चन्द्रमा का काल पुरूष का मन कहा गया हैै।
अत यह मन अर्थात अन्तःकरण का प्रतीक है। नवग्रहों में सूर्य तथा चन्द्रमा को राजा का पद दिया गया है। परन्तु ज्योतिष में चन्द्रमा को स्त्री ग्रह माना गया है, अतः इसे सूर्य की अद्धार्गिनी अर्थात रानी के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।
फलित ज्योतिष में प्रयुक्त चन्द्रमा भौगोलिक चन्द्रमा से सर्वथा भिन्न है। ग्रहण में जो चन्द्रमा कारण स्वरूप बनता है वह नित्य षोडश कलात्मक है। वह चन्द्रमा अमावस्या को भी मृत नहीं होता। उस चन्द्रमा को पितृगणों का निवास स्थल माना गया है। ज्योतिष में जिस चन्द्रमा के सम्बन्ध में विचार किया जाता है उसे सूर्य का प्रतिबिम्ब मात्र ही कहा जा सकता है।
कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तथा चतुदर्शी को चन्द्रमा ‘वृद्ध’ अमावस्या को मृत तथा शुक्ल प्रतिपदा को बाल स्वरूप माना जाता है। अतः ये चार तिथियां शुभ कर्मो के लिए त्याज्य कहीं गई है।
पूर्णचन्द्र को सौम्य ग्रह तथा क्षीण चन्द्र को पाप-ग्रह माना जाता है। इसी प्रकार बली चन्द्रमा को शुभ तथा निर्बली को अशुभ ग्रह के रूप में स्वीकार किया जाता है। शुक्ल पक्ष की एकादशी से कृष्णपक्ष की पंचमी तक पूर्णचन्द्र कृष्णपक्ष की एकादशी से शुक्लीपक्ष की पंयमी तक क्षीण चन्द्र तथा कृष्णपक्ष की षष्ठी से कृष्ण पक्ष की दशमी तक तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी से शुक्ल पक्ष की दशमी तक मध्य-चन्द्र माना जाता है। पूर्ण चन्द्र शुभ तथा क्षीण चन्द्र अशुभ है। इसके वर्ण, रूप, दिशा, प्रकृति तथा सत्वादि के विषय में निम्नानुसार समझना चाहिए।
वर्ण-श्वेत (गौर), अवस्था - युवा (तरूणी) लिंग-स्त्री, जाति-वैश्य, नेत्र सुन्दर (शुभ दृष्टि सम्पन्न) स्वरूप सुन्दर, आकृति स्थूल (मतान्तर से लघु) पद सरीसृप, गुण सत्व, तत्व जल, प्रकृति कफ, स्वभाव चर (चंचल) धातु कास्य (मतान्तर से मणि), वस्त्र नवीन रमणीय, अधिदेवता जन (वरूण), दिशा वावव्य, रस-लवण, स्थान- आर्द्र जलाशय तट, काल (समय) क्षण (मुहूर्त) बलदायक काल पराह (रात्रि) वेदाभ्यास खर्च नहीं, विधाध्ययन रूचि ज्योतिष, वाहन-मृण, वार सोमवार, निसर्ग-शुक्र से अधिक बली। पराभव बुध से पराजित, संज्ञापूर्ण चन्द्र शत्रु, क्षीण चन्द्र, अशुभ- शुभ, दृष्ट, शुभ, अशुभ, दृष्ट अशुभ, प्रतिनिधि पशु श्वेत बैल।
आधिपत्य -
चन्द्रमा को मन, अन्तःकरण, मनोभाव मानसिक स्थिति, संवेदन, विनम्रता, कोमलता, दयालुता, ब्राह स्वभाव, हाव भाव, शारीरिक स्वास्थ्य मस्तिष्क, रक्त, सहानुभूति, देश-प्रेम, गृहस्थ-प्रेम कल्पना शक्ति, सौन्दर्य, राजा की प्रसन्नता माता-पिता की सम्पत्ति, सुख सम्पत्ति पास पड़ौस तथा ज्योतिष विधा का पूर्ण अधिपति माना जाता है।
इसे जल, मोती, कृषि, श्वेत, वस्त्र, चांदी, पुष्प, चावल, मिश्री, गन्ना, मधु, नमक, स्त्री के आश्रय आदि से लाभ, माता, नेतृव्य व्यक्तिगत कार्य पारिवारिक जीवन, नाविक, भ्रमणशील साहसी व्यक्ति, वाला तथा राजभक्ति का अधिपति भी माना जाता है।
चन्द्रमा को चतुर्थ भाव का कारक माना गया है। बली चन्द्रमा ही चतुर्थ भाव में अपना पूर्ण फल देता है।
मनुष्य शरीर में गले से हृदय तक, अण्डकोष तथा पिंगला नाड़ी पर इसका अधिकार क्षेत्र है। मस्तिष्क तथा उदर के सम्बन्ध में भी इसे विचार किया जाता है।
चन्द्रमा स्त्री, वेश्या, दाई, परिचारिका, जलोत्पन्न वस्तुऐं, औषध, शराब विक्रेता, मधुए, नाविक, यात्री, व्यर्थ भ्रमण, नेत्र रोग, आलस्य पाण्डु-रोग, जल रोग, कफ रोग, पीनस-रोग, मानसिक विकार मूत्रकृच्छ, स्त्री-संसर्ग जन्य रोग तथा गांठ आदि रोगों का भी प्रतिनिधि है। चन्द्रमा की अशुभ स्थिति में इन रोग, दोष तथा विकारों का होना सम्भव रहता है।
ऊपर जिन व्यक्तियों, अंगो, पदार्थो तथा विषयों का उल्लेख किया गया है, उनके सम्बन्ध में चन्द्रमा के द्वारा ही विशेष विचार किया जाता है।
Tuesday, December 13, 2016
चन्द्रमा का काल पुरूष का मन कहा गया हैै।
Labels:
SWAMI. 9375873519
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment