Sunday, October 20, 2024

पंचांगुली साधना- PANCHANGULI SADHNA


पंचांगुली साधना- PANCHANGULI SADHNA


पंचांगुली साधना
PANCHANGULI SADHNA

भविष्य ज्ञान के लिए यह एक सात्विक साधना है। परन्तु इसके वाममार्गी रूप भी हैं। यहां हम कहना चाहते हैं कि भविष्य के ज्ञान हेतु कर्णपिशाचनी साधना एवं इन साधनाओं में उद्देश्य ही समान है। शक्तियां समान नहीं हैं।
ध्यान मन्त्र:
'ॐ पंचागुली महादेवी श्री सीमन्धर शासने।
अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदशेशितुः॥'
मन्त्र:
'ॐ नमो पंचागुंली परशरी परशरी माताय
मंगल वशीकरणी लोहमय दण्डमाणिनी चौंसठ काम-
विहडनी रणमध्ये राउलमध्ये दीवानमध्ये भूतमध्ये
प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोरिंगमध्ये डाकिनीमध्ये
शंखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषेणीमध्येशेरनीमध्ये
गुणीमध्ये गारुणीमध्ये विवारीमध्ये दोषमध्ये दोषा-
शरणमध्ये दुष्टमध्ये घोरकष्ट मुझ उपरे बुरो जो कोई
करावे जड़े जड़ावे तत चित्ते तस माथे श्री माता
श्री पंचागुंली देवी तणो वज्र निर्धार पड़े ॐ ठं ठंठं स्वाहा।'
विधि-
यह साधना किसी भी शुभ तिथि से प्रारम्भ करनी चाहिए। वैसे हस्तमार्गशीर्ष एवं फाल्गुन नक्षत्र निर्देशित हैं। इस मन्त्र का सुबहदोपहरअर्धरात्रि में निर्भय होकर जाप करें एवं
पंचांगुली यन्त्र


पंचांगली देवी को एक पान का पत्ताउसके ऊपर कपूरकपूर के ऊपर बताशा एवं दो रखकर कपुर में आग लगायें एवं मां भगवती को समर्पित करें। ऐसा करने में पंचांगली प्रसन्न होकर साधक को भूतभविष्यवर्तमान बताने की सिद्धि प्रदान करती हैं और या किसी के भी चेहरे को देखभूतभविष्य बताने में सम्पूर्णतासफलता हासिल कर लेता है। विधि प्रतिदिन की है। 108 दिन में सफलता मिलती है।
पंचांगुली साधना (द्वितीया)
साधना विधि:
1. इस विधि में 'पंचांगुली यन्त्रएवं 'स्फटिक मालामें विधि से प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान करें।
2. पंचांगुली साधना ब्रह्ममुहूर्त से ही करनी चाहिए।
3. पंचांगुली साधना 108 दिन की साधना है। स्थान शान्तपवित्रनिर्जीव होना चाहिए।
4. मुख पूर्व दिशा में और आसन तथा वस्त्र पीले धारण करने चाहिए।
5. फिर पंचांगुली देवी का यन्त्र स्थापित कर दें एवं इसे किसी ताम्र प्लेट में रखें।
6. यन्त्र पर कुमकुम से 'स्वस्तिकका चिह्न बनायें।
7. गणपति पूजन के उपरान्त षोडशोपचार विधि से यन्त्र का विधिवत् पूजन करें।
ध्यान मन्त्र:
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री पंचांगुली देवीं ध्यायामि।
आवाहन मन्त्र:
ॐ आगच्छागच्छ देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहे।
क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुरसत्तमे॥
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री पंचांगुली देवताभ्यो नम: आवाहनं समर्पयामि।
आसन मन्त्र:
रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यं करं शुभम्।
आसनंच मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि॥
ॐ भूर्भुव: स्व: श्री पंचांगुली देवताभ्यो नमः आसनं समर्पयामि।
स्नान मन्त्र:
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जलैः।
स्नापिताऽसि मया देवि तथा शान्तिं कुरुष्व मे॥
पयस्नान मन्त्र:
कामधेनु समुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्॥
दधिस्नान मन्त्र:
पयसस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
मधुस्नान मन्त्र:
तरुपुरुष समुदभूत सुस्वादु मधुर मधु।
तेजः पुष्टिकर दिव्यं स्नानार्थ प्रति गृह्यताम्॥

घृतस्नान मन्त्र:
नवनीत समुत्पन्नं सर्वसन्तोष कारकम्।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
शर्करास्नान मन्त्र:
इक्षुसार समुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
वस्त्र मन्त्र:
सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रति गृह्यताम्।।
गन्ध मन्त्र:
श्रीखण्ड चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठि चन्दनं प्रति गृह्यताम्॥
अक्षत मन्त्र:
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठि कुकुमाक्ता सुशोभिता।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥
पुष्प मन्त्र:
ॐ माल्यादीनि सुगंधीनि मालत्यादीनि वै विभे।
मयोपनीतानि पुष्पाणि पीत्यर्थं प्रति गृह्यताम्॥
दीप मन्त्र:
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहे॥
नैवेद्य मन्त्र:
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्तिं मे चला कुरु।
ईप्सितं मे वरं देहि परत्रेह परां गतिम्॥
दक्षिणा मन्त्र:
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभाविसोः।
अनन्त पुण्य फलदमतः शांतिं प्रयच्छ मे॥
विशेषार्थ्य मन्त्र:
नमस्ते देवदेवेशि नमस्ते धरणीधरे।
नमस्ते जगदाधारे अर्घ्यं च प्रति गृह्यताम्।
वरदत्वं वरं देहि वांछितं वांछितार्थदं।
अनेन सफलार्धेण फलादऽस्तु सदा मम।
गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्रयमेव च।
आगता सुख सम्पत्तिः पुण्योऽहं तव दर्शनात्॥
हाथ में जल लेकर मन्त्र जप करने का संकल्प करें। आगे दिये गये पंचांगुली मन्त्र का 'स्फटिक
मालासे दिन तक जप करें।
मन्त्र:
ॐ ठं ठं ठं पंचांगुलि भूत भविष्यं दर्शय ठं ठं ठं स्वाहा।

