कबीर , जो तोको काटा बोवै , ताको बो तू फ़ूल ।
तोहि फुलके फूल है , वाको हैं त्रिशूल ।
कबीरा आप, ठगाइये , और न ठगिये कोय ।
आप ठगाएं सुख होत है , और ठगे दुःख होय ।
कबीर , ऐसी बानी बोलिये , मनका आपा खोये ।
औरन को शीतल करें , आपुहिं शीतल होय ।
कबीर , जगमे बैरी कोई नही , जो मन शीतल होय ।
या आपा। को डारि दे , दया करें सब कोय ।
कबीर , कहते को कही जाने दें , गुरु की सिख तूं लेय ।
साकट और स्वान को , उलट जवाब न देय ।
कबीर , कबीरा काहे को डरे , सिरपर सिरजनहार ।
हस्ती चढ़ि डरिये नहीं , कुकर भूसे हजार ।
कबीर , आवत गारी एकहै , उलटत होय अनेक ।
कहे कबीर। न उलटियो , रहे एक की एक ।
कबीर , गाली ही से उपजे , कलह कष्ट और मीच ।
हार चले सो साधू हैं , लागि मरे सो नीच ।
हरिजन तो हारा भला , जीतन दे संसार ।
हारा तो हरी मिले जीता यम के द्वार.......
कबीर , जेता घट तेता मता , घट घट और स्वभाव ।
जा घट हार न जीत है , ता घट ब्रह्म समाव ।
कबीर , कामी क्रोधी लालची , इनपे भक्ति न होय ।
भक्ति करे कोई सूरमां , जाती वरण कूल खोय ।
हर्ष शोघ है स्वान गति , संशय सर्प शारीर ।
राग द्वर्ष बड़े रोग हैं , जम के पड़े जंजीर ।
जे तेरे उपजे नहीं , तो शब्द साखी सुन लेह ।
साखी भूत संगीत हैं , जाँहसे लावो नेह ।
मर्द गर्द में मिल गए , रावण से रणधीर ।
कंश केश चाणूर से , हिरणाकुश बलबीर ।
तेरी क्या बुनियाद है , जीव जन्म धर लेत ।
गरीबदास हरी नाम बिन , खाली परसी खेत ।
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