शीघ्र फल-दायक सिद्ध शाबर मन्त्र
‘साबर’ का प्रतीक अर्थ होता है ग्राम्य, अपरिष्कृत । ‘साबर-तन्त्र’ – तन्त्र की ग्राम्य-शाखा है । इसके प्रवर्तक भगवान् शंकर प्रत्यक्ष-तया नहीं है, किन्तु जिन सिद्धों ने इसका आविष्कार किया, वे परम-शिव-भक्त अवश्य थे । गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछन्दर नाथ ‘साबर-मन्त्र’ के जनक माने जाते हैं । अपने तप-प्रभाव से वे भगवान् शंकर के समान पूज्य माने जाते हैं । अपनी साधना के कारण वे मन्त्र-प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास और श्रद्धा के पात्र हैं । ‘सिद्ध’ और ‘नाथ’ सम्प्रदायों ने परम्परागत मन्त्रों के मूल सिद्धान्तों को लेकर बोल-चाल की भाषा को मन्त्रो का दर्जा दिया गया ।
‘साबर’-मन्त्रों में ‘आन’ और ‘शाप’, ‘श्रद्धा’ और ‘धमकी’ दोनों का प्रयोग किया जाता है । साधक ‘याचक’ होता हुआ भी देवता को सब कुछ कहता है, उसी से सब कुछ कराना चाहता है । आश्चर्य यह है कि उसकी यह ‘आन’ भी काम करती है । ‘आन’ का अर्थ है – सौगन्ध ।
शास्त्रीय प्रयोगों में उक्त प्रकार की ‘आन’ नहीं रहती । बाल-सुलभ सरलता का विश्वास ‘साबर मन्त्रों का साधक मन्त्र के देवता के प्रति रखता है । जिस प्रकार अबोध बालक की अभद्रता पर उसके माता-पिता अपने वात्सल्य-प्रेम के कारण कोई ध्यान नहीं देते, वैसे ही बाल-सुलभ ‘सरलता’ और ‘विश्वास’ के आधार पर ‘साबर’ मन्त्रों की साधना करना वाला सिद्धि प्राप्त कर लेता है ।
‘साबर’-मन्त्रों में संस्कृत, प्राकृत और क्षेत्रीय – सभी भाषाओं का उपयोग मिलता है । किन्हीं-किन्हीं मन्त्रों में संस्कृत और मलयालय, कन्नड़, गुजराती, बंगला या तमिल भाषाओं का मिश्रित रुप मिलेगा, तो किन्हीं में शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य-शैली और कल्पना भी मिल जायेगी ।
भारत के एक बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली भाषा ‘हिन्दी’ है । अतः अधिकांश ‘साबर’ – मन्त्र हिन्दी में ही मिलते हैं । इस मन्त्रों में शास्त्रीय मन्त्रों के समान ‘षडङ्ग’ – ऋषि, छन्द, वीज, शक्ति, कीलक और देवता – की योजना अलग से नहीं रहती, अपितु इन अंगों का वर्णन मन्त्र में ही निहित रहता है । इसलिए प्रत्येक ‘साबर’ मन्त्र अपने आप में पूर्ण होता है । उपदेष्टा ‘ऋषि’ के रुप में गोरखनाथ, सुलेमान जैसे सिद्ध-पुरुष हैं । कई मन्त्रों में इनके नाम लिए जाते हैं और कइयों में केवल ‘गुरु के नाम से ही काम चल जाता है ।
‘पल्लव’ (मन्त्र के अन्त में लगाए जाने वाले शब्द) के स्थान में ‘शब्द साँचा पिण्ड काचा, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा’ – वाक्य ही सामान्यतः रहता है । इस वाक्य का अर्थ है “शब्द ही सत्य है, नष्ट नहीं होता । यह देह अनित्य है, बहुत कच्चा है । हे मन्त्र ! तुम ईश्वरी वाणी हो (ईश्वर के वचन से प्रकट हो)” इसी प्रकार के या इससे मिलते-जुलते दूसरे शब्द इस मन्त्रों के ‘पल्लव’ होते
साबर मंत्रो को जगाने की विधि
द्वापरयुग में भगवान् श्री कृष्ण की आज्ञा से अर्जुन ने पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिए भगवान् शिव का तप किया एक दिन भगवान् शिव एक शिकारी का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अर्जुन ने सुअर पर बाण चलाया तो ठीक उसी वक़्त भगवान् शिव ने भी उस सुअर को तीर मारा , दोनों में वाद विवाद हो गया और शिकारी रुपी शिव ने अर्जुन से कहा , मुझसे युद्ध करो जो युद्ध में जीत जायेगा सुअर उसी को दीया जायेगा अर्जुन और भगवान् शिव में युद्ध शुरू हुआ , युद्ध देखने के लिए माँ पार्वती भी शिकारी का भेष बना वहां आ गयी और युद्ध देखने लगी तभी भगवान् कृष्ण ने अर्जुन से कहा जिसका रोज तप करते हो वही शिकारी के भेष में साक्षात् खड़े है अर्जुन ने भगवान् शिव के चरणों में गिरकर प्रार्थना की और भगवान् शिव ने अर्जुन को अपना असली स्वरुप दिखाया !
