यदि गुरु अस्त दुर्बल और पाप प्रभाव में हो
तो जातक अपराध की ओर अग्रसर होता है ||
ऐसी दशा में गुरु लाचार होकर मूक दर्शक सा बना रहता है ||
गुरु में इतनी सामर्थ्य वक्षमता होती है कि वह जातक में प्रायः पाप करने के भाव को एकाएक रोककर पाप करने से जातक को रोक लेता है ||
यदि गुरु-ग्रह अस्त न हो जन्म-कुण्डली के षष्ठ एवं द्वितीय स्थान के स्वामी ग्रह जब भी परस्पर सम्बन्ध बनाते हों तो जातक के कर्ज लेने का योग बनता है ||
यदि दशम एवं एकादश के स्वामी ग्रह परस्पर सम्बन्ध बनाते हो तो जातक को कर्ज लेने योग बनता है ||
द्वितीय व अष्टम भाव में पाप ग्रह स्थित हो और लग्न का स्वामी द्वादश में हो तो जातक को कर्ज लेने का योग बनता है द्वितीय का स्वामी ग्रह द्वादश में हो एवं केतु से द्रष्ट हो तो ऐसा जातक सदैव कर्जदार रहता है ||
सूर्य मंगल राहु शनि और निर्बल चन्द्र द्वितीय भाव में हो तो जातक को धन का अभाव ही रहता है ||
बुध द्वितीय भाव में चन्द्र से द्रष्ट हो या विपरीत योग हो तो धनाभाव बना रहता है ||
गुरु षष्ठ अष्टम और द्वादश भाव में हो तो कर्ज के योग होता है ||
शनि राहु और षष्ठ स्थान का स्वामी धन के अभाव को दर्शाता हैं ||
Tuesday, January 17, 2017
गुरु अस्त दुर्बल
Labels:
SWAMI. 9375873519
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment