मित्रो नाडी ज्योतिष भविष्य कथन के लिए बहुत उपयोगी एवं चमत्कारी है आप भी कर सकते हैं सटीक भविष्यवाणी लेकिन सब गुरू प्रताप से* ज्योतिष के जानकारों को यह बात हमेशा चिडाती रही है कि दक्षिण भारत के ज्योतिषो की भविष्यवाणी सही क्यो जाती है मित्रो दक्षिण भारत के ज्योतिष नाडी ज्योतिष के कारण प्रसिद्धि पाते हैं क्योकि दक्षिण भारत मे नाडी ज्योतिष कई तरह से काम मे लिजारही है। नाडी ज्योतिष वो ज्योतिष है जिसमे लग्न का 150वाॅ हिस्सा कि नाडी तलाश कि जाती है अमूमन एक लग्न 120मिनट की होती है (चर लग्न 4घटी, स्थिर लग्न5घटी ,दिव्य लग्न 6घटी,की होती है 120मिनट =एक घटी होता है) और उसके १५० टुकडे किए जाये तोकिसी जो नाडी होगी उसका अधिकतम मान४०सैकेनड से अधिक नही होगा यदि नाडी ज्योतिष मे आपकी तलाश करने मे कोई चुक रही तो फल कथन अन्य का होगा, आपका नही। नाडी ज्योतिष मे लगन, राशि, जातक का नाम मां-पिता का नाम, पत्नि का नाम आदि के सॅकेत मिलना नाडी ज्योतिष मे बताया गया है यदि ५-६तथय मिल जाते हैं तो नाडी सही है। *मित्रों नाडी ज्योतिष के भी हमारे पाराशरीय ज्योतिष कि भाॅति सिद्धांत है*नाडी ज्योतिष मे नश्रत्र स्वामी, नश्रत्र उपसवामी को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना है। नाडी ज्योतिष मे जो लग्न का निरणय है वो हमारे निरयण ज्योतिष और निरयण भाव चलित की भांति ही आधारित है इस लिए ये कभी मिथ्या, गलत नहीं हो सकता है। यदि खगोलीय गणनाओं मे यदि अन्तर आजाये और समय अन्तर के बाद वर्तमान जातक की निरणय लग्न के अॅश बदलने की स्थिति मे नाडी गलत साबित नहीं होगी यहां जातक के लग्न अॅश का समीकरण होने पर ही भविष्य कथन बताया जारहा है मित्रो कृष्णमूर्ति पद्धति नाडी ज्योतिष का खुलकर प्रयोग करना बताती हैं। भृगुनन्दी नाडी पढते समय लगता है कि जैसे भविष्य कथन करते समय लग्न या दशा पद्धति की आवश्यकता ही नहीं है और ग्रहो का गोचर ही सब कुछ बताने मे सक्षम है। राहु, चन्द्रमा अॅश को आधार मानते हुए इस नाडी से बहुत सारे कथन कहे जाकते है जो सही साबित होते है कैसे जाने कुण्डली मे भृगु नाडी बिन्दु *(चन्द्रमा के भोगाॅश अर्थात जातक के जन्म के चन्द्रमा राशि,अॅश,कला मे से राहु के राशि,अॅश,कला को घटानेपरजोशेष आये उसमें २का,भाग देने पर जो राशि,अॅश,कला प्राप्त होवे उसमे पुन:राहु की राशि,अॅश,कला जोडने पर जो राशि,अॅश,कला प्राप्त होवे उससे जब भी ग्रह गोचर करता है*) उतर भारत में भृगु सहिॅता बहुत प्रसिद्ध है यह नाडी ज्योतिष ही है दक्षिण भारत मे नाडी ज्योतिष के नाम से प्रसिद्ध पद्धति उतर भारत में संहिता, भृगु ज्योतिष के नाम से प्रसिद्ध है *क्या है नाडी अॅशो की समानता*एक सामान्य धारणा है कि एक लग्न की भांति १८० भागो की एक नाडी होती है पर प्रत्येक लग्न का