Saturday, January 20, 2018

चलती हुई दूकान भी एकदम से ठप्प हो जाती है ।

कभी-कभी देखने में आता है कि खूब चलती हुई दूकान भी एकदम से ठप्प हो जाती है । जहाँ पर ग्राहकों की
भीड़ उमड़ती थी, वहाँ सन्नाटा पसरने लगता है । यदि किसी चलती हुई दुकान को कोई तांत्रिक बाँध दे, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, अतः इससे बचने के लिए निम्नलिखित प्रयोग करने चाहिए -

पर कोई भी प्रयोग को किसी जानकार को बिना बताए या बिना पूछे मत करना(इसमे सावधानी बहोत जरूरी है) या आपके गुरु का मार्गदर्शन लेके करे।

१॰ दुकान में लोबान की धूप लगानी चाहिए ।
२॰ शनिवार के दिन दुकान के मुख्य द्वार पर बेदाग नींबू
एवं सात हरी मिर्चें लटकानी चाहिए ।
३॰ नागदमन के पौधे की जड़ लाकर इसे दुकान के बाहर
लगा देना चाहिए । इससे बँधी हुई दुकान खुल
जाती है ।
४॰ दुकान के गल्ले में शुभ-मुहूर्त में श्री-फल लाल
वस्त्र में लपेटकर रख देना चाहिए ।
५॰ प्रतिदिन संध्या के समय दुकान में माता लक्ष्मी के
सामने शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करना
चाहिए ।
६॰ दुकान अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान की
दीवार पर शूकर-दंत इस प्रकार लगाना चाहिए कि वह
दिखाई देता रहे ।
७॰ व्यापारिक प्रतिष्ठान तथा दुकान को नजर से बचाने के लिए काले-
घोड़े की नाल को मुख्य द्वार की चौखट के
ऊपर ठोकना चाहिए ।
८॰ दुकान में मोरपंख की झाडू लेकर निम्नलिखित मंत्र के
द्वारा सभी दिशाओं में झाड़ू को घुमाकर वस्तुओं को साफ
करना चाहिए । मंत्रः- “ॐ ह्रीं
ह्रीं क्रीं”
९॰ शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के सम्मुख मोगरे
अथवा चमेली के पुष्प अर्पित करने चाहिए ।
१०॰ यदि आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान में चूहे आदि जानवरों के बिल
हों, तो उन्हें बंद करवाकर बुधवार के दिन गणपति को प्रसाद चढ़ाना
चाहिए ।
११॰ सोमवार के दिन अशोक वृक्ष के अखंडित पत्ते लाकर स्वच्छ
जल से धोकर दुकान अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर
टांगना चाहिए । सूती धागे को
पीसी हल्दी में रंगकर उसमें
अशोक के पत्तों को बाँधकर लटकाना चाहिए ।
१२॰ यदि आपको यह शंका हो कि किसी व्यक्ति ने
आपके व्यवसाय को बाँध दिया है या उसकी नजर
आपकी दुकान को लग गई है, तो उस व्यक्ति का नाम
काली स्याही से भोज-पत्र पर लिखकर
पीपल वृक्ष के पास भूमि खोदकर दबा देना चाहिए तथा
इस प्रयोग को करते समय किसी अन्य व्यक्ति को
नहीं बताना चाहिए । यदि पीपल वृक्ष
निर्जन स्थान में हो, तो अधिक अनुकूलता रहेगी ।
१३॰ कच्चा सूत लेकर उसे शुद्ध केसर में रंगकर अपनी
दुकान पर बाँध देना चाहिए ।
१४॰ हुदहुद पक्षी की
कलंगी रविवार के दिन प्रातःकाल दुकान पर लाकर रखने से
व्यवसाय को लगी नजर समाप्त होती है
और व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है ।
१५॰ कभी अचानक ही व्यवसाय में स्थिरता
आ गई हो, तो निम्नलिखित मंत्र का प्रतिदिन ग्यारह माला जप करने
से व्यवसाय में अपेक्षा के अनुरुप वृद्धि होती है ।
मंत्रः- “ॐ ह्रीं श्रीं
क्लीं नमो भगवती माहेश्वरी १॰ सूर्यदेव के दोष के लिए खीर का भोजन बनाओ और
रोजाना चींटी के बिलों पर रखकर आवो और
केले को छील कर रखो ।
२॰ जब वापस आवो तभी गाय को खीर और
केला खिलाओ ।
३॰ जल और गाय का दूध मिलाकर सूर्यदेव को चढ़ावो। जब जल
चढ़ाओ, तो इस तरह से कि सूर्य की किरणें उस गिरते
हुए जल में से निकल कर आपके मस्तिष्क पर प्रवाहित हो ।
४॰ जल से अर्घ्य देने के बाद जहाँ पर जल चढ़ाया है, वहाँ पर
सवा मुट्ठी साबुत चावल चढ़ा देवें ।
चन्द्रमाः-
१॰ पूर्णिमा के दिन गोला, बूरा तथा घी मिलाकर गाय को
खिलायें । ५ पूर्णमासी तक गाय को खिलाना है ।
२॰ ५ पूर्णमासी तक केवल शुक्ल पक्ष में प्रत्येक
१५ दिन गंगाजल तथा गाय का दूध चन्द्रमा उदय होने के बाद
चन्द्रमा को अर्घ्य दें । अर्घ्य देते समय ऊपर दी गई
विधि का इस्तेमाल करें ।
३॰ जब चाँदनी रात हो, तब जल के किनारे जल में
चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को हाथ जोड़कर दस मिनट तक खड़ा रहे
और फिर पानी में मीठा प्रसाद चढ़ा देवें,
घी का दीपक प्रज्जवलित करें । उक्त
प्रयोग घर में भी कर सकते हैं, पीतल के
बर्तन में पानी भरकर छत पर रखकर या जहाँ
भी चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पानी में दिख सके
वहीं पर यह कार्य कर सकते हैं ।