अर्जुन भगवान् शिव के चरणों में गिर पड़े और पाशुपत अस्त्र के लिए प्रार्थना की शिव ने अर्जुन को इच्छित वर दीया , उसी समय माँ पार्वती ने भी अपना असली स्वरुप दिखाया जब शिव और अर्जुन में युद्ध हो रहा था तो माँ भगवती शिकारी का भेष बनाकर बैठी थी और उस समय अन्य शिकारी जो वहाँ युद्ध देख रहे थे उन्होंने जो मॉस का भोजन किया वही भोजन माँ भगवती को शिकारी समझ कर खाने को दिया माता ने वही भोजन ग्रहण किया इसलिए जब माँ भगवती अपने असली रूप में आई तो उन्होंने ने भी शिकारीओं से प्रसन्न होकर कहा ” हे किरातों मैं प्रसन्न हूँ , वर मांगो ” इसपर शिकारीओं ने कहा ” हे माँ हम भाषा व्याकरण नहीं जानते और ना ही हमे संस्कृत का ज्ञान है और ना ही हम लम्बे चौड़े विधि विधान कर सकते है पर हमारे मन में भी आपकी और महादेव की भक्ति करने की इच्छा है , इसलिए यदि आप प्रसन्न है तो भगवान शिव से हमे ऐसे मंत्र दिलवा दीजिये जिससे हम सरलता से आप का पूजन कर सके
माँ भगवती की प्रसन्नता देख और भीलों का भक्ति भाव देख कर आदिनाथ भगवान् शिव ने साबर मन्त्रों की रचना की यहाँ एक बात बताना बहुत आवश्यक है कि नाथ पंथ में भगवान् शिव को ” आदिनाथ ” कहा जाता है और माता पार्वती को ” उदयनाथ ” कहा जाता है भगवान् शिव जी ने यह विद्या भीलों को प्रदान की और बाद में यही विद्या दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को मिली , उन्होंने इस विद्या का बहुत प्रचार प्रसार किया और करोड़ो साबर मन्त्रों की रचना की उनके बाद गुरु गोरखनाथ जी ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया और नवनाथ एवं चौरासी सिद्धों के माध्यम से इस विद्या का बहुत प्रचार हुआ कहा जाता है कि योगी कानिफनाथ जी ने पांच करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की और वही चर्पटनाथ जी ने सोलह करोड़ मन्त्रों की रचना की मान्यता है कि योगी जालंधरनाथ जी ने तीस करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की इन योगीयो के बाद अनन्त कोटि नाथ सिद्धों ने साबर मन्त्रों की रचना की यह साबर विद्या नाथ पंथ में गुरु शिष्य परम्परा से आगे बढ़ने लगी , इसलिए साबर मंत्र चाहे किसी भी प्रकार का क्यों ना हो उसका सम्बन्ध किसी ना किसी नाथ पंथी योगी से अवश्य होता है अतः यह कहना गलत ना होगा कि साबर मंत्र नाथ सिद्धों की देन है
साबर मन्त्रों के मुख्य पांच प्रकार है –
१ . प्रबल साबर – इस प्रकार के साबर मन्त्र कार्य सिद्धि के लिए प्रयोग होते है , इन में प्रत्यक्षीकरण नहीं होता केवल जिस मंशा से जप किया जाता है वह इच्छा पूर्ण हो जाती है इन्हें कार्य सिद्धि मंत्र कहना गलत ना होगा यह मंत्र सभी प्रकार के कर्मों को करने में सक्षम है अतः इस प्रकार के मन्त्रों में व्यक्ति देवता से कार्यसिद्धि के लिए प्रार्थना करता है , साधक एक याचक के रूप में देवता से याचना करता है
२. बर्भर साबर – इस प्रकार के साबर मन्त्र भी सभी प्रकार के कार्यों को करने में सक्षम है पर यह प्रबल साबर मन्त्रों से अधिक तीव्र माने जाते है बर्भर साबर मन्त्रों में साधक देवता से याचना नहीं करता अपितु देवता से सौदा करता है इस प्रकार के मन्त्रों में देवता को गाली, श्राप, दुहाई और धमकी आदि देकर काम करवाया जाता है देवता को भेंट दी जाती है और कहा जाता है कि मेरा अमुक कार्य होने पर मैं आपको इसी प्रकार भेंट दूंगा ! यह मंत्र बहुत ज्यादा उग्र होते है
३. बराटी साबर – इस प्रकार के साबर मन्त्रों में देवता को भेंट आदि ना देकर उनसे बलपूर्वक काम करवाया जाता है यह मंत्र स्वयं सिद्ध होते है पर गुरुमुखी होने पर ही अपना पूर्ण प्रभाव दिखाते है ! इस प्रकार के मंत्रों में साधक याचक नहीं होता और ना ही सौदा करता है वह देवता को आदेश देता है कि मेरा अमुक कार्य तुरंत करो यह मन्त्र मुख्य रूप से योगी कानिफनाथ जी के कापालिक मत में अधिक प्रचलित है कुछ प्रयोगों में योगी अपने जुते पर मंत्र पढ़कर उस जुते को जोर जोर से नीचे मारते है तो देवता को चोट लगती है और मजबूर होकर देवता कार्य करता है
४. अढैया साबर – इस प्रकार के साबर मंत्र बड़े ही प्रबल माने जाते है और इन मन्त्रों के प्रभाव से प्रत्यक्षीकरण बहुत जल्दी होता है प्रत्यक्षीकरण इन मन्त्रों की मुख्य विशेषता है और यह मंत्र लगभग ढ़ाई पंक्तियों के ही होते है ! अधिकतर अढैया मन्त्रों में दुहाई और धमकी का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता पर फिर भी यह पूर्ण प्रभावी होते है
५. डार साबर – डार साबर मन्त्र एक साथ अनेक देवताओं का दर्शन करवाने में सक्षम है जिस प्रकार “बारह भाई मसान” साधना में बारह के बारह मसान देव एक साथ दर्शन दे जाते है अनेक प्रकार के देवी देवता इस मंत्र के प्रभाव से दर्शन दे जाते है जैसे “चार वीर साधना” इस मार्ग से की जाती है और चारों वीर एक साथ प्रकट हो जाते है इन मन्त्रों की जितनी प्रशंसा की जाए उतना ही कम है , यह दिव्य सिद्धियों को देने वाले और हमारे इष्ट देवी देवताओं का दर्शन करवाने में पूर्ण रूप से सक्षम है गुरु अपने कुछ विशेष शिष्यों को ही इस प्रकार के मन्त्रों का ज्ञान देते है
नाथ पंथ की महानता को देखकर बहुत से पाखंडी लोगो ने अपने आपको नाथ पंथी घोषित कर दिया है ताकि लोग उनकी बातों पर विश्वास कर ले ऐसे लोगो से यदि यह पूछा जाये कि आप बारह पन्थो में से किस पंथ से सम्बन्ध रखते है ? आपकी दीक्षा किस पीठ से हुयी है ? आपके गुरु कौन है ? तो इन लोगो का उत्तर होता है कि मैं बताना जरूरी नहीं समझता क्योंकि इन लोगो को इस विषय में ज्ञान ही नहीं होता , पर आज के इस युग में लोग बड़े समझदार है और इन धूर्तो को आसानी से पहचान लेते है
ऐसे महापाखंडीयो ने ही प्रचार किया है कि सभी साबर मन्त्र ” गोरख वाचा ” है अर्थात गुरु गोरखनाथ जी के मुख से निकले हुए है पर मेरा ऐसे लोगो से एक ही प्रशन है क्या जो मन्त्र कानिफनाथ जी ने रचे है वो भी गोरख वाचा है ? क्या जालंधरनाथ जी के रचे मन्त्र भी गोरख वाचा है ? इन मंत्रो की बात अलग है पर क्या मुस्लिम साबर मन्त्र भी गोरख वाचा है ? ऐसा नहीं है मुस्लिम साबर मन्त्र मुस्लिम फकीरों द्वारा रचे गए है
भगवान् शिव ने सभी मंत्रो को कीलित कर दिया पर साबर मन्त्र कीलित नहीं है साबर मन्त्र कलयुग में अमृत स्वरुप है साबर मंत्रो को सिद्ध करना बड़ा ही सरल है न लम्बे विधि विधान की आवश्यकता और न ही करन्यास और अंगन्यास जैसी जटिल क्रियाए इतने सरल होने पर भी कई बार साबर मंत्रो का पूर्ण प्रभाव नहीं मिलता क्योंकि साबर मन्त्र सुप्त हो जाते है ऐसे में इन मंत्रो को एक विशेष क्रिया द्वारा जगाया जाता है
साबर मंत्रो के सुप्त होने के मुख्य कारण –
१. यदि सभा में साबर मन्त्र बोल दिए जाये तो साबर मन्त्र अपना प्रभाव छोड़ देते है
२.यदि किसी किताब से उठाकर मन्त्र जपना शुरू कर दे तो भी साबर मन्त्र अपना पूर्ण प्रभाव नहीं देते
३.साबर मन्त्र अशुद्ध होते है इनके शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता क्योंकि यह ग्रामीण भाषा में होते है यदि इन्हें शुद्ध कर दिया जाये तो यह अपना प्रभाव छोड़ देते है
४.प्रदर्शन के लिए यदि इनका प्रयोग किया जाये तो यह अपना प्रभाव छोड़ देते है !
५.यदि केवल आजमाइश के लिए इन मंत्रो का जप किया जाये तो यह मन्त्र अपना पूर्ण प्रभाव नहीं देते
ऐसे और भी अनेक कारण है उचित यही रहता है कि साबर मंत्रो को गुरुमुख से प्राप्त करे क्योंकि गुरु साक्षात शिव होते है और साबर मंत्रो के जन्मदाता स्वयं शिव है शिव के मुख से निकले मन्त्र असफल हो ही नहीं सकते
साबर मंत्रो के सुप्त होने का कारण कुछ भी हो इस विधि के बाद साबर मन्त्र पूर्ण रूप से प्रभावी होते है
|| मन्त्र ||
सत नमो आदेश! गुरूजी को आदेश ॐ गुरूजी ,ड़ार शाबर बर्भर जागे जागे अढैया और बराट
मेरा जगाया न जागेतो तेरा नरक कुंड में वास ,दुहाई शाबरी माई की,दुहाई शाबरनाथ की ,आदेश गुरु गोरख को,
|| विधि ||
इस मन्त्र को प्रतिदिन गोबर का कंडा सुलगाकर उसपर गुगल डाले और इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे! जब तक मन्त्र जाप हो गुगल सुलगती रहनी चाहिये यह क्रिया आपको २१ दिन करनी है , अच्छा होगा आप यह मन्त्र अपने गुरु के मुख से ले या किसी योग्य साधक के मुख से ले ! गुरु कृपा ही सर्वोपरि है कोई भी साधना करने से पहले गुरु आज्ञा जरूर ले
|| प्रयोग विधि ||
जब भी कोई साधना करे तो इस मन्त्र को जप से पहले ११ बार पढ़े और जप समाप्त होने पर ११ बार दोबारा पढ़े मन्त्र का प्रभाव बढ़ जायेगा! यदि कोई मन्त्र बार बार सिद्ध करने पर भी सिद्ध न हो तो किसी भी मंगलवार या रविवार के दिन उस मन्त्र को भोजपत्र या कागज़ पर केसर में गंगाजल मिलाकर अनार की कलम से या बड के पेड़ की कलम से लिख ले फिर किसी लकड़ी के फट्टे पर नया लाल वस्त्र बिछाएं और उस वस्त्र पर उस भोजपत्र को स्थापित करे घी का दीपक जलाये , अग्नि पर गुगल सुलगाये और शाबरी देवी या माँ पार्वती का पूजन करे और इस मन्त्र को १०८ बार जपे फिर जिस मन्त्र को जगाना है उसे १०८ बार जपे और दोबारा फिर इसी मन्त्र का १०८ बार जप करे लाल कपडे दो मंगवाए और एक घड़ा भी पहले से मंगवा कर रखे जिस लाल कपडे पर भोजपत्र स्थापित किया गया है उस लाल कपडे को घड़े के अन्दर रखे और भोजपत्र को भी घड़े के अन्दर रखे दुसरे लाल कपडे से भोजपत्र का मुह बांध दे और दोबारा उस कलश का पूजन करे और शाबरी माता से मन्त्र जगाने के लिए प्रार्थना करे और उस कलश को बहते पानी में बहा दे घर से इस कलश को बहाने के लिए ले जाते समय और पानी में कलश को बहाते समय जिस मन्त्र को जगाना है उसका जाप करते रहे यह क्रिया एक बार करने से ही प्रभाव देती है पर फिर भी इस क्रिया को ३ बार करना चाहिये मतलब रविवार को फिर मंगलवार को फिर दोबारा रविवार को
भगवान् आदिनाथ और माँ शाबरी आप सबको मन्त्र सिद्धि प्रदान करे
2…शीघ्र फल-दायक सिद्ध शाबर मन्त्र
..शाबर मंत्रो को जगाने का पर्याय
अगर बहोत कोशिश करने पर मंत्र जागृत नहीं हो रहे हो तो इस साधना को करके कोई भी साबर मंत्र जग सकते हो आप ..इस साधना को कर इसे सार्थक करे ..( अगर फिर नहीं हुआ तो साबर कल्प्सिद्धि से तो होना ही होना है यह हमारा दावा है ( कल्प्सिद्धि एक विशेष क्रिया है )
मन्त्रः-
ॐ इक ओंकार, सत नाम करता पुरुष निर्मै निर्वैर अकाल मूर्ति अजूनि सैभं गुर प्रसादि जप आदि सच, जुगादि सच है भी सच, नानक होसी भी सच –
मन की जै जहाँ लागे अख, तहाँ-तहाँ सत नाम की रख ।
चिन्तामणि कल्पतरु आए कामधेनु को संग ले आए, आए आप कुबेर भण्डारी साथ लक्ष्मी आज्ञाकारी, बारां ऋद्धां और नौ निधि वरुण देव ले आए ।
प्रसिद्ध सत-गुरु पूर्ण कियो स्वार्थ, आए बैठे बिच पञ्ज पदार्थ ।
ढाकन गगन, पृथ्वी का बासन, रहे अडोल न डोले आसन, राखे ब्रह्मा-विष्णु-महेश, काली-भैरों-हनु-गणेश ।
सूर्य-चन्द्र भए प्रवेश, तेंतीस करोड़ देव इन्द्रेश ।
सिद्ध चौरासी और नौ नाथ, बावन वीर यति छह साथ ।
राखा हुआ आप निरंकार, थुड़ो गई भाग समुन्द्रों पार ।
अटुट भण्डार, अखुट अपार । खात-खरचत, कछु होत नहीं पार ।
किसी प्रकार नहीं होवत ऊना । देव दवावत दून चहूना ।
गुर की झोली, मेरे हाथ । गुरु-बचनी पञ्ज तत, बेअन्त-बेअन्त-बेअन्त भण्डार ।
जिनकी पैज रखी करतार, नानक गुरु पूरे नमस्कार ।
अन्नपूर्णा भई दयाल, नानक कुदरत नदर निहाल ।
ऐ जप करने पुरुष का सच, नानक किया बखान,
जगत उद्धारण कारने धुरों होआ फरमान ।
अमृत-वेला सच नाम जप करिए ।
कर स्नान जो हित चित्त कर जप को पढ़े, सो दरगह पावे मान ।
जन्म-मरण-भौ काटिए, जो प्रभ संग लावे ध्यान ।
जो मनसा मन में करे, दास नानक दीजे दान ।।”..