पंचांगुली साधना (तृतीया)
इस विधि में शयनब्रह्मचर्यनित्य स्नानगुरु सेवानित्य पूजादेवतार्चननिष्ठा एवं पर
पवित्रता रखी जाती है। पूजन कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व मुख शुद्धि जरूरी है। अशुद्धि तीन प्रकार की होती है।
कुआहारअसत्य वचन और कटुता। मुख शोधन के बाद मुख्य मन्त्र का ग्यारह बार उच्चारण करना चाहिए। मन्त्र निम्न है-
श्री दुर्गा : ऐं ऐं ऐं।
श्री बगलामुखी : ऐं ह्रीं ऐं।
श्री मातंगी : ॐ ऐं ऊं।
श्री लक्ष्मी :श्रीं।
श्री त्रिपुरसुन्दरी :श्री ॐ श्रीं ॐ श्रीं ॐ।
श्री धनदा . : ॐ धूं ॐ।
श्री गणेश : ॐ गं।
श्री विष्णु : ॐ हं।
श्री पंचांगुली : ऐं ऐं ऐं।
पूरे मन्त्र को शिलारसकपूरकुम्कुमखम और चन्दन समभाग लेकर लिखें। फिर इसका षोडशोपचार पूजन करने के बाद दूधघीमधुशर्करा और जल के मिश्रण में छोड़ दें और पूरे अनुष्ठान पर्यन्त उसी में रहने दें। इस प्रकार मन्त्र सिद्ध हो जाता है।
ध्यान:
'पंचांगुली महादेवी श्री सीमन्धर शासने।
अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदेशेशितः॥
मन्त्र:
'ॐ नमो पंचांगुली पंचांगुली परशरा परशरी माता
मंगल वशीकरणी लोहमय दण्डमणिनी चौंसठ काम-
विहडंनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्ये दीवानमध्ये भूतमध्ये
प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोटिंगमध्ये डाकिनीमध्ये
शंखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषेणीमध्ये शकनीमध्ये
गुणीमध्ये गारुणीमध्ये विनारीमध्ये दोषमध्ये दोषा-
शरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपरे बुरों जो कोई
करावे जड़े जड़ावे तत चिन्ते चिन्तावे तस माथे श्री माता
श्री पंचांगुली देवी तणो वज्र निर्धार पड़े ॐ ठं ठंठं स्वाहा।'
गणपति पूजनकलश पूजननवग्रह पूजन करें।
ध्यान:
पंचांगुली महादेवी।
श्री सीमन्धर शासने।
अधिष्ठात्री करस्यासौ।
शक्तिः श्री त्रिदशेशितुः॥
फिर न्यास करें-
न्यास:
ॐ परशरि मूर्तये नमः शिरसि।
मयगले नमः मुखे।
सुन्दरयै नमः हृदि।
ऐं बीजाय नमः गुहो।
सौं शक्तये नमः पादयो।
क्लीं कीलकाय नम: नाभौ।
विनियोगाय नमः सर्वांगे।
करन्यास:
ॐ ह्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ श्रीं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ क्रीं मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ आं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ सौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रीं श्रीं सौं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादिन्यास:
ॐ ह्रीं हृदयाय नमः।
ॐ श्रीं शिरसे स्वाहा।
ॐ क्रीं शिखायै वषट्।
ॐ आं कवचाय हुम्।
ॐ सौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ ह्रीं श्रीं सौं अस्त्राय फट्।
ध्यान मन्त्र:
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री पंचांगुली देवीनम् ध्यायामि॥
आवाहनम्:
ॐ आगच्छागच्छ देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहे।
क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुरसत्तमे॥
ॐ भूर्भुव: स्व: श्री पंचांगुली देवताभ्यो नम: आवाहनं समर्पयामि।
आसनम्:
रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्वं सौख्यं कर शुभम्।
आसनंच मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि॥ ।
ॐ भूर्भुव: स्व: श्री पंचांगुली देवताभ्यो नमः आसनं समर्पयामि।
पाद्यम्:
उष्णोदकं निर्मलंच सर्व सौगन्ध संयुक्तम्।
पाद प्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रति गुह्यताम्॥
ॐ भूर्भुवः स्वं पंचांगुली देवताभ्यो नमः पाद्य समर्पयामि।
अय॑म्:
ॐ अर्ध्य गृहाण देवेशि गन्ध पुष्पाक्षतैः सह।
करूणां करु में देवि गृहणायं नमोस्तुते ।।
आचमनीयम्:
सर्व तीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलम।
आचमन्यतां मया दत्तं गहीत्वा परमेश्वरी॥
दहीस्नानम्:
पयसस्तु समुद्रभूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
घृतस्नानम्:
नवनीत समुत्पन्नं सर्वसन्तोष कारकम्।
वत तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
मधुस्नानम्:
तरुपुष्प समुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
शर्करास्नानम्:
इक्षुसार समुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
पंचामृत स्नानम्:
पयो दधि घृत पंच मधुशर्कर यान्वितम्।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
वस्त्रम्:
सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारिणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रति गृह्यताम्॥
यज्ञोपवीत:
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवता मयम्।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि ॥
कर्पूरार्तिक्यम्:
ॐ आराति पार्थिवऽरजः पितुर प्रायिधामभिः।
दिवः सदाऽसि बृहती वितिष्ठ स आत्वेष वर्तते नमः।
जुपम्:
वनस्पति रसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।
आधेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रति गृह्यताम्॥
दीपम्:
आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वन्हिनां योजित मया।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्य तिमिरा पह॥
नैवेद्यम्:
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्तिं मे ह्यचलां कुरु।
ईप्सितं मे वरं देहि परत्रेह परां गतिम्।।
ताम्बूलम्:
पूंगीफलं महाद्दिव्यं नगवल्ली दलैर्युतम्।
एलादि चूर्ण संयुक्तं ताम्बूलं प्रति गृह्यताम्॥
अखण्ड फलम्:
इदं फल मया देवि स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सफला वाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि।
प्राण प्रतिष्ठा:
ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्य महेश्वरा ऋषयः ऋग्यजु सामानि छन्दासि।
क्रियामय वपुः प्राण शक्तिदेवता। आंबीजम्। ह्रीं शक्तिः। क्रौं कीलम्। प्राण प्रतिष्ठिापनेवि
नियोग।
ॐ ब्रह्य विष्णु महेश्वरा ऋषिभ्यो नमः शिरसि।
ऋग्यजुः सामच्छन्दोभ्यो नमः मुखे।
प्राणशक्त्यै नमः हृदये।
आं बीजाय नम: लिंगे।
ह्रीं शक्त्ये नमः पादयो।
क्रौं कीलकाय नमः सर्वांगेषु।
संकल्प:
ॐ अद्य कृतैतत्पुण्याह वाचन कर्मणः सांगता सिध्यर्थ तत्सम्पूर्ण फल प्राप्त्यर्थ च पुण्याह वाचकेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो यथा शक्ति मनसोद्दिष्टां दक्षिणां विभज्य दातु मवभुत्सजे।
कलश पूजा:
जमीन पर कुम्कुम का स्वस्तिक बनाकर उस पर कलश रखें। फिर उसमें धान्य डालें। उस पर नारियल रखकर रक्त वस्त्र वेष्टित करें।
सरितः सागरा: शैलास्तीया॑नि जलदा नदः।
एते त्वा मभिषिचंतु धर्म कामार्थ सिद्धये।
सर्वेषु धर्मकार्येषु पत्नी दक्षिणतः शुभाः।
अभिषेके विप्र पाद प्रक्षालने चैव वामतः॥
आदित्यः वसवो रुद्रा विश्वे देवा मरुद्गणा।
अभिषिश्चन्तु ते सर्वे कामार्थ सिद्धये।
अमृताभिषेकोऽस्तु
इसके उपरान्त कालज्ञान मन्त्र का पाठ करने का विधान है। यह पाठ पंचांगुली साधना में एक बार ही करें।