कुंडली में शनि से बनने वाले विभिन्न ग्रह योग

🕳️कुंडली में शनि से बनने वाले विभिन्न ग्रह योग🕳️


           शनि देव को भगवान शिव ने न्यायाधीश का पद दिया है और उसका दायित्व शनिदेव पूर्ण निष्ठा से व बिना किसी दुराग्रह के संपादित करते हैं।

🕳️साढ़ेसाती व ढैय्या के समय जरूर कष्ट प्रदान करते हैं परंतु पूर्ण समय तक नहीं, उसमें भी प्रभाव मित्र राशि में है या शत्रु राशि में तथा उन पर किसी शुभ ग्रह का प्रभाव है या अशुभ ग्रह का, तदनुसार शुभ-अशुभ फल प्राप्त होते हैं।

🕳️🕳️शनि से बनने वाले विभिन्न योगों का क्रमानुसार वर्णन इस प्रकार है 🕳️🕳️

1.🕳️ शशयोग:
🌼अगर शनि देव केंद्र स्थानों में स्वराशि का होकर बैठे हां (मकर, कुंभ) तो यह योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक नौकरों से अच्छी तरह काम लेता है, किसी संस्थान समूह या कस्बे का प्रमुख और राजा होता है एवं वह सब गुणों से युक्त सर्वसंपन्न होता है।

2. 🕳️राजयोग: 🕳️

🌼अगर वृष लग्न में चंद्रमा हो, दशम में शनि हो, चतुर्थ में सूर्य तथा सप्तमेश गुरु हो तो यह योग बनता है। ऐसा जातक सेनापति/पुलिस कप्तान या विभाग का प्रमुख होता है।

3.🕳️ दीर्घ आयु योग: 🕳️

🌼लग्नेश, अष्टमेश, दशमेश व शनि केंद्र त्रिकोण या लाभ भाव में (11वां भाव) हो तो दीर्घ आयु योग होता है।

4.🕳️ रवि योग: 🕳️

🌼अगर सूर्य दशम भाव में हो और दशमेश तीसरे भाव में शनि के साथ बैठा है तो यह योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक उच्च विचारों वाला और सामान्य आहार लेने वाला होता है। जातक सरकार से लाभान्वित, विज्ञान से ओतप्रोत, कमल के समान आंखों व भरी हुई छाती वाला होता है।

5.🕳️ पशुधन लाभ योग ( आज के ज़माने में वाहन योग जाने )🕳️

🌼यदि चतुर्थ में शनि के साथ सूर्य तथा चंद्रमा नवम भाव में हो, एकादश स्थान में मंगल हो तो गाय भैंस आदि पशु धन का लाभ होता है।

