Thursday, August 24, 2017

सर्वाअष्टक वर्ग द्वारा जातक की आर्थिक स्थिति का विवेचन !!

सर्वाअष्टक वर्ग द्वारा जातक की आर्थिक स्थिति का विवेचन !!
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सर्वाअष्टक वर्ग का उपयोग सम्बंधित भाव/भावेशो के बल के निर्धारण करने के लिए प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है!!मुख्यतः जन्मपत्रिका के लग्न को प्रथम भाव मानते हुए द्वितीय,पंचम,नवम,दशम और एकादश भाव/भावेशों के सम्बन्ध से बनने वाले योगो को धनयोगो को रूप से देखा जाता है!!जबकि इंदु लग्न से धन-संपत्ति एवं समृधि का निर्णय जन्मपत्रिका में द्वितीय एवं एकादश भाव/भावेशों की स्थिति से होता है!! यदि सर्वाअष्टक वर्ग में इन भावों में प्राप्त बिन्दुओं को भी इसमें शामिल कर के देखा जाये तो धन समृधि और आर्थिक स्थिति के स्तर की करीब करीब सही स्थिति ज्ञात की जा सकती है!!
1) यदि लग्न,नवम,दशम और एकादश भावों में 30 अथवा अधिक बिंदु है तो जातक अवश्य धनवान होता है! यदि इसके विपरीत इन भावो में 25 से कम बिंदु हो तो जातक दरिद्र नहीं तो दरिद्रता के बहुत करीब होता है!!
2)यदि लग्न एवं चतुर्थ भावों में 33 या अधिक बिंदु हो और इनके स्वामी भाव परिवर्तन करें तो जातक अचल संपत्ति के रूप में धनवान होता है!!
3)लग्न(प्रथम) से द्वितीय,चतुर्थ,नवम,दशम और एकादश भावों के बिन्दुओं का योग अगर 164 या अधिक होता है तो जातक सम्रद्ध एवं धनवान होता है!!
4) सभी द्वादश भावों को निम्न चार भागों में बाटा गया है!!
क) बन्धु :: 1,5,9वा भाव
ख) सेवक :: 2,6,10वा भाव
ग) पोषक :: 3,7,11व भाव
घ) घातक :: 4,8,12व भाव
प्रत्येक समूह के भावों के बिन्दुओं का योग करें यदि पोषक समूह के बिन्दुओं की संख्यां, घातक समूह के बिन्दुओं की संख्या से अधिक होती है तो जातक धनवान होगा!!
यदि सेवक समूह के बिन्दुओं की संख्यां, बन्धु समूह के बिन्दुओं से अधिक होती है तो जातक दूसरों के आधीन कार्य ( नौकरी ) करता है!!
5) यदि लग्नेश चतुर्थेश से राशी परिवर्तन करता है अथवा लग्नेश का संबंध चतुर्थ भाव से होता है तो जातक राजा समान और अत्यधिक धनवान होता है!!
6)यदि सभी ग्रह(सातो) अपने अपने अष्टकवर्ग में 6 से 8 बिन्दुओं के साथ हो तो जातक की अपार धन-संपत्ति में और बढ़ोतरी करते है ! यदि ग्रह उच्च,स्वराशी अथवा मित्रराशी में भी हो तो परिणाम अत्यधिक शुभ फलकारी होते है!!
7) यदि गुरु का राशीश शुभ स्थिति में केंद्र या त्रिकोण में ही और गुरु 4 से अधिक बिन्दुं के साथ हो तो यह जातक की धन-संपत्ति में वृद्धिकारक होता है!!
यदि गुरु अपने अष्टकवर्ग में 4 से अधिक बिन्दुओं के साथ शुक्र से युति करे जिसके खुद अपने 4 से अधिक बिंदु हो तो जातक उच्चस्तरीय समृद्धि प्राप्त करता है!!
9) यदि मेष या वृश्चिक राशी में स्थित शुक्र 5 से अधिक बिन्दुओं के साथ और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो यह जातक को अत्यधिक धन-संपत्ति ,समृद्धि और वाहन सुख देने वाला होता है!!
यदि केंद्र अथवा त्रिकोण में हो तो परिणाम और अत्यंत अधिक सुख देने वाले होते है !!

विशेष ध्यान रखें ::::::::: गोचर में ग्रह किस राशी और किस भाव में जाता है उस राशी और भाव के बिन्दुओं का फर्क स्थिति पर अवश्य आता है !!

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