Thursday, January 26, 2017

ज्योतिष की प्राथमिक जानकारी

ज्योतिष की प्राथमिक जानकारी

ग्रहों के आपस के सम्बन्धों के प्रति बहुत ही मजेदार बात भारतीय ज्योतिष ने प्रदान की है,हर ग्रह जिन्दा है हर ग्रह देवता है और हर ग्रह हमेशा हमारे पास है,हर ग्रह आपस में हर काम कर रहा है,जैसे गुरु पिता है,चन्द्र माता है,मंगल भाई है,बुध बहिन बुआ बेटी है,शुक्र पति या पत्नी है,शनि घर का बुजुर्ग व्यक्ति है,राहु स्वसुर और केतु नाना है,यही ग्रह शरीर के अन्दर भी हैं जो हमेशा साथ रहते है,सूर्य शरीर और नाम,पहिचान आदि है,चन्द्र शरीर मे पानी की मात्रा है,मंगल शरीर में खून है,बुध शरीर में नसें और स्नायु तन्त्र है,गुरु दिमाग है,शुक्र जनन इन्द्रिय और शरीर की मोहक अदा है,शनि बाल,खाल और हर अंग की रक्षा करने वाला हिस्सा है,राहु विद्या है और केतु हाथ पैर कान,और शरीर को सहायता देने वाले हिस्से हैं,यही ग्रह हिन्दू मतानुसार पूजा में भी साथ रहते है,सूर्य विष्णु है,चन्द्र भगवान शिव हैं,मंगल हनुमानजी है,बुध दुर्गा जी है,गुरु भगवान इन्द्र है,ब्रह्माजी है,शुक्र लक्ष्मी है,शनि भैरों है,राहु सरस्वती है,और केतु गणेशजी है,पाराशरीय पद्धति और भारतीय वैदिक ज्योतिष में विषय की वृहदता के कारण पलीता (प्लूटो),हरक्षण (हर्षल),नापिच्युत (नेप्च्यून) का नाम किन्ही कारणों से नही जोडा गया है,इनके लिये जो शरीर और आत्मा आदि से सम्बन्ध आदि जो बताये गये है,उनके अन्दर प्लूटो को शरीर की संवेदनात्मक विद्युत ऊर्जा जिसके द्वारा दूर बैठे व्यक्ति की याद करते ही उसकी सम्बन्धित इन्द्रिय का फ़डकना,अपनी संवेदनाओं को दूसरों तक भेजना,किसी के मिलते आन्तरिक भाव नफ़रत या प्रेम का पनप जाना,यह सब प्लूटो से ही सम्भव है,हर्षल के द्वारा प्रतिक्षण मानसिक तरंगों का आते जाते रहना,जागने पर संसार केप्रति और सोने पर स्वप्नों आदि के द्वारा,जो संवेदनायें बनती बिगडती है,वे ही हर्षल हैं,आत्मा का निवास और आत्मा का रूप भी न+अप+च्युति कभी न समाप्त होने वाले अंश को नेप्च्यून का नाम दिया गया है,और जन्म के समय से लेकर मृत्यु तक आत्मा जिस कारण के लिये अपना प्रयास लगातार करती रहती है,वही आत्मा जो भी करने के लिये संसार में आयी होती है और अपना कार्य पूरा करते ही चली जाती है,का काम नेप्च्यून ले द्वारा देखा जाता है.