6. 🕳️अपकीर्ति योग: 🕳️

🌼अगर दशम में सूर्य व श्न हो व अशुभ ग्रह युक्त या दृष्ट हो तो इस योग का निर्माण होता है। इस प्रकार के जातक की ख्याति नहीं होती वरन् वह कुख्यात होता है।

7.🕳️ बंधन योग: 🕳️

🌼अगर लग्नेश और षष्टेश केंद्र में बैठे हों और शनि या राहु से युति हो तो बंधन योग बनता है। इसमें जातक को कारावास काटना पड़ता है।

8. 🕳️धन योग: 🕳️

🌼लग्न से पंचम भाव में शनि अपनी स्वराशि में हो और बुध व मंगल ग्यारहवें भाव में हों तो यह योग निर्मित होता है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक महाधनी होता है। अगर लग्न में पांचवे घर में शुक्र की राशि हो तथा शुक्र पांचवे या ग्यारहवें भाव में हो तो धन योग बनता है। ऐसा जातक अथाह संपत्ति का मालिक होता है।

9.🕳️ जड़बुद्धि योग: 🕳️

🌼अगर पंचमेश अशुभ ग्रह से दृष्ट हो या युति करता हो, शनि पंचम में हो तथा लग्नेश को शनि देखता हो तो इस योग का निर्माण होता है। इस योग में जन्म लेने वाले जातक की बुद्धि जड़ होती है।

10. 🕳️कुष्ठ योग: 🕳️

🌼यदि मंगल या बुध की राशि लग्न में हो अर्थात मेष, वृश्चिक, मिथुन, कन्या लग्न में हो एवं लग्नेश चंद्रमा के साथ हो, इनके साथ राहु एवं शनि भी हो तो कुष्ठ रोग होता है। षष्ठ स्थान में चंद्र, शनि हो तो 55वें वर्ष में कुष्ठ की संभावना रहती है।

11.🕳️ वात रोग योग: 🕳️

🌼यदि लग्न में एवं षष्ठ भाव में शनि हो तो 59 वर्ष में वात रोग होता है। जब बृहस्पति लग्न में हो व शनि सातवें में हो तो यह योग बनता है।

12. 🕳️दुर्भाग्य योग:🕳️

🌼 (1) यदि नवम में शनि व चंद्रमा हो, लग्नेश नीच राशि में गया हो तो मनुष्य भीख मांग कर गुजारा करता है।
  (2) यदि पंचम भाव में तथा पंचमेश या भाग्येश अष्टम में नीच राशिगत हो तो मनुष्य भाग्यहीन होता है।

13.🕳️ पापकर्म से धनार्जन योग: 🕳️

🌼यदि द्वादश भाव में शनि-राहु के साथ मंगल हो तथा शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं हो तो पाप कार्यों से धन लाभ होता है।

14. 🕳️अंगहीन योग: 🕳️

🌼दशम में चंद्रमा हो सप्तम में मंगल हो सूर्य से दूसरे भाव में शनि हो तो यही योग बनता है। इस योग में जातक अंगहीन हो जाता है।

15. 🕳️सदैव रोगी योग:🕳️

🌼 यदि षष्ठभाव तथा षष्ठेश दोनों ही पापयुक्त हां और शनि राहु साथ हों तो सदैव रोगी होता है।

16. 🕳️मतिभ्रम योग: 🕳️

🌼शनि लग्न में हो मंगल नवम पंचम या सप्तम में हो, चंद्रमा शनि के साथ बारहवं भाव में हों एवं चंद्रमा कमजोर हो तो यह योग बनता है।

17. 🕳️बहुपुत्र योग: 🕳️

🌼अगर नवांश में राहु पंचम भाव में हो व शनि से संयुक्त हो तो इस योग का निर्माण होता है। इस योग में जन्म लेने वाले जातक के बहुत से पुत्र होते हैं।

18. 🕳️युद्धमरण योग: 🕳️

🌼यदि मंगल छठे या आठवें भाव का स्वामी होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में शनि या राहु से युति करे तो जातक की युद्ध में मृत्यु होती है।

19. 🕳️नरक योग: 🕳️

🌼यदि 12वें भाव में शनि, मंगल, सूर्य, राहु हो तथा व्ययेश अस्त हो तो मनुष्य नरक में जाता है और पुनर्जन्म लेकर कष्ट भोगता है।