Wednesday, October 27, 2021

पेड़ की जड़ से ग्रहो को शांत करने का उपाय

*यदि किसी जातक की कुंडली में कोई ग्रह शुभ स्थिति में न हो तो उसे उसके शुभ फल की प्राप्ति नहीं हो पाती है. ऐसे में ग्रह संबंधी शुभता पाने के लिए अक्सर हमें महंगे रत्नों को धारण करने की सलाह दी जाती है. निश्चित रूप से ये रत्न ग्रह संबंधी दोष को दूर करने में अपनी अहम भूमिका निभाते हुए शुभ प्रभाव देते हैं लेकिन यदि किसी व्यक्ति के पास इन महंगे रत्नों को खरीदने के लिए पैसे न हों तो आखिर उसे क्या उपाय करना चाहिए*

*ज्योतिष के अनुसार नौ ग्रह से जुड़े नवरत्नों का शुभ प्रभाव पाने के लिए हमारे पेड़ों की जड़ें काफी प्रभावशाली साबित होती हैं. जिनका असर किसी भी प्रकार किसी रत्न के मुकाबले कम नहीं होता है. इन जड़ी बूटियों को आप विधि-विधान से धारण करके आप ग्रह संबंधी दोष को दूर कर सकते हैं. किसी ग्रह विशेष के कारण जीवन में आ रही कठिनाई, बीमारी आदि को दूर कर सकते हैं. पेड़ों की इन दिव्य जड़ों को धारण करते ही जीवन में बड़ा बदलाव देखने को मिलता है. आइए जानते हैं रत्नों के समान चमत्कारिक फल देने वाले कौन से पेड़ की जड़ किस ग्रह के लिए शुभ साबित होती है-*

*#सूर्य* की कृपा दिलाने वाली जड़- रविवार के दिन बेल की जड़ लाल कपड़े में धारण करें. ये सूर्य के रत्न माणिक्य के समान शुभ प्रदान करेगी.

*#चंद्रमा* सूर्य की कृपा दिलाने वाली जड़- सोमवार को खिरनी की जड़ सफेद कपड़े में धारण करें. ये चंद्रमा के रत्न मोती के समान शुभ प्रदान करेगी.

*#मंगल* की कृपा दिलाने वाली जड़- मंगलवार के दिन अनंतमूल या खेर की जड़ लाल कपड़े में धारण करें. ये मंगल के रत्न मूंगे के समान फल प्रदान करेगी.

*#बुध* की कृपा दिलाने वाली जड़- बुधवार के दिन विधारा की जड़ हरे कपड़े में धारण करें. ये बुध के रत्न पन्ना के समान फल प्रदान करेगी.

