Sunday, December 31, 2017

पंचक संज्ञक नक्षत्र

पंचक संज्ञक नक्षत्र

धनिष्ठा का उत्तरार्ध,शतभिषा,पूर्वाभाद्रपद,उत्तराभाद्रपद और रेवती ये पंचक संज्ञक नक्षत्र हैं |
क्या पंचक वास्तव में इतने अशुभ होते हैं कि इसमें कोई
भी कार्य करना अशुभ होता है?-
ऐसा बिल्कुल नहीं है। बहुत सारे विद्वान इन पंचक
संज्ञक नक्षत्रों को पूर्णत: अशुभ मानने से इन्कार करते हैं। कुछ
विद्वानों ने ही इन नक्षत्रों को अशुभ माना है इसलिए
पंचक में कुछ कार्य विशेष नहीं किए जाते हैं।
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इन
नक्षत्रों में कोई भी कार्य करना अशुभ होता है। इन
नक्षत्रों में भी बहुत सारे कार्य सम्पन्न किए जाते हैं।
पंचक के इन पांच नक्षत्रों में से धनिष्ठा एवं शतभिषा नक्षत्र चर
संज्ञक नक्षत्र हैं अत: इसमें पर्यटन, मनोरंजन, मार्केटिंग एवं
वस्त्रभूषण खरीदना शुभ होता है। पूर्वाभाद्रपद उग्र
संज्ञक नक्षत्र है अत: इसमें वाद-विवाद और मुकदमे जैसे
कामों को करना अच्छा रहता है। जबकि उत्तरा-भाद्रपद ध्रुव
संज्ञक नक्षत्र है इसमें शिलान्यास, योगाभ्यास एवं
दीर्घकालीन योजनाओं को प्रारम्भ
किया जाता है। वहीं रेवती नक्षत्र मृदु
संज्ञक नक्षत्र है अत: इसमें गीत,
संगीत, अभिनय, टी.वी.
सीरियल का निर्माण एवं फैशन शो आयोजित किये जा सकते
हैं। इससे ये बात साफ हो जाती है कि पंचक
नक्षत्रों में सभी कार्य निषिद्ध नहीं होते।
किसी विद्वान से परमर्श करके पंचक काल में विवाह,
उपनयन, मुण्डन आदि संस्कार और गृह-निर्माण व गृहप्रवेश के
साथ-साथ व्यावसायिक एवं आर्थिक गतिविधियां भी संपन्न
की जा सकती हैं।
क्या पंचक के दौरान पूजा पाठ या धार्मिक क्रिया कलाप
नहीं करने चाहिए?-
बहुतायत में यह धारणा जगह बना चुकी है कि पंचक
के दौरान हवन-पूजन या फिर देव विसर्जन
नहीं करना चाहिए। जो कि गलत है शुभ कार्यों, खास तौर
पर देव पूजन में पंचक का विचार नहीं किया जाता। अत:
पंचक के दौरान पूजा पाठ या धार्मिक क्रिया कलाप किए जा सकते हैं।
शास्त्रों में पंचक के दौरान शुभ कार्य के लिए
कहीं भी निषेध का वर्णन
नहीं है। केवल कुछ विशेष
कार्यों को ही पंचक के दौरान न करने
की सलाह
विद्वानों द्वारा दी जाती है।
पंचक के दौरान कौन-कौन से काम नहीं करने चाहिए?
पंचक के दौरान मुख्य रूप से इन पांच कामों को वर्जित किया गया है-
