लग्न कुंडली से जानिए अपने ईष्ट
देव
हम सब प्रतिदिन विभिन्न देवी -देवताओं
का पूजन करते हैं। लगभग सभी सकाम
पूजा ही करते हैं। कहने का मतलब यह है कि हम
हमारी मनोकामना पूर्ण करने के लिए ही ईश्वर
को मानते है। बहुत कम लोग होते हैं निष्काम
पूजा करते हैं। बहुत सारे लोगों कि यह शिकायत
होती है कि वो पूजा -व्रत आदि बहुत करते हैं
फिर भी फल नहीं मिलता।
मैं यहाँ कहना चाहूंगी कि हमें काम
तो बिजली विभाग में होता है और चले जाते हैं
जल-विभाग में ! जब हम गलत कार्यालय में
जायेंगे तो काम कैसे होगा। इसी प्रकार हर
कुंडली के अनुसार उसके अपने अनुकूल देवता होते
हैं।
किसी भी कुंडली के लग्न /प्रथम भाव , पंचम
भाव और नवम भाव में स्थित राशि के अनुसार
इष्ट देव निर्धारित होते है और इनके अनुसार
ही रत्न धारण किये जा सकते हैं।
मेष लग्न :-- जन्म
कुंडली के प्रथम भाव में अगर प्रथम
राशि मेष होती है तो वह मेष लग्न
की कुंडली कही जायेगी। मेष लग्न में पांचवे भाव
में सिंह राशि और नवम भाव में धनु राशि होती है।
मेष राशि का स्वामी मंगल , सिंह
राशि का स्वामी है सूर्य और धनु
राशि का स्वामी वृहस्पति है। इस कुंडली के लिए
अनुकूल देव हनुमान जी , सूर्य देव और विष्णु
भगवान है ।
मेष लग्न के लिए हनुमान जी की आराधना ,
मंगल के व्रत , सूर्य चालीसा , आदित्य - हृदय
स्त्रोत , राम रक्षा स्त्रोत , रविवार का व्रत ,
वृहस्पति वार का व्रत , विष्णु पूजन
करना चाहिए। मूंगा , माणिक्य और पुखराज रत्न
अनुकूल रहेंगे।
वृषभ लग्न :-- जन्म कुंडली के
प्रथम भाव में अगर
द्वितीय राशि वृषभ होती है तो वह वृषभ लग्न
की कुंडली कही जायेगी। वृषभ लग्न में पांचवे भाव
में कन्या राशि और नवम भाव में
मकर राशि होती है।
वृषभ राशि का स्वामी शुक्र ,
कन्या राशि का बुध और मकर राशि के
स्वामी शनि देव है।
वृषभ लग्न वालों के लिए लक्ष्मी देवी , गणेश
जी और दुर्गा देवी की आराधना उचित रहेगी।
लक्ष्मी चालीसा , दुर्गा चालीसा और गणेश
चालीसा का पाठ करना चाहिए।
इस लग्न के लिए हीरा , नीलम और
पन्ना अनुकूल रत्न है ।
मिथुन लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में
अगर तृतीय राशि मिथुन होती है तो वह
मिथुन लग्न की कुंडली कही जायेगी।
मिथुन लग्न में पांचवे भाव में तुला राशि और
नवम भाव में कुम्भ राशि होती है।
मिथुन राशि का स्वामी बुध ,
तुला राशि का शुक्र और कुंभ
राशि का स्वामी शनि देव हैं।
इस लग्न के लिए गणेश जी , लक्ष्मी देवी और
काली माता अराध्य होगी। कुम्भ राशि के
स्वामी शनि होने के कारण शनि देव को प्रसन्न
और शांत रखने के उपाय किये जा सकते हैं।
इस लग्न के लिए पन्ना , हीरा और नीलम अनुकूल
रत्न हैं।
कर्क लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में
अगर चतुर्थ राशि कर्क होती है तो वह
कर्क लग्न की कुंडली कही जायेगी।
कर्क लग्न के पांचवे भाव में वृश्चिक राशि और
नवम भाव में मीन राशि होती है।
कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा,वृश्चिक राशि के
स्वामी मंगल और मीन राशि के
स्वामी वृहस्पति होते है। इस लग्न के लिए शिव
जी , हनुमान जी और विष्णु जी अराध्य देव होंगे।
इस लग्न के लिए मोती , मूंगा और पुखराज
अनुकूल रत्न हैं।
सिंह लग्न :-- जन्म
कुंडली के प्रथम भाव में अगर
पंचम राशि सिंह होती है
तो वह सिंह लग्न की कुंडली कही जायेगी।
सिंह लग्न के पांचवे भाव में धनु राशि और
नवम भाव में मेष राशि होती है।
सिंह राशि का स्वामी सूर्य देव , धनु राशि के
स्वामी वृहस्पति और मेष राशि के स्वामी मंगल
होता है।
इस लग्न के लिए सूर्य देव , विष्णु जी और
हनुमान जी आराध्य देव होंगे।
इस लग्न के लिए माणिक्य , मूंगा और पुखराज
रत्न अनुकूल होते हैं।
कन्या लग्न :-- जन्म
कुंडली के प्रथम भाव में अगर
षष्ठ राशि कन्या होती है तो वह कन्या लग्न
की कुंडली कही जायेगी। इस लग्न के पांचवे भाव
में मकर राशि और नवम भान में वृषभ
राशि होती है।
कन्या राशि का स्वामी बुध , मकर
राशि का स्वामी शनि और वृषभ
राशि का स्वामी शुक्र होता है।
इस लग्न के लिए गणेश जी ,
दुर्गा देवी ,लक्ष्मी देवी आराध्य देव होते हैं और
पन्ना, नीलम और हीरा अनुकूल रत्न होते हैं।
तुला लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव
में अगर सप्तम राशि तुला हो तो वह तुला लग्न
की कुंडली कही जायेगी। तुला लग्न में पांचवे भाव
में कुम्भ राशि और नवम भाव में मिथुन
राशि होती है। तुला राशि का स्वामी शुक्र , कुम्भ
राशि का स्वामी शनि और मिथुन
राशि का स्वामी बुध होता है। इस लग्न के लिए
लक्ष्मी देवी , काली देवी , दुर्गा देवी और गणेश
जी आराध्य देव हैं और हीरा , नीलम और
पन्ना अनुकूल रत्न है।
वृश्चिक लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम
भाव में अगर
अष्ठम राशि वृश्चिक हो तो वह वृश्चिक लग्न
की कुंडली कही जायेगी। वृश्चिक लग्न में पांचवे
भाव में मीन राशि और नवम भाव में
कर्क राशि होती है। वृश्चिक
राशि का स्वामी मंगल , मीन
राशि का स्वामी वृहस्पति और कर्क
राशि का स्वामी चन्द्रमा होता है। इस लग्न के
लिए हनुमान जी , विष्णु जी और शिव जी अराध्य
देव होते है और मूंगा , पुखराज और मोती अनुकूल
रत्न है।
धनु लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में
अगर नवम राशि धनु हो तो वह धनुलग्न
की कुंडली कही जायेगी। धनु लग्न में पांचवे भाव
में मेष राशि और नवम भाव में
सिंह राशि होती है। धनु
राशि का स्वामी वृहस्पति , मेष
राशि का स्वामी मंगल और सिंह
राशि का स्वामी सूर्य होता है। इस लग्न के लिए
विष्णु जी ,हनुमान जी और सूर्य देव आराध्य देव
हैं और पुखराज , मूंगा और माणिक्य अनुकूल रत्न
है।
मकर लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में
अगर दशम राशि मकर हो तो वह मकर लग्न
की कुंडली कही जायेगी। मकर लग्न में पांचवे भाव