*#बृहस्पति* की कृपा दिलाने वाली जड़- गुरुवार के दिन पीले कपड़े में केले की जड़ धारण करें. ये बृहस्पति के रत्न पुखराज के समान फल प्रदान करेगी.

*#शुक्र* की कृपा दिलाने वाली जड़- शुक्रवार के दिन सफेद कपड़े में गूलर की जड़ धारण करें. ये शुक्र के ग्रह हीरा के समान फल प्रदान करेगी.

*#शनि* की कृपा दिलाने वाली जड़- शनिवार के दिन शमी की जड़ नीले कपड़े में धारण करें. ये शनि के रत्न नीलम के समान फल प्रदान करेगी. 

*#राहु* की कृपा दिलाने वाली जड़- बुधवार के दिन नीले कपड़े में चंदन के सफेद टुकड़े को धारण करें. ये राहु के रत्न गोमेद के समान फल प्रदान करेगी.  

*#केतु* की कृपा दिलाने वाली जड़- गुरुवार के दिन नीले रंग के कपड़े में अश्वगंधा की जड़ धारण करें. ये केतु के रत्न लहसुनिया के समान शुभ फल प्रदान करेगी.

*#नोट:- कोइ भी रत्न या जड़ ज्योतिषि की सलाह से ही धारण करें।*

Thursday, September 6, 2018

नक्षत्र


नक्षत्र 

भारतीय वैदिक ज्योतिष में नक्षत्र के सिद्धांत का वर्णन है। नक्षत्र के सिद्धांत अन्य प्रचलित ज्योतिष पद्धतियों से अधिक दावेदार और अचूक है। चन्द्रमा 27.3 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है। एक मासिक चक्र में चन्द्रमा जिन मुख्य सितारों के समूहों के बीच से गुजरता है, उसी संयोग को नक्षत्र कहा जाता है। चन्द्रमा द्वारा पृथ्वी की एक परिक्रमा में 27 विभिन्न तारा-समूह बनते है और इन्ही तारों के विभाजित समूह को नक्षत्र या तारामंडल कहा जाता है। प्रत्येक नक्षत्र एक विशेष तारामंडल या तारों के एक समूह का प्रतिनिधि‍ होता है। 

प्राचीन काल में ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों ने राशियों को सरलता से समझने के लिए 12 भागों में बाँट दिया था और आकाश को 27 नक्षत्रों में। इन नक्षत्रों की गणना ज्योतिष में महत्वपूर्ण योगदान के लिए की जाती है। वैदिक ज्योतिष में एक नक्षत्र को एक सितारे के समान समझा जाता है। सभी नक्षत्रों को 4 पदों में या 3 डिग्री और 20 मिनट के अन्तराल में बांटा गया है। आकाश मंडल के नौ ग्रहों को 27 नक्षत्रों का अर्थात हर ग्रह को तीन नक्षत्रों का स्वामि‍त्व प्राप्त है।  इस प्रकार प्रत्येक राशि में 9 पद शामिल हैं। चंद्रमा का नक्षत्रों से मिलन 'नक्षत्र योग' और ज्योतिष को 'नक्षत्र विद्या' कहा जाता है। 

27 नक्षत्र इस प्रकार है - 0 डिग्री से लेकर 360 डिग्री तक सारे नक्षत्रों का नामकरण इस प्रकार किया गया है - 

अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मॄगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेशा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती।

नक्षत्रों की विशेषताएं: आइये जानें 27 नक्षत्रों की विशेषताएं और उनका जातकों के गुण एवं स्वभाव पर प्रभाव 

1 अश्वनी नक्षत्र  

ज्योतिष शास्त्र में सबसे प्रमुख और सबसे प्रथम अश्विन नक्षत्र को माना गया है। अश्वनी नक्षत्र में जन्मे जातक सामान्यतः सुन्दर ,चतुर, सौभाग्यशाली एवं स्वतंत्र विचारों वाले और आधुनिक सोच के लिए मित्रों में प्रसिद्ध होते हैं। इस नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति बहुत ऊर्जावान होने के सथ-साथ हमेशा सक्रिय रहता है। इनकी महत्वाकांक्षाएं इन्हें संतुष्ट नहीं होने देतीं। ये लोग सभी से बहुत प्रेम करने वाले, हस्तक्षेप न  पसंद करने वाले, रहस्यमयी प्रकृत्ति के होते हैं। ये लोग अच्छे जीवनसाथी और एक आदर्श मित्र साबित होते हैं।

2 भरणी नक्षत्र

इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र ग्रह होता है, जिसकी वजह से इस नक्षत्र में जन्में लोग एक दृढ़ निश्चयी, चतुर, सदा सत्य बोलने वाले, आराम पसंद और आलीशान जीवन जीने वाले होते हैं। ये लोग काफी आकर्षक और सुंदर होते हैं, इनका स्वभाव लोगों को आकर्षित करता है। इनके अनेक मित्र होंगे और मित्रों में बहुत अधिक लोकप्रिय भी होंते है। इनके जीवन में प्रेम सर्वोपरि होता है और जो भी ये ठान लेते हैं उसे पूरा करने के बाद ही चैन से बैठते हैं। इनकी सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्मान हमेशा बना रहता है।