किसी भी जन्म पत्री का फलित या उसके संबंध में जानकारी प्राप्त करने विश्लेषण करने में बहुत सी बातों ज्योतिष के सिद्धांतों समयानुसार व अनुभव में प्राप्त ज्ञान अनुमान को ध्यान में रखा जाता है जिसको क्रमश: धीरे धीरे इस ज्ञान से परिचय होने पर व कुण्डली दर कुण्डली देखने भूत के घटनाओं को कुण्डली में खोजने से प्राप्त किया जा सकता है मैं स्वयं अभी इस विद्या का प्रशिच्छु हूं । हम यहां सामान्य रूप से आरंभिक तौर पर जन्म पत्री विश्लेषण के पूर्व जो मुख्य तत्व हमें ध्यान में रखने पडते हैं वे ये हैं -
१ भाव या धर - कुण्डली में १२ खाने होते हैं प्रत्येक खाने का ज्योतिष के अनुसार अलग अलग नाम है एवं इनका आपके व्यक्तित्व पर अलग अलग प्रभाव पडते हैं । पहला भाव या धर को लग्न कहा जाता है इससे आपके व्यक्तित्व, प्रकृति एवं संपूर्ण जीवन पद्धति के संबंध में जानकारी ली जाती है । दूसरा धर धन भाव कहलाता है इससे आपके जीवनकाल में प्राप्त होने वाले धन के संबंध में जानकारी ली जाती है । तीसरा धर को पराक्रम का भाव कहा जाता है इससे आपकी क्षमता ज्ञात की जाती है । चौथे धर को सुख भाव कहा जाता है इससे आपके जीवन में सुख व वैभव की जानकारी ली जाती है । पांचवे धर को पुत्र भाव कहा जाता है इससे आपके संतान के संबंध में विचार किया जाता है । छठे धर को शत्रु भाव कहा जाता है इससे आपके शत्रु, विरोधियों के संबंध में विचार किया जाता है । सातवां भाव पत्नी का भाव होता है इससे पत्नी के संबंध में विचार किया जाता है । आठवां भाव मृत्यु का भाव कहा जाता है इससे जातक की मृत्यु या जीवन के संबंध में विचार किया जाता है । नवम भाव को भाग्य भाव कहा जाता है इससे आपके भाग्य के संबंध में विचार किया जाता है । दसवा घर को कर्म एवं राज्य भाव कहा जाता है इससे आपके कार्यक्षेत्र के संबंध में विचार किया जाता है । ग्यारहवां घर को आय भाव कहा जाता है इससे आपके आय के संबंध में विचार किया जाता है । बारहवें घर को व्यय भाव कहा जाता है इससे आपके द्वारा किये जाने वाले खर्च के संबंध में विचार किया जाता है ।
हमने उपर जो भाव का नाम व संक्षिप्त विवरण दिया है वह आंशिक है ज्योतिष में इन बारह भावों के उपरोक्त लिखित क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य विशद क्षेत्रों को भी समाहित किया गया है एवं कुछ मानसी जी के कथनानुसार यह व्यवहारिक रूप से कुण्डली के क्रमबद्ध अघ्ययन के बाद कौन सा विचार किस भाव से किया जाय यह स्वत: ही समझ में आ जाता है ।
२ भावों में स्थित राशि - यह जानकारी मानसी जी के द्वारा पूर्व में दी जा चुकी है जिस भाव में जो राशि होगा उस भाव में वह अपनी प्रकृति के अनुरूप प्रभाव डालेगा।
मेषो वृषश्च मिथुनः कर्क सिंहकुमारिकाः ।
तुलालिधनुषो नक्रकुम्भमीनास्ततः परम् ।।
३ भावों में बैठे ग्रह - यह जानकारी मानसी जी के द्वारा पूर्व में दी जा चुकी है जिस भाव में जो ग्रह होगा उस भाव में वह अपनी प्रकृति के अनुरूप प्रभाव डालेगा।
४ ग्रहों की दृष्टि - प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से ९० अंश के कोण पर सीधी नजरों से देखता है । कुण्डली में ९० अंश का कोण या सीधी दृष्टि का मतलब है सातवां धर यानी सभी ग्रह अपने बैठे घर से सातवें घर को देखता है एवं कुछ ग्रहों के पास मान्यता के अनुसार अतिरिक्त दृष्टि भी होती है यथा -
मंगल चौथे व आठवें, गुरू पांचवें व नवें एवं शनि अपने स्थान से तीसरे व दसवें घर को भी पूर्ण प्रभाव से देखते हैं । जिस भाव में जो ग्रह अपनी दृष्टि डालेगा उस भाव में वह अपनी प्रकृति के अनुरूप प्रभाव भी डालेगा।
५ राशि स्वामी - वैदिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक ग्रह किसी निश्चित तारामण्डल जिसे राशि कहा जाता है का स्वामी होता है और राशि स्वामी अपने स्थान का घ्यान अवश्य रखता है भले ही वह ग्रह गोचर के कारण दूसरी राशि में चले जाय यदि कुण्डली में ग्रह अपनी राशि में है तो वह उस भाव पर अपना शुभ प्रभाव डालेगा। राशियों के स्वामी इस प्रकार हैं -
१ मेष मंगल
२ वृष शुक्र
३ मिथुन बुध
४ कर्क चंद्र
५ सिंह सूर्य
६ कन्या बुध
७ तुला शुक्र
८ वृश्चिक मंगल
९ धनु गुरू
१० मकर शनि
११ कुंभ शनि
१२ मीन गुरू
६ ग्रहों की उच्चता व नीचता - उंच या नीच प्रभाव में भावों में स्थित ग्रह शुभ या अशुभ प्रभाव डालते हैं अर्थात यदि उच्च राशि का ग्रह धन भाव में हो तो धनागमन की संभावनाये हमेशा खुली रहती हैं इसी प्रकार यदि निम्न राशि का ग्रह धन भाव में हो तो धनागमन की संभावनाओं में विराम लग जाता है ।
सूर्य मेष १० उच्चांंश तुला १० नीचांश
चंद्र वृष ३ उच्चांंश वृश्चिक ३ नीचांश
मंगल मकर २८ उच्चांंश कर्क २८ नीचांश
बुध कन्या १५ उच्चांंश मीन १५ नीचांश
गुरू कर्क ५ उच्चांंश मकर ५ नीचांश
शुक्र मीन २७ उच्चांंश कन्या २७ नीचांश
शनि तुला २० उच्चांंश मेष २० नीचांश
राहु मिथुन १५ उच्चांंश धनु १५ नीचांश
केतु घनु १५ उच्चांंश मिथुन १५ नीचांश
७ ग्रहों के परस्पर व्यवहार - प्रत्येक ग्रह अपनी प्रकृति व वैदिक मान्यताओं के अनुसार एक दूसरे से मित्रवत, शत्रुवत एवं साम्य व्यवहार करते हैं हमें इनके परस्पर व्यवहारों को जानना होगा क्योंकि भावों में दो दो ग्रह एक साथ हो सकते हैं एक ग्रह पर दूसरे ग्रह की दृष्टि हो सकती है इन सबको देखते हुए हमें ग्रहों के बीच के संबंधों को जानना होगा।

