Saturday, September 30, 2017

महाशक्तियों के मंत्र और उनके फल

महाशक्तियों के मंत्र और उनके फल

महाकाली मंत्र
ऊं ए क्लीं ह्लीं श्रीं ह्सौ: ऐं
ह्सौ: श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं जूं
क्लीं सं लं श्रीं र: अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं
लं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: ऊं कं खं गं घं डं ऊं चं छं जं झं त्रं ऊं टं
ठं डं ढं णं ऊं तं थं दं धं नं ऊं पं फं बं भं मं ऊं यं रं लं वं ऊं शं षं
हं क्षं स्वाहा।
विधि
यह महाकाली का उग्र मंत्र है।
इसकी साधना विंध्याचल के अष्टभुजा पर्वत पर त्रिकोण
में स्थित काली खोह में करने से शीघ्र
सिद्धि होती है अथवा श्मशान में
भी साधना की जा सकती है,
लेकिन घर में साधना नहीं करनी चाहिए। जप
संख्या 1100 है, जिन्हें 90 दिन तक अवश्य करना चाहिए। दिन में
महाकाली की पंचोपचार पूजा करके यथासंभव
फलाहार करते हुए निर्मलता, सावधानी,
निभीर्कतापूर्वक जप करने से
महाकाली सिद्धि प्रदान करती हैं। इसमें
होमादि की आवश्यकता नहीं होती।
फल
यह मंत्र सार्वभौम है। इससे सभी प्रकार के सुमंगलों,
मोहन, मारण, उच्चाटनादि तंत्रोक्त षड्कर्म
की सिद्धि होती है।
तारा
ऊं ह्लीं आधारशक्ति तारायै पृथ्वीयां नम:
पूजयीतो असि नम:
इस मंत्र का पुरश्चरण 32 लाख जप है। जपोपरांत होम द्रव्यों से
होम करना चाहिए।
फल
सिद्धि प्राप्ति के बाद साधक को तर्कशक्ति, शास्त्र ज्ञान,
बुद्धि कौशल आदि की प्राप्ति होती है।
भुवनेश्वरी
ह्लीं
अमावस्या को लकड़ी के पटरे पर उक्त मंत्र लिखकर
गर्भवती स्त्री को दिखाने से उसे सुखद
प्रसव होता है। गले तक जल में खड़े होकर, जल में
ही सूर्यमंडल को देखते हुए तीन हजार
बार मंत्र का जप करने वाला मनोनुकूल कन्या का वरण करता है।
अभिमंत्रित अन्न का सेवन करने से
लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
कमल पुष्पों से होम करने पर राजा का वशीकरण
होता है।
त्रिपुर सुंदरी
मंत्र
श्रीं ह्लीं क्लीं एं सौ: ऊं
ह्लीं श्रीं कएइलह्लीं हसकहलह्लीं संकलह्लीं सौ:
एं क्लीं ह्लीं श्रीं
विधि
इस मंत्र का पुरश्चरण एक लाख जप है। जप के पश्चात त्रिमधुर
(घी, शहद, शक्कर) मिश्रित कनेर के पुष्पों से होम
करना चाहिए।
फल
कमल पुष्पों के होम से धन व संपदा प्राप्ति, दही के
होम से उपद्रव नाश, लाजा के होम से राज्य प्राप्ति, कपूर, कुमकुम
व कस्तूरी के होम से कामदेव से भी अधिक
सौंदर्य की प्राप्ति होती है। अंगूर के होम
से वांछित सिद्धि व तिल के होम से मनोभिलाषा पूर्ति व गुग्गुल के होम
से दुखों का नाश होता है। कपूर के होमत्व से कवित्व
शक्ति आती है।
छिन्नमस्ता
ऊं श्रीं ह्लीं ह्लीं वज्र
वैरोचनीये ह्लीं ह्लीं फट्