[१] घनिष्ठा नक्षत्र में घास लकड़ी आदि ईंधन
इकट्ठा नही करना चाहिए इससे अग्नि का भय
रहता है।
[२] दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए
क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई
है इन नक्षत्रों में दक्षिण
दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
[३] रेवती नक्षत्र में घर की छत डालना धन
हानि और क्लेश कराने वाला होता है।
[४] पंचक के दौरान चारपाई नही बनवाना चाहिए।
[५] पंचक के दौरान किसी शव का अंतिम संस्कार करने
की मनाही की गई है
क्योकि ऐसा माना जाता है कि पंचक में शव का अन्तिम संस्कार करने से
उस कुटुंब या गांव में पांच लोगों की मृत्यु
हो सकती है। अत: शांतिकर्म कराने के पश्चात
ही अंतिम संस्कार करने की सलाह
दी गई है।
यदि किसी काम को पंचक के कारण टालना मुमकिन न
हो तो उसके लिए क्या उपाय करना चाहिए?
आज का समय प्राचीन समय से बहुत अधिक भिन्न है
वर्तमान में समाज की गति बहुत तेज है इसलिए
आधुनिक युग में उपरोक्त कार्यो को पूर्ण रूप से रोक देना कई बार
असम्भव हो जाता है| परन्तु शास्त्रकारों ने शोध करके
ही उपरोक्त कार्यो को पंचक काल में न करने
की सलाह दी है| जिन पांच कामों को पंचक
के दौरान न करने की सलाह प्राचीन
ग्रन्थों में दी गयी है अगर उपरोक्त वर्जित
कार्य पंचक काल में करने की अनिवार्यता उपस्थित
हो जाये तो निम्नलिखित उपाय करके उन्हें सम्पन्न
किया जा सकता है।
[१] लकड़ी का समान
खरीदना जरूरी हो तो खरीद ले
किन्तु पंचक काल समाप्त होने पर गायत्री माता के नाम
पर हवन कराए, इससे पंचक दोष दूर हो जाता है|
[२] पंचक काल में अगर दक्षिण
दिशा की यात्रा करना अनिवार्य हो तो हनुमान मंदिर में फल
चढा कर यात्रा आरम्भ करनी चाहिए।
[३] मकान पर छत डलवाना अगर
जरूरी हो तो मजदूरों को मिठाई खिलने के पश्चात
ही छत डलवाने का कार्य करे|
[४] पंचक काल में अगर पलंग या चारपाई
लेना जरूरी हो तो उसे खरीद
या बनवा तो सकते हैं लेकिन पंचक काल की समाप्ति के
पश्चात ही इस पलंग या चारपाई का प्रयोग करना चाहिए|
[५] शव दाह एक आवश्यक काम है लेकिन पंचक काल होने पर
शव दाह करते समय पाँच अलग पुतले बनाकर उन्हें
भी अवश्य जलाएं|
इन उपायों को नियमानुसार करके आप पंचक के दुष्प्रभावों से बच सकते
हैं।

