Friday, January 19, 2018

कालभैरव रहस्य

*कालभैरव रहस्य*

काल भैरव का नाम सुनते ही एक अजीब-
सी भय मिश्रित अनुभूति होती है। एक
हाथ में ब्रह्माजी का कटा हुआ सिर और अन्य
तीनों हाथों में खप्पर, त्रिशूल और डमरू लिए भगवान शिव
के इस रुद्र रूप से लोगों को डर भी लगता है, लेकिन ये
बड़े ही दयालु-कृपालु और जन का कल्याण करने वाले
हैं।
भैरव शब्द का अर्थ ही होता है भरण-पोषण करने
वाला, जो भरण शब्द से बना है। काल भैरव
की चर्चा रुद्रयामल तंत्र और जैन आगमों में
भी विस्तारपूर्वक की गई है। शास्त्रों के
अनुसार कलियुग में काल भैरव
की उपासना शीघ्र फल देने
वाली होती है। उनके दर्शन मात्र से
शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों का भी कुप्रभाव समाप्त
हो जाता है। काल भैरव की सात्त्विक, राजसिक और
तामसी तीनों विधियों में
उपासना की जाती है।
इनकी पूजा में उड़द और उड़द से
बनी वस्तुएं जैसे इमरती,
दही बड़े आदि शामिल होते हैं। चमेली के
फूल इन्हें विशेष प्रिय हैं। पहले भैरव को बकरे
की बलि देने की प्रथा थी, जिस
कारण मांस चढ़ाने की प्रथा चली आ
रही थी, लेकिन अब परिवर्तन आ चुका है।
अब बलि की प्रथा बंद हो गई है।
शराब इस लिए चढ़ाई जाती है क्योंकि मान्यता है कि भैरव
को शराब चढ़ाकर बड़ी आसानी से मन
मांगी मुराद हासिल
की जा सकती है। कुछ लोग मानते हैं
कि शराब ग्रहण कर भैरव अपने उपासक पर कुछ
उसी अंदाज में मेहरबान हो जाते हैं जिस तरह आम
आदमी को शराब पिलाकर अपेक्षाकृत अधिक लाभ
उठाया जा सकता है। यह छोटी सोच है।
आजकल धन की चाह में स्वर्णाकर्षण भैरव
की भी साधना की जा रही है।
स्वर्णाकर्षण भैरव काल भैरव का सात्त्विक रूप हैं,
जिनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए
की जाती है। यह हमेशा पाताल में रहते
हैं, जैसे सोना धरती के गर्भ में होता है। इनका प्रसाद
दूध और मेवा है। यहां मदिरा-मांस सख्त वर्जित है। भैरव रात्रि के
देवता माने जाते हैं। इस कारण इनकी साधना का समय
मध्य रात्रि यानी रात के 12 से 3 बजे के
बीच का है। इनकी उपस्थिति का अनुभव गंध
के माध्यम से होता है। शायद यही वजह है
कि कुत्ता इनकी सवारी है। कुत्ते
की गंध लेने की क्षमता जगजाहिर है।
देवी महाकाली, काल भैरव और शनि देव ऐसे
देवता हैं जिनकी उपासना के लिए बहुत कड़े परिश्रम,
त्याग और ध्यान की आवश्यकता होती है।
तीनों ही देव बहुत कड़क,
क्रोधी और कड़ा दंड देने वाले माने जाते है। धर्म
की रक्षा के लिए
देवगणों की अपनी-
अपनी विशेषताएं है।
किसी भी अपराधी अथवा पापी को दंड
देने के लिए कुछ कड़े नियमों का पालन
जरूरी होता ही है। लेकिन ये
तीनों देवगण अपने उपासकों,
साधकों की मनाकामनाएं
भी पूरी करते हैं। कार्यसिद्धि और
कर्मसिद्धि का आशीर्वाद अपने साधकों को सदा देते रहते
हैं।
भगवान भैरव की उपासना बहुत जल्दी फल
देती है। इस कारण आजकल
उनकी उपासना काफी लोकप्रिय
हो रही है। इसका एक प्रमुख कारण यह
भी है कि भैरव की उपासना क्रूर ग्रहों के
प्रभाव को समाप्त करती है।
शनि की पूजा बढ़ी है। अगर आप
शनि या राहु के प्रभाव में हैं तो शनि मंदिरों में
शनि की पूजा में हिदायत
दी जाती है कि शनिवार और रविवार को काल
भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। मान्यता है कि 40 दिनों तक
लगातार काल भैरव का दर्शन करने से
मनोकामना पूरी होती है। इसे
चालीसा कहते हैं। चन्द्रमास के 28 दिनों और 12
राशियां जोड़कर ये 40 बने हैं।
पूजा में शराब, मांस ठीक नहीं
हमारे यहां तीन तरह से भैरव
की उपासना की प्रथा रही है।
राजसिक, सात्त्विक और तामसिक। हमारे देश में
वामपंथी तामसिक उपासना का प्रचलन हुआ, तब मांस
और शराब का प्रयोग कुछ उपासक करने लगे। ऐसे उपासक विशेष रूप
से श्मशान घाट में जाकर मांस और शराब से भैरव को खुश कर लाभ
उठाने लगे।