*लक्षणों से ग्रह की खराबी ज्ञात करना*

किसी मनुष्य के जीवन में कौन-सा ग्रह अशुभ प्रभाव दाल रहा है, इसका औसत निर्धारण उसके जीवन में घटने वाली घटनाओं के आधार पर भी ज्ञात किया जा सकता है | विभिन्न ग्रहों की अशुभ स्थिति पर निम्नलिखित लक्षण प्राप्त होते हैं –

1-सूर्य- तेज का अभाव, आलस्य, अकड़न, जड़ता, कन्तिहिनता, म्लान छवि, मुख(कंठ) में हमेशा थूक का आना | लाल गाय या वस्तुओं का खो जाना या नष्ट हो जाना, भूरी भैंस या इस रंग के सामान की क्षति | हृदय क्षेत्र में दुर्बलता का अनुभव |

2-चन्द्र- दुखी, भावुकता, निराशा, अपनी व्यथा बताकर रोना, अनुभूति क्षमता का ह्रास, पालतू पशुओं की मृत्यु, जल का अभाव (घर में), तरलता का अभाव (शरीर में), मानसिक विक्षिप्तता की स्तिथि, मानसिक असन्तुलन या हताशा के कारण गुमसुम रहना, घर के क्षेत्र में कुआं या नल का सूखना, अपने प्रभाव क्षेत्र में तालाब का सुखना आदि |

3-मंगल- दृष्टि दुर्बलता, चक्षु (आंख) क्षय, शरीर के जोड़ों में पीड़ा और अकड़न, कमर एवं रीढ़ की हड्डी में दर्द तथा अकड़न, रक्त की कमी, त्वचा के रंग का पिला पड़ना, पीलिया होना, शारीरिक रूप से सबल होने पर भी संतानोत्पत्ति की क्षमता का न होना, शुक्राणुओं की दुर्बलता, नपुंसकता (शिथिलता), पति पक्ष की हानि (स्वास्थ्य , धन, प्राण आदि) |