Friday, December 29, 2017

कालसर्प याेग एक वरदान

कालसर्प याेग एक वरदान

कुंडली में राहु और केतु की उपस्थिति के अनुसार व्यक्ति को कालसर्प योग लगता है. कालसर्प योग को अत्यंत अशुभ योग माना गया है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है उसका पतन होता है.यह इस योग का एक पक्ष है
जबकि दूसरा पक्ष यह भी है कि यह योग व्यक्ति को अपने क्षेत्र में सर्वक्षेष्ठ बनता है।
काल सर्प याेग का प्राचीन ज्योतिषीय ग्रंथों में विशेष जिक्र नहीं आया है.तकरीबन सौ वर्ष पूर्व ज्योर्तिविदों ने इस योग को ढूंढ़ा.इस योग को हर प्रकार से पीड़ादायक और कष्टकारी बताया गया.आज बहुत से ज्योतिषी इस योग के दुष्प्रभाव का भय दिखाकर लोगों से काफी धन खर्च कराते हैं.ग्रहों की पीड़ा से बचने के लिए लोग खुशी खुशी धन खर्च भी करते हैं.परंतु सच्चाई यह है कि जैसे शनि महाराज सदा पीड़ा दायक नहीं होते उसी प्रकार राहु और केतु द्वारा निर्मित कालसर्प योग हमेंशा अशुभ फल ही नहीं देते.
अगर आपकी कुण्डली में कालसर्प योग है और इसके कारण आप भयभीत हैं तो इस भय को मन से निकाल दीजिए.कालसर्प योग से भयाक्रात होने की आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि इस योग ने व्यक्तियों को सफलता की ऊँचाईयों पर पहुंचाया है.कालसर्प योग से ग्रसित होने के बावजूद बुलंदियों पर पहुंचने वाले कई जाने माने नाम हैं जैसे धीरू भाई अम्बानी, सचिन तेंदुलकर, ऋषिकेश मुखर्जी, पं. जवाहरलाल नेहरू, लता मंगेशकर आदि.
ज्याेतिष कहता है कि कहता है कि राहु और केतु छाया ग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवें भाव में होते हैं.जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तब यह योग बनता है. राहु केतु शनि के समान क्रूर ग्रह माने जाते हैं और शनि के समान विचार रखने वाले होते हैं.राहु जिनकी कुण्डली में अनुकूल फल देने वाला होता है उन्हें कालसर्प योग में महान उपलब्धियां हासिल होती है.जैसे शनि की साढ़े साती व्यक्ति से परिश्रम करवाता है एवं उसके अंदर की कमियों को दूर करने की प्रेरणा देता है इसी प्रकार कालसर्प व्यक्ति को जुझारू, संघर्षशील और साहसी बनाता है.इस योग से प्रभावित व्यक्ति अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करता है और निरन्तर आगे बढ़ते जाते हैं.
कालसर्प याेग योग में स्वराशि एवं उच्च राशि में स्थित गुरू, उच्च राशि का राहु, गजकेशरी योग, चतुर्थ केन्द्र विशेष लाभ प्रदान करने वाले होते है.अगरसकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो कालसर्प योग वाले व्यक्ति असाधारण प्रतिभा एवं व्यक्तित्व के धनी होते हैं.हो सकता है कि आपकी कुण्डली में मौजूद कालसर्प योग आपको भी महान हस्तियों के समान ऊँचाईयों पर ले जाये अत: निराशा और असफलता का भय मन से निकालकर सतत कोशिश करते रहें आपको कामयाबी जरूरी मिलेगी.इस योग में वही लोग पीछे रह जाते हैं जो निराशा और अकर्मण्य होते हैं परिश्रमी और लगनशील व्यक्तियों के लिए कलसर्प योग राजयोग देने वाला होता है. कालसर्प योग में त्रिक भाव एवं द्वितीय और अष्टम में राहु की उपस्थिति होने पर व्यक्ति को विशेष परेशानियों का सामना करना होता है परंतु ज्योतिषीय उपचार से इन्हें अनुकूल बनाया जा सकता है।

रामचरितमानस की चौपाइयों

*🙏🌸रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है।🌸*
*🙏🌸इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करे प्रभु श्रीराम आप के जीवन को सुखमय बना देगे।🌸*