20. 🕳️सर्प योग: 🕳️

🌼यदि तीन पापग्रह शनि, मंगल, सूर्य कर्क, तुला, मकर राशि में हो या लगातार तीन केंद्रों में हो तो सर्पयोग होता है। यह एक अशुभ योग है।

21. 🕳️दत्तक पुत्र योग: 🕳️

🌼शनि-मंगल यदि पांचवें भाव में हों तथा सप्तमेश 11वें भाव में हो, पंचमेश शुभ हो तो यह योग बनता है। नवम भाव में चर राशि में शनि से दृष्ट हो, द्वादशेश बलवान हो, तो जातक गोद जायेगा।

यदि पांचवें भाव में ग्रह हो तथा पंचमेश व्यय स्थान में हो, लग्नेश व चंद्र बली हो तो जातक को गोद लिया पुत्र होगा।

🕳️🕳️🕳️🕳️🕳️🕳️🕳️🕳️

Friday, January 19, 2018

कालभैरव रहस्य

*कालभैरव रहस्य*

काल भैरव का नाम सुनते ही एक अजीब-
सी भय मिश्रित अनुभूति होती है। एक
हाथ में ब्रह्माजी का कटा हुआ सिर और अन्य
तीनों हाथों में खप्पर, त्रिशूल और डमरू लिए भगवान शिव
के इस रुद्र रूप से लोगों को डर भी लगता है, लेकिन ये
बड़े ही दयालु-कृपालु और जन का कल्याण करने वाले
हैं।
भैरव शब्द का अर्थ ही होता है भरण-पोषण करने
वाला, जो भरण शब्द से बना है। काल भैरव
की चर्चा रुद्रयामल तंत्र और जैन आगमों में
भी विस्तारपूर्वक की गई है। शास्त्रों के
अनुसार कलियुग में काल भैरव
की उपासना शीघ्र फल देने
वाली होती है। उनके दर्शन मात्र से
शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों का भी कुप्रभाव समाप्त
हो जाता है। काल भैरव की सात्त्विक, राजसिक और
तामसी तीनों विधियों में
उपासना की जाती है।
इनकी पूजा में उड़द और उड़द से
बनी वस्तुएं जैसे इमरती,
दही बड़े आदि शामिल होते हैं। चमेली के
फूल इन्हें विशेष प्रिय हैं। पहले भैरव को बकरे
की बलि देने की प्रथा थी, जिस
कारण मांस चढ़ाने की प्रथा चली आ
रही थी, लेकिन अब परिवर्तन आ चुका है।
अब बलि की प्रथा बंद हो गई है।
शराब इस लिए चढ़ाई जाती है क्योंकि मान्यता है कि भैरव
को शराब चढ़ाकर बड़ी आसानी से मन
मांगी मुराद हासिल
की जा सकती है। कुछ लोग मानते हैं
कि शराब ग्रहण कर भैरव अपने उपासक पर कुछ
उसी अंदाज में मेहरबान हो जाते हैं जिस तरह आम
आदमी को शराब पिलाकर अपेक्षाकृत अधिक लाभ
उठाया जा सकता है। यह छोटी सोच है।
आजकल धन की चाह में स्वर्णाकर्षण भैरव
की भी साधना की जा रही है।
स्वर्णाकर्षण भैरव काल भैरव का सात्त्विक रूप हैं,
जिनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए
की जाती है। यह हमेशा पाताल में रहते
हैं, जैसे सोना धरती के गर्भ में होता है। इनका प्रसाद
दूध और मेवा है। यहां मदिरा-मांस सख्त वर्जित है। भैरव रात्रि के
देवता माने जाते हैं। इस कारण इनकी साधना का समय
मध्य रात्रि यानी रात के 12 से 3 बजे के
बीच का है। इनकी उपस्थिति का अनुभव गंध
