सूरज और शनि की युति की कूछ ज्योतिष के जानकार इस योग को पितृ दोष की श्रेणी मे रखते है.। पर अग्र ये युति सम डिग्री मे हो तो सूरज को पिता तो शनि को उसका बेटा ये दोनो पिता पुत्र की जोड़ी बहूत खतरनाक है दोनो को एक दूसरे का शत्रु मना जाता है।सूरज और शनि मे से जो ज्यादा पावरफुल होगा उसकी स्थिति दूसरे से बढ़िया होगी जैसे मान लो सूरज और शनि मे अग्र सूरज की स्थिति हुई तो बेटा जब गर्भ मे आयगा बाप की स्थिति सही होनी शुरू हो जाती है और जैसे जैसे बेटा बड़ा होता है वैसे वैसे पिता की possition बढ़िया होती जाती है पर बेटे की खुद की possition सही नहीँ rehti वो कोई काम सही से नहीँ कर पाता समज मे उसकी खुद की कोई possition नहीँ होती लोग उसको उसके बाप के कारण जानते है और वह जातक जीवन मे तब तक कामयाब नहीँ होता जब तक की उसके पिता जी जीवित है और इसके उलट अग्र सूरज और शनि मे शनि ज्यादा powerfull हुआ तो जातक जब गर्भ मे ही होगा तभी से बाप की possition कमजोर होनी शुरू हो जाती है और बाप आर्थिक शारीरिक और मानसिक और घर मे कलेश रहता ही है और बाप कर्जेदार और अपमानित होता है और इसके उलट जातक आपनी लाईने मे कामयाबी के झंडे बुलंद करता रहता है ये योग अग्र सप्तम भाव मे हो तो sure है जातक का तलाक निश्चित है और जातक के घर मे भी दो शादियां हुई होती है ये सयौर है
सूर्य अत्यधिक प्रभावशाली तेजस्वी गृह है। शनि मंद गति से भ्रमण करने वाला होता है। सूर्य पिता है तो शनि पुत्र है। सूर्य शनि साथ होने पर पिता पुत्र से डरता है। इससे शनि का प्रभाव नहीं पड़ता। पुत्र पिता से अलग रहता है, तो निश्चित ही आपसी मतभेद भी करा देता है। इसके फलस्वरूप पिता से नहीं बनती या पिता का साथ नहीं मिल पाता है। ठीक उसी प्रकार सूर्य शनि समसप्तक हो तो पिता पुत्र में सदैव वैचारिक मतभेद बना रहना स्वाभाविक है। सूर्य शनि का अलग-अलग समसप्तक बनने से मतभेदों में अलग-अलग अंतर होगा।
हमने ऐसी हजारों कुंडलियों का निचोड़ 22 वर्षों में जाना है। सूर्य शनि का समसप्तक योग लग्न सप्तम योग कुटुम्ब से वैचारिक मतभेद का कारण बनता है। स्वास्थ्य में भी गड़बड़ रहती है। वाणी में संयम न रख पाने की वजह से कई बनते कार्य बिगड़ सकते हैं। धन का संग्रह भी नहीं हो पाता है।
तृतीय नवम भाव से बनने वाला समसप्तक योग भाइयों, मित्रों, पार्टनरशिप में हानि का कारण बनता है। निरन्तर भाग्य में भी बाधाएँ आती है। धर्म-कर्म में आस्था नहीं रहती।
चतुर्थ भाव व दशमभाव में बनने वाला समसप्तक योग पिता से दूर करा देता है। पिता पुत्र एक साथ नहीं रह पाते। किसी भी कारण से पुत्र की दूरी पिता से बनी रहती है। ऐसे जातक को अपने पिता के साथ नहीं रहना चाहिए, नहीं तो पिता या पुत्र में से कोई एक ही रहता है।
पंचम एकादश से बनने वाला समसप्तक योग विद्या में बाधा का कारण बनता है। संतान से वैचारिक मतभेद बने रहते हैं। संतान अलग हो जाती है। आर्धिक मामलों में उतार-चढ़ाव बना रहता है।
षष्ट-एकादश से बनने वाला सूर्य शनि का समसप्तक योग से घर ठीक नहीं रहता। नेत्र विकार हो सकते हैं। शत्रु नष्ट होते हैं। कोर्ट कचहरी आदि में सफलता मिलती है। इस प्रकार किसी के गृह योग हों तो उन्हें कुंडली के हिसाब से उपाय कराने पर दोष कम किया जा सकता है।
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