स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण चार लाख जप है। जप का दशांश होम पलाश
या बिल्व फलों से करना चाहिए।
तिल व अक्षतों के होम से सर्वजन वशीकरण,
स्त्री के रज से होम करने पर आकर्षण, श्वेत कनेर
पुष्पों से होम करने से रोग मुक्ति, मालती पुष्पों के होम
से वाचासिद्धि व चंपा के पुष्पों से होम करने पर सुख-
समृद्धि की प्राप्ति होती है।
धूमावती
मंत्र
ऊं धूं धूं धूमावती स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण एक लाख जप है। जप का दशांश तिल मिश्रित
घृत से होम करना चाहिए।
नीम की पत्ती व कौए के पंख
पर उक्त मंत्र खओ 108 बार पढ़कर देवता का नाम लेते हुए धूप
दिखाने से शत्रुओं में परस्पर विग्रह होता है।
बगलामुखी
ऊं ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय
जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊं
स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण एक लाख जप है। जपोपरांत चंपा के पुष्प से
दशांश होम करना चाहिए। इस साधना में पीत वर्ण
की महत्ता है।
इंद्रवारुणी की जड़ को सात बार अभिमंत्रित
करके पानी में डालने से वर्षा का स्तंभन होता है।
सभी मनोरथों की पूर्ति के लिए एकांत में एक
लाख बार मंत्र का जप करें। शहद व शर्करायुत तिलों से होम करने
पर वशीकरण, तेलयुत नीम के पत्तों से होम
करने पर हरताल, शहद, घृत व शर्करायुत लवण से होम करने पर
आकर्षण होता है।
मातंगी
ऊं ह्लीं एं श्रीं नमो भगवति उच्छिष्ट
चांडालि श्रीमातंगेश्वरि सर्वजन वंशकरि स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण दस हजार जप है। जप का दशांश शहद व
महुआ के पुष्पों से होम करना चाहिए। काम्य प्रयोग से पूर्व एक
हजार बार मूलमंत्र का जाप करके पुन: शहदयुक्त महुआ के
पुष्पों से होम करना चाहिए। पलाश के पत्तों या पुष्पों के होम से
वशीकरण, मल्लिका के पुष्पों के होम से लाभ, बिल्व
पुष्पों से राज्य प्राप्ति, नमक से आकर्षण होता है।
कमला
ऊं नम: कमलवासिन्यै स्वाहा
दस लाख जप करें। दशांश शहद, घी व शर्करा युक्त
लाल कमलों से होम करें, तो सभी कामनाएं पूर्ण
होंगी। समुद्र से गिरने
वाली नदी के जल में आकंठ जप करने पर
सभी प्रकार
की संपदा मिलती है।
महालक्ष्मी
ऊं श्रीं ह्लीं श्रीं कमले
कमलालयै प्रसीद प्रसीद ऊं
श्रीं ह्लीं श्रीं महालक्ष्मयै
नम:
एक लाख बार जप करें। शहद, घी व शर्करायुक्त बिल्व
फलों से दशांश होम करने से साधक के घर में
लक्ष्मी वास करती है।
यदि किसी को अधिक धन की प्रबल
कामना हो, तो वह सत्य वाचन करे, लक्ष्मी मंत्र व
श्रीसूक्त का पाठ व मंत्र करे। पूर्वाभिमुख होकर भोजन
करे व वार्तादि भी पूर्वाभिमुख होकर करे। जल में नग्न
होकर स्नान न करें। तेल मलकर भोजन करें। अनावश्यक रूप से भू-
खनन न करें।

