ग्रहण योग या दोष
जब सूर्य या चन्द्रमा की युति राहू या केतु से हो जाती है तो इस दोष का निर्माण होता है। चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण दोष की अवस्था में जातक डर व घबराहट महसूस करता है। चिडचिडापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है। माँ के सुख में कमी आती है। किसी भी कार्य को शुरू करने के बाद उसे सदा अधूरा छोड़ देना व नए काम के बारे में सोचना इस योग के लक्षण हैं। मैंने अपने ३ साल के छोटे से अनुभव में ऐसी कई कुण्डलियाँ देखी है जिनमे यह योग बन रहा था और जातक किसी न किसी फोबिया या किसी न किस प्रकार का डर से ग्रसित थे। जिन लोगो में दिमाग में हमेशा यह डर लगा रहता है, उदाहरण के लिए समझे कि "मैं पहड़ो पर जैसे मनाली या शिमला घूमने जाऊँगा तो बस पलट जाएगी। रेल से वहां जाऊंगा तो रेल में बम बिस्फोट हो जायेगा।" इस प्रकार के सारे नकारात्मक विचार इसी दोष के कारण मन में आते है। अमूमन किसी भी प्रकार के फोबिया अथवा किसी भी मानसिक बीमारी जैसे डिप्रेसन ,सिज्रेफेनिया आदि इसी दोष के प्रभाव के कारण माने गए हैं यदि यहाँ चंद्रमा अधिक दूषित हो जाता है या कहें अन्य पाप प्रभाव में भी होता है, तो मिर्गी ,चक्कर व पूर्णत: मानसिक संतुलन खोने का डर भी होता है। सूर्य द्वारा बनने वाला ग्रहण योग पिता सुख में कमी करता है। जातक का शारीरिक ढांचा कमजोर रह जाता है। आँखों व ह्रदय सम्बन्धी रोगों का कारक बनता है। सरकारी नौकरी या तो मिलती नहीं या उसको निभाना कठिन होता है डिपार्टमेंटल इन्क्वाइरी, सजा, जेल, परमोशन में रुकावट सब इसी दोष का परिणाम है।
उपाय - जरूरी नही की हम हज़ारो रुपए लगा कर, भारी भरकम उपाय कर के ही ग्रहों का या भगवन का पूजन कर उपाय करे जैसे की आजकल ज्योतिष बताते है। बरन हम छोटे छोटे उपाय करके भी भगवन तथा ग्रहों को प्रसन्न कर सकते है। बस उस किये गए उपाय में सच्ची श्रधा भाव तथा उस परम पिता परमेश्वर में विश्वास हे।
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