Thursday, January 5, 2017

विदेश के योग की चर्चा

विदेश के योग की चर्चा

एक समय ऐसा था जब घर से दूर रहकर काम करने को अच्छा नहीं समझा जाता था विदेशों में काम करने या रहने को घर से दूर होने के कारण एक समस्या या दुःख के रूप में देखा जाता था
परन्तु वर्तमान समय में विदेश यात्रा या
विदेश–वास को लेकर सामाजिक
दृष्टिकोण पूर्णतया बदल गया है आज–कल विदेश–यात्रा और विदेशों में काम करने को एक सुअवसर के रूप में
देखा जाता है
अधिकांश लोग विदेशों से जुड़कर कार्य
करना चाहते हैं तो कुछ विदेश यात्रा को
केवल आनंद या एक नये अनुभव के लिए करना चाहते हैं। ज्योतिषीय
दृष्टिकोण में देखें तो हमारी कुंडली में बने
कुछ विशेष ग्रह–योग ही हमारे जीवन में
विदेश से जुड़कर काम करने या विदेश यात्रा का योग बनाते हैं –
हमारी जन्मकुंडली में बारहवे भाव का
सम्बन्ध विदेश और विदेश यात्रा से
जोड़ा गया है इसलिए दुःख भाव होने पर भी आज के समय में कुंडली के बारहवे भाव को एक सुअवसर के रूप में देखा
जाता है। चन्द्रमाँ को विदेश–यात्रा का
नैसर्गिक कारक माना गया है। कुंडली का
दशम भाव हमारी आजीविका को दिखाता है तथा शनि आजीविका का
नैसर्गिक कारक होता है अत: विदेश–यात्रा के लिये कुंडली का
बारहवां भाव, चन्द्रमाँ, दशम भाव और
शनि का विशेष महत्व होता है
1. यदि चन्द्रमाँ कुंडली के बारहवे
भाव में स्थित हो तो विदेश यात्रा
या विदेश से जुड़कर आजीविका का
योग होता है।
2. चन्द्रमाँ यदि कुंडली के छटे भाव
में हो तो विदेश यात्रा योग बनता है।
3. चन्द्रमाँ यदि दशवे भाव में हो
या दशवे भाव पर चन्द्रमाँ की दृष्टि
हो तो विदेश यात्रा योग बनता है।
4. चन्द्रमाँ यदिससप्तम भाव या
लग्न में हो तो भी विदेश से जुड़कर
व्यपार का योग बनता है।
5. शनि आजीविका का कारक है अतः
कुंडली में शनि और चन्द्रमाँ का योग
भी विदेश यात्रा या विदेश में आजीविका का योग बनाता है।
6. यदि कुंडली में दशमेश बारहवे भाव
और बारहवे भाव का स्वामी दशवे
भाव में हो तो भी विदेश में या विदेश
से जुड़कर काम करने का योग होता है।
7. यदि भाग्येश बारहवे भाव में और
बारहवे भाव का स्वामी भाग्य
स्थान ( नवाभाव ) में हो तो भी विदेश यात्रा का योग बनता है।
8. यदि लग्नेश बारहवे भाव में और
बारहवे भाव का स्वामी लग्न में हो
तो भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है।
9. भाग्य स्थान में बैठा राहु भी
विदेश यात्रा का योग बनाता है।
10. यदि सप्तमेश बारहवे भाव में हो
और बारहवे भाव का स्वामी सातवें भाव में हो तो भी विदेश यात्रा या विदेश
से जुड़कर व्यापार करने का योग
बनता है।
इस प्रकार उपरोक्त कुछ विशेष ग्रह–योग कुंडली में होने पर व्यक्ति को
विदेश यात्रा का अवसर मिलता है।
विशेष –
1. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चन्द्रमाँ पाप ग्रहों से पीड़ित हो, नीच राशि में बैठा हो, अमावश्या का हो, या किसी
अन्य प्रकार बहुत पीड़ित हो तो ऐसे में विदेश जाने में बहुत बाधायें आती हैं और विदेश जाकर भी कोई लाभ नहीं मिल पाता।
2. यदि कुंडली के आठवें भाव में पाप
ग्रह हों या कोई पाप योग बना हो तो इससे विदेश जाने में बाधायें आती हैं और विदेश जाने पर भी संतोषजनक सफलता नहीं मिलती।
3. यदि कुंडली के बारहवे भाव में भी
कोई पाप योग बन रहा हो तो यह
भी विदेश यात्राओं में बाधक होता है

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