Sunday, December 11, 2016

कुंडली में आत्मकारक ग्रह

कुंडली में आत्मकारक ग्रह
जन्म पत्रिका में अनेक प्रकार के योगों का निर्माण ग्रहों की स्थिति अनुसार होता है। ग्रहों से बनने वाले योगों में से कुछ योग ऎसे होते हैं, जो व्यक्ति के चिकित्सक बनने में सहायक होते हैं, जो इस प्रकार हैं-

कुंडली में आत्मकारक ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि में स्थित होकर लग्न में हों और उनकी युति पंचमेश से होने पर व्यक्ति को चिकित्सक बनाने में सहायक है।

मेष, सिंह, धनु या वृश्चिक राशि का संबंध दशम भाव से होने पर व्यक्ति चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।

राहू-केतु बली व शुभ स्थान पर होने से व्यक्ति चिकित्सक बनता है।

दशम भाव या दशमेश से मंगल अथवा केतु का दृष्टि-युति संबंध होने पर शल्य चिकित्सक व्यक्ति बन सकता है।

एकादश भाव आय का, पंचम भाव संतान, विद्या, मनोरंजन का भाव है। इस एकादश भाव से पंचम भाव पर सूर्य, चंद्र, शुक्र की सप्तम पूर्ण दृष्टि पड़ती है। वहीं मंगल की दशम भाव से अष्टम एकादश भाव से सप्तम व धन, कुटुंब भाव से चतुर्थ दृष्टि पूर्ण पती है। गुरु धर्म, भाग्य भाव नवम से पंचम भाव पर नवम दृष्टि डालता है तो एकादश भाव से सप्तम लग्न से पंचम दृष्टि पूर्ण पती है। शनि की तृतीय दृष्टि तृतीय भाई, पराक्रम भाव से एकादाश भाव से सप्तम व अष्टम भाव से दशम पूर्ण दृष्टि पड़ती है। यहाँ पर हमारे अनुभव अनुसार राहु-केतु जो छाया ग्रह हैं, उनके बारे में विशेष फल नहीं मिलता न ही इनकी दृष्टि को माना जाता है न ही किसी एकादश भाव पर रहने से पंचम भाव पर कोई असर आता है।

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