Tuesday, January 24, 2017

कबीर की बानी

कबीर ,  जो तोको काटा बोवै , ताको बो तू फ़ूल ।
            तोहि फुलके फूल है , वाको हैं त्रिशूल ।
          कबीरा आप, ठगाइये , और न ठगिये कोय ।
         आप ठगाएं सुख होत है , और ठगे दुःख होय ।
कबीर , ऐसी बानी बोलिये , मनका आपा खोये ।
            औरन को शीतल करें , आपुहिं शीतल होय ।

कबीर , जगमे बैरी कोई नही  , जो मन शीतल होय ।
            या आपा। को डारि दे , दया करें सब कोय ।

कबीर , कहते को कही जाने दें , गुरु की सिख तूं लेय ।
            साकट और स्वान को ,  उलट जवाब न देय ।

कबीर , कबीरा काहे को डरे , सिरपर सिरजनहार ।
           हस्ती चढ़ि डरिये नहीं , कुकर भूसे हजार ।
कबीर , आवत गारी एकहै , उलटत होय अनेक ।
            कहे कबीर। न उलटियो , रहे एक की एक ।

कबीर , गाली ही से उपजे , कलह कष्ट और मीच ।
           हार चले सो साधू हैं , लागि मरे सो नीच ।

हरिजन तो हारा भला , जीतन दे संसार ।
           हारा तो हरी मिले जीता यम के द्वार.......

कबीर , जेता घट तेता मता , घट घट और स्वभाव ।
            जा घट हार न जीत है , ता घट ब्रह्म समाव ।

कबीर , कामी क्रोधी लालची , इनपे भक्ति न होय ।
           भक्ति करे कोई सूरमां , जाती वरण कूल खोय ।

हर्ष शोघ है स्वान गति , संशय सर्प शारीर ।
            राग द्वर्ष बड़े रोग हैं , जम के पड़े जंजीर ।

जे तेरे उपजे नहीं , तो शब्द साखी सुन लेह ।
            साखी भूत संगीत हैं , जाँहसे लावो नेह ।

मर्द गर्द में मिल गए , रावण से रणधीर ।
            कंश केश चाणूर से , हिरणाकुश बलबीर ।
तेरी क्या बुनियाद है , जीव जन्म धर लेत ।
            गरीबदास हरी नाम बिन , खाली परसी खेत ।

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