*🌸1.* रक्षा के लिए
*मामभिरक्षक रघुकुल नायक |*
*घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||*
*🌸2.* विपत्ति दूर करने के लिए
*राजिव नयन धरे धनु सायक |*
*भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||*
*🌸3.* सहायता के लिए
*मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |*
*एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||*
*🌸4.* सब काम बनाने के लिए
*वंदौ बाल रुप सोई रामू |*
*सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||*
*🌸5.* वश मे करने के लिए
*सुमिर पवन सुत पावन नामू |*
*अपने वश कर राखे राम ||*
*🌸6.* संकट से बचने के लिए
*दीन दयालु विरद संभारी |*
*हरहु नाथ मम संकट भारी ||*
*🌸7.* विघ्न विनाश के लिए
*सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |*
*राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||*
*🌸8.* रोग विनाश के लिए
*राम कृपा नाशहि सव रोगा |*
*जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||*
*🌸9.* ज्वार ताप दूर करने के लिए
*दैहिक दैविक भोतिक तापा |*
*राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||*
*🌸10.* दुःख नाश के लिए
*राम भक्ति मणि उस बस जाके |*
*दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||*
*🌸11.* खोई चीज पाने के लिए
*गई बहोरि गरीब नेवाजू |*
*सरल सबल साहिब रघुराजू ||*
*🌸12.* अनुराग बढाने के लिए
*सीता राम चरण रत मोरे |*
*अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||*
*🌸13.* घर मे सुख लाने के लिए
*जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |*
*सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||*
*🌸14.* सुधार करने के लिए
*मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |*
*जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||*
*🌸15.* विद्या पाने के लिए
*गुरू गृह पढन गए रघुराई |*
*अल्प काल विधा सब आई ||*
*🌸16.* सरस्वती निवास के लिए
*जेहि पर कृपा करहि जन जानी |*
*कवि उर अजिर नचावहि बानी ||*
*🌸17.* निर्मल बुद्धि के लिए
*ताके युग पदं कमल मनाऊँ |*
*जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||*
*🌸18.* मोह नाश के लिए
*होय विवेक मोह भ्रम भागा |*
*तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||*
*🌸19.* प्रेम बढाने के लिए
*सब नर करहिं परस्पर प्रीती |*
*चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||*
*🌸20.* प्रीति बढाने के लिए
*बैर न कर काह सन कोई |*
*जासन बैर प्रीति कर सोई ||*
*🌸21.* सुख प्रप्ति के लिए
*अनुजन संयुत भोजन करही |*
*देखि सकल जननी सुख भरहीं ||*
*🌸22.* भाई का प्रेम पाने के लिए
*सेवाहि सानुकूल सब भाई |*
*राम चरण रति अति अधिकाई ||*
*🌸23.* बैर दूर करने के लिए
*बैर न कर काहू सन कोई |*
*राम प्रताप विषमता खोई ||*
*🌸24.* मेल कराने के लिए
*गरल सुधा रिपु करही मिलाई |*
*गोपद सिंधु अनल सितलाई ||*
*🌸25.* शत्रु नाश के लिए
*जाके सुमिरन ते रिपु नासा |*
*नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||*
*🌸26.* रोजगार पाने के लिए
*विश्व भरण पोषण करि जोई |*
*ताकर नाम भरत अस होई ||*
*🌸27.* इच्छा पूरी करने के लिए
*राम सदा सेवक रूचि राखी |*
*वेद पुराण साधु सुर साखी ||*
*🌸28.* पाप विनाश के लिए
*पापी जाकर नाम सुमिरहीं |*
*अति अपार भव भवसागर तरहीं ||*
*🌸29.* अल्प मृत्यु न होने के लिए
*अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |*
*सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||*
*🌸30.* दरिद्रता दूर के लिए
*नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |*
*नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ||*
*🌸31.* प्रभु दर्शन पाने के लिए
*अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |*
*प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||*
*🌸32.* शोक दूर करने के लिए
*नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |*
*आए जन्म फल होहिं विशोकी ||*
*🌸33.* क्षमा माँगने के लिए
*अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |*
*क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||*

Saturday, December 16, 2017

कुंडली में शनि की स्थिति देखकर जानें कब बनेगा आपका मकान ?

कुंडली में शनि की स्थिति देखकर जानें कब बनेगा आपका मकान ?
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लाल किताब में शनि और मकान बनने या न बनने के विषय में काफी सटीक विवरण दिया गया है साथ
ही कुछ सीधे और सरल उपाय भी बताए गए हैं। आप
भी अपनी कुंडली में भवन निर्माण का समय और उसके बनने या कब बनने के बारे जान सकते हैं। निम्नलिखित भावों में यदि शनि हो तो यह फलादेश रहता है।

शनि भाव 1

यदि मकान बनाने क्रय या विक्रय में विलंब हो रहा हो या किसी बोर्ड या प्रापर्टी डीलर के पास पैसा फंस गया हो तो सीधा-सा उपाय है कि आप बंदरों को चना गुड़
खिलाकर सेवा करें। यदि यह संभव न हो तो मीठा दूध
बड़ के पेड़ की जड़ों में डालें।