मान समान नही होता है ऐसे एक नाडी का मान ४० सेकेण्ड से कम भी हो सकता है कुछ नाडी ग्रन्थों में नाडीयो के नाम न होकर भोगाॅश *जिसका पुर्व में उल्लेख किया है*या लग्न भोगाॅश यानि चन्द्रमा के स्थान पर लग्न के भोगाॅश का ही उल्लेख मिलता है इससे आप वे नाडी के मान की गणना की होने वाली गलतियों से भी बच सकते है। *जैसा कि हमे हमारे गुरूजनों से मिले ज्ञाननुसार एक राशि मे३०अॅश की होती है, एक अॅश मे ६०कला होती है अतः एक नाडी १२कला की होती है इन १२कला मे से ६कला पुर्व भाग का और ६शेष कला उतर भाग का वरणन करती है अर्थात् जन्म के समय की शुध्दता २४सैकेणड तक ही चाहीए*देवकेरलम मे नाडीयो १५०नामो का उल्लेख है। *नाडीअॅशो की गणना निम्न प्रकार से कि जाती है। *चर राशि लग्न हो तो नाडी अॅश की गणना सीधे क्रम मे, स्थिर राशि लग्न में होतो नाडी गणना उल्टे क्रम में, द्विसवभाव राशि हो तो नाडी गणना मध्य क्रम से* (यानि चर राशि मे प्रथम०से १० अॅश, स्थिर राशि ३०से२०अॅश, द्विसवभाव राशि १०से२०अॅश) मित्रों *नाडी ज्योतिष के अनुसार कुण्डली विवेचना अगली पोस्ट मे करने का प्रयास करूगा शेष हरि ईच्छा* ये सब मित्रों विशारद के अध्ययन के दौरान सिखने को मिला सब समय की सूचना ओर गुरूओं के स्नेह एवं दुलार के कारण हुआ।
नाडी ज्योतिष (शास्त्र) का परिचय* मित्रो अाज का युग भागमभाग का विज्ञान का युग है जो सभी सही सही सटीक भविष्यवाणी जानना चाहता है उसके लिए दक्षिण भारत कि ओर भागते हैं जो अंगुठे के निशान से जातक को जातक का नाम, आयु, माता-पिता, पति-पत्नी का नाम, जन्म वर्ष बता रहे हैं यह कोरी अफवाह नही है बल्कि यह सब श्री अगस्त्य नाडी के ताड पत्रो पर लिखी, आधारित भविष्यवाणी कथन कि एक विधया है मित्रो यह चमत्कारी विधा हमारे ऋषियों - मुनियों के आलेखित ताड पत्रो पर उल्लेखित है जो हजारो वर्ष पुर्व लिखे गए जिसका सिमित व्यक्तियों के पास ही ज्ञान का भण्डार है जो अब विज्ञान के युग मे तेजी से बढ रही है अगस्त्य नाडी के अतिरिक्त अन्य नाडी भी है जो जातक के भूत, भविष्य, वर्तमान की सटीक फलादेश के लिए लोग दक्षिण भारत, तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश आदि राज्यों मे जहा नाडी ज्योतिष के आलेख सुरक्षित है कि ओर अपना भविष्य सुरक्षित बनाने के लिए जारहे है एवं नाडी ज्योतिष के ज्ञयाता नाडी ज्योतिष के प्रचार-प्रसार के लिए अब हिन्दीभाषी क्षेत्रो मे आरहे है *मित्रो फरवरी 2012 मे नाडी ज्योतिष की कार्यशाला में भाग लेने का शयोभागय मिला जो मै आपसे यथा संभव ज्ञान जो मैने मेरे गुरूजनों के सहयोग से लिया को शेर कर रहा हूं।