Saturday, September 23, 2017

कुंजिकस्त्रोत्र


कुंजिकस्त्रोत्र

अस्य श्री कुन्जिका स्त्रोत्र मंत्रस्य सदाशिव ऋषि:॥
अनुष्टुपूछंदः ॥ श्रीत्रिगुणात्मिका देवता ॥

ॐ ऐं बीजं ॥ ॐह्रीं शक्ति: ॥ ॐक्लीं कीलकं ॥मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोग: ॥

।।शिव उवाच।।
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्र प्रभावेण, चण्डी जापः शुभो भवेत।।
न कवचं नार्गला-स्तोत्रं, कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च, न न्यासो न च वार्चनम्।।
कुंजिका पाठ मात्रेण, दुर्गा पाठ फलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि, देवानामपि दुलर्भम्।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति
मारणं मोहनं वष्यं स्तम्भनोव्च्चाटनादिकम्।
पाठ मात्रेण संसिद्धयेत् कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम्।।

|| अथ महामंत्र ||
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै
विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय
ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं
ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं
लं क्षं फट् स्वाहा।।

नमस्ते रूद्र रूपायै, नमस्ते मधु-मर्दिनि।
नमः कैटभ हारिण्यै, नमस्ते महिषार्दिनि।।1

नमस्ते शुम्भ हन्त्र्यै च, निशुम्भासुर घातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जप, सिद्धिं कुरूष्व मे।।2

ऐं-कारी सृष्टि-रूपायै,ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी काल-रूपिण्यै, बीजरूपे नमोऽस्तुते।।3

चामुण्डा चण्डघाती च,यैकारी वरदायिनी।
विच्चे नोऽभयदा नित्यं, नमस्ते मन्त्ररूपिणि।।4

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नीः,वां वीं वागेश्वरी तथा।
क्रां क्रीं श्रीं में शुभं कुरू, ऐंॐ ऐं रक्ष सर्वदा।।5

ॐॐॐ कार-रूपायै,ज्रां ज्रां ज्रम्भाल-नादिनी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिकादेवि ! शां शीं शूं में शुभं कुरू।।6

ह्रूं ह्रूं ह्रूंकार रूपिण्यै, ज्रं ज्रं ज्रम्भाल नादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे ! भवानि तेनमो नमः।।7

अं कं चं टं तं पं यं शं बिन्दुराविर्भव
आविर्भव हं सं लं क्षं मयि जाग्रय जाग्रय
त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरू कुरू स्वाहा।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा,खां खीं खूं खेचरी तथा।।8

म्लां म्लीं म्लूंदीव्यती पूर्णा, कुंजिकायै नमो नमः।
सां सीं सप्तशती सिद्धिं, कुरूश्व जप-मात्रतः।।9

।।फल श्रुति।।
इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मन्त्र-जागर्ति हेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं, गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देवि,हीनां सप्तशती पठेत्।
तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।

श्री रुद्रयमले गौरी तंत्रे शिव पार्वती संवादे कुंजिका स्त्रोत्र संपूर्णम

हाथों की अँगुलियाँ, बारह राशियाँ एवं प्रणाम मुद्रा का संक्षिप्त परिचय, उपयोगिता एवं महत्व:

हाथों की अँगुलियाँ, बारह राशियाँ एवं प्रणाम
मुद्रा का संक्षिप्त परिचय, उपयोगिता एवं महत्व:

