Tuesday, February 28, 2017

रजस्वला को अश्पशर्या क्यों माने ?? मासिक धर्म को अछूत क्यों माने ?

रजस्वला को अश्पशर्या क्यों माने   ??
मासिक धर्म को अछूत क्यों माने   ?

समस्त माता और बहिनो को प्रणाम

रजस्वला धर्म अशौच का ही एक प्रकार है ! यह जनानाशौच एवं मृताशौच से भिन्न है ! 
आधुनिक लोगो ने रजस्वला स्पर्श का ""अशौच"" काल बाह्य मान लिया है !
कारण
🏻शहर में निवास स्थान का अभाव, जगह की समस्या,नौकरी बंधन,और अपने आपको बहुत ""ज्यादा """स्मार्ट """और पढी- लिखी समझना, धर्म को """ढकोसला समझना,  क्षमा चाहता हू !

समस्त माता और बहिनो से आधुनिक महिलाओ को समझाने के लिये '''''आधुनिक शब्दो का इस्तमाल किया ! इन सब के कारण रजस्वला को अस्पर्श्या मानना काफ़ी समस्य पूर्ण एवं कष्टकारक हो गया है ! वास्तव में रजस्वला का अस्पपर्शत्व संस्कृति का एक हिस्सा है !

🏻माना या ना मानो रजस्वला स्त्री रजस्वला समय अशुद्ध होती है और अशुद्ध ही कहलायेगि !

जिन लोगो को धार्मिक एवं सान्स्कृतिक स्तर पर यह  अस्पर्शत्व मान्य नही है उन्हे भी शाश्त्रो के आधार पर यह अशौच मानना ही पडेगा !

इसका कारण यह की रजस्वला के स्पर्श के कारण विविध वस्तुओ पर प्रभाव पडता है ! इसके अलावा रजोदर्शन काल में अग्नि साहचर्य के कारण ( रसोई बनाते समय ) उसे शारीरिक हानि होती है

🏻वर्तमान में रजस्वला स्त्री घर के एक कोंने में बैठी रहे,किसी से बात न करे या किसी को स्पर्श न करे आदि बातें ""हास्यास्पद """हो गई है !

लेकिन धार्मिक कार्यो में शरिक होने या मंदिर में जाकर मूर्ति का दर्शन करने की अनुमति अब भी रजस्वला स्त्री को नहीं है ! इसका मतलब यह है की रजोदर्शनअवस्था अन्य अवस्थाओ से अलग है !

  हमारे विद्वान, और बुजुर्ग लोगो ने ये सिद्ध करके ये दावा किया है की रजस्वला स्त्री के हस्त स्पर्श से तुलसी तथा अन्य पौधे फुल भी मुरझा जाते है !

👉इसका कारण यह की रजस्वला के शरीर से अति सुक्ष्म उपद्र्वी स्पंदन लहरि बाहर निकलती है ! विशेष रूप सेमासिक धर्म के प्रथम दिन इसकी तीव्रता अधिक महशूस होती है ! दूसरे दिन वह कम होती है और तीसरे दिन उससे कम हो जाती है ! इसलिये रजस्वला स्त्री को """जहरीली वनस्पति""" की उपमा दी गई है ! यही नहीं, कुछ किट भी रजस्वला का स्पर्श सहन नहीं कर पाते !

👉विशेष 👈नाग आदि जंतु रजस्वला के स्पर्श से अपने आपको दुर रखते है ! वे उसकी आवाज सुनते ही तिर्व गति से  भाग जाते है !

👉रजस्वला के शरीर से निकलने वाले स्पंदन मंत्र - शक्ति के लिये अनुपकारक सिद्ध होते है ! स्पंदन गिनने वाले अत्याधुनिक यंत्र से जो निश्कर्ष प्राप्त हुए है ,उनको नकरा नहीं जा सकता !

यदि सितार के निकट कोई रजस्वला बैठी हो तो सितार के तार हमेशा की तरह नही जमते ! इस बात का अनुभव सितारवादको को हमेशा हुआ है ! यदि रजस्वला के स्पर्श का प्रभाव प्राणी एवं वनस्पति पर होता है तो मानव पर भी होगा !

