Saturday, September 23, 2017

हाथों की अँगुलियाँ, बारह राशियाँ एवं प्रणाम मुद्रा का संक्षिप्त परिचय, उपयोगिता एवं महत्व:

हाथों की अँगुलियाँ, बारह राशियाँ एवं प्रणाम
मुद्रा का संक्षिप्त परिचय, उपयोगिता एवं महत्व:

[A] अँगुलियाँ एवं पंचतत्वों के स्थान:
शरीर का निर्माण अग्नि, वायु, आकाश,
पृथ्वी और जल, इन
पाँच तत्वों से हुआ है। इनका निवास क्रमशः अंगुष्ठ,
तर्जनी,
मध्यिका, अनामिका एवं कनिष्ठिका में माना जाता है।
१/. अंगुष्ठ या अँगूठा (सूर्य तत्व का स्थान):
सबसे
पहली अँगुली को अँगूठा या अंगुष्ठ
कहते हैं।
इसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह अन्य
चारों अँगुलियों का मुख्य सहायक होता है।
इसकी सहायता के
बगैर अन्य चारों उँगलियाँ शत-प्रतिशत कार्य संपन्न
नहीं कर सकतीं। शायद
इसी कारण गुरु द्रोण ने एकलव्य से
गुरुदक्षिणा में उसके दाएँ हाथ का अँगूठा ही माँग
लिया था।
बंद मुट्ठी से अँगूठे को बाहर निकालकर दिखाने
को अँगूठा दिखाना या ठेंगा दिखाना कहा जाता है,
जिसका तात्पर्य हमारे यहाँ किसी कार्य को करने से
मना करना समझा जाता है। परंतु पश्चिमी देशों में
ठीक
इसका उल्टा होता है, अर्थात Thumb's up को वहाँ कार्य
करने की स्वीकृति समझा जाता है।
यूँ तो दुनियाँ में करोड़ों मनुष्य हैं, परंतु जिस प्रकार
सबकी मुखाकृति भिन्न होती है,
उसी प्रकार सभी मनुष्यों के
अँगूठों के निशान भी सदैव एक दूसरे से भिन्न होते
हैं।
इसी कारण अपराध जगत में Thumb
Impression
का जबरदस्त महत्व होता है।
२/. तर्जनी (वायु तत्व का स्थान):
यह सबसे ऊर्जावान अँगुली होती है।
हमारे यहाँ विश्वास
किया जाता है कि जो बच्चा जितने अधिक दिनों तक अपने
बड़ों की इस उँगली को पकड़कर
चलता है, वह बड़ों से
उतनी ही ज्यादा ऊर्जा प्राप्त
करता है। उस बालक
का विकास उतनी ही तीव्र
गति से होता है।
तर्जनी का प्रयोग लिखने के लिए अथवा अन्य मुख्य
कार्यों के लिए होता है, जिसमें 'सहायक' मध्यिका एवं
अँगूठा होते हैं।
तर्जनी उँगली में जबरदस्त
ऊर्जा होती है।
इसकी ऊर्जा का अंदाजा मात्र इस बात से
लगाया जा सकता है कि किसी भी प्रकार
का जप करते समय,
माला के किसी भी मनके से इसका स्पर्श
पूर्णतया वर्जित है।
यह
अँगुली इतनी शक्तिशाली होती है
कि इससे मंजन
करना भी निषिद्ध बताया गया है। इस
उँगली से मंजन करने
से दांत बहुत जल्दी कमज़ोर हो जाते हैं। अगर
उँगली से मंजन
करना हो तो मध्यमा से करना चाहिए।
३/. मध्यिका/मध्यमा (आकाश तत्व का स्थान):
यह हाथ की सबसे
लंबी उँगली है। इस
उँगली का मुख्य कार्य
तर्जनी की सहायता करना होता है,
संभवतः इसी कारण जाप
में मनकों से इसका भी स्पर्श निषिद्ध माना जाता है।
४/. अनामिका (पृथ्वी तत्व का स्थान):
यह अत्यंत ही महत्वपूर्ण
उँगली है। इसका सीधा संबंध हृदय
से होता है। अतः सभी शुभ कार्यों में
इसकी मान्यता सर्वाधिक होती है।
'जप' की माला का संचरण
अनामिका एवं अंगुष्ठ की सहायता से
ही किया जाता है।
धार्मिक-कृत्यों हेतु
कुशा भी इसी उँगली में धारण
की जाती है। तिलक, रोरी,
चंदन इस उँगली से ही लगाने
का विधान है।
ग्रहों और नक्षत्रों से संबंधित लगभग सभी रत्न
अँगूठी के
माध्यम से अनामिका में ही धारण किए जाते हैं, इसके
पीछे
कारण यह है कि ये रत्न सूर्यनारायण से सीधे
वांछित
ऊर्जा प्राप्त करते हैं और अनामिका इस ऊर्जा को,
सीधे
जातक (धारण करने वाले) के हृदय तक
पहुँचा देती है। मंत्रों के
जप
आदि की गणना भी इसी उँगली से
प्रारंभ की जाती है।
५/. कनिष्ठा/कनिष्का/कनिष्ठिका (जल तत्व का स्थान):
यह हाथ की सबसे
छोटी उँगली है, जो हर प्रकार से
अनामिका की सहायता करती है। इसे
अनामिका की सहायिका कहा जाता है।
किसी-किसी व्यक्ति के हाथ में
छः उँगलियाँ भी होती हैं।
लोगों का विश्वास है कि जिन पुरुषों के दाहिने हाथ में एवं
जिन स्त्रियों के बाएँ हाथ में छः उँगलियाँ होती हैं, वे
बड़े
भाग्यशाली होते हैं।
[B] राशियों का स्थान:
ज्योतिष-विद्या के अनुसार बारहों राशियों का स्थान प्रत्येक
उँगली के तीन पोरों (गाँठों) में इस प्रकार
होता है:
कनिष्का – मेष, वृष, मिथुन।
अनामिका – कर्क, सिंह, कन्या।
मध्यिका – तुला, वृश्चिक, धनु।
तर्जनी – मकर, कुंभ, मीन।
[C] प्रणाम मुद्रा:
दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनती है, उसे प्रणाम
मुद्रा कहते हैं। जब
दोनों हाथों की सभी उँगलियाँ आपस में
एक दूसरे से (अर्थात अंगुष्ठ से अंगुष्ठ, तर्जनी से
तर्जनी,
मध्यिका से मध्यिका, अनामिका से अनामिका एवं कनिष्ठा से
कनिष्ठा) मिलती हैं तो शरीर
(जोकि ब्रह्मांड का एक
छोटा रूप माना जाता है) के उत्तरी ध्रुव (बाएँ हाथ)
एवं
दक्षिण ध्रुव (दाएँ हाथ) के पारस्परिक मिलन से बाएँ हाथ में
स्थित सभी बारह राशियों का, दाहिने हाथ में स्थित
सभी बारह राशियों से संपर्क होते
ही एक चक्र पूर्ण होता है।
और इस प्रकार
दोनों हाथों की खुली हुई
हथेलियों को आपस
में जोड़कर, साथ ही साथ अपने सिर को सामने
की ओर झुकाते
हुए इन हाथों को जब भृकुटि से स्पर्श किया जाता है तो पूर्ण
प्रणाम-मुद्रा बनती है। प्रणाम-मुद्रा से मन में
शांति एवं
चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होती है।
अतः आईए, हेलो, हाय, टाटा, बाय को छोड़कर प्रणाम
मुद्रा अपनाएँ और चित्त को प्रसन्न रखें। करके देखिये। सच
में अच्छा लगेगा।

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