१४ विद्या और ६४ कलाए :-
श्रीगणपतीको १४ विद्या और ६४ कलांओंके अधिष्ठात्रा देव के रूपमें जाना जाता है
१४ विद्या व ६४ कलाए कौनकौनसी है ...
इस बारेमें कईयोकें मनमें उत्सुकता होती है.
१४ विद्या :-
चार वेद + छह वेदांग + न्याय, विश्लेषण, पुराण व धर्मशास्त्र=१४
चार वेद = १) ऋग्वेद २) यजुर्वेद ३) सामवेद ४) अथर्ववेद
छह वेदांग =
१) व्याकरण- भाषाओकें शब्दोके व्यवहार का शास्त्र.
२) ज्योतिष- ग्रहगती तथा सामुद्रिक जाननेकी विद्या.
३) निरुक्त- वेदोके काठीन शब्दोका अर्थ बताने वाला शास्त्र.
४) कल्प- धार्मिक विधी- व्रतोका वर्णन बताने वाला शास्त्र ५) छंद- शब्दोकि गेय (गाने योग्य ) रचना एवं काव्यवृत्त का ज्ञान ६) शिक्षा- शिक्षण, अध्यापन व अध्ययन
+ न्याय, विश्लेषण, पुराण व धर्मशास्त्र =१४
६४ कलाए :
१) पानक रस तथा रागासव योजना- मदिरा व पेय तयार करना.
२) धातुवद- कच्ची धातू पक्की व मिश्रधातू अलग करना ३) दुर्वाच योग- कठीन शब्दोका अर्थ उर्दघृत करना.
४) आकर ज्ञान- खदानो के बारेमें अंतर्गत एवं परिपूर्ण ज्ञान .
५) वृक्षायुर्वेद योग- उपवन, कुंज, वाटिका, उद्यान बनाना.
६) पट्टिका वेत्रवाणकल्प- नवार, सुंभ, वेत इन चीजोसें खटीया बनाना.
७) वैनायिकी विद्याज्ञान- शिष्टाचार व विनय इनका ज्ञान . ८) व्यायामिकी विद्याज्ञान- व्यायाम आदि का शास्त्रीय ज्ञान .
९) वैजापिकी विद्याज्ञान- दुसरोपर विजय पाना.
१०) शुकसारिका प्रलापन- पंछियोकी भाषा समझना. ११) अभिधान कोष छंदोज्ञान- शब्द व छंद का ज्ञान.
१२) वास्तुविद्या- महाल, भवन, राजमहल,सदन बांधना.
१३) बालक्रीडाकर्म- नन्हे बालकोका मनोरंजन करना.
१४) चित्रशब्दापूपभक्षविपाक क्रिया- पाकक्रिया, एवं रसोई.
१५) पुस्तकवाचन- काव्यगद्यादी पुस्तक और ग्रंथ पढना.
१६) आकर्षण क्रीडा- दुसरोको आकर्षित करना १७) कौचुमार योग- कुरुप व्यक्तियोको रूपवान बनाना १८) हस्तलाघव - हस्तकौशल्य तथा हस्तकला.
१९) प्रहेलिका- गूढता पूर्वक और काव्यमय तरिकेसे प्रश्न पूछना
२०) प्रतिमाला- अंताक्षर कि योग्यता रखना २१) काव्यसमस्यापूर्ती- आधिअधुरी कविता पूर्ण करना
२२) भाषाज्ञान- देश तथा विदेश कि भाषाओकां ज्ञान २३) चित्रयोग- चित्रकला और रंगकला.
२४) कायाकल्प- वृध्द व्यक्तिको जवान बनाना २५) माल्यग्रंथ विकल्प- वस्त्रोका योग्य चुनाव करना.
२६) गंधयुक्ती- सुगंधी गंध और लेपन का ज्ञान.
२७) यंत्रमातृका- अनेकविध यन्त्रोका निर्माण करना.
२८) इत्तर विकल्प- फुलोंसे अर्क एवं इत्तर का निर्माण.
२९) संपाठय़- दुसरोकी बाते सुनकर सहिसही नकल करना ३०) धारण मातृका- स्मरणशक्ती वृद्धिंगत करना ३१) छलीक योग- चालाखी करके दुसरोको भ्रमित करना
३२) वस्त्रगोपन- फटेहुए वस्त्र सीना
३३) मणिभूमिका- भूमिपर मणीओकी रचना करना
३४) द्यूतक्रीडा- जुआ खेलना
३५) पुष्पशकटिका निमित्त ज्ञान- प्राकृतिक लक्षणोद्वारा भविष्य कथन करना.
३६) माल्यग्रथन- पुष्पमाला, हार,गजरे तैयार करना.
३७) मणिरागज्ञान- रंगोसे रत्नोकि परख करना तथा पहचानना ३८) मेषकुक्कुटलावक- युद्धविधी- बकरे, मुर्गे वगैरोको लडाना.
३९) विशेषकच्छेद ज्ञान- माथेपर लगने वाले तिलकोके साचे तयार करना
४०) क्रिया विकल्प- वस्तुकि क्रीयाका प्रभाव पलट देना.
४१) मानसी काव्यक्रिया- शीघ्र कवित्व ४२) आभूषण भोजन- सोना चांदी रत्न एवं मोतियोसे काया सजाना ४३) केशशेखर पीड ज्ञान- मुकुट बनाना और बालोकि पुष्परचना.
४४) नृत्यज्ञान- नृत्यकला का शास्त्रिय और परिपूर्ण ज्ञान.
४५) गीतज्ञान- गायन कला का शास्त्रिय और परिपूर्ण ज्ञान ४६) तंडुल कुसुमावली विकार- चावल और फ़ुलोसे चित्र निकालना ४७) केशमार्जन कौशल्य- तेलसे मस्तक का मालिश करना
४८) उत्सादन क्रिया- तेलसे बदनका का मालिश करना ४९) कर्णपत्र भंग- फुल पत्तियोसे कर्णफुल बनाना
५०) नेपथ्य योग- ऋतू काल अनुसार वस्त्र और अलंकारोका चुनाव.
५१) उदकघात- जलविहार करना तथा रंगीन पानी कि पिचकारीया बनाना.
५२) उदकवाद्य- जलतरंग बजाना ५३) शयनरचना- मंचक, शय्या व मंदिर सजाना ५४) चित्रकला- नक्षी वेलवुट्टी व चित्रे निकालना.
५५) पुष्पास्तरण- फ़ुलोकि कलात्मक शैय्या तयार करना.
५६) नाटय़अख्यायिका दर्शन- नाट्कोमे अभिनय करना.
५७) दशनवसनांगरात- दात, वस्त्र , काया रंगाना और सजाना.
५८) तुर्ककर्म- चरखेसे धागा कताई
५९) इंद्रजाल- संमोहन और जादूटोनेका ज्ञान.
६०) तक्षणकर्म- लकडेको तराशना
६१) अक्षर मुष्टिका कथन- करपल्लवी द्वारा संभाषण करना
६२) सूत्र तथा सूचीकर्म- वस्त्रको रफू करना.
६३) म्लेंछीतकला विकल्प- विदेशी भाषाओंका ज्ञान ६४) रत्नरौप्य परीक्षा- अनमोल धातु एवं रत्नोको परखना
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