मानो या न मानो

    रजस्वला के हाथों बना अन्न ग्र्हण करने से शरीर और मन दोनो को विकारग्र्स्त हो जाते है !""

ऐसी स्थिति में गर्भधारण की समभावना न होने पर भी  उसके शरीर से बाहर निकलने वाली स्पंदन लहरि में विशाक्त बीज सुप्त अवस्था में भरे रहते है

👉यहा यह बात विशेष रूप से आपको बताना चाहता हू ! मानवेतर प्राणी इस समय अपनी मादा को स्पर्श तक नही करते ! परंतु मानव द्वारा स्पर्श करने से काम-वासना का भाव जा सकता है !

ऋतुकाल के अतिरिक्त अन्य समय भी विषयपूर्ति की भावना केवल मानव के मन में उत्पन हो सकती है ! सार्वजनिक रुप में रजस्वला के स्पर्श की तीव्रता हवा के कारण कम होती है इसके  विपरीत घर में रजस्वला स्त्री से हुए स्पर्श की तीव्रता अधिक रहती है !

घ्यान और प्रभाव -दोनो मनोधर्म होने से एक बार उसका विचार छोड़ सकते है ! परंतु शारीरिक स्पर्श का  परिणाम आसानी से नहीं टाला जा सकता !

मानो या न मानो

रजस्वला का स्पर्श अशुचि होता है ! इसलिये यह
अस्पशर्या होती है ! उस समय उसके देह में विशिष्ट फेरबदल होने के कारण शारीरिक परिश्रम करने पर विविध विकार उत्पन्न होने की संभावना रहती है !

कई पंडितो की राय के अनुसार रजोदर्शन स्त्री के लिये विरेचन है ! इसलिये विरेचन क्रिया में शरीर को पूर्ण विश्राम मिलना आवश्यक होता है ! रजोदर्शन की समयावधि में स्त्री- पुरुष संबंध होने से संतति विकृत एवं मंद रहती है !

👉आज कल बडे शहरो में एक कमरे में अनेक पारिवारिक सदस्य रहते है ! इस कारण हर महीने पारी-पारी से स्त्रियो का मासिकधर्म शुरू ही रहता है ! कुछ विद्वान लोग इसके प्र्याय के रूप में पुजाघर पर परदा डालते है ! तो कुछ लोग देवताओ पर तुलसी पत्र रखकर देवदर्शन स्थगित कर देते है !

इससे आगे बढकर कुछ लोग इस कालावधि में स्तोत्र पठन, मंत्र पठन, संध्या एवं देवदर्शन बंद कर देते है ! इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है की स्त्रियो का रजोदर्शन समय अपवित्र होता है

यदि ऐसे समय धर्म का कडा पालन करना स्त्रियो के लिये संभव न होतो वैद्धकिय एवं रजस्वला धर्म का पालन अवश्य करे !

क्या नहीं करना चाहिए।

वे कपडे के ढेर को स्पर्श न करे !
रजस्वला शरीर को कोई अन्य व्यक्ति स्पर्श न करे ! पहले ,दूसरे , तीसरे दिन रजोदोष अधिक होता है ! इस समय स्पर्श अग्नि  सम्पर्क ,रसोई , देव पुजन, अन्नस्पर्श को टालना अत्यंत आवश्यक है ।

मानना या नही मानना आपका विचार
नहीं मानने पर , पागलपन, मानसिक विकार, दरिद्रता, ओर लाइलाज बीमारी होती है।

Monday, February 27, 2017

अष्टरवर्ग और शुभ -अशुभ

अष्टरवर्ग और शुभ -अशुभ बिंदु प्राप्त राशियो पर चंद्रमा का गोचर फल

*चंद्र के अष्टकवर्ग मे 8 बिंदु पाने वाली राशि पर चंद्र का गोचर सुख संपदा यश और वैभव प्रदान करता है|*

7बिंदु पाने वाली राशि पर चंद्रमा का गोचर अच्छे भोजन ,वस्त्र ,मित्रो के साथ मनोरंजन और उत्सव का आनंद देता है|

