लग्न का राहु बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
लग्न में राहु होने से जातक दीनता में जन्म लेकर कम शिक्षा पाकर भी उच्च स्थान पर आसीन हो जाता है।
ऐसे जातक अति साहसी, उच्चाकाँक्षी, अभिमानी और किसी की परवाह न करने वाले होते हैं।
लग्न में उच्च का राहु (वृषभ का) जीवन के उत्तरार्द्ध में अभूतपूर्व सफलता देता है।
ये व्यक्ति घमंडी व कटुभाषी होने परभी अपनी कार्यकुशलता व राजीनीतिक-कूटनीतिक समझ के चलते लोकप्रिय हो जाते हैं।
लग्न भाव में पुरुष राशि का राहु अक्सर द्विभार्या योग बनाता है।
मेष का राहु जातक को उदार बनाता है।
मिथुन, तुला, कुंभ का राहु दूसरों के कार्यों में दोष देखने वाला बनाता है।
धनु राशि का राहु दूसरों से अलग-थलग रखता है।
वहीं वृश्चिक, मीनऔर मकर का राहु दूसरों के कार्यों में दखलंदाजी करने वाला बनाता है।लग्न का राहु वैवाहिक जीवन के लिए प्राय: अच्छा नहीं होता। देर से विवाह होना, धोखे से विवाह होना, वैचारिक मतभेद रहना आदि देखा जाता है। अत: कुंडली मिलान में इसका ध्यान रखा जाना चाहिए ।
राहुदेव
छाया ग्रह हैं,
उनका भौतिक
स्वरूप नहीं है,
अपितु वे एक
गणितीय
बिन्दु हैं।
पृथ्वी और
चन्द्रमा के ये
कटान बिन्दु
पीछे की ओर
खिसकते रहते हैं
जिसे राहु और केतु का संचार (गति) कहा जाता है। यह
अपने परिक्रमा पथ पर 18 वर्ष में एक चक्कर पूर्ण कर लेते हैं।
वैदिक ज्योतिष में वराह मिहिर तक के काल में 7
ग्रहों को ही मान्यता प्राप्त थी परन्तु वराह
मिहिर के बाद के ज्योतिर्विद महर्षियों ने राहु-केतु
के मानव पर होने वाले प्रभावों को समझा और इन्हें
ग्रह मण्डल में सदस्य के रूप में रख दिया। इस प्रकार
नवग्रह की ज्योतिष परम्परा चल प़डी। राहु और केतु
नामक ये गणितीय बिन्दु सदैव परस्पर 180 अंश
की दूरी पर रहते हैं।
हम राहु के मनुष्य के वैवाहिक और दाम्पत्य जीवन पर प़डने
वाले प्रभावों पर प्रकाश डालेंगे। राहु को शनि के
समान क्रूर और पापी माना जाता है इसलिए
कहा गया है कि राहु की क्रूर नक्षत्रों में स्थिति बहुत
घातक होती है। ऎसी स्थिति तृतीय भाव में होने पर
भाई, चतुर्थ भाव में होने पर माता, पंचम भाव में होने
पर संतान, सप्तम भाव में होने पर पत्नी और दशम भाव में
पिता के लिए घातक होती है। राहु की सप्तम भाव में
उपस्थिति दाम्पत्य जीवन (वैवाहिक स्थिति) के
लिए अशुभकारी हो सकती है जिनमें निम्न
स्थितियां बन सकती हैं:-
(1) अविवाहित रहना।
(2) जीवनसाथी की अकाल मृत्यु हो जाना।
(3) जीवनसाथी का रोग ग्रस्त रहना।
(4) जीवनसाथी का अनैतिक चरित्र होना।
(5) संतानहीन होना।
(6) जीवनसाथी का अतिक्रोधी, झग़डालू
या बेपरवाह होना।
ये सभी स्थितियां व्यक्ति के वैवाहिक जीवन
को दुखमय और असहनीय बना देती हैं। सप्तम भाव में
राहु की अशुभ स्थिति को विभिन्न ज्योतिष
विद्वानों में इस प्रकार उल्लिखित किया है:-
मंत्रेश्वर:
मनुष्य स्त्रीयों की कुसंगति में प़डकर निर्धन
हो जाता है, विधुर हो जाता है, स्वच्छन्द
प्रकृति का हो जाता है,
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