Thursday, December 29, 2016

ग्रहों की युति

ग्रहों की युति

  बात कुछ दिनों पहले की है,मेरे एक दोस्त मनीष जी गंगानगर से मुझसे मिलने बीकानेर आये हुए थे. बातों के दौरान ज्योतिष विषय पर चर्चा शुरू हुई. इसी क्रम में उन्होंने मुझसे पूछा,कि ग्रहों की युति को आप किस तरह से परिभाषित करेंगे. उसके बाद हमारी कुछ बातें इस विषय पर हुई,शायद ज्योतिष जिज्ञासुओं के लिए काम की हो इसलिए संवाद रूप में यहाँ लिख रहा हूँ.

ग्रहों की युति अपना प्रभाव किन-किन तरीकों से देती है?यदि दो ग्रह हों तो और यदि तीसरा ग्रह भी उनमें सम्मिलित हो तो उसका क्या प्रभाव पड़ता है,क्या वह पूरी तरह से युति के प्रभाव को बदल देता है या फिर कुछ और?सबसे महत्वपूर्ण बात हम फलादेश करते समय इन युतिओं को किस तरह काम में ले सकते हैं?
ज्योतिष विद्यार्थी:-सबसे पहले तो मोटी बात करते हैं ग्रहों के मैत्री आधारित युति संबंधों पर.ये सम्बन्ध मुख्यतया तीन तरह के होते हैं!
1.जब दो मित्र ग्रह युति में हों.
2.जब दो सम ग्रह युति में हों.
3.जब दो शत्रु ग्रह युति में हों.
              अब साधारण सी बात है,कि जब दो मित्र साथ-साथ होंगे तो कुछ न कुछ सार्थक होगा जैसे यदि वह किसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं या अगर कहीं घूमने गए हैं,तो माहौल शांतिमय और माधुर्यपूर्ण होता है.अगर दो अजनबी जो एक दुसरे के पास-पास बैठे हैं,तो उनमें आपस में जान-पहचान होगी कुछ बातचीत होगी और साधारण शांतिमय माहौल होगा.अंत में बात करते हैं शत्रु ग्रहों की,अगर दो शत्रु ग्रह एक साथ हो तो वो उस स्थान को अशांतिमय कर देंगे और विध्वंसकारी प्रवृत्तियों को वहाँ केंद्रित करेंगे.
        अलग दृष्टिकोण से देखने पर मान लें की एक कमरा एक राशि है,यदि एक ग्रह उस राशि के एक किनारे पर बैठा है और दूसरा दुसरे किनारे पर तो युति प्रतीत होते हुए भी उनकी युति का फल प्राप्त नहीं होता है.अब क्या दो लोग एक कमरे के दो अलग-अलग छोर पर बैठकर बातचीत कर सकते हैं क्या?नहीं लेकिन हाँ एक कमरे के अंतिम छोर पर बैठा व्यक्ति अगले कमरे के शुरुआती छोर पर बैठे व्यक्ति से आराम से बातचीत कर सकता है.वास्तव में कई बार जन्मकुंडली में ऐसा ही देखने को मिलता है,कि एक भाव में स्थित दो ग्रहों में तो युति का फल नहीं मिलता जबकि दो अलग भावों में बैठे ग्रहों की युति का फल प्राप्त होता है.एक बात और जैसे मान लें कि एक दोस्त सड़क पर चला जा रहा है और पीछे से उसका एक दोस्त आ रहा है,तो वह उस आगे वाले दोस्त को आवाज देकर रोकता है,उससे बात करता है फिर दोनों चल पड़ते हैं. अर्थात ग्रहों की युति जब बनने वाली होती है तो वह अधिक ताकतवर होती है और जब छूट रही होती है तो कमजोर होती जाती है.ये तो बात हुई दोस्ती और दुश्मनी की लेकिन जब उन्होंने पूछा की इन युति के प्रभाव को जन्मपत्रिका में किस प्रकार देखेंगे तो कुछ देर सोचने के बाद मैंने उन्हें समझाने के लिए एक सारणी बनाई उसे यहाँ पेश कर रहा हूँ.मैंने इस सारणी में चंद्र को प्रधान ग्रह के रूप में लिया है और अन्य ग्रहों का इसके साथ युति सम्बन्ध किस तरह होगा इस पर चर्चा करने का प्रयास किया है,आशा है कि आप सब को भी पसंद आएगा.
                                                       -:चंद्र:-(विचार)
शनि(दु:ख,विषाद,कमी,निराशा)               :- मन में दु:ख,नकारात्मक सोच.
मंगल(साहस,धैर्य,तेज,क्षणिक क्रोध)        :-  विचारों में ओज,क्रांतिकारी विचार. 
बुध(वाणी,चातुर्य.हास्य)                           :- हास्य-व्यंग्य पूर्ण विचार,नए विचार.
गुरु(ज्ञान,गंभीरता,न्याय,सत्य)            :- न्याय,सत्य और ज्ञान की कसौटी पर कसे हुए गंभीर विचार.
शुक्र(स्त्री,माया,संसाधन,मिठास,सौंदर्य)     :- माया में जकड़े विचार,सुंदरता से जुड़े विचार.
सूर्य(आत्म-तेज,आदर)                            :- आदर के विचार,स्वाभिमान का विचार.
राहू(मतिभ्रम,लालच)                               :- विचारों का द्वंद्व,सही-गलत के बीच झूलते विचार.
केतु(कटाक्ष,झूठ,अफवाह)                        :- झूठ,अफवाह और सही बातों को काटने का विचार.
               यहाँ जैसे मैंने चन्द्रमा के केवल एक कारक को लेते हुए दुसरे ग्रहों के वे कारकत्व जो चंद्र से मिल सकते हैं,मिलाया है और युति का फल बतलाने का प्रयत्न किया है अब इन्हीं का फल अलग तरह से भी पता लग सकता है,जैसे ऊपर की सारणी की ही बात करें तो चंद्र माता का भी स्वामित्व रखता है,अब चंद्र रूपी माता का शनि के किस कारक से संयोग होगा यह विचार कर प्रभाव ज्ञात कर सकते हैं!यहाँ मैंने मूल तरीका बताने की कोशिश की है,कैसा लगा.यदि किसी सुधार की गुंजाइश हो तो अवश्य सूचित करें. 

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