* नाड़ी शब्द के अनेको अर्थ होते हैं परन्तु ज्योतिष में नाडी नाडी का अभिप्राय समय की (माप) एक मात्रा का नाम है जो आधे "मुहुर्त" या ये कहे १४ मिनट (एक मुहुर्त अधिकतम ४८ मिनट का होता है यह सर्व विदित है) हम सब जानते हैं "अहोरात्र" शब्द के पहले "अ" तथा अन्तिम अक्षर से "त्र" को हटा देने से जो शब्द बनता हैं वो शब्द होता है "होरा" अर्थात जो दिन-रात का सूचक बनता है जो ज्योतिष मे काम आता है उसी प्रकार "नाडी" शब्द भी समय का दुसरा नाम (सूचक) है नाडी शब्द दक्षिण भारत मे बहुत अधिक प्रचलित है वहा कई नाडी ग्रंथ है। किन्तु ये नाडी ग्रंथ सामान्य ज्योतिष शास्त्र नहीं है जिनमे सामान्य ज्योतिष का ही वर्णन हो ये जातक के जीवन की घटनाओं का आयना जैसा मानो इनमे ग्रह स्थिति आदि का वर्णन सिमित है जिससे यह पता चल जाता है कि यह अमुक जातक की कुंडली है, लेकिन फलादेश का महत्व है नाडी ग्रंथ यह नही बताते है कि कि अमुक घटना ज्योतिष के किस नियम के आधार पर क्यो घटित हुई है बहुत कम नाडी ग्रंथों मे ही कही कही कुछ-कुछ उल्लेख हो पाता है *नाडी शास्त्रों की विशेषता*हमारे हिन्दीभाषी क्षेत्रों उतरी भारत मे भृगु सहिता, अरूण,सहिता, रावण सहिता आदि ज्योतिष के ग्रंथ ज्यादा प्रसिद्ध हैं जिससे जातक भविष्य मे उत्पन होने वाले तथा भूत काल में जातक उत्पन जीवनवृतांत का विवरण पाया जाता है लेकिन दक्षिण भारत मे नन्दी नाडी, शुक्र नाडी, भुजंदर नाडी, सप्तर्षि नाडी आदि ग्रंथों मे चमत्कारी रूप से जातक के सभी जीवनवृतांत भूत और भविष्य पहले से लिखे मिल जाते हैं *चन्द्र नाडी*नाडी ग्रंथों मे चन्द्र नाडी का मतलब जन्म नाडी एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें जातक के जीवन वृतांत तथा जातक के माता-पिता, भाई-बहन, मामा, श्वसुर आदि का विवरण है चन्द्र नाडी ग्रंथ मे नाडी अंशों का उल्लेख है। जो जातक के जीवन की अधिकांश घटनाओ का निर्धारण करती है नाडी के १५० अंशों की सख्या है *नाडी अंशों की गणना कैसे करे*सर्व विदित है कि एक राशि ३० अंशों की होती है एक अंश मे ६० कला होती है यदि एक राशि कि कला बनानी पडे तो हमे ३० को ६० से गुणा करने पर जो मान आयेगा वो १८००कला आयेगा अब १८००कला में १५० का भाग (क्योकि एक नाडी मे १५० अंश (भाग) होते हैं अर्थात जो मान आयेगा १२ कला होगा। नाडी ज्योतिष मे १२ कलात्मक काल वाले नाडी अंशों का महत्व है। इन १२ कलात्मक अंशों प्रथम ६ कला को पुर्व भाग और अन्त कि ६कवाओ को उतर भाग कहा जाता है उतर तथा पुर्व भाग मे घटनाओ का सरूप ही भिन्न हो जाता है यदि हम समझने के लिए ये मान ले कि एक उदित राशि का मान २घनटे है तो एक अंश =१२०*६०/१५०=४८सैकैणड काऔर आधा २४ सेकण्ड होता है। दुसरे शब्दो मे कहे तो ये कि जन्म समय की शुद्धता २४ सेकेण्ड तक होनी चाहिए तब ही नाडी अंश से ठीक-ठीक भविष्यवाणी सही एवं सत्य बैठेगी। *१५०नाडी की नामावली मित्रो इष्ट देवएवं गुरूओं की महर रही तो अपनी अगली पोस्टमेशेर करने का प्रयास करूगा**