भक्तों को साधना काल में निम्न नियमों का पालन अनिवार्य है:-
• सर्वश्रेष्ट तो यह है की आप गुरु खोजें और उससे मंत्र प्राप्त करें.
• साधना काल में वाणी का असंतुलन, कटु-भाषण, प्रलाप, मिथ्या वचन आदि का त्याग करें। मौन रहने की कोशिश करें।
• निरंतर मंत्र जप अथवा इष्टत देवता का स्मरण-चिंतन करना जरूरी होता है।
• जिसकी साधना की जा रही हो, उसके प्रति मन में पूर्ण आस्था रखें।
• मंत्र-साधना के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति धारण करें।
• साधना-स्थल के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ साधना का स्थान, सामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलग होना जरूरी है।
• उपवास में दूध-फल आदि का सात्विक भोजन लिया जाए।
• श्रृंगार-प्रसाधन और कर्म व विलासिता का त्याग अतिआवश्यक है।
• साधना काल में भूमि शयन ही करना चाहि
शाबर मंत्र साधना में गुरु की आवश्यकता:-
• शाबर मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
• गुरु साधना से उठने वाली उर्जा को नियंत्रित और संतुलित करता है जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
• वैसे ये साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
• शाबर साधना गुरु के आभाव में करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरस्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.
• इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
मन्त्र का विधान क्या है:-
मैं यंहा ये स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की दिये गये शाबर मंत्र मन्त्र बिल्कुल निर्दोष है . कोई भी स्त्री या पुरुष इन मंत्रों का केवल सुबह शाम जाप करके लाभ ले सकता है . जैसे आप सुबह शाम पूजा करते हो वैसे ही बस जाप शाबर मंत्र अपने आप सिद्ध होते है, इन मंत्रों का बस थोड़ा सा
जप करना पड़ता है। ओर ये बहोत ज्यादा प्रभाव दिखते है। इन मंत्रों का प्रभाव स्थायी होता है ओरकिसी भी मंत्र से इनकी काट संभव नहीं है ओर ये कितना भी शक्तिशाली मंत्र हो उसको आराम
से काट सकते है।
गंगाजल में अमृत देखाई नहीं देता, सती का तेज देखाई नहीं देता, जति का सवरूप देखाई नहीं देता, पत्थर में भगवान् देखाई नहीं देता, ठीक उसी परकार शाबर मन्त्रों कि अदभूत शक्ति दिखाई नहीं देती। परन्तु प्रयोग कर और आज़मा कर देखिये – दुनिया को हिला कर रख दे ऐसी शक्ति इसमें समाई हुई है –
उच्चारण की अशुद्धता की संभावना और चरित्र की अपवित्रता के कारण कलियुग में वैदिक मंत्र जल्दी सिद्ध नहीं होते। ऐसे में लोक कल्याण और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सरल तथा सिद्धिदायक शाबर मंत्रों की रचना गुरु गोरखनाथ आदि योगियों ने की थी। शाबर मंत्रों की प्रशंसा करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है- ‘अनमलि आखर अरथ न जापू। शाबर सिद्ध महेश प्रतापू।।’भाइयो बहनों साबरमन्त्रों के चमत्कार से आप सब अपरिचित तो हैं नहीं, अनेक भाइयोबह्नों ने इसे किया भी है और रिजल्ट भी देखे हैं. हमने भीब्लॉग के माध्यम से दिया है परन्तु जो दैनकजीवन मेंअति उपयोगीहोने के साथ ही अति आवश्यक है….. साबरमन्त्र सीधे सादे सरल प्राकृत भाषा में लिखे होते हैं, देखने से पता ही नहीं चलताकि इन मन्त्र में असाधारण शक्ति और चमत्कार भी भरा हुआ है, भगवान गोरखनाथके समय से इन मन्त्रों की प्रसिद्धि हुई और कलियुग में तो ये मन्त्र अत्यधिक चमत्कारीऔर प्रभावशाली हैं, और तुरंत फल देने वाले हैं …… नकोई साधना सामग्री न कोई विशेस विधान, बस एक विशिष्ट समय में जप ही करनाहै……
सबसे बात है कि इन साधनाओ में न तो विशेस विधि विधान की आवश्यकता है और नही किसी कर्मकांड की, इन साधना कि विधि सरल होने के साथ शीघ्र फलदायी भीहै….. अतः किसी भी वर्ग के व्यक्ति कर सकते हैं….. गुरु की आज्ञा, गुरु की कृपा के बिना कोई भी मन्त्र या तंत्र या सिद्धि संभव नहीं अतः प्रथम गुरु पूजन, और मानसिक रूप से आशीर्वाद लेकर ही किसी भी साधना में प्रवर्त होना चाहिए, यही शिष्य या साधक का कर्म और धर्म होना चाहिए.