शनि भाव 2

जैसा भी मकान मिले, हाऊसिंग बोर्ड का हो या अपना,
फ्लैट हो या जमीन पर बने, बस बना लीजिए। यदि दिक्कत आए तो सांप को सपेरे की मदद से दूध पिलाएं और उसके स्वामी को दक्षिणा अवश्य दें। माथे पर
दही का तिलक लगाएं।

शनि भाव -3

सामिष भोजन एवं मदिरापान से परहेज रखना चाहिएघर का मुख्य द्वार पूर्वी हो तो अच्छा रहेगा। हां अंतिम कमरे में सदा प्रकाश कर के रखना चाहिएकोई स्टोर,
कोठरी आदि नहीं बनानी चाहिएमकान बनाने में दिक्क्त आ रही हो तो तीन कुत्ते पाल लें। कुत्ते पाल नहीं सकते
तो मिट्टी के तीन कुत्ते ही रख लें।

शनि भाव-4

ऐसा आदमी जैसे ही मकान की नींव तक खुदवाने की कोशिश करता है, नानके या ससुराल में नुक्सान होना शुरू हो जाता है।खानदान बर्बाद होने लगते हैं। ऐसे व्यक्ति को मकान नहीं बनाना चाहिएउपाय के तौर पर कुएं में दूध डालना लाभ देगा। कौवों और भैंस को भोजन दें।गरीबों को खाना दें। काले, हरे कपड़े न पहनें।-पैतृक जगह मकान न बनाएं-, जमीन लेकर मकान
बनाएं,बना बनाया फ्लैट लें।

शनि भाव -5

मकान बनाना बच्चों के लिए बहुत अच्छा नहीं रहता।
मकान पहले तो 48 साल से पहले बनता ही नहीं। बन जाए तो उसमें रहना ही मुश्किल रहता है। कई बार बन कर बिकजाता है। ऐसे व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने पुत्र से घर बनवाए या खरीदे। यदि किसी कारण वश
बनाना ही पड़े तो एक भैंसा दान कर दें।भैंसा शनि का जीवंत प्रतीक है। पंचमशनि वालों को सोना किसी न किसी रूप में पहनना चाहिएधर्म स्थान पर 48 अखरोट या बादाम ले जाएं,आधे वापस लाकर काले कपड़े में बांध कर अंधेरे स्थान पर रख दें।

शनि भाव -6

39 वर्ष की आयु के बाद मकान बनाना श्रेयस्कर रहेगा।
इससे पहले यदि मकान बनता है तो कहीं न कहीं, लड़कियों के ससुराल में समस्याएं हो जाती हैं जिनकी कुंडली में शनि की पोजीशन छठे घर में हो उन्हें चमड़े
या लोहे की नई चीजें नहीं खरीदनी चाहिएं।पुरानी ले सकते हैं। सैकेंड हैंड मशीनरी या वाहन फलते हैं। पुराना मकान खरीद लें। मकान की नींव डालने से पूर्व भूमि पूजन,नवग्रह पूजन अवश्य कराएं।

शनि भाव -7

यदि ऐसे जातक किसी कारण मकान एक के बाद एक बेचने पर मजबूर हो जाएं तो उपाय के तौर पर उन्हें सबसे पुराने मकान की दहलीज कायम रखनी चाहिए। ऐसा करने से दुॢदनों में चली गई संपत्ति पुन: लौट आने के योग बन जाएंगे। फिर भी वे यदि शहद से भरा मिट्टी का कुज्जा जमीन में दबाएं तो काफी लाभ होगा या बांसुरी में देसी खांड भर कर उजाड़ जगह दबाएं तो भी मकान मिलने या न बिकने की संभावना अच्छी हो जाएगी।

शनि भाव -8

मकान के मामले में अच्छा नहीं माना गया है। ऐसे में
अपने पास चांदी का चौरस टुकड़ा रखना बचाव का साधन बनेगा।सांपों की रक्षा या उनकी पूजा,सेवा अशुभता से रक्षा करेगी।