3 कृत्तिका नक्षत्र

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर सूर्य का प्रभाव रहता है, जिसकी वजह से ये लोग आत्म गौरव करने वाले होते हैं। इस नक्षत्र में जन्में जातक सुन्दर और मनमोहक छवि वाला होता है। वह केवल सुन्दर ही नहीं अपितु गुणी भी होते हैं। ना तो पहली नजर में प्यार जैसी चीज पर भरोसा करते हैं और ना ही किसी पर बहुत जल्दी एतबार करते हैं। इन लोगों का व्यक्तित्व राजा के समान ओजपूर्ण एवं पराक्रमी होता है। ये तेजस्वी एवं तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी, स्वाभिमानी, तुनक मिजाजी और बहुत उत्साहित रहने वाले होते हैं। ये लोग जिस भी काम को अपने हाथ में लेते हैं उसे पूरी लगन और मेहनत के साथ पूरा करते हैं।

4 रोहिणी नक्षत्र

रोहिणी नक्षत्र का स्वामी चंद्रमा होता है और चंद्रमा के प्रभाव की वजह से ये लोग काफी कल्पनाशील और रोमांटिक स्वभाव के होते हैं। ये लोग काफी चंचल स्वभाव के होते हैं और स्थायित्व इन्हें रास नहीं आता। इन लोगों की सबसे बड़ी कमी यह होती है कि ये कभी एक ही मुद्दे या राय पर कायम नहीं रहते। ये व्यक्ति सदा दूसरों में गलतियां ढूँढता रहता है। सामने वाले की त्रुटियों की चर्चा करना इनका शौक होता है। ये लोग स्वभाव से काफी मिलनसार तो होते ही हैं लेकिन साथ-साथ जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को पाने की कोशिश भी करते रहते हैं। विपरीत लिंग के लोगों के प्रति इनके भीतर विशेष आकर्षण देखा जा सकता है। ये शारीरिक रूप से कमज़ोर होते हैं इसलिए कोई भी छोटी से छोटी मौसमी बदलाव के रोग भी आपको अक्सर जकड़ लेते हैं।

5 मृगशिरा नक्षत्र

इस नक्षत्र के जातकों पर मंगल का प्रभाव होने की वजह से ये लोग स्वभाव से काफी साहसी, दृढ़ निश्चय चतुर एवं चंचल, अध्ययन में अधिक रूचि, माता पिता के आज्ञाकारी और सदैव साफ़ सुथरे आकर्षक वस्त्र पहनने वाले होते हैं। ये लोग स्थायी जीवन जीने में विश्वास रखते हैं और हर काम पूरी मेहनत के साथ पूरा करते हैं। इनका व्यक्तित्व काफी आकर्षक होता है और ये हमेशा सचेत रहते हैं। अगर कोई व्यक्ति इनके साथ धोखा करता है तो ये किसी भी कीमत पर उसे सबक सिखाकर ही मानते हैं। बुद्धिमान होने के साथ-साथ मानसिक तौर पर मजबूत होते हैं। संगीत के शौकीन और सांसारिक सुखों का उपभोग करने वाले होते हैं।

6 आर्द्रा नक्षत्र

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों पर आजीवन बुध और राहु ग्रह का प्रभाव रहता है। राहु का प्रभाव इन्हें राजनीति की ओर लेकर जाता है और इनके प्रति दूसरों में आकर्षण विकसित करता है। अध्ययन में रूचि अधिक और किताबों से विशेष लगाव आपकी पहचान होगी। सदैव ही अपने आस-पास की घटनाओं के बारे में जागरूक और व्यापार करने की समझ इनकी महान विशेषता है। ये लोग दूसरों का दिमाग पढ़ लेते हैं इसलिए इन्हें बहुत आसानी से बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। दूसरों से काम निकलवाने में माहिर इस नक्षत्र में जन्में लोग अपने निजी स्वार्थ को पूरा करने के लिए नैतिकता को भी छोड़ देते हैं।

7 पुनर्वसु नक्षत्र

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के भीतर दैवीय शक्तियां होती हैं। पुनर्वसु नक्षत्र में जन्में व्यक्ति बेहद मिलन सार, दूसरों से प्रेमपूर्वक व्यवहार रखने वाले होते हैं। इनका शरीर काफी भारी और याद्दाश्त बहुत मजबूत होती है। ये लोग काफी मिलनसार और प्रेम भावना से ओत-प्रोत होते हैं। आप कह सकते हैं कि जब भी इन पर कोई विपत्ति आती है तो कोई अदृश्य शक्ति इनकी सहायता करने अवश्य आती है। ये लोग काफी धनी भी होते हैं। आपके गुप्त शत्रुओं की संख्या अधिक होती है

8 पुष्य नक्षत्र

ज्योतिषशास्त्र के अंतर्गत शनिदेव के प्रभाव वाले पुष्य नक्षत्र को सबसे शुभ माना गया है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग दूसरों की भलाई के लिए सदैव तैयार रहते हैं और इनके भीतर सेवा भावना भी बहुत प्रबल होती है। इन्हें नित नए काम करने की प्रवृत्ति होती है और नए काम की खोज,परिवर्तन और अधिक परिश्रम इनकी विशेषता है। ये लोग मेहनती होते हैं और अपनी मेहनत के बल पर धीरे-धीरे ही सही तरक्की हासिल कर ही लेते हैं। ये लोग कम उम्र में ही कई कठिनाइयों का सामना कर लेते हैं इसलिए ये जल्दी परिपक्व भी हो जाते हैं। चंचल मन वाले ये लोग विपरीत लिंग के प्रति विशेष आकर्षण भी रखते हैं। इन्हें संयमित और व्यवस्थित जीवन जीना पसंद होता है।