जब प्राचीन काल के ग्रंथों में उल्लेखित शास्त्रोक्त मंत्रों का दुरूपयोग होने लगा तब महर्षि विश्वामित्र के द्वारा शास्त्रोक्त मंत्रों को श्रापित तथा किलीत कर दिया गया तब से शास्त्रोक्त मंत्र की साधना तथा प्रयोग से सामान्य जन वंचित होने लगे तथा विशेष गुरू कृपा से प्राप्त मंत्र ही साधकों के लिए फलदायी होते थे। तथा अनेकों प्रकार के कठिनाईयों के बावजूद सिद्धीयाँ प्राप्त होती थी तथा सामान्य साधक शास्त्रोक्त मंत्रों के प्रभाव से वंचित रह जाते थे। यह देखकर भगवान शंकर द्वारा कलयुग के साधकों के हित को ध्यान में रखते हुए शाबर मंत्रों का निर्माण किया गया। उसके बाद नवनाथ संप्रदायों के द्वारा शाबर मंत्र के प्रचलन को आगे बढ़ाया गया।
शाबर मंत्रों की उत्पत्ति और रचना के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है कि भगवान शंकर और माता पार्वती ने जिस समय अजुर्न के साथ किरत वेश में युद्ध किया था उसी समय आगम चर्चा के दौरान माता पार्वती जी के प्रश्नों के उत्तर शिवजी ने दिये थे उन्ही भिन्न प्रदत मंत्रों को बाद में शाबर मंत्र कहा गया।
उसके बाद जब कलयुग प्रारंभ हो रहा था तब भगवान शंकर ने कलयुग के मनुष्यों के कल्याण की भावना को ध्यान में रखते हुये नाथ पंथ की स्थापना करने का विचार किया तथा इस कार्य में बह्म्र तथा विष्णु भी सहमत हो गये। भगवान शिव के इस विचार को क्रिया रूप में परिवर्तित करने के लिए ही महासती अनुसुइया को दिये गये वरदान के कारण उन तीनों ने अपने- अपने अंशद्वारा सती अनुसुइया के गर्भ से जन्म लिया ।
ब्रह्म के अंशरूप में चन्द्रमा शिव के अंश रूप में दुर्वासा ऋषि और विष्णु को अंश रूप में भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ।बाद मे भगवान दत्तात्रेय नाथ पंथ के आदि गुरू बने क्योंकि इनके अन्दर ब्रहमा विष्णु और महेश तीनों देवताओं के अंश विद्यामान थे। मुख्यतः विष्णु का अंशरूप होने से भगवान विष्णु के चैतिस अवतारों में दत्तात्रेय अवतारों की गणना होती है। फिर नवनाथों की उत्पति हुई तथा भगवान दत्तात्रेय द्वारा नवनाथों को शिक्षा दिक्षा प्रदान किया गया तथा योग विद्या, अस्त्र विद्या, मंत्र, तप इत्यादि विषयों में पारंगतता प्रदान की गई । इन नवनाथों के अन्दर उतनी क्षमता थी कि ये कुछ ही पल में कोई भी कार्य कर सकते थे, इनके पास आकाश गमन सिद्धि, पाताल गमन मृत संजीवनी विद्या परकाया प्रवेश जैसी हजारों सिद्धियाँ थी उन्हीं नवनाथों के द्वारा शाबर मंत्रों का विस्तार किया गया। बाद में शाबर मंत्रों को सामान्यतः ग्रामीण बोलचाल पर प्रयोग होन वाले सामान्य भाषा में लिखा गया।
इसलिए यह मंत्र सरल तथा तीव्र प्रभावी होता है। शाबर मंत्रों की खासियत यह है कि मंत्रों के आखिर में मंत्र से संबंधित देवी देवताओं के आन अथवा कसम दिया जाता है। जिससे देवी-देवताओं को कसम की मर्यादा रखने के लिए साधक के इच्छित कार्यां को पूरा करना पड़ता है। आगे मैं कुछ शाबर मंत्रों के अलौकिक एवं दुर्लभ प्रयोग प्रस्तुत कर रहा हूँ। जिससे सामान्य साधक अथवा पाठक प्रयोग में लाकर लाभ उठा सकते हैं।
शाबर मंत्र प्रयोग विधि – सभी शाबर मंत्रों को सिद्ध करने से पहले शाबर मंत्र विधान द्वारा गुरू और गणेश की पूजा आराधना करनी चाहिए। तत्पश्चात् शरीर रक्षा मंत्रों के द्वारा शरीर की सुरक्षा कर लेनी चाहिए। गुरू स्थापना प्रयोग – सबसे पहले चारमुख का दिया जलाकर निम्न मंत्र द्वारा गुरू का आह्वान करना चाहिए।
मंत्र –
गुरू दिन गुरू बाती, गुरू सहे सारी राती, वास्तीक दियना, बार के गुरू के उतारां आरती।
इस मंत्र का सात बार जाप करें। फिर निम्न मंत्र द्वारा गुरू का ध्यान करना चाहिए। ध्यान मंत्र अपने शरीर को रक्षा :-
ध्यान मंत्र:- गुरू सठ-गुरू सठ गुरू है विर गुरू साहब सुमिरों बड़ी भाँत सिगीं टोरों बनकहों मननाऊँ करतार सकल गुरू की हरभजे धट्टा पकर उठ जाग। चेत सम्भार श्री परहंस मेरे गुरू की कृपा अपार।
इस मंत्र को 21 बार उच्चारण करना चाहिए। फिर अपने शरीर को रक्षा मंत्रों द्वारा सुरक्षित कर लेना चाहिए।
सुरक्षा मंत्र 1 – उत्तर बांधों, दक्षिण बांधों, बांधों मरी मसानी,
नजर-गुजर देह बांधों रामदुहाई फेरों शब्द शाचा,
पिंड काचा फुरो मंत्र ईश्वरों बाचा।
इस मंत्र को सात बार पढ़कर हथेली में फूक मारकर सारे शरीर में फिरा लें ऐसा करने से साधक का शरीर बंध जाता है और साधक सुरक्षित हो जाता है।
शरीर रक्षा मंत्र 2 – नमों आदि आदेश गुरू के जय हनुमान वीर महान करथों तोला प्रनाम,
भूत-प्रेत मरी-मशान भाग जाय तोर सुन के नाम,
मोर शरीर के रक्षा करिबे नही तो सिता भैया के सैया पर पग ला धरबे,
मोर फूके मोर गुरू के फुके गुरू कौन गौर महादेव के फूके जा रे शरीर बँधा जा।
विधि – मंत्र को ग्यारह बार पढ़कर अपने चारों ओर एक घेरा बना ले इससे साधना में सभी विघ्नों से साधक की रक्षा होती है। इसके बाद किसी भी साधना का प्रयोग करने के लिए तैयार हो जाता है। फिर जो भी साधना या प्रयोग कर सकता है।
3…दर्शन हेतु श्री काली मन्त्र
“डण्ड भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड। प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड। खगर दिखा खप्पर लियां, खड़ी कालका। तागड़दे मस्तङ्ग, तिलक मागरदे मस्तङ्ग। चोला जरी का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त। जय आदि-शक्ति। जय कालका खपर-धनी। जय मचकुट छन्दनी देव। जय-जय महिरा, जय मरदिनी। जय-जय चुण्ड-मुण्ड भण्डासुर-खण्डनी, जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव राजेश्वरी। अमृत-यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी। बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।”