के माध्यम से होता है। शायद यही वजह है
कि कुत्ता इनकी सवारी है। कुत्ते
की गंध लेने की क्षमता जगजाहिर है।
देवी महाकाली, काल भैरव और शनि देव ऐसे
देवता हैं जिनकी उपासना के लिए बहुत कड़े परिश्रम,
त्याग और ध्यान की आवश्यकता होती है।
तीनों ही देव बहुत कड़क,
क्रोधी और कड़ा दंड देने वाले माने जाते है। धर्म
की रक्षा के लिए
देवगणों की अपनी-
अपनी विशेषताएं है।
किसी भी अपराधी अथवा पापी को दंड
देने के लिए कुछ कड़े नियमों का पालन
जरूरी होता ही है। लेकिन ये
तीनों देवगण अपने उपासकों,
साधकों की मनाकामनाएं
भी पूरी करते हैं। कार्यसिद्धि और
कर्मसिद्धि का आशीर्वाद अपने साधकों को सदा देते रहते
हैं।
भगवान भैरव की उपासना बहुत जल्दी फल
देती है। इस कारण आजकल
उनकी उपासना काफी लोकप्रिय
हो रही है। इसका एक प्रमुख कारण यह
भी है कि भैरव की उपासना क्रूर ग्रहों के
प्रभाव को समाप्त करती है।
शनि की पूजा बढ़ी है। अगर आप
शनि या राहु के प्रभाव में हैं तो शनि मंदिरों में
शनि की पूजा में हिदायत
दी जाती है कि शनिवार और रविवार को काल
भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। मान्यता है कि 40 दिनों तक
लगातार काल भैरव का दर्शन करने से
मनोकामना पूरी होती है। इसे
चालीसा कहते हैं। चन्द्रमास के 28 दिनों और 12
राशियां जोड़कर ये 40 बने हैं।
पूजा में शराब, मांस ठीक नहीं
हमारे यहां तीन तरह से भैरव
की उपासना की प्रथा रही है।
राजसिक, सात्त्विक और तामसिक। हमारे देश में
वामपंथी तामसिक उपासना का प्रचलन हुआ, तब मांस
और शराब का प्रयोग कुछ उपासक करने लगे। ऐसे उपासक विशेष रूप
से श्मशान घाट में जाकर मांस और शराब से भैरव को खुश कर लाभ
उठाने लगे।
लेकिन भैरव बाबा की उपासना में शराब, मांस
की भेंट जैसा कोई विधान नहीं है। शराब,
मांस आदि का प्रयोग राक्षस या असुर किया करते थे।
किसी देवी-देवता के नाम के साथ
ऐसी चीजों को जोड़ना उचित
नहीं है। कुछ लोगों के कारण ही आम
आदमी के मन में यह भावना जाग
उठी कि काल भैरव बड़े क्रूर, मांसाहारी और
शराब पीने वाले देवता हैं।
किसी भी देवता के साथ ऐसी बातें
जोड़ना पाप ही कहलाएगा।
गृहस्थ के लिए इन दोनों चीजों का पूजा में प्रयोग वर्जित
है। गृहस्थों के लिए काल भैरवाष्टक स्तोत्र का नियमित पाठ
सर्वोत्तम है, जो अनेक बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। काल भैरव तंत्र
के अधिष्ठाता माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि तंत्र
उनके मुख से प्रकट होकर उनके चरणों में समा जाता है। लेकिन,
भैरव की तांत्रिक साधना गुरुगम्य है। योग्य गुरु के
मार्गदर्शन में ही यह
साधना की जानी चाहिए।
काल भैरव की उत्पत्ति और काशी से संबंध
कथा-एक
