चेष्ठा बल अर्थात वक्री ग्रह का फल
कोई ग्रह वक्री होने पर कितना बल प्राप्त करता है और फिर कैसा फल देता है उसका निर्यण चेष्ठा बल के आधार पर किया जाताहै| चूँकि सूर्य और चन्द्र कभी वक्री नही होते इसिलिय सूर्य का आयन बल और चन्द्र का पक्ष बल लिया जाता है| राहू केतु हमेशा वक्री रहते है इसिलिय उनको इस बल की गणना में सामिल नही किया जाता |
मंगल शनी शुक्र गुरु और बुद्ध कभी वक्री तो कभी मार्गी गति से चलते हुवे प्रतीत होते है| जब किसी ग्रह का भोगंस एक नियत दुरी से पिर्थ्वी से ज्यादा हो तो वो पीछे चलता हुआ प्रतीत होता है जिसे वक्री कहा जाता है| एक ग्रह आठ प्रकार की बिभिन्न गतियों से च्ल्र्ता है और उसी के हिसाब से उसे बल प्राप्त होता है| जब कोईग्रह वक्री होकर उसी राशि में रहे तो उसे 60 षड्यंश प्राप्त होते है| यदि पिछली राशि में चला जाए तो ३० षड्यंश प्राप्त होते है| जब कोई ग्रह औउसत गति में रहेतो भी ३० षड्यंश पारपत होते है| जब किसी ग्रह की गति निर्तन्त्र बढती रहे और वो सामान्य गति से तेज़ चलेतो उसे 45 षड्यंश प्राप्त होते है| जब कोई ग्रह बहुत तेज़ गति से अगली राशि में चलाजाए तो उसे 30 षड्यंश प्राप्त होतेहै| जब किसी ग्रह की गति उसकी औसत से कम हो तो उसे 15 षड्यंश प्राप्त होते है| जब किसी ग्रह की गति लगातार घटती रहे और औसत गति भी कम रहे तो 7.5 षड्यंश प्राप्तहोते है| जब कोई ग्रह सिथर हो जाए और दो तिन दिन तक उसी भोगांश पर रहे ऐसी सिथ्ती वक्री होने से तुरंत पहले या बाद में होती है तो उस ग्रह को १५ षड्यंश मिलते रहे| सूर्य बुद्ध गुरु के लिय 50 , चन्द्र शुक्र के लिय 30 और शनी मंगल के लिय 40 षड्यंश कम से कम प्राप्त करना आवश्यक होता है|हालांकि आजकल सोफ्टवेर में ये निकला हुआ मिल जाता है इसिलिय इसकी पूरी विधि परन जाकर इसके फल पर प्रकाश डालने की कोसिस करता हूँ|
चेष्ठा बल बताता है की व्यक्ति सोंपे गए कार्य को कितने समय में पूरा करेगा| काम करने में देरी करने की परवर्ती पर कितना काबूपायेगा| चेष्ठा बलीग्रह की दशा में किये हुवे प्रयत्न जातक को शुभ फल देते है| इसिलिय जातक को किसी नये कार्य की सुरुवात भी बली ग्रह की दशा में सुरु करने चाहिए|
यदि सूर्य के पास चेष्ठा बल हो तो वो जातक को धन सुख सुविधाए कृषि सेलाभ सरकार से लाभ पुत्र का आदि सुख अपनी दशा में देता है| यदि सूर्य के पास बल न हो तो जातक को ये लाभ नही मिलते|
चेष्ठा बली चन्द्र के फल पढने को मिले नही हालांकि मेरे विचार में जातक को भूमि माताaवाहन मानसिक सुख में विरधी आदि के योग बनते है|
वक्री मंगल की दशा जातक को अवन्ती यानी निचे की तरफ ले जाती है|जातक को चोर सांप अग्नि का भाय आदि रहता है| लेकिजं यदि मंगल कुंडली में पूर्ण कारक ग्रह है और कुंडली में उसकी सिथ्ती अच्छी ही तो वक्री मंगल जातक को बहुत लाभ दे सकता है|
वक्री गुरु की दशा में जातक शत्रुओं पर विजय पाता है| उसे धन पुत्र सम्पदा सरकार से लाभ आदि के योग बनते है|जातक प्रशन्नचित रहता है|
वक्री शुक्र की दशा में जातक को अच्छी स्त्री इतर ऐश्वर्य के साधन वाहन के सुख संगीत के सुख आदि मिलते है|
वक्री शनी की दशा जातक को दुःख और तनाव देती है| भाइयों से भी हानि होने केयोग बन जाते है|
वक्री ग्रह के बारे में सामान्य ये मना जाता है की ऐसे में ग्रह का बल बढ़ जाता है और वो अपना फल अच्छा या बुरा जैसा भी हो उसका तिन गुणा ज्यादा देता है| शुभ ग्रह के शुभ फल बढ़ जाते है और अशुभ ग्रह के अशुभ फल| ऐसे में कुंडली के हिसाब से हमे शुभ ग्रह को लेना होगा जैसे की तुला या विर्ष लग्न में शनी मुख्य कारक ग्रह है और वो नेशार्गिक पापी ग्रह होते हुवे भी वक्री हुआ तो भी जातक को बहुत ज्यादा शुभ फल देगा यदि उसकी कुंडली में सिथ्ती सही हुई| इसी प्रकार विर्श्चिक लग्न में शुक्र जो की नशागिक रूप से तो शुभ ग्रह है लेकिन भावेस के आधार पर शुभफल देने वाला नही है ऐसे में यदि शुक्र वक्री हुआ तो वो बहुत अशुभ फल जातक को देगा| इस प्रकार हम सभी ग्रहोंके बारे में जान सकते है|
इस प्रकार वक्री ग्रह कभी साम्राज्य दे सकता है तो दुःख भी दे सकता है| अब आप अपनी कुंडली में देख सकते है की यदि कोई ग्रह वक्री है तो वो अपनी दशा में आपको कैसा फल देगा| ग्रहों के शुभाशुभ फल उनके बल पर निर्भर करेंगे की वो जातक कोकितना प्रभावित करेंगे|
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