Saturday, December 10, 2016

दक्षिण दिशा का भवन

सिर्फ अशुभ नहीं, शुभ भी होता है दक्षिण दिशा का भवन
दक्षिण दिशा के शुभाशुभ प्रभाव जानिए
जिस तरह मनुष्य की पांच ज्ञानेंद्रियां मानी गई हैं, उसी प्रकार वास्तु की भी पांच ज्ञानेन्द्रिय होती हैं। ये इस प्रकार हैं- हवा, वातावरण, जल, भूमि और वृक्ष। इनके संतुलन द्वारा शुभ-वास्तु का जन्म होता है। वास्तु में दरवाजे, खिड़की, शयन कक्ष, सभागृह और रसोईगृह उचित दिशा में न हों तो कुछेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
वास्तु के कई भ्रमों को दूर करना चाहिए। इनमें एक है दक्षिण दिशा का मकान। दक्षिण दिशा का मकान हो तो अशुभ होने की आशंका रहती (मानी जाती) है। परंतु यह भ्रम है।
भारत के शहरों के इतिहास देखें तो दक्षिण दिशा ने इतनी प्रगति की है, जितनी अन्य दिशाओं ने नहीं की। संपन्नता दक्षिण दिशा में भी प्राप्त होती है। रावण की लंका और भारत के स्वर्ण भंडार इसके उदाहरण हैं।
गृह से संबंधित कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे घर के अंदर उत्तर-पूर्व में टॉयलेट (शौचालय) नहीं होना चाहिए। इससे शारीरिक कष्ट होने या बढ़ने की संभावना मानी जाती है। रसोई कक्ष पूर्व-दक्षिण (आग्नेय) कोण में होना चाहिए।
इसी तरह बेडरूम (शयन कक्ष) दक्षिण-पश्चिम में होना अति उत्तम माना जाता है। खिड़कियां उत्तर या पूर्व में ही हों। दरवाजे के लिए पूर्व या उत्तर दिशा सर्वश्रेष्ठ बताई जाती है। स्त्री के नाम से मकान हो तो ऐसे मकान का द्वार दक्षिण दिशा की ओर हो तो सर्वोत्तम माना जाता है, जिसमें तिजोरी का दरवाजा भी दक्षिण दिशा को हो

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