Wednesday, December 21, 2016

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अलग-अलग तरीके से भाग्य या भविष्य बताया जाता है।

ज्योतिष विद्या...
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अलग-अलग
तरीके से भाग्य या भविष्य बताया जाता है। माना जाता है
कि भारत में लगभग 150 से ज्यादा ज्योतिष विद्या प्रचलित हैं।
प्रत्येक विद्या आपके भविष्य को बताने
का दावा करती है। माना यह ‍भी जाता है
कि प्रत्येक विद्या भविष्य बताने में सक्षम है, लेकिन उक्त विद्या के
जानकार कम ही मिलते हैं, जबकि भटकाने वाले ज्यादा।
मन में सवाल यह उठता है कि आखिर किस विद्या से जानें हम
अपना भविष्य, प्रस्तुत है कुछ प्रचलित ज्योतिष विद्याओं
की जानकारी।
1. कुंडली ज्योतिष :- यह कुंडली पर
आधारित विद्या है। इसके तीन भाग है- सिद्धांत ज्योतिष,
संहिता ज्योतिष और होरा शास्त्र। इस विद्या के अनुसार व्यक्ति के
जन्म के समय में आकाश में जो ग्रह, तारा या नक्षत्र जहाँ था उस
पर आधारित कुंडली बनाई जाती है।
बारह राशियों पर आधारित नौ ग्रह और 27 नक्षत्रों का अध्ययन कर
जातक का भविष्य बताया जाता है। उक्त विद्या को बहुत से भागों में
विभक्त किया गया है, लेकिन आधुनिक दौर में मुख्यत: चार माने जाते
हैं। ये चार निम्न हैं- नवजात ज्योतिष, कतार्चिक ज्योतिष,
प्रतिघंटा या प्रश्न कुंडली और विश्व ज्योतिष विद्या।
2. लाल किताब की विद्या :- यह मूलत: उत्तरांचल,
हिमाचल और कश्मीर क्षेत्र की विद्या है।
इसे ज्योतिष के परंपरागत सिद्धांत से हटकर 'व्यावहारिक ज्ञान'
माना जाता है। इसे बहुत ही कठिन विद्या माना जाता है।
इसके अच्छे जानकार बगैर कुंडली को देखे उपाय बताकर
समस्या का समाधान कर सकते हैं। उक्त विद्या के सिद्धांत को एकत्र
कर सर्वप्रथम इस पर एक ‍पुस्तक प्रकाशित
की थी जिसका नाम था 'लाल किताब के
फरमान'। मान्यता अनुसार उक्त किताब को उर्दू में लिखा गया था इसलिए
इसके बारे में भ्रम उत्पन्न हो गया।
3. गणितीय ज्योतिष :- इस भारतीय
विद्या को अंक विद्या भी कहते हैं। इसके अंतर्गत
प्रत्येक ग्रह, नक्षत्र, राशि आदि के अंक निर्धारित हैं। फिर जन्म
तारीख, वर्ष आदि के जोड़ अनुसार
भाग्यशाली अंक और भाग्य निकाला जाता है।
4. नंदी नाड़ी ज्योतिष :- यह मूल रूप से
दक्षिण भारत में प्रचलित विद्या है जिसमें ताड़पत्र के द्वारा भविष्य
जाना जाता है। इस विद्या के जन्मदाता भगवान शंकर के गण
नंदी हैं इसी कारण इसे
नंदी नाड़ी ज्योतिष विद्या कहा जाता है।
5. पंच पक्षी सिद्धान्त :- यह भी दक्षिण
भारत में प्रचलित है। इस ज्योतिष सिद्धान्त के अंतर्गत समय
को पाँच भागों में बाँटकर प्रत्येक भाग का नाम एक विशेष
पक्षी पर रखा गया है। इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई
कार्य किया जाता है उस समय जिस
पक्षी की स्थिति होती है
उसी के अनुरूप उसका फल मिलता है। पंच
पक्षी सिद्धान्त के अंतर्गत आने वाले पाँच
पंक्षी के नाम हैं गिद्ध, उल्लू, कौआ, मुर्गा और मोर।
आपके लग्न, नक्षत्र, जन्म स्थान के आधार पर
आपका पक्षी ज्ञात कर आपका भविष्य बताया जाता है।
6. हस्तरेखा ज्योतिष :- हाथों की आड़ी-
तिरछी और सीधी रेखाओं के
अलावा, हाथों के चक्र, द्वीप, क्रास आदि का अध्ययन
कर व्यक्ति का भूत और भविष्य बताया जाता है। यह बहुत
ही प्राचीन विद्या है और भारत के
सभी राज्यों में प्रचलित है।
7. नक्षत्र ज्योतिष :- वैदिक काल में नक्षत्रों पर आधारित ज्योतिष
विज्ञान ज्यादा प्रचलित था। जो व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म
लेता था उसके उस नक्षत्र अनुसार उसका भविष्य बताया जाता था।
नक्षत्र 27 होते हैं।
8. अँगूठा शास्त्र :- यह विद्या भी दक्षिण भारत में
प्रचलित है। इसके अनुसार अँगूठे की छाप लेकर उस
पर उभरी रेखाओं का अध्ययन कर बताया जाता है
कि जातक का भविष्य कैसा होगा।
9. सामुद्रिक विद्या:- यह विद्या भी भारत
की सबसे प्राचीन विद्या है। इसके अंतर्गत
व्यक्ति के चेहरे, नाक-नक्श और माथे की रेखा सहित
संपूर्ण शरीर की बनावट का अध्ययन कर
व्यक्ति के चरित्र और भविष्य को बताया जाता है।
10. चीनी ज्योतिष :-
चीनी ज्योतिष में बारह वर्ष को पशुओं के
नाम पर नामांकित किया गया है। इसे पशु-नामांकित राशि-चक्र कहते
हैं। यही उनकी बारह राशियाँ हैं, जिन्हें
'वर्ष' या 'सम्बन्धित पशु-वर्ष' के नाम से जानते हैं।
यह वर्ष निम्न हैं- चूहा, बैल, चीता,
बिल्ली, ड्रैगन, सर्प, अश्व, बकरी, वानर,
मुर्ग, कुत्ता और सुअर। जो व्यक्ति जिस वर्ष में
जन्मा उसकी राशि उसी वर्ष अनुसार
होती है और उसके चरित्र, गुण और भाग्य का निर्णय
भी उसी वर्ष की गणना अनुसार
माना जाता है।
11. वैदिक ज्योतिष :- वैदिक ज्योतिष अनुसार राशि चक्र, नवग्रह,
जन्म राशि के आधार पर गणना की जाती है।
मूलत: नक्षत्रों की गणना और गति को आधार
बनाया जाता है। मान्यता अनुसार वेदों का ज्योतिष
किसी व्यक्ति के भविष्य कथक के लिए
नहीं,

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