6बिंदु पाने वाली राशि पर चंद्रमा का गोचर मंत्र व आध्यात्म विद्या मे रूची देता है| मंत्र सिद्धि मिलती है व धार्मिक संस्थान मे प्रतिष्ठा मिलती है|

5बिंदु पाने वाली राशि पर चंद्रमा का गोचर साहस व धेर्य की वृद्धि करके सभी क्षेत्रो मे सफलता देता है|

4बिंदु पाने वाली राशि पर चंद्रमा का गोचर थोडी बाधा व कठिनाई के साथ सफलता देता है| कभी कभी जातक को मान हानी का डर बना रहता है|

3बिंदु पाने वाली राशि पर चंद्रमा का गोचर मन मे क्षोभ व क्रोध के कारण दूसरो से झगडा या वाद विवाद करता है |

2बिंदु पाने वाली राशि पर चंद्रमा का गोचर जातक को हिंसक आक्रमक और झगडालु बनाता है| कभी पैतृक संपदा के विभाजन या मित्रो के बिछुडने से क्लेश होता है|

1बिंदु पाने वाली राशि पर चंद्रमा का गोचर अप्रत्याशित चिंता बाधा व झूठा डर दिया करता है|

0बिंदु पाने वाली राशि पर चंद्रमा का गोचर मानसिक अवसाद ,निराशा दुख और क्लेश दिया करता है|

चंद्रमा के अष्टकवर्ग मे जो ग्रह शुभ बिंदु प्राप्त करे उनसे संबंधित राशि पर चंद्रमा का गोचर प्रायः सुख संतोश देता है| जातक की मनोकामना पूरी होती है .धन मान यश की प्राप्ति होती है | धनी मानी व्यक्तियो के सहयोग से रूके काम पूरे होते है| गुरू और शुक्र के ऊपर या इनके क्षेत्र मे चंद्रमा का गोचर शुभ फल दिया करता है|

नाड़ी: वर वधु लग्न मिलाप की महत्व पूर्व जानकारी

नाड़ी: वर वधु लग्न मिलाप की महत्व पूर्व जानकारी

नाड़ी तीन प्रकार की होती है। ये हैं आदि नाड़ी, मध्य नाड़ी और अनत्य नाड़ी। गुण मिलान की प्रक्रिया में जिन अष्ट कूटों का मिलान किया जाता है उनमें नाड़ी महत्वपूर्ण है। जन्म कुंडली में चंद्रमा की नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से जातक की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विशेष नक्षत्रों में चंद्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है।

तीन नाडिय़ों में आने वाले नक्षत्र इस तरह हैं-
ज्येष्ठा मूल, आद्रा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, शतभिषा, पूर्वा भाद्र व अश्विनी नक्षत्रों की गणना आदि या आद्य नाड़ी में की जाती है।

पुष्य, मृगशिरा, चित्र, अनुराधा, भरणी, घनिष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्र नक्षत्रों की गणना मध्य नाड़ी में की जाती है।

स्वाति, विशाखा,कृतिका, रोहिणी, अश्लेषा, मघा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण तथा रेवती नक्षत्रों की गणना अन्त्य नाड़ी में की जाती है।

नाड़ी दोष होने पर आशंकाएं : जब वर और कन्या दोनों के नक्षत्र एक नाड़ी में हों तब यह दोष लगता है। सभी तरह के दोषों में नाड़ी दोष सबसे अशुभ माना जाता है क्योंकि इससे सर्वाधिक गुणांक यानी 8 अंक की हानि होती है। इस दोष के लगने पर शादी की बात आगे बढ़ाने की इजाजत नहीं दी जाती।

यदि वर-कन्या दोनों की नाड़ी ‘आदि’ हो तो उनका वैवाहिक संबंध अधिक दिनों तक कायम नहीं रहता। दोनों की एक ही नाड़ी होना इसकी वजह बनता है। कुंडली मिलने पर कन्या और वर दोनों की कुंडली में ‘मध्य नाड़ी’ होने पर विवाह होता है तो दोनों की मृत्यु हो सकती है। इसी क्रम में वर-वधू दोनों की कुंडली में ‘अन्त्य नाड़ी’ होने पर विवाह से दोनों का जीवन दुखमय होता है। इन स्थितियों से बचने के लिए ही समान नाडिय़ों में विवाह की आज्ञा नहीं दी जाती।