मित्र कल (२२:१०:१६ की) पोस्ट को आगे बढाते है जो भृगु बिन्दु चन्द्रमा से निकालना बताया था लग्न से भी भृगु बिन्दु बनाने की भी चर्चा की थी। *जिसमें चन्द्रमा, राहु के भोगांश से भृगु बिन्दु बनाने की चर्चा एक भृगु बिन्दु निकालने के फार्मूले पर चर्चा की गईअब दुसरी विधि से भृगु बिन्दु निकालते हैं* चन्द्र स्पष्ट-राहु स्पष्ट =के मान मे २ का भाग देना है उसकी जो राशि, अंश, कला, आदि आये उसमें +पन:राहु स्पष्ट जोडे उस बिन्दु से जब भी कोई ग्रह गोचर करगे तो उसके अनुरूप फल देगे यदि आय भाव का स्वामी है तो आय सम्बन्धित फल देगा, यदि वयभाव सम्बन्धित ग्रह गोचर करेगा तो व्यय सम्बन्धित फल देगा। मित्रो चन्द्रमा इस बिन्दु से २७ दिन मे, सूर्य एक वर्ष मे, मंगल ढेड वर्ष में, बुध, शुकर, एक वर्ष में, गुरू १२ वर्ष मे राहु-केतु १८ वर्ष मे शनि ३० वर्ष मे गोचर करेगे, मित्रों निचे कुण्डली दि जारही है उसकी विवेचना निम्न प्रकार है। मित्रो प्राप्त भृगु बिन्दु से सूर्य प्रत्येक २जनवरी को गोचर करेगा इस दिन जातक के स्वास्थ्य सम्बन्धित परिणाम सूर्य देगे, इसी तरह चन्द्रमा हर माह (चन्द्र मास (२७दिन)मित्रों २७ दिन का होता है) जो व्यय भाव का स्वामी है जो व्यय करायेगा, बुध-शुक्र भृगु बिन्दु से वर्ष मे एक बार गोचर करेगे बुध आय, व धन भाव का स्वामी है जो धन सम्बन्धित परिणाम देगा, इसी प्रकार शुक्र दशम, पराक्रम भाव का स्वामी है जो छोटे भाई - बहनो से सहयोग एवं अच्छे कार्य करायेगा, मंगल चतरथ, भाग्य भाव का स्वामी है जो अशुभ ग्रह होने के कारण कुछ अशुभ परिणाम देगा, गुरू बृहस्पति उक्त जातक की कुण्डली मे भृगु बिन्दु से ३ दिसंबर १९७२ को गोचर हुआ जब जातक अध्ययनरत था प्रथम श्रेणी से उतिरण हुआ पिता राज्य कर्मचारी जिनकी पदोन्नति हुई, गुरू का पुन:गोचर ८४ मे हुआ जातक की सरकारी नौकरी लगी, तीसरी बार के गुरू का गोचर १९९६ मे रहा तब जातक को अपने कार्य श्रेत्र के अतिरिक्त अन्य कार्य मे विशेष उपलब्धि मिली, राहु का भृगु बिन्दु से १९७३ मे गोचर हुआ तो जातक पैर में चौट लगी और पिता का स्थानांतरण हुआ, राहु का द्वितीय गोचर १९९१ मे हुआ तक जातक को नौकरी मे समस्या, मानसिक परेशानी से गुजरना पढा क्योंकि गुरू की महादशा थी, केतु का प्रथम गोचर १९६३ मे रहा उस अवधि मे स्वास्थ्य संबंधी परेशानी रही, केतु का द्वितीय गोचर १९८२ मे रहा जिससे शिक्षा मे व्यवधान रहा तब राहु की महादशा में बुध की अन्तर दशा थी, केतु का तिसरा गोचर २००१ मे रहा जातक को नौकरी मे परेशानी रही तब गुरू मे शुक्र का अन्तर रहा जिसने घर भी बदलवा दिया, शनि का प्रथम गोचर १९८९ मे रहा जब जातक नौकरी मे रहा तो झूठे आरोप लगे। उस समय राहु मे चन्द्रमा की दशा और अन्तर दशा रही माॅ के पैर मे चौट लगी माॅ का आप्रेशन हुआ और स्वयं और पत्नि को भी शारिरिक पीडा रही। *इस प्रकार भृगु बिन्दु से जब - जब भी गोचरीय ग्रह गुजरता है तब - तब शुभ - अशुभ फल मिलते हैं*।👉🏿मित्रो जिस कुण्डली का उपर विवरण के अनुसार भृगु नाडी /भृगु सहिता का विवरण दिया वो कुण्डली निचे दि जारही है भृगु नाडी /बिन्दु सावधानी पूर्वक निकाले और स्वयं विवेचना का प्रयास करे आप भी सफल होगे। 👇