9 अश्लेषा नक्षत्र

यह नक्षत्र विषैला होता है और इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के भीतर भी विष की थोड़ी बहुत मात्रा अवश्य पाई जाती है। लग्न स्वामी चन्द्रमा के होने के कारण ऐसे जातक उच्च श्रेणी के डॉक्टर, वैज्ञानिक या अनुसंधानकर्ता भी होते हैं। अश्लेषा नक्षत्र में जन्मे व्यक्तियों का प्राकृतिक गुण सांसारिक उन्नति में प्रयत्नशीलता, लज्जा व सौदर्यौपासना है। इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति की आँखों एवं वचनों में विशेष आकर्षण होता है। ये लोग कुशल व्यवसायी साबित होते हैं और दूसरों का मन पढ़कर उनसे अपना काम निकलवा सकते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों को अपने भाइयों का पूरा सहयोग मिलता है। चन्द्रमा के औषधिपति होने के कारण इस नक्षत्र में जन्मे जातक बहुत चतुर बुद्धि के होते हैं। 

10 मघा नक्षत्र: 

इस नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्र की श्रेणी में रखा गया है। सूर्य के स्वामित्व के कारण ये लोग काफी ज्यादा प्रभावी बन जाते हैं। इनके भीतर ईश्वरीय आस्था बहुत अधिक होती है। इनके भीतर स्वाभिमान की भावना प्रबल होती है और बहुत ही जल्दी इनका दबदबा भी कायम हो जाता है। ये कर्मठ होते हैं और किसी भी काम को जल्दी से जल्दी पूरा करने की कोशिश करते हैं। ये ठिगने कद के साथ सुदृढ वक्षस्थल, मजबूत झंघा, वाणी थोड़ी कर्कश एवं थोड़ी मोटी गर्दन के होते हैं। इनकी आँखें विशेष चमक लिए हुए, चेहरा शेर के समान भरा हुआ एवं रौबीला होता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति प्रायः अपने पौरुष और पुरुषार्थ के प्रदर्शन के लिए सदा ललायित रहते हैं।

11 पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र

यदि आपका जन्म पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हुआ है तो आप ऐसे भाग्यशाली व्यक्ति हैं जो समाज में सम्माननीय हैं और जिनका अनुसरण हर कोई करना चाहता है। परिवार में भी आप एक मुखिया की भूमिका में रहते हैं। ऐसे लोगों को संगीत और कला की विशेष समझ होती है जो बचपन से ही दिखाई देने लगती है। ये लोग नैतिकता और ईमानदारी के रास्ते पर चलकर ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं।  शांति पसंद होने की वजह से किसी भी तरह के विवाद या लड़ाई-झगड़े में पड़ना पसंद नहीं करते। इनके पास धन की मात्रा अच्छी खासी होती है जिसकी वजह से ये भौतिक सुखों का आनंद उठाते हैं। ये लोग अहंकारी प्रवृत्ति के होते हैं।

12 उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र

इस नक्षत्र में जन्मा जातक दूसरों के इशारों पर चलना पसंद नहीं करते और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भरपूर प्रयास करते हैं। इस नक्षत्र में जन्में लोग समझदार,बुद्धिमान, युद्ध विद्या में निपुण, लड़ाकू एवं साहसी होता है। आप देश और समाज में अपने रौबीले व्यक्तित्व के कारण पहचाने जाते हैं। ये दूसरों का अनुसरण नहीं करते अपितु लोग उनका अनुसरण करते हैं। आपमें नेतृत्व के गुण जन्म से ही होते हैं अतः आप अपना कार्य करने में खुद ही सक्षम होते हैं। सरकारी क्षेत्र में इनको सफ़लत मिलती है। ये लोग एक काम को करने में काफी समय लगा देते हैं। अपने हर संबंध को ये लोग लंबे समय तक निभाते हैं।

 13 हस्त नक्षत्र

यदि आपका जन्म हस्त नक्षत्र में हुआ है तो आप संसार को जीतने और उसपर शासन करने का पूरा पूरा सामर्थ्य एवं शक्ति रखते है। ये लोग बौद्धिक, मददगार, निर्णय लेने में अक्षम, कुशल व्यवसायिक गुणों वाले और दूसरों से अपना काम निकालने में माहिर माने जाते हैं। इन्हें हर प्रकार की सुख-सुविधाएं मिलती हैं और इनका जीवन आनंद में बीतता है। दृढ़ता और विचारों की स्थिरता इनको आम आदमी से भिन्नता और श्रेष्ठता प्रदान करती है। ये लोग अपने ज्ञान और समृद्धि के कारण जाने जाते हैं।

14 चित्रा नक्षत्र

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के स्वभाव में आपको मंगल ग्रह का प्रभाव दिखाई दे सकता है। ये लोग आकर्षक व्यक्तित्व वाले एवं शारीरिक रूप से संतुलित मनमोहक एवं सुन्दर आँखों वाले, साज-सज्जा का शौक रखने वाले और नित नए आभूषण एवं वस्त्र खरीदने वाले होते हैं। हर किसी के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की कोशिश करते हैं, इन्हें आप सामाजिक हितों के लिए कार्य करते हुए भी देख सकते हैं। ये लोग विपरीत हालातों से बिल्कुल नहीं घबराते और खुलकर मुसीबतों का सामना करते हैं। परिश्रम और हिम्मत ही इनकी ताकत है। 

15 स्वाति नक्षत्र

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक मोती के समान चमकते हैं अर्थात इनका स्वभाव और आचरण स्वच्छ होता है। ये लोग सात्विक और तामसिक दोनों ही प्रवृत्ति वाले होते हैं। एक आकर्षक चेहरे और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं। आपका शरीर भीड़ से अलग सुडौल एवं भरा हुआ होता है। आप जैसा सोचते हैं वैसा करते हैं और दिखावा पसंद नहीं करते है। आप एक स्वतंत्र आत्मा के स्वामी है जिसको किसी के भी आदेश का पालन करना कतई पसंद नहीं। ये लोग राजनीतिक दांव-पेंचों को अच्छी तरह समझते हैं और अपने प्रतिद्वंदियों पर हमेशा जीत हासिल करते हैं।