विधि- नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए अगर-बत्ती जलाकर प्रातः-सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे। कम या ज्यादा न करे। जगदम्बा के दर्शन होते हैं।
4….अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र
प्रार्थना
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।
मन्त्र- “ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
विधि- ‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई की बत्ती जलाए। ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाक्षा’ का ध्यान कर उक्त प्रार्थना करे। मन्त्र का १०८ बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात जलाए रखे और स्वयं भी जागता रहे। नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे। प्रातःकाल दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’ में रखे। इससे श्रीलक्ष्मीजी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी। प्रतिदिन सन्ध्या समय दीप जलाए और पाँच बार उक्त मन्त्र का जप करे।
5…… लक्ष्मी-पूजन मन्त्र
“आवो लक्ष्मी बैठो आँगन, रोरी तिलक चढ़ाऊँ। गले में हार पहनाऊँ।। बचनों की बाँधी, आवो हमारे पास। पहला वचन श्रीराम का, दूजा वचन ब्रह्मा का, तीजा वचन महादेव का। वचन चूके, तो नर्क पड़े। सकल पञ्च में पाठ करुँ। वरदान नहीं देवे, तो महादेव शक्ति की आन।।”
विधिः- दीपावली की रात्रि को सर्व-प्रथम षोडशोपचार से लक्ष्मी जी का पूजन करें। स्वयं न कर सके, तो किसी कर्म-काण्डी ब्राह्मण से करवा लें। इसके बाद रात्रि में ही उक्त मन्त्र की ५ माला जप करें। इससे वर्ष-समाप्ति तक धन की कमी नहीं होगी और सारा वर्ष सुख तथा उल्लास में बीतेगा।
6…..श्री भैरव मन्त्र
“ॐ गुरुजी काला भैरुँ कपिला केश, काना मदरा, भगवाँ भेस। मार-मार काली-पुत्र। बारह कोस की मार, भूताँ हात कलेजी खूँहा गेडिया। जहाँ जाऊँ भैरुँ साथ। बारह कोस की रिद्धि ल्यावो। चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो। सूती होय, तो जगाय ल्यावो। बैठा होय, तो उठाय ल्यावो। अनन्त केसर की भारी ल्यावो। गौरा-पार्वती की विछिया ल्यावो। गेल्याँ की रस्तान मोह, कुवे की पणिहारी मोह, बैठा बाणिया मोह, घर बैठी बणियानी मोह, राजा की रजवाड़ मोह, महिला बैठी रानी मोह। डाकिनी को, शाकिनी को, भूतनी को, पलीतनी को, ओपरी को, पराई को, लाग कूँ, लपट कूँ, धूम कूँ, धक्का कूँ, पलीया कूँ, चौड़ कूँ, चौगट कूँ, काचा कूँ, कलवा कूँ, भूत कूँ, पलीत कूँ, जिन कूँ, राक्षस कूँ, बरियों से बरी कर दे। नजराँ जड़ दे ताला, इत्ता भैरव नहीं करे, तो पिता महादेव की जटा तोड़ तागड़ी करे, माता पार्वती का चीर फाड़ लँगोट करे। चल डाकिनी, शाकिनी, चौडूँ मैला बाकरा, देस्यूँ मद की धार, भरी सभा में द्यूँ आने में कहाँ लगाई बार ? खप्पर में खाय, मसान में लौटे, ऐसे काला भैरुँ की कूण पूजा मेटे। राजा मेटे राज से जाय, प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय, जोगी मेटे ध्यान से जाय। शब्द साँचा, ब्रह्म वाचा, चलो मन्त्र ईश्वरो वाचा।”
विधिः- उक्त मन्त्र का अनुष्ठान रविवार से प्रारम्भ करें। एक पत्थर का तीन कोनेवाला टुकड़ा लिकर उसे अपने सामने स्थापित करें। उसके ऊपर तेल और सिन्दूर का लेप करें। पान और नारियल भेंट में चढावें। वहाँ नित्य सरसों के तेल का दीपक जलावें। अच्छा होगा कि दीपक अखण्ड हो। मन्त्र को नित्य २१ बार ४१ दिन तक जपें। जप के बाद नित्य छार, छरीला, कपूर, केशर और लौंग की आहुति दें। भोग में बाकला, बाटी बाकला रखें (विकल्प में उड़द के पकोड़े, बेसन के लड्डू और गुड़-मिले दूध की बलि दें। मन्त्र में वर्णित सब कार्यों में यह मन्त्र काम करता है।
7…महा-लक्ष्मी मन्त्र
“राम-राम रटा करे, चीनी मेरा नाम। सर्व-नगरी बस में करुँ, मोहूँ सारा गाँव।
राजा की बकरी करुँ, नगरी करुँ बिलाई। नीचा में ऊँचा करुँ, सिद्ध गोरखनाथ की दुहाई।।”
विधिः- जिस दिन गुरु-पुष्य योग हो, उस दिन से प्रतिदिन एकान्त में बैठ कर कमल-गट्टे की माला से उक्त मन्त्र को १०८ बार जपें। ४० दिनों में यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है, फिर नित्य ११ बार जप करते रहें।
8…दुर्गा शाबर मन्त्र
“ॐ ह्रीं श्रीं चामुण्डा सिंह वाहिनीं बीस हस्ती भगवती, रत्न मण्डित सोनन की माल। उत्तर पथ में आन बैठी, हाथ सिद्ध वाचा ऋद्धि-सिद्धि। धन-धान्य देहि देहि, कुरू कुरू स्वाहा।”
उक्त मन्त्र का सवा लाख जप कर सिद्ध कर लें। फिर आवश्यकतानुसार श्रद्धा से एक माला जप करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। लक्ष्मी प्राप्त होती है। नौकरी में उन्नति और व्यवसाय में वृद्धि होती है।
9…देपालसर (चूरु) गणेशजी
“ॐ नमो सिद्ध-विनायकाय सर्व-कार्य-कर्त्रे सर्व-विघ्न-प्रशमनाय सर्व-राज्य-वश्य-करणाय सर्व-जन-सर्व-स्त्री-पुरुष-आकर्षणाय श्रीं ॐ स्वाहा।”
विधि- नित्य-कर्म से निवृत्त होकर उक्त मन्त्र का निश्चित संख्या में नित्य १ से १० माला ‘जप’ करे। बाद में जब घर से निकले, तब अपने अभीष्ट कार्य का चिन्तन करे। इससे अभीष्ट कार्व सुगमता से पूरे हो जाते हैं।