पहली कथा है कि ब्रह्मा जी ने
पूरी सृष्टि की रचना की।
ऐसा मानते हैं कि उस समय प्राणी की मृत्यु
नहीं होती थी।
पृथ्वी के ऊपर लगातार भार बढ़ने लगा।
पृथ्वी परेशान होकर ब्रह्मा के पास गई।
पृथ्वी ने ब्रह्मा जी से कहा कि मैं
इतना भार सहन नहीं कर सकती। तब
ब्रह्मा जी ने मृत्यु को लाल ध्वज लिए
स्त्री के रूप में उत्पन्न किया और उसे आदेश
दिया कि प्राणियों को मारने का दायित्त्व ले। मृत्यु ने ऐसा करने से
मना कर दिया और कहा कि मैं ये पाप नहीं कर
सकती। ब्रह्माजी ने कहा कि तुम केवल
इनके शरीर को समाप्त करोगी लेकिन
जीव तो बार-बार जन्म लेते रहेंगे। इस पर मृत्यु ने
ब्रह्माजी की बात स्वीकार कर
ली और तब से प्राणियों की मृत्यु शुरू
हो गई।
समय के साथ मानव समाज में पाप बढ़ता गया। तब शंकर भगवान ने
ब्रह्मा जी से पूछा कि इस पाप को समाप्त करने
का आपके पास क्या उपाय है। ब्रह्माजी ने इस विषय में
अपनी असमर्थता जताई। शंकर भगवान
शीघ्र कोपी हैं। उन्हें क्रोध आ गया और
उनके क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव
ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट
दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई थी। इससे काल
भैरव को ब्रह्म हत्या लग गयी।
काल भैरव तीनों लोकों में भ्रमण करते रहे लेकिन ब्रह्म
हत्या से वे मुक्त नहीं हो पाए।
ऐसी मान्यता है कि जब काल भैरव
काशी पहुंचे, तब ब्रह्म हत्या ने
उनका पीछा छोड़ा। उसी समय
आकाशवाणी हुई कि तुम यहीं निवास
करो और काशीवासियों के पाप-पुण्य के निर्णय का दायित्त्व
संभालो। तब से भगवान काल भैरव काशी में स्थापित
हो गए।
पं,प्रकाश शर्मा
कथा-दो
दूसरी कथा यह भी है कि एक बार देवताओं
की सभा हुई थी। उसमें
ब्रह्मा जी के मुख से शंकर भगवान के प्रति कुछ
अपमानजनक शब्द निकल गए। तब शंकर भगवान ने क्रोध में हुंकार
भरी और उस हुंकार से काल भैरव प्रकट हुए और
ब्रह्मा जी के उस सिर को काट दिया जिससे
ब्रह्मा जी ने शंकर भगवान
की निंदा की थी। काल भैरव
को ब्रह्म हत्या दोष लगने और काशी में वास करने तक
की आगे
की कथा पहली कथा जैसी ही है।
यह भी मान्यता है कि धर्म
की मर्यादा बनाएं रखने के लिए भगवान शिव ने अपने
ही अवतार काल भैरव को आदेश दिया था कि हे भैरव,
तुमने ब्रह्माजी के पांचवें सिर को काटकर ब्रह्म
हत्या का जो पाप किया है, उसके प्रायश्चित के लिए तुम्हें
पृथ्वी पर जाकर माया जाल में फंसना होगा और विश्व
भ्रमण करना होगा। जब ब्रह्मा जी का कटा हुआ सिर
तुम्हारे हाथ से गिर जाएगा, उसी समय तुम ब्रह्म
हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे और उसी स्थान पर
स्थापित हो जाओगे। काल भैरव की यह
यात्रा काशी में समाप्त हुई थी l

