Wednesday, January 11, 2017

वज्रमुष्टि योग

वज्रमुष्टि योग

वज्रमुष्टि योग के विषय में कई ज्योतिषी ग्रंथों में लिखा गया है, इस योग के बारे में कई प्रकार के फलों को भी बताया गया है जिसमें से प्रमुख तो यह है कि स्वास्थ्य में कमी का सामना करना पड़ता है और जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है. इस योग को वृश्चिक लग्न और कर्क लग्न में अधिक प्रभावी माना गया है.

चक्रस्य पूर्वभागे पापा: सौम्यास्तथेतरे चैव ।
वृश्चिकलग्ने जाता गतायुषो वज्रमुष्टियोगेस्मिन।।

इस तथ्य के अनुरूप जन्म कुण्डली में पूर्वार्ध के भावों अर्थात 1, 2, 3, 4, 10, 11, 12 भावों में सभी पाप ग्रह स्थित हों और शेष बचे हुए भावों में समस्त शुभ ग्रह स्थित हों तो वृश्चिक लग्न में जन्म होने पर यह वज्रमुष्टि नामक योग बनता है. यह योग जातक के स्वास्थ्य के लिए बहुत खराब माना जाता है.

इसी संदर्भ में बादरायण ने भी कहा है जिसमें उन्होंने कर्क लग्न को प्रमुख मानते हुए यह योग के प्रभावों को परिलक्षित किया है. वहीं एक अन्य ज्योतिषाचार्य के अनुसार लग्न में कमजोर चंद्रमा स्थित हो और पाप ग्रह केन्द्र स्थानों व अष्टम भाव में बैठे हों तो जीवन के प्रति संशय बना रहता है.

पाप ग्रह राशि के अन्तिम नवांश में हों तथा संध्या समय का जन्म हो, चंद्रमा की होरा में जन्म हुआ हो और चंद्रमा व पाप ग्रह चारों केन्द्रों में हों तो मृत्यु तुल्य कष्ट का भय बना रहता है.

योग का प्रभाव

ग्रहण का दिन चंद्रमा पाप युक्त होकर लग्न में स्थित हो और मंगल आठवें में हो तो सेहत में कमी बनी रहती है माता को भी कष्ट होता है ओर संतान को भी कष्ट झेलना पड़ता है . इन सभी के प्रभाव से एक बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि यह स्थिति किसी भी तरह से जातक के लिए अनुकूल नहीं मानी जा सकती कुछ न कुछ परेशानियां तो उत्पन्न होती ही रहती हैं और कष्ट से पिडा़ अधिक बढ़ जाती है.

No comments: