Friday, December 9, 2016

महिलाओं को श्री शिव की पूजा बहुत शीघ्र फलवती हो जाती है।

महिलाओं को श्री शिव की पूजा बहुत शीघ्र फलवती हो जाती है। महानन्दा, चंचुला, पिंगला, शारदा, ऋषिका, आहुका आदि अनेक महिलाओं ने शिव भक्ति के प्रभाव से सद्गति प्राप्त की। कन्या में आत्मबल की वृद्धि,प्रभु शिव की (शिवलिंग में)पूजा के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। ५ से ८ वर्ष की कन्या यदि सही सद्गुरू से दीक्षा लेकर शिव-पूजा करती है तो उससे आत्मबल भी बढ़ता है, इसी जन्म में राजपद् भी प्राप्त होता है और वह निश्चित रूप से कुल तारक संतान को ही उत्पन्न करेगी। शेष जीवन को सुधारने के लिए महिला आश्रम से नि:शुल्क सेवा प्राप्त कर सकती है।(यदि महिला कोई धन नहीं कमाती हो) स्कन्दपुराण में यादव कुल की राजकुमारी कलावती की कथा इसी जन्म में मुक्त होने के लिए, अगले जन्म में राजकुल प्राप्त करने के लिए या अगले जन्म में पुरूष रूप में जन्म लेने के लिए, आश्रम से अलग - अलग क्रियाएं सिखायी जाती है।
महिलाओं को जबभी कभी कोई कष्ट होता है तो वे देहधारी शिवभक्त सद्गुरू से दीक्षा लेकर, भगवान शंकर की शिवलिंग में पूजा (संकल्प करके ) करके शिवलिंग के सामने ही महानन्दा की कथा का पाठ बोलकर करती है। महानन्दा एक वैश्या थी और महान् शिवभक्ता थी। बिना तपस्या के ही महानन्दा को निष्कपट-भाव से श्रद्धा-भक्ति से शिवलिंग का पूजन,प्रभु शिव के व्रत करने तथा शिवभक्त ब्राह्मणों को दान देने से घर बैठे प्रभु शिव ने दर्शन दिये और महानन्दा के मॉंगने पर प्रभुशिव ने उसको उसके समाज सहित सभी को शिव-लोक प्रदान कर अतुल सुख दिया। यह कथा स्कन्द पुराण में महानन्दा के नाम से और श्री शिवमहापुराण के शतरूद्र संहिता के अध्याय २६ प्रभु शिव के वैश्यनाथ अवतार के नाम से वर्णित है। महिलाये विधि को आश्रम से सीख सकती है। अतिथी सत्कार की महिमा सभी धर्म शास्त्रों में वर्णित है। स्कन्द पुराण में वेश्या पिंगला का चरित्र और श्री शिवमहापुराण में आहुका का चरित्र (शतरूद्र संहिता अध्याय २८ में) अतिथी सत्कार में यदि किसी महिला ने एक बार भी शिवभक्त का सत्कार कर दिया, तो निश्चित रूप से भगवान शंकर स्वयं अगले जन्म में सद्गुरू रूप से उसे दीक्षा देकर उसकी सद्गति करते है। अतिथी सत्कार की विधि आश्रम से नि:शुल्क सिखायी जाती है।
आजकल कुछ कपटी लोगों ने एक भ्रामक प्रचार फैला रखा है कि स्त्रियों को शिवलिंग के स्पर्श एवं पूजन का अधिकार नहीं है। रूद्राक्ष और भ्रस्म त्रिपुण्ड़ लगाने का अधिकार नहीं है। विष्णु भक्तों को रूद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए, भस्म त्रिपुण्ड़ नहीं लगाना चाहिए, शिवलिंग का पूजन नहीं करना चाहिए, शिवजी का प्रसाद नहीं खाना चाहिए इत्यादि। वसिष्ठ की पत्नी अरून्धती जिसके दर्शन आज भी आकाशमण्डल के सप्तर्षि मण्ड़ल में होते हैं। यह अरून्धती पूर्व जन्म में ब्रह्मा की पुत्री सन्ध्या थी। सन्ध्या नेे गुरू वसिष्ठ से ऊॅं नम: शंकराय ऊॅं मंत्र की दीक्षा लेकर चार युगों तक हिमालय की चन्द्रभागा नदी के तट पर प्रभु शिव के लिए तपस्या की। ऋषि अत्रि की पत्नी अनसूया ने, अपने पति अत्रि के साथ प्रभु शिव की पूजा करके ब्रह्मा-विष्णु-महेश के अंश से एक-एक पुत्र दुर्वासा, दत्तात्रेय और चन्द्रमा उत्पन्न किये। चंचुला ब्राह्मणी भ्रष्ट हो गई थी। उसने देहधारी गुरू से दीक्षा लेकर शिवोपासना से सद्गति प्राप्त की। सूर्यवंशी राजा दशरथ की पत्नियॉं कौशल्या - सुमित्रा - कैकई ने शिव-पूजन से ही श्री विष्णु के अंश से चार पुत्र राम-लक्ष्मण- भरत-शत्रुघ्न प्राप्त किए। भारद्वाज गोत्र में उत्पन्न सुधर्मा ब्राह्मण की पुत्री घुष्मा ने शिवलिंग का पूजनकर बिना तपस्या के ही प्रभु शिव का साक्षात्कार कर लिया और उसके नाम से द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रसिद्ध घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग(एलोरा गुफा के समीप) विराजमान है।
हिमालय जो कि विष्णु का अंश है, उसके १०० पुत्र थे परन्तु वे सब से अधिक स्नेह अपनी पुत्री पार्वती से करते थे। राजा अनरण्य जिसने सफलतापूर्वक १०० यज्ञ किए थे। देवता उसे इन्द्रपद प्रदान कर रहे थे परन्तु उसने स्वीकार नहीं किया। उसके भी सौ पुत्र थे। राजा अनरण्य सौ पुत्रों से भी अधिक स्नेह अपनी पुत्री पद्मा से करते थे। कन्या संतान भी कुलतारक होती है।

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