लेकिन भैरव बाबा की उपासना में शराब, मांस
की भेंट जैसा कोई विधान नहीं है। शराब,
मांस आदि का प्रयोग राक्षस या असुर किया करते थे।
किसी देवी-देवता के नाम के साथ
ऐसी चीजों को जोड़ना उचित
नहीं है। कुछ लोगों के कारण ही आम
आदमी के मन में यह भावना जाग
उठी कि काल भैरव बड़े क्रूर, मांसाहारी और
शराब पीने वाले देवता हैं।
किसी भी देवता के साथ ऐसी बातें
जोड़ना पाप ही कहलाएगा।
गृहस्थ के लिए इन दोनों चीजों का पूजा में प्रयोग वर्जित
है। गृहस्थों के लिए काल भैरवाष्टक स्तोत्र का नियमित पाठ
सर्वोत्तम है, जो अनेक बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। काल भैरव तंत्र
के अधिष्ठाता माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि तंत्र
उनके मुख से प्रकट होकर उनके चरणों में समा जाता है। लेकिन,
भैरव की तांत्रिक साधना गुरुगम्य है। योग्य गुरु के
मार्गदर्शन में ही यह
साधना की जानी चाहिए।
काल भैरव की उत्पत्ति और काशी से संबंध
कथा-एक
पहली कथा है कि ब्रह्मा जी ने
पूरी सृष्टि की रचना की।
ऐसा मानते हैं कि उस समय प्राणी की मृत्यु
नहीं होती थी।
पृथ्वी के ऊपर लगातार भार बढ़ने लगा।
पृथ्वी परेशान होकर ब्रह्मा के पास गई।
पृथ्वी ने ब्रह्मा जी से कहा कि मैं
इतना भार सहन नहीं कर सकती। तब
ब्रह्मा जी ने मृत्यु को लाल ध्वज लिए
स्त्री के रूप में उत्पन्न किया और उसे आदेश
दिया कि प्राणियों को मारने का दायित्त्व ले। मृत्यु ने ऐसा करने से
मना कर दिया और कहा कि मैं ये पाप नहीं कर
सकती। ब्रह्माजी ने कहा कि तुम केवल
इनके शरीर को समाप्त करोगी लेकिन
जीव तो बार-बार जन्म लेते रहेंगे। इस पर मृत्यु ने
ब्रह्माजी की बात स्वीकार कर
ली और तब से प्राणियों की मृत्यु शुरू
हो गई।
समय के साथ मानव समाज में पाप बढ़ता गया। तब शंकर भगवान ने
ब्रह्मा जी से पूछा कि इस पाप को समाप्त करने
का आपके पास क्या उपाय है। ब्रह्माजी ने इस विषय में
अपनी असमर्थता जताई। शंकर भगवान
शीघ्र कोपी हैं। उन्हें क्रोध आ गया और
उनके क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव
ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट
दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई थी। इससे काल
भैरव को ब्रह्म हत्या लग गयी।
काल भैरव तीनों लोकों में भ्रमण करते रहे लेकिन ब्रह्म
हत्या से वे मुक्त नहीं हो पाए।
ऐसी मान्यता है कि जब काल भैरव
काशी पहुंचे, तब ब्रह्म हत्या ने
उनका पीछा छोड़ा। उसी समय
आकाशवाणी हुई कि तुम यहीं निवास
करो और काशीवासियों के पाप-पुण्य के निर्णय का दायित्त्व
संभालो। तब से भगवान काल भैरव काशी में स्थापित
हो गए।
पं,प्रकाश शर्मा
कथा-दो
दूसरी कथा यह भी है कि एक बार देवताओं
की सभा हुई थी। उसमें
ब्रह्मा जी के मुख से शंकर भगवान के प्रति कुछ
अपमानजनक शब्द निकल गए। तब शंकर भगवान ने क्रोध में हुंकार
भरी और उस हुंकार से काल भैरव प्रकट हुए और
ब्रह्मा जी के उस सिर को काट दिया जिससे
ब्रह्मा जी ने शंकर भगवान
की निंदा की थी। काल भैरव
को ब्रह्म हत्या दोष लगने और काशी में वास करने तक
की आगे
की कथा पहली कथा जैसी ही है।
यह भी मान्यता है कि धर्म
की मर्यादा बनाएं रखने के लिए भगवान शिव ने अपने
ही अवतार काल भैरव को आदेश दिया था कि हे भैरव,
तुमने ब्रह्माजी के पांचवें सिर को काटकर ब्रह्म
हत्या का जो पाप किया है, उसके प्रायश्चित के लिए तुम्हें
पृथ्वी पर जाकर माया जाल में फंसना होगा और विश्व
भ्रमण करना होगा। जब ब्रह्मा जी का कटा हुआ सिर
तुम्हारे हाथ से गिर जाएगा, उसी समय तुम ब्रह्म
हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे और उसी स्थान पर
स्थापित हो जाओगे। काल भैरव की यह
यात्रा काशी में समाप्त हुई थी l

          

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