, दुर्घटना, बीमारी से मरता है। ग्रहों के अनुसार स्त्री पुरूष के आकस्मिक मृत्यु योग
1- चतुर्थ भाव में सूर्य और मंगल स्थित हों, शनि दशम भाव मं स्थित हो तो शूल से मृत्यु तुल्य कष्ट तथा अपेंडिक्स रोग से मौत हो सकती है। 2- द्वितीय स्थान में शनि, चतुर्थ स्थान में चन्द्र, दशम स्थान में मंगल हो तो घाव में सेप्टिक से मृत्यु होती है। 3- दशम स्थान में सूर्य और चतुर्थ स्थान में मंगल स्थित हो तो कार, बस, वाहन या पत्थर लगने से मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। 4- शनि कर्क और चन्द्रमा मकर राशिगत हो तो जल से अथवा जलोदर से मृत्यु हो। 5- शनि चतुर्थस्थ, चन्द्रमा सप्तमस्थ और मंगल दशमस्थ हो तो कुएं में गिरने से मृत्यु होती है 6- क्षीण चन्द्रमा अष्टम स्थान में हो उसके साथ मं$रा$शनि हो तो पिशाचादि दोष से मृत्यु हो।
7- जातक का जन्म विष घटिका में होने से उसकी मृत्यु विष, अग्नि तथा क्रूर जीव से होती है।
8- द्वितीय में शनि, चतुर्थ में चन्द्र और दशम में मंगल हो तो मुख मं कृमिरोग से मृत्यु होती है।
9- शुभ ग्रह दशम, चतुर्थ, अष्टम, लग्न में हो और पाप ग्रह से दृष्ट हो तो बर्छी की मार से मृत्यु हो।
10- यदि मंगल नवमस्थ और शनि, सूर्य राहु एकत्र हो, शुभ ग्रह दृष्ट न हो तो बाण से मृत्यु हो 11- अष्टम भाव में चन्द्र के साथ मंगल, शनि, राहु हो तो मृत्यु मिर्गी से हो।
12- नवम भाव में बुध शुक्र हो तो हृदय रोग से मृत्यु होती है।
13- अष्टम शुक्र अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो मृत्यु गठिया या मधुमेह से होती है
14- स्त्री की जन्म कुण्डली सूर्य, चन्द्रमा मेष राशि या वृश्चिक राशिगत होकर पापी ग्रहों के बीच हो तो महिला शस्त्र व अग्नि से अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है।
15- स्त्री की जन्म कुण्डली में सूर्य एवं चन्द्रमा लग्न से तृतीय, षष्ठम, नवम, द्वादश भाव में स्थित हो तो तथा पाप ग्रहों की युति व दृष्टि हो तो महिला फंासी लगाकर या जल में कूद कर आत्म हत्या करती है।
16- द्वितीय भाव में राहु, सप्तम भाव में मंगल हो तो महिला की विषाक्त भोजन से मृत्यु हो
17- सूर्य एवं मंगल चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव में स्थित हो तो स्त्री पहाड़ से गिर कर मृत्यु को प्राप्त होती है। 18- दशमेश शनि की व्ययेश एवं सप्तमेश मंगल पर पूर्ण दृष्टि से महिला की डिप्रेशन से मृत्यु हो।
19- पंचमेश नीच राशिगत होकर शत्रु ग्रह शुक्र एवं शनि से दृष्ट हो तो प्रसव के समय मृत्यु हो ।
20- महिला की जन्मकुण्डली में मंगल द्वितीय भाव में हो, चन्द्रमा सप्तम भाव में हो, शनि चतुर्थ भाव में हो तो स्त्री कुएं, बाबड़ी, तालाब में कूद कर मृत्यु को प्राप्त होती है।
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लग्नेश के नवांश से मृत्यु, रोग अनुमान
1- मेष नवांश हो तो ज्वर, ताप जठराग्नि तथा पित्तदोष से मृत्यु हो
2- वृष नवांश हो तो दमा, शूल त्रिदोषादि, ऐपेंडिसाइटिस से मृत्यु हो।
3- मिथुन नवांश हो तो सिर वेदना,
4- कर्क नवांश वात रोग व उन्माद से मृत्यु हो।
5- सिंह नवांश हो तो विस्फोटकादि, घाव, विष, शस्त्राघात और ज्वर से मृत्यु।
6- कन्या नवांश हो तो गुह्य रोग, जठराग्नि विकार से मृत्यु हो।
7- तुला नवांश में शोक, बुद्धि दोष, चतुष्पद के आघात से मृत्यु हो।
8- वृश्चिक नवांश में पत्थर अथवा शस्त्र चोट, पाण्डु ग्रहणी वेग से।
9- धनु नवांश में गठिया, विष शस्त्राघात से मृत्यु हो।
10- मकर नवांश में व्याघ्र, शेर, पशुओं से घात, शूल, अरुचि रोग से मृत्यु।
11- कुंभ नवांश में स्त्री से विष पान श्वांस तथा ज्वर से मृत्यु हो।
12- मीन नवांश में जल से तथा संग्रहणी रोग से मृत्यु हो।
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गुलिक से मृत्युकारी रोग अनुमान
1- गुलिक नवांश से सप्तम शुभग्रह हो तो मृत्यु सुखकारी होगी।
2- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में मंगल हो तो जातक की युद्ध लड़ाई में मृत्यु होगी।
3- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में शनि हो तो मृत्यु चोर, दानव, सर्पदंश से होगी।
4- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में सूर्य हो तो राजकीय तथा जलजीवांे से मृत्यु।
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अरिष्ट महादशा व दशान्तर में मृत्यु 1- अष्टमेश भाव 6, 8, 12 मं हो तो अष्टमेश की दशा-अन्तर्दशा में और दशमेश के बाद के ग्रह अन्तर्दशा में मृत्यु होती है।
2- कर्क, वृश्चिक, मीन के अन्तिम भाग ऋक्ष संधि कहलाते हैं। ऋक्ष सन्धि ग्रह की दशा मृत्युकारी होती है।
3- जिस महादशा में जन्म हो महादशा से तीसरा, पांचवां, सातवें भाव की महादशा यदि नीच, अस्त, तथा शत्रु ग्रह की हो तो मृत्यु होती है।
4- द्वादशेश की महादशा में द्वितीयेश का अन्तर आता है अथवा द्वितीयेश दशा में द्वादश अन्तर में अनिष्टकारी मृत्यु तुल्य होता है।
5- छिद्र ग्रह सात होते हैं
1. अष्टमेश, 2. अष्टमस्थ ग्रह, 3. अष्टमदर्शी ग्रह, 4. लग्न से 22 वां द्रेष्काण अर्थात अष्टम स्थान का द्रेष्काण जिसे रवर कहते हैं उस द्रेष्काण स्वामी, 5. अष्टमेश के साथ वाला ग्रह, 6. चन्द्र नवांश से 64 वां नवांशपति, 7. अष्टमेश का अतिशत्रु ग्रह।
इन सात में से सबसे बली ग्रह की महादशा कष्टदायक व मृत्युकारी होगी।
उपाय
1. आकस्मिक मृत्यु के बचाव के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
जप रुद्राक्ष माला से पूर्वी मुख होकर करें।
2. वाहन चलाते समय मादक वस्तुओं का सेवन न करें तथा अभक्ष्य वस्तुओं का सेवन न करें अन्यथा पिशाची बाधा हावी होगी वैदिक गायत्री मंत्र कैसेट चालू रखें।
3. गोचर कनिष्ठ ग्रहों की दशा में वाहन तेजी से न चलायें।
4. मंगल का वाहन दुर्घटना यंत्र वाहन में लगायें, उसकी विधिवत पूजा करें।
5. नवग्रह यंत्र का विधिविधान पूर्वक प्रतिष्ठा कर देव स्थान में पूजा करें।
6. सूर्य कलाक्षीण हो तो आदित्य हृदय स्तोत्र, चन्द्र की कला क्षीण हो तो चन्द्रशेखर स्तोत्र, मंगल की कला क्षीण हो तो हनुमान स्तोत्र, शनि कला क्षीण हो तो दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। राहु की कला क्षीण हो तो भैरवाष्टकगणेश स्तोत्र का पाठ करें।

चौथे भाव

हम अपनी कुन्डली के चौथे भाव को देखते है,चौथा भाव हमारी माता के बारे मेंपूरी स्थिति देता है,माता की पूरी जिन्दगी के बारे में चौथा भाव ही महत्ता रखता है
चौथे से दूसरा भाव, पांचवां माता के धन को प्रदर्शित करता है,छठा भाव माता के छोटे भाई बहिनो के बारे में और माता के द्वारा बोल चाल के शब्द, माता के द्वारा खुद को प्रदर्शित करने के बारे में ज्ञान देता है,यह भाव तब और महत्व पूर्ण हो जाता है,जब किसी वर की कुन्डली देखी जाती है,कारण वधू के साथ उसकी सास किस प्रकार से अपने को प्रदर्शित करेगी,सातवां भाव माता की जायदाद से समझा जाता है,और इसी कारण से सास बहू को अपनी परसनल जायदाद समझती है,क्योंकि माता का चौथा भाव कुन्डली का सातवां भाव होता है,साथ ही माता का पत्नी पर हावी रहने वाला प्रभाव
भी इसी बात पर निर्भर रहता है,कि जिस प्रकार से कोई
अपनी गाडी को संभाल कर सजा कर समाज के सामने प्रदर्शित करना चाहता है,और अपने प्रकार से उस पर सवारी करने की इच्छा रखता है,उसी प्रकार से माता अपनी बहू को सजा संवार कर और अपने प्रकार से उसे चलाने की कोशिश करती है,बहू अगर गाडी की तरह से भार उठाने के काबिल है तो जीवन की गाडी सही चलती है,वरना रास्ते में ही खडी रह जाती है,.आठवें भाव से माता की बुद्धिमत्ता को देखा जाता है,कि वह
कितनी बुद्धिमान है कितनी शिक्षित है,और जीवन में परिवार को किस प्रकार से साथ लेकर चल सकती है,या नही.नवां भाव माता के प्रति उसकी बीमारी कर्जा और दुश्मनी को प्रदर्शित करता है,दसवां भाव माता और पिता के सम्बन्धों के बारें मे अपना प्रभाव बताता है,ग्यारहवां भाव माता की चिन्तायें और माता को अपमान देनेवाले,माता की जान के लिये जोखिम देने वाले,और माता को मृत्यु देने वाले कारकों के प्रति अपनी क्रियात्मक शैली को प्रकाशित करता है,बारहवां भाव माता के द्वारा धर्म कार्यों और भाग्य के लिये किये जाने खर्चे और यात्राओं के बारे में अपनी राय देता है,पहला भाव माता अपने पुत्र या पुत्री से किस प्रकार के कैरियर की आकांक्षा रखती है,उसका पूरा विवरण
