चतुर्थ भाव के कारकत्व
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चतुर्थ भाव के कारकत्व -----
१. पागलपन--- यदि चतुर्थ भाव तथा चतुर्थेश और चन्द्र , बुद्धि द्योतक अंगों जैसे-- लग्नेश, पंचमेश तथा बुध के साथ पापी ग्रहों द्वारा युत अथवा दृष्ट हों तो मनुष्य पागल (Insane) हो जाता है, कारण कि भावनाओं (Emotions) तथा बुद्धि (Intellect) का बिगड़ना ही पागलपन है ।
२. भय--- चतुर्थेश चन्द्र , चतुर्थ भाव पर युति अथवा दृष्टि द्वारा केवल राहू का प्रभाव हो तो मनुष्य मैं भय कि सृष्टि होती है । इस भय के कारण मनुष्य को बेहोशी (Fits) भी हो सकते हैं ।
३. मिर्गी रोग ---- यदि चतुर्थेश चन्द्र, अष्टम भाव राहू से पीड़ित हो तो मिर्गी का रोग होता है । कारण कि चतुर्थेश तथा चन्द्र दोनों ही मन के प्रतिनिधि हैं और अष्टम स्थान नाश का है तथा राहू चन्द्र के लिए विशेष त्रास उत्पन्न करने वाला प्रसिद्ध है ।
४. विशेष रूचि--- चतुर्थेश चन्द्र जिस भाव मैं स्थित हो मनुष्य उस भाव से विशेष रूचि रखता है, जैसे चतुर्थेश षष्ठ मैं हो तो मनुष्य परिश्रमी और व्यायाम प्रिय होता है क्योंकि षष्ठ स्थान परिश्रम और व्यायाम का है और चतुर्थेश चन्द्र मन का पक्का प्रतिनिधि है ही ।
स्त्री कि कुंडली मैं चतुर्थेश और पचमेश का व्यत्यय अर्थात स्थान परिवर्तन स्त्री को नृत्य आदि कला मैं निपुण बनता है यह योग और भी अधिक प्रबल हो जाता है जब कि पंचमेश (आमोद ;प्रमोद स्थान का स्वामी ) स्वयं शुक्र हो और बुध से युत हो ।
५. माता----- यदि च चतुर्थ भाव, चतुर्थेश और चन्द्र सब बलवान हों तो माता कि आयु दीर्घ आयु हो जाती है | इतना ध्यान रहे कि छठा और ग्यारहवें भावों के स्वामी भी बलवान होने चाहिए क्योंकि ये माता के आयु भाव हैं । यदि मंगल लग्न मैं, शनि द्वतीय मैं और चन्द्र अष्टम भाव मैं हों तो माता कि शीघ्र मृत्यु हो जाती है कारण स्पष्ट है कि शनि तथा मंगल का प्रभाव न केवल चतुर्थ ( माता) भाव पर होगा,. अपितु माता के कारक चन्द्र पर भी होगा ।
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