शनि भाव -9

कोई शिशु गर्भस्थ हो तो उस अवधि में मकान नहीं बनाना चाहिए। ऐसे योग वालों को घर की छत पर कबाड़ विशेषत: लकडिय़ां बिल्कुल नहीं रखनी चाहिएं और घर के अंतिम छोर पर एक स्टोर अवश्य बनाना चाहिए

शनि भाव -10

मकान बनाने के लिए पैसा तो जमा होता जाएगा जैसे कई लोग पैसा लेकर घूमते हैं पर कोई सही प्रॉपर्टी नहीं मिलती।फिर एक दिन पता चलता है कि जहां पैसा जमा कराया था या जिस डीलर से डील फाइनल की थी वह भाग गया या धोखा हो गया।ऐसा शनि के दसवें खाने में बैठने से हो जाता है। ऐसे लोगों को 48 साल तक मकान में इनवैस्ट नहीं करना चाहिएनानवेज व मदिरा से दूर रहना चाहिए

शनि भाव -11

जरा विलंब से गृह निर्माण की सलाह देता है। ऐसे जातकों को घर में चांदी की छोटी ईंट रखनी चाहिए। दक्षिणामुखी गृह में न रहें न ही बनाएं। -मकान के मुख्य द्वार के नीचे चंदन की लकड़ी दबाएं।

शनि भाव -12

ऐसे लोगों को या तो मकान पिता जी दे जाएंगे या ऐसे आसार पैदा होंगे कि आसानी से ही मकान बन जाएगा। आपने देखा होगा कि कई बार मित्र जबरदस्ती फार्म भरवा जाते हैं, अर्नेस्ट मनी भी आपकी खुद भर देते हैं।ड्रा निकलने पर पता चलता है, आपका निकल गया उनका रह गया।यहां खेल भाग्य का है। आपके शनि 12वें में विराजमान होगा और उनका गुरु सातवें या दसवें बैठ कर औरों का जन कल्याण करवा रहा होगा।ऐसे लोगों को मकान बनते समय या डील होते समय किसी प्रकार की रोक नहीं लगानी चाहिए। पैसों का प्रबंध भी अपने आप कहीं से हो जाता है।