10…आकर्षण हेतु हनुमद्-मन्त्र-तन्त्र
“ॐ अमुक-नाम्ना ॐ नमो वायु-सूनवे झटिति आकर्षय-आकर्षय स्वाहा।”
विधि- केसर, कस्तुरी, गोरोचन, रक्त-चन्दन, श्वेत-चन्दन, अम्बर, कर्पूर और तुलसी की जड़ को घिस या पीसकर स्याही बनाए। उससे द्वादश-दल-कलम जैसा ‘यन्त्र’ लिखकर उसके मध्य में, जहाँ पराग रहता है, उक्त मन्त्र को लिखे। ‘अमुक’ के स्थान पर ‘साध्य’ का नाम लिखे। बारह दलों में क्रमशः निम्न मन्त्र लिखे- १॰ हनुमते नमः, २॰ अञ्जनी-सूनवे नमः, ३॰ वायु-पुत्राय नमः, ४॰ महा-बलाय नमः, ५॰ श्रीरामेष्टाय नमः, ६॰ फाल्गुन-सखाय नमः, ७॰ पिङ्गाक्षाय नमः, ८॰ अमित-विक्रमाय नमः, ९॰ उदधि-क्रमणाय नमः, १०॰ सीता-शोक-विनाशकाय नमः, ११॰ लक्ष्मण-प्राण-दाय नमः और १२॰ दश-मुख-दर्प-हराय नमः।
यन्त्र की प्राण-प्रतिष्ठा करके षोडशोपचार पूजन करते हुए उक्त मन्त्र का ११००० जप करें। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए लाल चन्दन या तुलसी की माला से जप करें। आकर्षण हेतु अति प्रभावकारी है।
11….“काली काली महा-काली, इन्द्र की बेटी, ब्रह्मा की साली। पीती भर भर रक्त प्याली, उड़ बैठी पीपल की डाली। दोनों हाथ बजाए ताली। जहाँ जाए वज्र की ताली, वहाँ ना आए दुश्मन हाली। दुहाई कामरो कामाख्या नैना योगिनी की, ईश्वर महादेव गोरा पार्वती की, दुहाई वीर मसान की।।”
विधिः- प्रतिदिन १०८ बार ४० दिन तक जप कर सिद्ध करे। प्रयोग के समय पढ़कर तीन बार जोर से ताली बजाए। जहाँ तक ताली की आवाज जायेगी, दुश्मन का कोई वार या भूत, प्रेत असर नहीं करेगा।
12…कार्य-सिद्धि हेतु गणेश शाबर मन्त्र
“ॐ गनपत वीर, भूखे मसान, जो फल माँगूँ, सो फल आन। गनपत देखे, गनपत के छत्र से बादशाह डरे। राजा के मुख से प्रजा डरे, हाथा चढ़े सिन्दूर। औलिया गौरी का पूत गनेश, गुग्गुल की धरुँ ढेरी, रिद्धि-सिद्धि गनपत धनेरी। जय गिरनार-पति। ॐ नमो स्वाहा।”
विधि-
सामग्रीः- धूप या गुग्गुल, दीपक, घी, सिन्दूर, बेसन का लड्डू। दिनः- बुधवार, गुरुवार या शनिवार। निर्दिष्ट वारों में यदि ग्रहण, पर्व, पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ-सिद्धि योग हो तो उत्तम। समयः- रात्रि १० बजे। जप संख्या-१२५। अवधिः- ४० दिन।
किसी एकान्त स्थान में या देवालय में, जहाँ लोगों का आवागमन कम हो, भगवान् गणेश की षोडशोपचार से पूजा करे। घी का दीपक जलाकर, अपने सामने, एक फुट की ऊँचाई पर रखे। सिन्दूर और लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और प्रतिदिन १२५ बार उक्त मन्त्र का जप करें। प्रतिदिन के प्रसाद को बच्चों में बाँट दे। चालीसवें दिन सवा सेर लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और मन्त्र का जप समाप्त होने पर तीन बालकों को भोजन कराकर उन्हें कुछ द्रव्य-दक्षिणा में दे। सिन्दूर को एक डिब्बी में सुरक्षित रखे। एक सप्ताह तक इस सिन्दूर को न छूए। उसके बाद जब कभी कोई कार्य या समस्या आ पड़े, तो सिन्दूर को सात बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर अपने माथे पर टीका लगाए। कार्य सफल होगा।
13….भ॰ गहिनीनाथ परम्परा के शाबर मन्त्र
१॰ “ॐ निरञ्जन जट-स्वाही तरङ्ग ह्राम् ह्रीम् स्वाहा”
२॰ “ॐ रा रा ऋतं रौभ्यं स्तौभ्यं रिष्टं तथा भगम्।
धियं च वर्धमानाय सूविर्याय नमो नमः।।”
विधि- नित्य प्रातःकाल स्नान के बाद उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करें। ऐसा ८ दिन करने से मन्त्र सिद्ध होते हैं। बाद में नित्य २७ बार जप करें। इससे सभी संकट, क्लेश दूर होते हैं।
14….विरह-ज्वर-विनाशकं ब्रह्म-शक्ति स्तोत्रम्
।।श्रीशिवोवाच।।
ब्राह्मि ब्रह्म-स्वरूपे त्वं, मां प्रसीद सनातनि ! परमात्म-स्वरूपे च, परमानन्द-रूपिणि !।।
ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे, मां प्रसीद भवार्णवे। सर्व-मंगल-रूपे च, प्रसीद सर्व-मंगले !।।
विजये शिवदे देवि ! मां प्रसीद जय-प्रदे। वेद-वेदांग-रूपे च, वेद-मातः ! प्रसीद मे।।
शोकघ्ने ज्ञान-रूपे च, प्रसीद भक्त वत्सले। सर्व-सम्पत्-प्रदे माये, प्रसीद जगदम्बिके!।।
लक्ष्मीर्नारायण-क्रोडे, स्त्रष्टुर्वक्षसि भारती। मम क्रोडे महा-माया, विष्णु-माये प्रसीद मे।।
काल-रूपे कार्य-रूपे, प्रसीद दीन-वत्सले। कृष्णस्य राधिके भदे्र, प्रसीद कृष्ण पूजिते!।।
समस्त-कामिनीरूपे, कलांशेन प्रसीद मे। सर्व-सम्पत्-स्वरूपे त्वं, प्रसीद सम्पदां प्रदे!।।
यशस्विभिः पूजिते त्वं, प्रसीद यशसां निधेः। चराचर-स्वरूपे च, प्रसीद मम मा चिरम्।।
मम योग-प्रदे देवि ! प्रसीद सिद्ध-योगिनि। सर्वसिद्धिस्वरूपे च, प्रसीद सिद्धिदायिनि।।
अधुना रक्ष मामीशे, प्रदग्धं विरहाग्निना। स्वात्म-दर्शन-पुण्येन, क्रीणीहि परमेश्वरि !।।
।।फल-श्रुति।।
एतत् पठेच्छृणुयाच्चन, वियोग-ज्वरो भवेत्। न भवेत् कामिनीभेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि।।
इस स्तोत्र का पाठ करने अथवा सुनने वाले को वियोग-पीड़ा नहीं होती और जन्म-जन्मान्तर तक कामिनी-भेद नहीं होता।
विधि – पारिवारिक कलह, रोग या अकाल-मृत्यु आदि की सम्भावना होने पर इसका पाठ करना चाहिये। प्रणय सम्बन्धों में बाधाएँ आने पर भी इसका पाठ अभीष्ट फलदायक होगा।
अपनी इष्ट-देवता या भगवती गौरी का विविध उपचारों से पूजन करके उक्त स्तोत्र का पाठ करें। अभीष्ट-प्राप्ति के लिये कातरता, समर्पण आवश्यक है.
15…गोरख शाबर गायत्री मन्त्र
“ॐ गुरुजी, सत नमः आदेश। सत गुरुजी को आदेश। ॐकारे शिव-रुपी, मध्याह्ने हंस-रुपी, सन्ध्यायां साधु-रुपी। हंस, परमहंस दो अक्षर। गुरु तो गोरक्ष, काया तो गायत्री। ॐ ब्रह्म, सोऽहं शक्ति, शून्य माता, अवगत पिता, विहंगम जात, अभय पन्थ, सूक्ष्म-वेद, असंख्य शाखा, अनन्त प्रवर, निरञ्जन गोत्र, त्रिकुटी क्षेत्र, जुगति जोग, जल-स्वरुप रुद्र-वर्ण। सर्व-देव ध्यायते। आए श्री शम्भु-जति गुरु गोरखनाथ। ॐ सोऽहं तत्पुरुषाय विद्महे शिव गोरक्षाय धीमहि तन्नो गोरक्षः प्रचोदयात्। ॐ इतना गोरख-गायत्री-जाप सम्पूर्ण भया। गंगा गोदावरी त्र्यम्बक-क्षेत्र कोलाञ्चल अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ। नव-नाथ, चौरासी सिद्ध, अनन्त-कोटि-सिद्ध-मध्ये श्री शम्भु-जति गुरु गोरखनाथजी कथ पढ़, जप के सुनाया। सिद्धो गुरुवरो, आदेश-आदेश।।”
साधन-विधि एवं प्रयोगः-
प्रतिदिन गोरखनाथ जी की प्रतिमा का पंचोपचार से पूजनकर २१, २७, ५१ या १०८ जप करें। नित्य जप से भगवान् गोरखनाथ की कृपा मिलती है, जिससे साधक और उसका परिवार सदा सुखी रहता है। बाधाएँ स्वतः दूर हो जाती है। सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है और अन्त में परम पद प्राप्त होता है।
16…गोरख शाबर गायत्री मन्त्र
“ॐ गुरुजी, सत नमः आदेश। सत गुरुजी को आदेश। ॐकारे शिव-रुपी, मध्याह्ने हंस-रुपी, सन्ध्यायां साधु-रुपी। हंस, परमहंस दो अक्षर। गुरु तो गोरक्ष, काया तो गायत्री। ॐ ब्रह्म, सोऽहं शक्ति, शून्य माता, अवगत पिता, विहंगम जात, अभय पन्थ, सूक्ष्म-वेद, असंख्य शाखा, अनन्त प्रवर, निरञ्जन गोत्र, त्रिकुटी क्षेत्र, जुगति जोग, जल-स्वरुप रुद्र-वर्ण। सर्व-देव ध्यायते। आए श्री शम्भु-जति गुरु गोरखनाथ। ॐ सोऽहं तत्पुरुषाय विद्महे शिव गोरक्षाय धीमहि तन्नो गोरक्षः प्रचोदयात्। ॐ इतना गोरख-गायत्री-जाप सम्पूर्ण भया। गंगा गोदावरी त्र्यम्बक-क्षेत्र कोलाञ्चल अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ। नव-नाथ, चौरासी सिद्ध, अनन्त-कोटि-सिद्ध-मध्ये श्री शम्भु-जति गुरु गोरखनाथजी कथ पढ़, जप के सुनाया। सिद्धो गुरुवरो, आदेश-आदेश।।”
साधन-विधि एवं प्रयोगः-
प्रतिदिन गोरखनाथ जी की प्रतिमा का पंचोपचार से पूजनकर २१, २७, ५१ या १०८ जप करें। नित्य जप से भगवान् गोरखनाथ की कृपा मिलती है, जिससे साधक और उसका परिवार सदा सुखी रहता है। बाधाएँ स्वतः दूर हो जाती है। सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है और अन्त में परम पद प्राप्त होता है।
17….हनुमान रक्षा-शाबर मन्त्र“ॐ गर्जन्तां घोरन्तां, इतनी छिन कहाँ लगाई ? साँझ क वेला, लौंग-सुपारी-पान-फूल-इलायची-धूप-दीप-रोट॒लँगोट-फल-फलाहार मो पै माँगै। अञ्जनी-पुत्र प्रताप-रक्षा-कारण वेगि चलो। लोहे की गदा कील, चं चं गटका चक कील, बावन भैरो कील, मरी कील, मसान कील, प्रेत-ब्रह्म-राक्षस कील, दानव कील, नाग कील, साढ़ बारह ताप कील, तिजारी कील, छल कील, छिद कील, डाकनी कील, साकनी कील, दुष्ट कील, मुष्ट कील, तन कील, काल-भैरो कील, मन्त्र कील, कामरु देश के दोनों दरवाजा कील, बावन वीर कील, चौंसठ जोगिनी कील, मारते क हाथ कील, देखते क नयन कील, बोलते क जिह्वा कील, स्वर्ग कील, पाताल कील, पृथ्वी कील, तारा कील, कील बे कील, नहीं तो अञ्जनी माई की दोहाई फिरती रहे। जो करै वज्र की घात, उलटे वज्र उसी पै परै। छात फार के मरै। ॐ खं-खं-खं जं-जं-जं वं-वं-वं रं-रं-रं लं-लं-लं टं-टं-टं मं-मं-मं। महा रुद्राय नमः। अञ्जनी-पुत्राय नमः। हनुमताय नमः। वायु-पुत्राय नमः। राम-दूताय नमः।”
विधिः- अत्यन्त लाभ-दायक अनुभूत मन्त्र है। १००० पाठ करने से सिद्ध होता है। अधिक कष्ट हो, तो हनुमानजी का फोटो टाँगकर, ध्यान लगाकर लाल फूल और गुग्गूल की आहुति दें। लाल लँगोट, फल, मिठाई, ५ लौंग, ५ इलायची, १ सुपारी चढ़ा कर पाठ करें।.
18….दुर्गा शाबर मन्त्र“ॐ ह्रीं श्रीं चामुण्डा सिंह-वाहिनी। बीस-हस्ती भगवती, रत्न-मण्डित सोनन की माल। उत्तर-पथ में आप बैठी, हाथ सिद्ध वाचा ऋद्धि-सिद्धि। धन-धान्य देहि देहि, कुरु कुरु स्वाहा।”
विधिः- उक्त मन्त्र का सवा लाख जप कर सिद्ध कर लें। फिर आवश्यकतानुसार श्रद्धा से एक माला जप करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। लक्ष्मी प्राप्त होती है, नौकरी में उन्नति और व्यवसाय में वृद्धि होती है।
19….लक्ष्मी शाबर मन्त्र“विष्णु-प्रिया लक्ष्मी, शिव-प्रिया सती से प्रकट हुई। कामाक्षा भगवती आदि-शक्ति, युगल मूर्ति अपार, दोनों की प्रीति अमर, जाने संसार। दुहाई कामाक्षा की। आय बढ़ा व्यय घटा। दया कर माई। ॐ नमः विष्णु-प्रियाय। ॐ नमः शिव-प्रियाय। ॐ नमः कामाक्षाय। ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
विधिः- धूप-दीप-नैवेद्य से पूजा कर सवा लक्ष जप करें। लक्ष्मी आगमन एवं चमत्कार प्रत्यक्ष दिखाई देगा। रुके कार्य होंगे। लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।
2 comments:
गुरु जी के चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम गुरु जी मुझे आशीर्वाद दे की में भी मंत्र सिद्ध कर सकूं
Can we get your phone number sir
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