16 विशाखा नक्षत्र

यदि आपका जन्म विशाखा नक्षत्र में हुआ है तो आप शारीरिक श्रम के स्थान पर मानसिक कार्यों को अधिक मानते हैं। शारीरिक श्रम करने से आपका भाग्योदय नहीं होता। मानसिक रूप से आप सक्षम व्यक्ति है और कठिन से कठिन कार्य को भी अपनी सूझ-बूझ  कर लेते हैं। पठन-पाठन के कार्यों में उत्तम साबित होते हैं ये लोग। ये लोग शारीरिक श्रम तो नहीं कर पाते लेकिन अपनी बुद्धि के प्रयोग से सभी को पराजित करते हैं। स्वभाव से ईर्ष्यालु परन्तु बोल चाल से अपना काम निकलने का गुण इनमे स्वाभाविक होता है। सामाजिक होने से इनका सामाजिक दायरा भी बहुत विस्तृत होता है। ये लोग महत्वाकांक्षी होते हैं और अपनी हर महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए बहुत मेहनत करते हैं।

17 अनुराधा नक्षत्र

इस नक्षत्र में जन्में लोग अपने आदर्शों और सिद्धांतों पर जीते हैं। इनका अधिकाँश जीवन विदेशों में बीतता है और विदेशों में रहकर ये धन और समाज में मान सम्मान दोनों कमाते है। ये लोग अपने गुस्से को नियंत्रित नहीं कर पाते इस कारण इन्हें कई बार बड़े नुकसान उठाने पड़ते हैं। ये लोग अपने दिमाग से ज्यादा दिल से काम लेते हैं और अपनी भावनाओं को छिपाकर नहीं रख पाते। ये लोग जुबान से थोड़े कड़वे होते हैं जिसकी वजह से लोग इन्हें ज्यादा पसंद नहीं करते। आप बहुत साहसी एवं कर्मठ व्यक्तित्व के स्वामी हैं।

18 ज्येष्ठ नक्षत्र

गण्डमूल नक्षत्र की श्रेणी में होने की वजह से यह भी अशुभ नक्षत्र ही माना जाता है। आप दृढ़ निश्चयी और मज़बूत व्यक्तित्व के स्वामी है। आप नियम से जीवन व्यतीत करना पसंद करते हैं। आप शारीरिक रूप से गठीले और मज़बूत होते हैं तथा कार्य करने में सैनिकों के समान फुर्तीले होते हैं। आपकी दिनचर्या सैनिकों की तरह अनुशासित और सुव्यवस्थित होती है। खुली मानसिकता वाले ये लोग सीमाओं में बंधकर अपना जीवन नहीं जी पाते। ये लोग तुनक मिजाजी होते है और छोटी-छोटी बातों पर लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। किसी के बारे में आपके विचार शीघ्र नहीं बदलते और दूसरों को आप हठी प्रतीत होते हैा।

19 मूल नक्षत्र

यदि आपका जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है तो आपका जीवन सुख समृद्धि के साथ बीतेगा। धन की कमी न होने के कारण ऐश्वर्य पूर्ण जीवन जीते है। आप अपने कार्यों द्वारा अपने परिवार का नाम और सम्मान और बढ़ाएंगे। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के परिवार को इनके दोष का भी सामना करना पड़ता है लेकिन इनकी कई विशेषताएं हैं जैसे कि इनका बुद्धिमान होना, इनकी वफादारी, सामाजिक रूप से जिम्मेदार आदि। इन्हें आप विद्वानों की श्रेणी में रख सकते हैं। ये कोमल हृदयी परन्तु अस्थिर दिमाग के व्यक्ति होते है। कभी आप बहुत दयालु और कभी अत्यधिक नुकसान पहुंचाने वाले होते है।

20 पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र

पूर्वाषाढा में जन्म लेने वाला जातक थोडा नकचढ़ा और उग्र स्वभाव के होने बावजूद कोमल हृदयी और दूसरों से स्नेह रखने वाला होता है। ये लोग ईमानदार, प्रसन्न, खुशमिजाज, कला, सहित्य और अभिनय प्रेमी, बेहतरीन दोस्त और आदर्श जीवनसाथी होते हैं। जीवन में सकारत्मक विचारधारा से अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। आपका व्यक्तित्व दूसरों पर हावी रहता है परन्तु आप एक संवेदनशील व्यक्ति हैं जो दूसरों की मदद के लिए सदैव तैयार रहते है। इन्हे अधिक प्रेम व सम्मान मिलता है परन्तु अपनी चंचल बुद्धि के कारण आप अधिक वफादार नहीं होते हैं और कभी-कभी अनैतिक कार्यों में भी लिप्त हो जाते हैं। 

21 उत्तराषाढ़ा नक्षत्र

उत्तराषाढा में जन्मा जातक ऊँचे कद, गठीले शारीर ,चमकदार आँखे ,चौड़ा माथा और गौर वर्ण के साथ लालिमा लिए हुए होते हैं। सफल एवं स्वतंत्र व्यक्ति, मृदुभाषी और सभी से प्रेम पूर्वक व्यवहार आपमें स्वाभाविक हैं। ईश्वर में आस्था, जीवन में प्रसन्नता और मैत्री, आगे बढ़ने में विश्वास आदि आपकी खासियत है। विवाह उपरान्त जीवन में अधिक सफलता एवं प्रसन्नता होती है। ये लोग आशावादी और खुशमिजाज स्वभाव के होते हैं। नौकरी और व्यवसाय दोनों ही में सफलता प्राप्त करते हैं। ये लोग काफी धनी भी होते हैं।