कालचक्र

कालचक्र

पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के नाभि कमल से उत्पन ब्रम्हा की आयु १०० दिव्य वर्ष मानी गयी है. पितामह ब्रम्हा के प्रथम ५० वर्षों को पूर्वार्ध एवं अगले ५० वर्षों को उत्तरार्ध कहते हैं.
सतयुग, त्रेता, द्वापर एवं कलियुग को मिलकर एक महायुग कहते हैं. ऐसे १००० महायुगों का ब्रम्हा का एक दिन होता है. इसी प्रकार १००० महायुगों का ब्रम्हा की एक रात्रि होती है. अर्थात परमपिता ब्रम्हा का एक पूरा दिन २००० महायुगों का होता है.
ब्रम्हा के १००० दिनों का भगवान विष्णु की एक घटी होती है. भगवान विष्णु की १२००००० (बारह लाख) घाटियों की भगवान शिव की आधी कला होती है. महादेव की १००००००००० (एक अरब) अर्ध्कला व्यतीत होने पर १ ब्रम्हाक्ष होता है.
अभी ब्रम्हा के उत्तरार्ध का पहला वर्ष चल रहा है (ब्रम्हा का ५१ वा वर्ष).
ब्रम्हा के एक दिन में १४ मनु शाषण करते हैं:
स्वयंभू
स्वरोचिष
उत्तम
तामस
रैवत
चाक्षुष
वैवस्वत
सावर्णि
दक्ष सावर्णि
ब्रम्हा सावर्णि
धर्म सावर्णि
रूद्र सावर्णि
देव सावर्णि
इन्द्र सावर्णि
इस प्रकार ब्रम्हा के द्वितीय परार्ध (५१ वे) वर्ष के प्रथम दिन के छः मनु व्यतीत हो गए है और सातवे वैवस्वत मनु का अठाईसवा (२८) युग चल रहा है. इकहत्तर (७१) महायुगों का एक मनु होता है. १४ मनुओं का १ कल्प कहा जाता है जो की ब्रम्हा का एक दिन होता है. आदि में ब्रम्हा कल्प और अंत में पद्मा कल्प होता है. इस प्रकार कुल ३२ कल्प होते हैं. ब्रम्हा के परार्ध में रथन्तर तथा उत्तरार्ध में श्वेतवराह कल्प होता है. इस समय श्वेतवराह कल्प चल रहा है. इस प्रकार ब्रम्हा के १ दिन (कल्प) ४०००३२००००००० (चार लाख बतीस "करोड़") मानव वर्ष के बराबर है जिसमे १४ मवंतर होते है. चार युगों का एक महायुग होता है:
सतयुग: सतयुग का काल १७२८००० (सत्रह लाख अठाईस हजार) वर्षों का होता है. इस युग में चार अमानवीय अवतार हुए. मत्स्यावतार, कुर्मावतार, वराहावतार एवं नरिसिंघवातर. सतयुग में पाप ० भाग तथा पुण्य २० भाग था. मनुष्यों की आयु १००००० वर्ष, उचाई २१ हाथ, पात्र स्वर्णमय, द्रव्य रत्नमय तथा ब्रम्हांडगत प्राण था. पुष्कर तीर्थ, स्त्रियाँ पद्मिनी तथा पतिव्रता थी. सूर्यग्रहण ३२००० तथा चंद्रग्रहण ५००० बार होते थे. सारे वर्ण अपने धर्म में लीन रहते थे. ब्राम्हण ४ वेद पढने वाले थे.
त्रेतायुग: त्रेतायुग का काल १२९६००० (बारह लाख छियान्व्वे हजार) वर्षों का होता है. इस युग में तीन मानवीय अवतार हुए. वामन, परशुराम एवं राम. त्रेता में पाप ५ भाग एवं पुण्य १५ भाग होता था. मनुष्यों की आयु १०००० वर्ष, उचाई १४ हाथ, पात्र चांदी के, द्रव्य स्वर्ण तथा अस्थिगत प्राण था. नैमिषारण्य तीर्थ, स्त्रियाँ पतिव्रता होती थी. सूर्यग्रहण ३२०० तथा चंद्रग्रहण ५०० बार होते थे. सारे वर्ण अपने अपने कार्य में रत थे. ब्राम्हण ३ वेद पढने वाले थे.
द्वापर युग: द्वापर युग का काल ८६४००० (आठ लाख चौसठ हजार) वर्षों का होता है. इस युग में २ मानवीय अवतार हुए. कृष्ण एवं बुद्ध. इस युग में पाप १० भाग एवं पुण्य १० भाग का होता था. मनुष्यों की आयु १००० वर्ष, उचाई ७ हाथ, पात्र ताम्र, द्रव्य चांदी तथा त्वचागत प्राण था. स्त्रियाँ शंखिनी होती थी. सूर्यग्रहण ३२० तथा चंद्रग्रहण ५० हुए. वर्ण व्यवस्था दूषित थी तथा ब्राम्हण २ वेद पढने वाले थे.
कलियुग: कलियुग का काल ४३२००० (चार लाख ३२ हजार) वर्षों का होता है. इस युग में एक अवतार संभल देश, गोड़ ब्राम्हण विष्णु यश के घर कल्कि नाम से होगा. इस युग में पाप १५ भाग एवं पुण्य ५ भाग होगा. मनुष्यों की आयु १०० वर्ष, उचाई ३.५ हाथ, पात्र मिटटी, द्रव्य ताम्र, मुद्रा लौह, गंगा तीर्थ तथा अन्नमय प्राण होगा. कलियुग के अंत में गंगा पृथ्वी से लीन हो जाएगी तथा भगवान विष्णु धरती का त्याग कर देंगे. सभी वर्ण अपने कर्म से रहित होंगे तथा ब्राम्हण केवल एक वेद पढने वाले होंगे अर्थात ज्ञान का लोप हो जाएगा.