नाड़ी दोष होने पर यदि वर-कन्या के नक्षत्रों में नजदीकी होने पर विवाह के एक वर्ष के भीतर कन्या की मृत्यु हो सकती है या तीन वर्षों के अंदर पति की मृत्यु से स्त्री को वैधव्य की आशंका रहती है। नाड़ी मानव के शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। इस दोष के होने पर उनकी संतान मानसिक रूप से अविकसित एवं शारीरिक रूप से अस्वस्थ होती है।

इन स्थितियों में  दोष नहीं लगता : वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक ही हो परन्तु दोनों के चरण पृथक हों।
वर-वधू की एक ही राशि हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्न हों।
वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो परन्तु राशियां भिन्न-भिन्न हे।
महत्वपूर्ण है नाड़ी मिलान : संभावित वर-वधू को केवल नाड़ी दोष के बन जाने के कारण ही आशा नहीं छोड़ देनी चाहिए तथा कुंडलियों का गुण मिलान के अलावा अन्य विधियों से पूर्णतया मिलान करवाना चाहिए क्योंकि इन कुंडलियों के आपस में मिल जाने से नाड़ी दोष अथवा गुण मिलान से बनने वाला ऐसा ही कोई अन्य दोष ऐसे विवाह को कोई विशेष हानि नहीं पहुंचा सकता। इसके पश्चात शुभ समाचार यह भी कि कुंडली मिलान में बनने वाले नाड़ी दोष का निवारण अधिकतर मामलों में ज्योतिष के उपायों से सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

Sunday, February 26, 2017

आज से ‘मृत्यु’ पंचक हो गया हैं

*आज से ‘मृत्यु’ पंचक हो गया हैं*

ज्योतिष में पंचक को अशुभ माना गया है,इसके अंतर्गत धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र आते हैं,पंचक के दौरान कुछ विशेष काम करने की मनाही है,इस बार 25 फरवरी, शनिवार से पंचक शुरू होगा,जो 1 मार्च, बुधवार की रात लगभग 05.10 तक रहेगा,शनिवार से शुरू होने के कारण ये मृत्यु पंचक कहलाएगा,पंचक कितने प्रकार का होता है और इसमें कौन से काम नहीं करने चाहिए......!

पंचक के प्रकार
1. रोग पंचक
रविवार को शुरू होने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है,इसके प्रभाव से ये पांच दिन शारीरिक और मानसिक परेशानियों वाले होते हैं,इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ काम नहीं करने चाहिए,हर तरह के मांगलिक कार्यों में ये पंचक अशुभ माना गया है......।

2. राज पंचक
सोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है,ये पंचक शुभ माना जाता है,इसके प्रभाव से इन पांच दिनों में सरकारी कामों में सफलता मिलती है,राज पंचक में संपत्ति से जुड़े काम करना भी शुभ रहता है.....।

3. अग्नि पंचक
मंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है,इन पांच दिनों में कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फैसले,अपना हक प्राप्त करने वाले काम किए जा सकते हैं,इस पंचक में अग्नि का भय होता है,इस पंचक में किसी भी तरह का निर्माण कार्य, औजार और मशीनरी कामों की शुरुआत करना अशुभ माना गया है,इनसे नुकसान हो सकता है......।

4. मृत्यु पंचक
शनिवार को शुरू होने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है,नाम से ही पता चलता है कि अशुभ दिन से शुरू होने वाला ये पंचक मृत्यु के बराबर परेशानी देने वाला होता है,इन पांच दिनों में किसी भी तरह के जोखिम भरे काम नहीं करना चाहिए। इसके प्रभाव से विवाद, चोट, दुर्घटना आदि होने का खतरा रहता है......।

5. चोर पंचक
शुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है.विद्वानों के अनुसार, इस पंचक में यात्रा करने की मनाही है,इस पंचक में लेन-देन, व्यापार और किसी भी तरह के सौदे भी नहीं करने चाहिए, मना किए गए कार्य करने से धन हानि हो सकती है....।

6. इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को शुरू होने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है,इन दो दिनों में शुरू होने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं.....।