मित्रो नाडी ज्योतिष को आगे बढाते है*लगातार ४--------------------मित्रो १राशि मे ३० अंश (डीग्री) होती है यह सर्व विदित है। १अंश ५ नाडी होती है जिनकी नामावली निम्न है। १ वसुधा २वैषणवी ३ ब्रह्मी ४ कालकुटादी ५ शांकरी ६ सुधाकारी ७ समा ८ सौम्या ९सुरा १० माया ११ मनोहरा १२ माधवी १३ मज्जुसवना १४ धरा १५ कुम्भनी १६ कुटीला १७ प्रभा १८ परा १९ पयसिवनी २० मालिनी २१ जगती २२ जर्जरा २३ ध्रुवा २४ मुसला २५मुदगरा २६ पाशा २७ चप्पका २८ दामा २९ मही ३० कलुषा ३१ कमला ३२ कान्ता ३३ कालिका ३४ करिकरा ३५ क्षमा ३६ दुर्घरा ३७ दुर्भागा ३८ विश्वा ३९विशीरणा ४० विकटा ४१अबला ४२विरभमा ४३ सुखदा ४४ स्निग्धा ४५सोदरा ४६ सुरसुन्दरी ४७अमृतपलाविनी ४८ कला ४९ कामधुक् ५० करवारिणी ५१ गहररा ५२ कुन्दिनी ५३रौद्रा ५४ विषाखया ५५विषनाशिनी ५६ निर्मदा ५७ शीतला ५८ निम्ना ५९ प्रिता ६० प्रियवरधनी ६१मानधना ६२ दुर्भगा ६३ चित्रा ६४ चित्रिणी ६५ चिरंजिविनी ६६भूपा ६७ गदहरा ६८ नाला ६९ नलिनी ७० निर्मला ७१ नदी ७२सुधामृतांशुकलिका ७३ कलुषांकुरा ७४त्रैलोकयमोहनकरी ७५ महामारी ७६ सुशीतला ७७ सुखदा ७८ सुपरभा ७९ शोभा ८० शोभना ८१ शिवदा ८२शिवा ८३ बला ८४ ज्वाला ८५ गदा ८६ गाधा ८७ नूतना ८८सुमनोहरा ८९ सुमतयंश ९० सोमवली ९१ सोमलता ९२ मंगला ९३ मुद्रिका ९४क्षुधा ९५ मलापवरग ९६ वशयलया ९७ नयानीता ९८ निशाचरी ९९ निवृति १००निगदा १०१सारा १०२सामगा १०३ सामदा १०४समा १०५विशवंभरा १०६ कुमारी १०७ कोकिला १०८ कुंजराकृति १०९ इंद्रा १०० स्वाहा १११ स्वरा ११२वहरिहम ११३ प्रीता ११४ रक्षजलपलवा ११५ वारूणी ११६ मदिरा ११७ मंत्रा ११८ हारिणी ११९हरिणी १२० मरूत १२१धनंजय १२२धनकरी १२३धनदा १२४ कच्छपामबुजा १२५ ईशानी १२६ शूलिनी १२७ रौद्री १२८ शिवा १२९ शिवकरी १३० कला १३१ कुन्दा १३२मुकुनदा १३३ परता १३४ भसिता १३५ कंदली १३६ स्मरा १३७ कनदला १३८कोकिला १३९ कामिनी १४०कलशोद्भवा १४१ वीरपरसू १४२ संगरा १४३शतयज्ञा १४४शतावरी १४५ विरहप १४६ सत्रगवी १४७ पाटलिनी १४८ नागसा १४९ पंकजा १५०परमेशवरी इन नाडीयो का उपदेश पुरातन काल मे ब्रह्मजी ने किया था नाडी का फल मनुष्य ध्यान न रखे, तो लग्न का निरणय नही होसकता। यदि लग्न का निरणय अच्छी तरह न हो, तो ज्योतिषी का कथन झूठा एवं गलत साबित हो जाता है इसके लिए जन्म समय/जन्म लग्न का सही होना अनिवार्य है। *शेष आगामी पोस्ट मे*-----------------
