क्या महत्व है चन्द्र कुंडली का
जन्म समय में पूर्व दिशा में जिस राशि का उदय हो रहा होता है वह राशि जातक की जन्म लग्न राशि कहलाती है. प्रथम भाव में उसी राशि को लिख कर लग्न बनाया जाता है .उस समय विशेष में चंद्रमा जिस भी राशि में भ्रमण कर रहा होता है वो ही जातक की जन्म राशि कहलाती है. लग्न कुंडली के बाद जिस राशि में चंद्रमा होता है उसे लग्न मानकर एक और
कुंडली का निर्माण होता है जो चन्द्र कुंडली कहलाती है.अब लग्न कुंडली और चन्द्र कुंडली में क्या अंतर होता है ये एक ऐसा विषय है जिस पर विद्वान ज्योतिषियों को मतभेद रह सकता है. मेरा मत यह है की जन्म कुंडली जातक के लिए ईश्वर द्वारा निर्धारित फैसलों का प्रतिबिम्ब होती है .उन विशेष परिस्थितियों ,उन विशेष नियमों से जातक को मिलना ही होता है .इस पर जातक का कोई नियंत्रण नहीं होता .ये पूर्वार्ध है. आपके किये गए कर्मों का लेखा जोखा .किन्तु चन्द्र कुंडली वो है जिसकी सहायता से जातक उन नियमों , सिद्धांतों ,उन पूर्व निर्धारित फैसलों में लूप होल खोजने का प्रयास करता है. यहाँ से हम देखते हैं की कहाँ और कैसे किस ग्रह के साथ कोई डील की जा सकती है.कैसे ले- दे कर अपना काम चलाया जा सकता है .कैसे अपनी रुकी हुई गाडी को गतिवान किया जा सकता है. यकीन कीजिये मैंने कई बार समस्या को लग्न कुंडली से पकड़कर ,उपचार चन्द्र
कुंडली द्वारा करने का प्रयास किया और सफलता पाई .कई ज्योतिषियों को चन्द्र कुंडली को अनदेखा करते पाया है. यकीन मानिए एक बार चन्द्र कुंडली को लग्न मान कर फलित करने का प्रयास कीजिये ,मजा आ जाता है. ऐसे ऐसे
तथ्य जातक के बारे में मालूम होने लगते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की होगी आपने .आइये इसे दूसरी तरह से कहने का प्रयत्न करते हैं.किन्तु कहूंगा सामान्य भाषा में ही . बावजूद इसके कि एक बार मेरी एक पाठिका ने और अभी कुछ दिन पहले मेरे एक क्लाइंट ने मुझसे एक ही शिकायत की .दोनों का कहना था की आप की भाषा शैली कहीं से भी पंडितों वाली नहीं है .मैं फिर स्पष्ट कर देना चाहूँगा की मेरा ब्लॉग उस आम जिज्ञासु पाठक के लिए है जो ज्योतिष का रुझान रखता है या जो अपनी किसी समस्या को मुझ से साझा करना चाहता है. मेरे किसी भी लेख को किसी प्रकार की प्रतियोगिता में भेजने की मेरी कोई मंशा नहीं है .ये मात्र मेरे पाठकों के लिए है .अपने इसी साधारण अंदाज से मैंने उनका स्नेह -आदर प्राप्त किया है।भाषा के भ्रमजाल में
उलझाकर मैं अपने पांडित्य का झूठा आभामंडल तो रच
सकता हूँ ,अपने गैरजरूरी हव्वे को भी बुन सकता हूँ ,जिस की आड़ में आराम से अपनी फीस बढ़ा सकता हूँ ,लेकिन अपने पाठक के स्नेह से वंचित हो जाउंगा ,उसके विश्वास को खो बैठूँगा ,उस आस को तोड़ दूंगा जिस आस के साथ वो बेहिचक मेरे पास अपनी व्यथा कहने का अधिकार पाता है,कुसमय में मेरे काँधे को तलासने के लिए चुपके से देखता है. मैं इस सुख से ,इस गर्व के एहसास से वंचित नहीं होना चाहता ,इसलिए अपना अंदाज अपनी भाषाशैली नहीं बदल
सकता . थोडा भावुक हो गया तो विषय से ही भटक गया. क्या करूँ आखिर साधारण मनुष्य ही तो हूँ.खैर वापस विषय पर आता हूँ. समस्त ग्रहों में सर्वाधिक अस्थिर या कहें गतिशील चंद्रमा ही होते हैं .अततः जल्दी से किसी परिवर्तन की आस इन्ही के दरबार से की जा सकती है. अपनी समस्त सोलह कलाओं का जादू बिखेरकर ये नित्य नयी अवस्था, नए रूप में हमारे सामने होते हैं .पूरे माह में हम किसी भी दिन इन्हें समान रूप में नहीं पाते . अतः ये निरंतर बदलाव
का प्रतीक हैं . इसी लिए तो मन के कारक हैं .ये सन्देश देते हैं की स्थितियों में परिवर्तन संभव है .यही कारण है की लग्न
कुंडली के बाद चन्द्र कुंडली अपना विशेष स्थान रखती है.हर रोज अपने आश्रित स्थान से इनका प्रभाव हर ग्रह पर अलग होता है.तत्व के जानकार जानते ही हैं की सारा खेल मन का है. मन यानि चंद्रमा .नवग्रहों में चंद्रमा को धरती के सर्वाधिक निकट माना गया है .इसी कारण सबसे अधिक उपचार चन्द्र को लेकर ही किये जाते हैं.इसी कारण इसे माँ का कारक कहा गया है.जातक के जन्म से लेकर उसके जीवन भर सर्वाधिक निकट यदि कोई है तो माँ ही है. पहला स्पर्श पहला सम्बन्ध ,पहला प्रभाव इंसान के ऊपर माँ का ही है .माँ का है अर्थात चन्द्र का है. हर समस्या हर परेशानी का निदान माँ है.
इसी प्रकार जातक के जीवन की हर समस्या का निदान चंद्रमा के पास है. तभी तो शिव के माथे का अलंकार है.
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