में वृषभ राशि और नवम भाव में
कन्या राशि होती है। मकर राशि का स्वामी शनि ,
वृषभ राशि का स्वामी शुक्र और
कन्या राशि का स्वामी बुध होता है। इस लग्न के
लिए शनि देव , हनुमान जी , दुर्गा देवी ,
लक्ष्मी देवी और गणेश जी आराध्य देव है और
नीलम , हीरा और पन्ना अनुकूल रत्न है।
कुम्भ लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में
अगर एकादश राशि कुम्भ हो तो वह कुम्भ लग्न
की कुंडली कही जायेगी। कुम्भ लग्न में पांचवे भाव
में मिथुन राशि और नवम भाव में
तुला राशि होती है।कुम्भ राशि का स्वामी शनि ,
मिथुन राशि का स्वामी बुध और
तुला राशि का स्वामी शुक्र होता है। इस लगन के
लिए शनि देव , काली देवी , गणेश जी ,
दुर्गा देवी और लक्ष्मी देवी आराध्य देव है और
नीलम , पन्ना और हीरा अनुकूल रत्न है।
मीन लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में
अगर द्वादश राशि मीन हो तो वह मीन लग्न
की कुंडली कही जायेगी। मीन लग्न में पांचवे भाव
में कर्क राशि और नवम भाव में
वृश्चिक राशि होती है। मीन
राशि का स्वामी वृहस्पति , कर्क
राशि का स्वामी चन्द्र और वृश्चिक
राशि का स्वामी मंगल होता है। इस लग्न के लिए
विष्णु जी , शिव जी और हनुमान जी आराध्य देव
है और पुखराज , मोती और मूंगा अनुकूल रत्न है।
लेकिन यहाँ यह भी देखा जायेगा कि उपरोक्त
राशि स्वामी किस भाव में और कितने अंशो पर
स्थित है। क्या वो उच्च या नीच के तो नहीं है।
अक्सर विद्वान् जन ग्रह के उच्च या नीच के होने
पर रत्न पहना देते हैं जो कि उचित नहीं है। उच्च
का ग्रह तो स्वतः ही अच्छा फल देता है। नीच
ग्रह का रत्न पहनने से उस ग्रह के नीचत्व में
ही वृद्धि होती है। ऐसे में उस ग्रह को शांत करने
के लिए पूजा और व्रत आदि उचित रहेगी। खराब
ग्रह को अनुकूल बनाने के लिए उस देव
का चालीसा का पाठ करना चाहिए।
यहाँ पर यह ध्यान रखने वाली बात है
कि जो ग्रह अधिक कमजोर हो उसे बलवान करने
के लिए पूजा - व्रत आदि करें। रत्न भी धारण
किया जा सकता है लेकिन कुंडली को अच्छी तरह
विश्लेषण करवा कर ही। क्यूंकि कई बार उपरोक्त
तीनों भावों के स्वामी तीसरे , छठे , आठवें और
बाहरवें भाव में स्थित होते हैं। इन भावों में स्थित
ग्रहों के रत्न भी धारण नहीं किये जा सकते। इस
स्थिति में व्रत-पूजन और दान ही उचित रहेगा।
जिनके पास कुंडली हैं वे तो यह जान सकते हैं
कि उनके ईष्ट देव कौन है। लेकिन जिनके पास
कुंडली नहीं है और ना ही कोई विवरण है तो वे
क्या करे या कैसे जाने कि उनका ईष्ट कौन है !
हर इंसान की प्रकृति और व्यवहार ग्रहों से
ही तय होती है। किसी भी इंसान को उसके ईष्ट
उसके अंतर्मन को आकर्षित करते हैं। अपनी पसंद
के रंगो के अनुसार भी तय कर सकते हैं
कि उनका ईष्ट देव कौन हो सकता है।
Wednesday, December 14, 2016
लग्न कुंडली से जानिए अपने ईष्ट देव
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