मित्रो नाडी ज्योतिष - - - - - - - -लगातार ५*मित्रो नाडी ज्योतिष मे यदि चर लग्न राशि हो तो, नाडी अंश की गणना सीधे क्रम मे यानी वसुधा नाडी अंश से गणना कि जायेगी, यदि स्थिर लग्न राशि हो तो नाडी गणना उल्टे क्रम में यानि परमेश्वरी नाडी से, यदि दिव्य स्वभाव लग्न राशि हो तो मध्य करम७६वी नाडी सुशीला से सुखदा, सुप्रभाआदि क्रम मे गणना होगी। जो १५० नाडी गत पोस्ट मे दर्शाई गई (एक अंश मे ५ नाडी समाहित होती है) को परिक्षण मे जन्म पत्रिका मे के परिक्षण मे नाडी ज्योतिष आचार्य आपसे एक घटना नाड़ी के पुर्वाध कि कहते ओर नाडी के उत्तरार्ध कि कहते हैं दोनों कथन सत्य होने आगे कि विवेचना होती है। जैसे जातक का जन्म लग्न के पूर्वांश मे जातक का जन्मे तो जातक का बढा भाई दीर्घजीवी होगा। यदि जातक का जन्म लग्न के उतरांश मे जन्म हो तो जातक के माता पिता दीर्घायु होते हैं। यदि नाडी अंश के उतर भाग में जन्म होतो माता के परिवार मे (पुरूषो) कहे ननिहाल का महान सुख मिलता है ३ मामा होगे जन्मे जिनमें एक मामा बहुत भाग्यवान होगा या यह कहे कि नाडी का उतर भाग स्त्री पक्ष के लिए फायदेमंद साबित होगा। जबकि नाडी के पूर्वांश भाग पुरूष (पित्र पक्षीय) होता है उदाहरण के लिए प्रथम संख्या विषम हो तो पुरूष संख्या और द्वितीय संख्या सम होने पर स्त्री संख्या या कहें पुर्व भाग मे पुरूषों को लाभ उसे पित्र पक्षी लाभ और स्त्रियों की हानि एवं उतर भाग मे स्त्रियों को लाभ यानी पुरूषों को हानि जाने। नाडी के पुर्व भाग मे जन्मे जातक के पिता दीर्घायु एवं नाडी के उतर भाग मे जन्मे जातक कि माता दीर्घायु होती है। इससे स्पस्ट होता है कि नाडी का पुर्व भाग पुरूषों से और उतर भाग स्त्रियों से समबन्धित है। यह नही कि पुरे पितृपक्ष से पुर्व भाग का और पुरे से मातृ पक्ष से उतर भाग का सम्बन्ध दिखाई देता है *यदि नाडी अंश के उतर भाग मे जातक का जन्म हो तो दादा कि अल्प आयु होती है और जातक कि १६वे वर्ष कि आयु मे जातक के दादा कि मृत्यु होजाती है। यदि जातक का जन्म नाडी अंश के पुर्व भाग मे हो तो दादी कि अल्प आयु होती है और दादी मृत्यु जातक १६ वे वर्ष मे होजाती है। इससे स्पस्ट है कि पिता तथा पिता के पक्ष के लोगो के लिए पुर्व भाग अच्छा होता है जबकि उतर भाग पिता पक्ष के लिए हानिकारक होता है और माॅ के पक्ष के लिए उतर भाग अच्छा तथा पुर्व भाग हानिकारक होता है*यदि स्त्री जातक का जन्म उतरांश मे हो तो जातिका को पति सुख उत्तरोत्तर अच्छा प्राप्त होगा अर्थात स्त्री पक्ष के लिए नाडी अंश का उतर भाग अच्छा लाभकारी सिद्ध होगा। *यदि चन्द्र उतरांश मे हो और पुर्व भाग शुभ ग्रह द्वारा दृष्ट हो बल्कि मित्र नवांश मे हो तो भी माता के वंश का क्षय होता है। - - - - - -
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