*पंचक में न करें ये काम*
1. पंचक में चारपाई बनवाना भी अच्छा नहीं माना जाता,विद्वानों के अनुसार ऐसा करने से कोई बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।
2. पंचक के दौरान जिस समय घनिष्ठा नक्षत्र हो उस समय घास, लकड़ी आदि जलने वाली वस्तुएं इकट्ठी नहीं करना चाहिए, इससे आग लगने का भय रहता है।
3. पंचक के दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है,इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
4. पंचक के दौरान जब रेवती नक्षत्र चल रहा हो, उस समय घर की छत नहीं बनाना चाहिए, ऐसा विद्वानों का कहना है,इससे धन हानि और घर में क्लेश होता है।
5. पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से पहले किसी योग्य पंडित की सलाह अवश्य लेनी चाहिए,यदि ऐसा न हो पाए तो शव के साथ पांच पुतले आटे या कुश (एक प्रकार की घास) से बनाकर अर्थी पर रखना चाहिए और इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार करना चाहिए, तो पंचक दोष समाप्त हो जाता है। ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा है.....।

ये शुभ कार्य कर सकते हैं पंचक में
     बृहत् होडाशास्त्र के अनुसार, पंचक में आने वाले नक्षत्रों में शुभ कार्य हो सकते हैं,पंचक में आने वाला उत्तराभाद्रपद नक्षत्र वार के साथ मिलकर सर्वार्थसिद्धि योग बनाता है, वहीं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र यात्रा, व्यापार, मुंडन आदि शुभ कार्यों में श्रेष्ठ माने गए हैं।}
पंचक को भले ही अशुभ माना जाता है,लेकिन इस दौरान सगाई, विवाह आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं,पंचक में आने वाले तीन नक्षत्र पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद व रेवती रविवार को होने से आनंद आदि 28 योगों में से 3 शुभ योग बनाते हैं, ये शुभ योग इस प्रकार हैं- चर, स्थिर व प्रवर्ध,इन शुभ योगों से सफलता व धन लाभ का विचार किया जाता है......!

*पंचक के नक्षत्रों का शुभ फल*
1. घनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र चल संज्ञक माने जाते हैं,इनमें चलित काम करना शुभ माना गया है जैसे- यात्रा करना, वाहन खरीदना, मशीनरी संबंधित काम शुरू करना शुभ माना गया है।
2. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र स्थिर संज्ञक नक्षत्र माना गया है,इसमें स्थिरता वाले काम करने चाहिए जैसे- बीज बोना, गृह प्रवेश, शांति पूजन और जमीन से जुड़े स्थिर कार्य करने में सफलता मिलती है।
3. रेवती नक्षत्र मैत्री संज्ञक होने से इस नक्षत्र में कपड़े, व्यापार से संबंधित सौदे करना, किसी विवाद का निपटारा करना, गहने खरीदना आदि काम शुभ माने गए हैं।

*पंचक के नक्षत्रों का अशुभ प्रभाव*
1.धनिष्ठा नक्षत्र में आग लगने का भय रहता है.....।
2. शतभिषा नक्षत्र में वाद-विवाद होने के योग बनते हैं...।
3. पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र है यानी इस नक्षत्र में बीमारी होने की संभावना सबसे अधिक होती है.।
4. उत्तरा भाद्रपद में धन हानि के योग बनते हैं...।
5. रेवती नक्षत्र में नुकसान व मानसिक तनाव होने की संभावना होती है...।