          

श्री भेरव इकतीसा

🌹विघ्न्नविनाशक वांञ्छा पुरण श्रीभेरव इकतीसा🌹

        🌺🌺दोहा🌺🌺
श्रीजिनदत्त कुशल गुरु के शुभ ध्यान  मे
    श्रीपार्श्व प्रभु जयकार।
आनंद मोद रहे जगत में
      जितेन्द्र विनय स्वीकार ।।

श्री भेरव इकतीसा लिखुं ह्दय शुद्ध विचार  ।
आराधन करुं सांचा देव की सत्य गति आचार ।।

🕉इकतीसा पाठ🕉

हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम्,मंगल  स्वरुपम् देव देवम्।
प्रत्यक्ष:दर्शनम् देही देही भेरवम्।१।
हाजरा हुजुरम् शक्ति  पुरम्,मंगल स्वरुपम् देव देवम् ।
सर्व रोग:क्षयं कुरु कुरु भेरवम्।२
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम्,मंगल स्वरुपम् देव देवम्।
सर्व विघ्न्नोपद्रव निवारयति भेरवम्।३।
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम्,मंगल  स्वरुपम् देव देवम्।
सर्व मनोवांछित पुरय पुरय भेरवम्।४।
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम्,मंगल  स्वरूपम् देव देवम्।
सर्व कार्ये सिद्धि  कुरु कुरु भेरवम्।५।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम्,मंगल  स्वरूपम् देव देवम्।
सर्व दुष्टाणां शत्रुणां उच्चाट्य उच्चाट्य भेरवम्।६।
हाजरा हुजुरम् शक्ति  पुरम् , मंगल स्वरूपम् देव देवम्।
सर्व ग्रह दु्ष्प्रभावा नाशय नाशय भेरवम्।७।
हाजरा हुजुरम् शक्ति  पुरम्,मंगल  स्वरुपम् देव देवम्।
सर्व यंत्र  मंत्र  तंंत्र वाचा दुष्प्रभावा नाशय नाशय भेरवम्।८।
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम्,मंगल स्वरुपम् देव
देवम्।
डाकण साकण वाण व्यंतर दुष्प्रभावा नाशय नाशय भेरवम्।९।
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम्,मंगल स्वरुपम् देव देवम्।
भुत बेताल पिशाच  राक्षसा:दुष्प्रभावा निवारय निवारय भेरवम्।१०।
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम्,मंगल स्वरुपम् देव देवम्।
सर्व भय क्लेश चिंता  चुरय चुरय भेरवम्।११।
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम् मंगल  स्वरुपम् देव देवम्।
सर्व क्षुद्रोपद्रव स्तंभय स्तंभय भेरवम्।१२।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम् मंगल स्वरूपम् देव देवम्।
मम् गृहे सुख शांति  समृद्धि आरोग्यं कुरु कुरु भेरवम्।१३।
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम्, मंगल स्वरुपम् देव देवम्।
मम् गृहे धन धान्य परिपुर्णकुरु कुरु भेरवम्।१४।
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम् मंगल  स्वरुपम् देव देवम्।
मम् गृहे सौभाग्य लक्ष्मी कुरु कुरु भेरवम्।१५।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम् , मंगल स्वरूपम् देव देवम्।
मम् गृहे पुत्र पौत्र  सौख्यं कुरु कुरु भेरवम्।१६।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम्,मंगल स्वरुपम् देव देवम्।
मम्परिवारस्य यश किर्ति प्रसारय प्रसारय भेरवम्।१७।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम्,मंगल स्वरूपम् देव देवम्
सर्व राज भयं नाशय नाशय भेरवम्।१८।
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम्, मंगल स्वरूपम् देव देवम्।
मम् गृहे धर्मार्थ कार्ये ऋद्धि सिद्धि  वृद्धिश्च कुरुकुरु भेरवम्।१९
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम्,मंगल स्वरुपम् देव देवम्।
जिन प्रासाद कार्येअष्ट
सिद्धिं नवनिधीं कुरु कुरु भेरवम्।२०।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम् मंगल  स्वरुपम् देव देवम्।
मम् व्यापार स्थले सर्व दुष्प्रभावा नाशय नाशय भेरवम्।२१।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम्,मंगल  स्वरुपम् देव देवम्।
मम् व्यापार स्थले व्यापार वृद्धि  कुरुकुरु भेरवम्।२२।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम्,मंगल स्वरूपम् देव देवम्।
मम् ह्रदपद्मं वासं कुरु कुरु भेरवम्।२३।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम् ,मंगल स्वरुपम् देव देवम्।
सर्व लोके मंगल  मांगल्यम् कुरु कुरु भेरवम्।२४।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम् मंगल स्वरुपम् देवदेवम्।
सर्वदा सर्व योगे काले स्थले जयं विजयं कुरु कुरु भेरवम्।२५।
हाजरा हुजूरम् शक्ति  पुरम्,मंगल  स्वरूपम् देव देवम्।
त्वामेव शरण्ये$हं रक्षां कुरु कुरु भेरवम्।२६।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम्,मंगल स्वरूपम् देव देवम्।
त्वं मम् सर्वं देव देवम् भेरवम्।२७
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम्, मंगल स्वरूपम् देव देवम्।
त्वं मम् बन्धु बान्धव मित्र  परिवार:भेरवम्।२८।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम्, मंगल स्वरूपम् देव देवम्।
सर्वदा शांति शक्तिं वृद्धिं कुरु कुरु भेरवम्।२९।
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम् मंगल स्वरूपम् देव देवम्।
वात घात पित्त कफ दोषा:क्षयं कुरु कुरु भेरवम्।३०।           🌾
हाजरा हुजूरम् शक्ति पुरम् ,मंगल स्वरुपम् देव देवम्।
मां लोकोत्तम् कुरु कुरु भेरवम्।३१।

🍁      दोहा            🍁

विघ्न्नहरण मंगलकरण,भेरव इकतीसा  ध्यान ।
संकट कटे सम्मद्  बढे,रहे जगत सन्मान्    ।।