4-बुध- अस्थि दुर्बलता, दंतक्षय, घ्राणशक्ति का क्षय होना, हकलाहट, वाणी दोष, हिचकी, अपनी बातें कहने में गड़बड़ा जाना, नाक से खून बहना, रति शक्ति का क्षय (स्त्री-पुरुष दोनों की), नपुंसकता (स्नायविक), स्नायुओं का कमजोर पड़ना, बन्ध्यापन (स्नायविक), कंधो का दर्द, गर्दन की अकड़न, वैवाहिक सम्बन्ध में क्षुब्धता, व्यापार की भागीदारी में हानि, रोजगार में अकड़न, शत्रु उपद्रव, परस्त्री लोलुपता या सम्बन्ध, परपुरुष लोलुपता या सम्बन्ध, अहंकार से हानि, पड़ोसी से अनबन रहना, कर्ज |

5-बृहस्पति- चोटी के बाल का उड़ना, धन या सोने का खो जाना या चोरी हो जाना या हानि हो जाना, शिक्षा में रुकावट, अपयश , व्यर्थ का कलंक, सांस का दोष, अर्थहानी, परतंत्रता, खिन्नता, प्रेम में असफलता, प्रियतमा की हानि (मृत्यु या अनबन), प्रियमत की हानि (मृत्यु या अनबन), जुए में हानि, सन्तानहानि (नपुंसकता, बन्ध्यापन, अल्पजीवन), आत्मिक शक्ति का अभाव, बुरे स्वप्नों का आना आदि |

6-शुक्र– स्वप्नदोष, लिंगदोष, परस्त्री लोलुपता, शुक्राणुहीनता या कर्ज, नाजायज सन्तान, त्वचा रोग, अंगूठे की हानि (हाथ), पड़ोसी से हानि, कर्ज की अधिकता, परिश्रम करने पर भी आर्थिक लाभ नहीं, भूमि हानि आदि |

7-शनि- व्यवसाय में हानि, अर्थहानि, रोजगार में हानि, अधिकार हानि, अपयश, मान-सम्मान की हानि, कृषि-भूमि की हानि, बुरे कार्यों में प्रवृत्ति, मकान हानि, अधार्मिक प्रवृत्ति (नास्तिकता), रिश्वत लेते पकड़े जाना या रिश्वत में हंगामा और अपयश, रोग, आकस्मिक मृत्यु, ऊंचाई से गिरकर शरीर या प्राणहानि, अचानक धनहानि, दुर्घटना, निराशा, घोर अपमान, निन्दक प्रवृत्ति, राजदण्ड |

8-राहु- संतानहीनता, विद्याहानि, बुद्धिहानि, उज्जड़ता, अरुचि, पूर्ण नपुंसकता, बन्ध्यापन, अन्याय करने की प्रवृत्ति, क्रूरता, रोजगारहानि, भूमिहानि, आकस्मिक अर्थहानि, राजदण्ड, शत्रुपिड़ा, बदनामी, कारावास का दण्ड, घर से निकाला, चोरी हो जाना, चोर-डाकू से हानि, दु:स्वप्न, अनिद्रा, मानसिक असंयता |

9-केतु- रोग, ऋण की बढ़ोत्तरी, लड़ाई-झगड़े से हानि, भाई से दुश्मनी, घोर दु:ख, नौकरों की कमी, अस्त्र से शारीरक क्षति, सांप द्वारा काटना, आग से हानि, शत्रु से हानि, अन्याय की प्रवृत्ति, पाप-प्रवृत्ति, मांस खाने की प्रवृत्ति, राजदण्ड (कैद) |

विशेष- उपर्युक्त लक्षणों के अनुसार बिना कुण्डली देखे भी आप जान सकते हैं कि आपको किस ग्रह के अशुभ प्रभाव का उपचार करना चाहिए | ग्रहों के उपचार ग्रहफल में हैं |

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