Friday, February 24, 2017

कर्म और ज्योतिष

कर्म और ज्योतिष

व्यवसाय या कारोवार का मतलब घरवार चलाने के लिये मनुष्य को कर्म करना जरूरी होता है। बिना कर्म किये कोई भी इस जगत में नहीं रह सकता है,तो हम मनुष्य की बिसात ही क्या ,इसलिये मनुष्य को कर्म करना जरूरी है। मनुष्य अपने पिछले जीवन के कर्मों के अनुसार उन कर्म फ़ल का भुगतान लेने के लिये इस जन्म में आता है,और जो कर्म इस जीवन में किये जाते है उनको आगे के जीवन में प्राप्त करना होता है। कर्म की श्रेणियां भूतकाल के कर्मों के अनुसार ही बनती है,जैसे पिछले समय में अगर किसी से फ़ालतू में दासता का कर्म करवा कर जातक आया है तो उसे इस जीवन में जिससे दासता करवायी थी उसके प्रति दासता तो करनी ही पडेगी। उस दासता का रूप कुछ भी हो सकता है। अक्सर जब एक धनी व्यक्ति का पुत्र अपने कर्मों के अनुसार धन कमाने के बजाय धन को बेकार के कामों के अन्दर खर्च करने लगता है तो उसका मतलब यही होता है कि धनी व्यक्ति के परिवार में जन्म लेने के बावजूद भी दासता वाले काम करने है। लोग कहने लगते है कि बेचारा कितने धनी परिवार में पैदा हुआ था और भाग्य की बिडम्बना के कारण दासता के काम करने पड रहे है। यह भाग्य का लेख है कि काम तो करना ही पडेगा। कार्य के तीन रूप हैं,नौकरी करना व्यवसाय करवाना,और व्यवसाय के साथ नौकरी करना। व्यवसाय करने के साथ नौकरी करना भी एक साथ नही होता है। ग्रह और भाव नौकरी व्यवसाय और व्यक्ति के द्वारा जीवन मे किये जाने वाले जीविकोपार्जन के लिये प्रयासों का लेखा जोखा बतलाते है। ग्रहों के प्रभाव से अच्छे अच्छे व्यवसायी पलक झपकते धराशायी हो जाते और ग्रहों के ही प्रभाव से गरीब से गरीब कहां से कहां पहुंच जाते है। ग्रहों के बारे में ज्ञान हर किसी को नही होता है,और जो ग्रह और अपने जन्म के भाव को साथ लेकर चलता है और अपने ग्रह और भाव को पहिचान कर चलता है वह जीवन मे आने वाली समस्या को तुरत फ़ुरत मे समाधान कर लेता है,वह बुरे दिनों मे अपने व्यवसाय को स्थिर करने के बाद दूसरे कामों को निपटा लेता है,जबकि ग्रहों और भावों को नही जानने वाला समस्याओं के अन्दर फ़ंस कर और अधिक फ़ंसता चला जाता है। समझदार लोग वही होते है जो कल की सोच कर चलते है,और जो लोग आज मौज करो कल का क्या भरोसा के हिसाब से चलते है उनके लिये कोई चांस नही होता है कि वे आगे बढेंगे भी। आपको बताते है कि ग्रह किस राशि पर अपना प्रभाव कब गलत और कब सही डालते है।
व्यवसाय के लिये कौन सी राशि "नाम राशि या जन्म राशि"?
जन्म नाम को कई प्रकार से रखा जाता है,भारत में जन्म नाम को चन्द्र राशि से रखने का रिवाज है,चन्द्र राशि को महत्वपूर्ण इसलिये माना जाता है कि शरीर मन के अनुसार चलने वाला होता है,बिना मन के कोई काम नही किया जा सकता है यह अटल है,बिना मन के किया जाने वाला काम या तो दासता में किया जाता है या फ़िर परिस्थिति में किया जाता है। दासता को ही नौकरी कहते है और परिस्थिति में जभी काम किया जाता है जब कहीं किसी के दबाब में आकर या प्रकृति के द्वारा प्रकोप के कारण काम किया जाये। जन्म राशि के अनुसार चन्द्रमा का स्थान जिस राशि में होता है,उस राशि का नाम जातक का रखा जाता है,नामाक्षर को रखने के लिये नक्षत्र को देखा जाता है और नक्षत्र में उसके पाये को देखा जाता है,पाये के अनुसार एक ही राशि में कई अक्षरों से शुरु होने वाले नामाक्षर होते है। राशि का नाम