22 श्रवण नक्षत्र

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, माता-पिता के लिए अपना सर्वस्व त्यागने वाले श्रवण कुमार के नाम पर ही इस नक्षत्र का नाम पड़ा है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों में कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि इनका ईमानदार होना, इनकी समझदारी, कर्तव्यपरायणता,एक स्थिर सोच, निश्छलता और पवित्र व्यक्ति होते है। ये लोग माध्यम कद काठी परन्तु प्रभावी और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी है। आजीवन ज्ञान प्राप्त करने की लालसा और समाज के बुद्धिजीवियों में आप की गिनती होती है। ये लोग जिस भी कार्य में हाथ डालते हैं उसमें सफलता हासिल करते हैं। ये लोग कभी अनावश्यक खर्च नहीं करते, जिसकी वजह से लोग इन्हें कंजूस भी समझ बैठते हैं। आप दूसरों के प्रति बहुत अधिक स्नेह की भावना रखते हैं इसलिए औरों से भी उतना ही स्नेह व सम्मान प्राप्त करते हैं

23 घनिष्ठा नक्षत्र

धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मा जातक सभी गुणों से समृद्ध होकर जीवन में सम्मान और प्रतिष्ठा पाता है। ये लोग काफी उर्जावान होते हैं और उन्हें खाली बैठना बिल्कुल पसंद नहीं होता। ये स्वभाव से बहुत ही नरम दिल एवं संवेदनशील व्यक्ति होते हैं। दान और आध्यत्म होते हैं। आपका रवैया अपने प्रियजनों के प्रति बेहद सुरक्षात्मक होता है किन्तु फिर भी आप दूसरों के लिए जिद्दी और गुस्सैल ही रहते हैं। ये लोग अपनी मेहनत और लगन के बल पर अपनी मंजिल हासिल कर ही लेते हैं। इन्हें दूसरों को अपने नियंत्रण में रखना अच्छा लगता है और ये अधिकार भावना भी रखते हैं। इन्हें शांतिपूर्ण तरीके से अपना जीवन जीना पसंद है।

24 शतभिषा नक्षत्र

शतभिषा नक्षत्र में जन्मा जातक बहुत साहसी एवं मजबूत विचारों वाला होता है। शारीरिक श्रम न करके हर समय अपनी बुद्धि का परिचय देते हैं। इस नक्षत्र में जन्में लोग स्वच्छंद विचारधारा के होते है अत: साझेदारी की अपेक्षा स्वतंत्र रूप से कार्य करना पसंद करते हैं। ये लोग अत्यधिक सामर्थ्य, स्थिर बुद्धि और उन्मुक्त विचारधारा के होते हैं और मशीनी तौर पर जीना इन्हें कतई बरदाश्त नहीं होता। ये अपने शत्रुओं पर हमेशा हावी रहते हैं। समृद्धशाली होने के कारण अपने आस-पास के लोगों से सम्मान प्राप्त होता है।

25 पूर्वाभाद्रपद

गुरु ग्रह के स्वामित्व वाले इस नक्षत्र में जन्में जातक सत्य और नैतिक नियमों का पालन करने वाले होते हैं। साहसी, दूसरों की मदद करने वाले, मिलनसार, मानवता में विश्वास रखने वाले, व्यवहार कुशल, दयालु और नेक दिल होने के साथ-साथ खुले विचारों वाले होते हैं। ये लोग आध्यात्मिक प्रवृत्ति के साथ-साथ ज्योतिष के भी अच्छे जानकार कहे जाते हैं। ये लोग अपने आदर्शो और सिद्धांतों पर ही आजीवन चलना पसंद करते हैं।

26 उत्तराभाद्रपद

इस नक्षत्र में जन्में लोग हवाई किलों या कल्पना की दुनिया में विश्वास नहीं करते। ये लोग बेहद यथार्थवादी और हकीकत को समझने वाले होते हैं। व्यापार हो या नौकरी, इनका परिश्रम इन्हें हर जगह सफलता दिलवाता है। त्याग भावना, स्वभाव से एक दयालु धार्मिक होने के साथ-साथ वैरागी भी होते हैं। समाज में एक धार्मिक नेता, प्रसिद्द शास्त्र विद एवं मानव प्रेमी के रूप में प्रख्यात होते है। कोमल हृदयी हैं एवं दूसरों के साथ सदैव सद्भावना के साथ-साथ दुर्व्यवहार करने वाले को क्षमा और दिल में किसी के प्रति कोई द्वेष नहीं रखते। 

27 रेवती नक्षत्र

रेवती नक्षत्र में जन्मे जातक निश्चल प्रकृति के होते है। वो साहसिक कार्य और पुरुषार्थ प्रदर्शन की आपको ललक सदा ही रहती है। वो माध्यम कद,गौर वर्ण के होते है। इनके व्यक्तित्व में संरक्षण, पोषण और प्रदर्शन प्रमुख है। परंपराओं और मान्यताओं को लेकर ये लोग काफी रूढ़िवादी होने के बावजूद अपने व्यवहार में लचीलापन रखते हैं। इनकी शिक्षा का स्तर काफी ऊंचा होता है और अपनी सूझबूझ से ये बहुत सी मुश्किलों को हल कर लेते हैं।