बताता है,दूसरा भाव माता के साथ उसकी इच्छानुसार
उसके मित्रों के बारे में अपना प्रकाश डालता है,कुन्डली का तीसरा भाव माता के द्वारा दान के निमित्त खर्च करने और माता के अन्तिम समय का विवरण देता है,इस प्रकार से चौथा भाव माता के बारे में पूर्णत: प्रकाश देता है.

राक्षस गण वाले जातकों की जीवन

राक्षस गण वाले जातकों की जीवन
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प्रकृति में सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा दोनों का समावेश होता है। मनुष्य के लिए अपने आसपास फैली ऊर्जा को महसूस कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन कुछ लोग इस प्रकार की ऊर्जा को महसूस करने और देखने की क्षमता रखते हैं।
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मनुष्य के जन्म से संबंधित ‘राक्षस गण’ वाले जातक इसी श्रेणी में आते हैं। इनमें अपने आसपास की ऊर्जा को पहचानने और महसूस करने की शक्ति होती है। ये लोग अन्य मनुष्यों की तुलना में अपने आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को जल्दी पहचान लेते हैं।
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क्या है राक्षस गण
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राक्षस गण के नाम से ही आभास होता है कि जरूर इससे कोई नकारात्मक शक्ति जुड़ी होगी लेकिन यह अवधारणा बिलकुल गलत है। ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य को तीन गणों में बांटा गया है जिसके अंतर्गत देव गण, मनुष्य गण और राक्षस गण आते हैं।
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देवगण में जन्म लेने वाला व्यक्ति उदार, बुद्धिमान, साहसी, अल्पाहारी और दान-पुण्य करने वाला होता है। मनुष्य गण में जन्म लेने वाला व्यक्ति अभिमानी, समृद्ध और धनुर्विद्या में निपुण होता है। राक्षस गण के बारे में लोगों का मानना है कि यह नकारात्मक गुणों से परिपूर्ण होता है किंतु यह सत्य नहीं है।
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कैसे पहचानें गण को
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मनुष्य के जन्म नक्षत्र अथवा जन्म कुंडली के आधार पर ही उसका गण निर्धारित किया जाता है। राक्षस गण में जन्म लेने वाले व्यक्ति की खासियत होती है कि वह अपने आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को जल्द ही महसूस कर लेता है।
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राक्षस गण वाले जातक के गुण
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इस गण वाले जातकों में विलक्षण प्रतिभा होती है। ऐसे व्यक्ति की छठी इंद्रिय काफी शक्तिशाली और सक्रिय होती है। यह जातक मुश्किल परिस्थिति में भी धैर्य और साहस से काम लेते हैं।
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मनुष्य गण तथा देव गण वाले लोग सामान्य होते हैं। जबकि राक्षस गण वाले जो लोग होते हैं उनमें एक नैसर्गिक गुण होता है कि यदि उनके आस-पास कोई नकरात्मक शक्ति है तो उन्हें तुरंत इसका अहसास हो जाता है। कई बार इन लोगों को यह शक्तियां दिखाई भी देती हैं, लेकिन इसी गण के प्रभाव से इनमें इतनी क्षमता भी आ जाती है कि वे इनसे जल्दी ही भयभीत नहीं होते। राक्षस गण वाले लोग साहसी भी होते हैं तथा विपरीत परिस्थिति में भी घबराते नहीं हैं।
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इन नक्षत्रों में बनता है ‘राक्षस गण’
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कृत्तिका
अश्लेषा
मघा
चित्रा
विशाखा
ज्येष्ठा
मूल
धनिष्ठा
शतभिषानोट