तो जातक के घर वाले या पंडितों से रखवाया जाता है,लेकिन नामाक्षर को प्रकृति रखती है,कई बार देखा जाता है कि जातक का जो नामकरण हुआ है उसे कोई नही जानता है,और घर के अन्दर या बाहर का व्यक्ति किसी अटपटे नाम से पुकारने लग जाये तो उस नाम से व्यक्ति प्रसिद्ध हो जाता है। यह नाम जो प्रकृति के द्वारा रखा जाता है,ज्योतिष में अपनी अच्छी भूमिका प्रदान करता है। अक्सर देखा जाता है कि कन्या राशि वालों का नाम कन्या राशि के त्रिकोण में या लगन के त्रिकोण में से ही होता है,वह जातक के घर वालों या किसी प्रकार से जानबूझ कर भी नही रखा गया हो लेकिन वह नाम कुंडली बनाने के समय त्रिकोण में या नवांश में जरूर अपना स्थान रखता है। मैने कभी कभी किसी व्यक्ति की कुंडली को उसकी पचास साल की उम्र में बनाया है और पाया कि उसका नाम राशि या लगन से अथवा नवांश के त्रिकोण से अपने आप प्रकृति ने रख दिया है। कोई भी व्यवसाय करने के लिये नामाक्षर को देखना पडता है,और नामाक्षर की राशि का लाभ भाव का दूसरा अक्षर अगर सामने होता है तो लाभ वाली स्थिति होती है,अगर वही दूसरा अक्षर अगर त्रिक भावों का होता है तो किसी प्रकार से भी लाभ की गुंजायस नही रहती है। उदाहरण के लिये अगर देखा जाये तो नाम "अमेरिका" में पहला नामाक्षर मेष राशि का है और दूसरा अक्षर सिंह राशि का होने के कारण पूरा नाम ही लाभ भाव का है,और मित्र बनाने और लाभ कमाने के अलावा और कोई उदाहरण नही मिलता है,उसी प्रकार से "चीन" शब्द के नामाक्षर में पहला अक्षर मीन राशि का है और दूसरा अक्षर वृश्चिक राशि का होने से नामानुसार कबाड से जुगाड बनाने के लिये इस देश को समझा जा सकता है,वृश्चिक राशि का भाव पंचमकारों की श्रेणी में आने से चीन में जनसंख्या बढने का कारण मैथुन से,चीन में अधिक से अधिक मांस का प्रयोग,चीन में अधिक से अधिक फ़ेंकने वाली वस्तुओं को उपयोगी बनाने और जब सात्विकता में देखा जाये तो वृश्चिक राशि के प्रभाव से ध्यान समाधि और पितरों पर अधिक विश्वास के लिये मानने से कोई मना नही कर सकता है। उसी प्रकार से भारत के नाम का पहला नामाक्षर धनु राशि का और दूसरा नामाक्षर तुला राशि का होने से धर्म और भाग्य जो धनु राशि का प्रभाव है,और तुला राशि का भाव अच्छा या बुरा सोचने के बाद अच्छे और बुरे के बीच में मिलने वाले भेद को प्राप्त करने के बाद किये जाने वाले कार्यों से भारत का नाम सिरमौर रहा है। इसी तरह से अगर किसी व्यक्ति का नाम "अमर" अटल आदि है तो वह किसी ना किसी प्रकार से अपने लिये लाभ का रास्ता कहीं ना कहीं से प्राप्त कर लेगा यह भी एक ज्योतिष का चमत्कार ही माना जा सकता है।उदाहरणता"एयरटेल" यह नाम अपने मे विशेषता लेकर चलता है,और इस नाम को भारतीय ज्योतिष के अनुसार प्रयोग करने के लिये जो भाव सामने आते है उनके आनुसार अक्षर "ए" वृष राशि का है और "य" वृश्चिक राशि का है,वृष से वृश्चिक एक-सात की भावना देती है,जो साझेदारी के लिये माना जाता है,इस नाम के अनुसार कोई भी काम बिना साझेदारी के नही किया जा सकता है,लेकिन साझेदारी के अन्दर भी लाभ का भाव होना जरूरी है,इसलिये दूसरा शब्द "टेल" में सिंह राशि का "ट" प्रयोग में लिया गया है,एक व्यक्ति साझेदारी करता है और लाभ कमाता है,अधिक गहरे में जाने से वृष से सिंह राशि एक चार का भाव देती है,लाभ कमाने के लिये इस राशि को जनता मे जाना पडेगा,कारण वृष से सिंह जनता के चौथे भाव में विराजमान है।