[A] अँगुलियाँ एवं पंचतत्वों के स्थान:
शरीर का निर्माण अग्नि, वायु, आकाश,
पृथ्वी और जल, इन
पाँच तत्वों से हुआ है। इनका निवास क्रमशः अंगुष्ठ,
तर्जनी,
मध्यिका, अनामिका एवं कनिष्ठिका में माना जाता है।
१/. अंगुष्ठ या अँगूठा (सूर्य तत्व का स्थान):
सबसे
पहली अँगुली को अँगूठा या अंगुष्ठ
कहते हैं।
इसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह अन्य
चारों अँगुलियों का मुख्य सहायक होता है।
इसकी सहायता के
बगैर अन्य चारों उँगलियाँ शत-प्रतिशत कार्य संपन्न
नहीं कर सकतीं। शायद
इसी कारण गुरु द्रोण ने एकलव्य से
गुरुदक्षिणा में उसके दाएँ हाथ का अँगूठा ही माँग
लिया था।
बंद मुट्ठी से अँगूठे को बाहर निकालकर दिखाने
को अँगूठा दिखाना या ठेंगा दिखाना कहा जाता है,
जिसका तात्पर्य हमारे यहाँ किसी कार्य को करने से
मना करना समझा जाता है। परंतु पश्चिमी देशों में
ठीक
इसका उल्टा होता है, अर्थात Thumb's up को वहाँ कार्य
करने की स्वीकृति समझा जाता है।
यूँ तो दुनियाँ में करोड़ों मनुष्य हैं, परंतु जिस प्रकार
सबकी मुखाकृति भिन्न होती है,
उसी प्रकार सभी मनुष्यों के
अँगूठों के निशान भी सदैव एक दूसरे से भिन्न होते
हैं।
इसी कारण अपराध जगत में Thumb
Impression
का जबरदस्त महत्व होता है।
२/. तर्जनी (वायु तत्व का स्थान):
यह सबसे ऊर्जावान अँगुली होती है।
हमारे यहाँ विश्वास
किया जाता है कि जो बच्चा जितने अधिक दिनों तक अपने
बड़ों की इस उँगली को पकड़कर
चलता है, वह बड़ों से
उतनी ही ज्यादा ऊर्जा प्राप्त
करता है। उस बालक
का विकास उतनी ही तीव्र
गति से होता है।
तर्जनी का प्रयोग लिखने के लिए अथवा अन्य मुख्य
कार्यों के लिए होता है, जिसमें 'सहायक' मध्यिका एवं
अँगूठा होते हैं।
तर्जनी उँगली में जबरदस्त
ऊर्जा होती है।
इसकी ऊर्जा का अंदाजा मात्र इस बात से
लगाया जा सकता है कि किसी भी प्रकार
का जप करते समय,
माला के किसी भी मनके से इसका स्पर्श
पूर्णतया वर्जित है।
यह
अँगुली इतनी शक्तिशाली होती है
कि इससे मंजन
करना भी निषिद्ध बताया गया है। इस
उँगली से मंजन करने
से दांत बहुत जल्दी कमज़ोर हो जाते हैं। अगर
उँगली से मंजन
करना हो तो मध्यमा से करना चाहिए।
३/. मध्यिका/मध्यमा (आकाश तत्व का स्थान):
यह हाथ की सबसे
लंबी उँगली है। इस
उँगली का मुख्य कार्य
तर्जनी की सहायता करना होता है,
संभवतः इसी कारण जाप
में मनकों से इसका भी स्पर्श निषिद्ध माना जाता है।
४/. अनामिका (पृथ्वी तत्व का स्थान):
यह अत्यंत ही महत्वपूर्ण
उँगली है। इसका सीधा संबंध हृदय
से होता है। अतः सभी शुभ कार्यों में
इसकी मान्यता सर्वाधिक होती है।
'जप' की माला का संचरण
अनामिका एवं अंगुष्ठ की सहायता से
ही किया जाता है।
धार्मिक-कृत्यों हेतु
कुशा भी इसी उँगली में धारण
की जाती है। तिलक, रोरी,
चंदन इस उँगली से ही लगाने
का विधान है।
ग्रहों और नक्षत्रों से संबंधित लगभग सभी रत्न
अँगूठी के
माध्यम से अनामिका में ही धारण किए जाते हैं, इसके
पीछे
कारण यह है कि ये रत्न सूर्यनारायण से सीधे
वांछित
ऊर्जा प्राप्त करते हैं और अनामिका इस ऊर्जा को,
सीधे
जातक (धारण करने वाले) के हृदय तक
पहुँचा देती है। मंत्रों के
जप
आदि की गणना भी इसी उँगली से
प्रारंभ की जाती है।
५/. कनिष्ठा/कनिष्का/कनिष्ठिका (जल तत्व का स्थान):
यह हाथ की सबसे
छोटी उँगली है, जो हर प्रकार से
अनामिका की सहायता करती है। इसे
अनामिका की सहायिका कहा जाता है।
किसी-किसी व्यक्ति के हाथ में
छः उँगलियाँ भी होती हैं।
लोगों का विश्वास है कि जिन पुरुषों के दाहिने हाथ में एवं
जिन स्त्रियों के बाएँ हाथ में छः उँगलियाँ होती हैं, वे
बड़े
भाग्यशाली होते हैं।
[B] राशियों का स्थान:
ज्योतिष-विद्या के अनुसार बारहों राशियों का स्थान प्रत्येक
उँगली के तीन पोरों (गाँठों) में इस प्रकार
होता है:
कनिष्का – मेष, वृष, मिथुन।
अनामिका – कर्क, सिंह, कन्या।
मध्यिका – तुला, वृश्चिक, धनु।
तर्जनी – मकर, कुंभ, मीन।
[C] प्रणाम मुद्रा:
दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनती है, उसे प्रणाम
मुद्रा कहते हैं। जब
दोनों हाथों की सभी उँगलियाँ आपस में
एक दूसरे से (अर्थात अंगुष्ठ से अंगुष्ठ, तर्जनी से
तर्जनी,
मध्यिका से मध्यिका, अनामिका से अनामिका एवं कनिष्ठा से
कनिष्ठा) मिलती हैं तो शरीर
(जोकि ब्रह्मांड का एक
छोटा रूप माना जाता है) के उत्तरी ध्रुव (बाएँ हाथ)
एवं
दक्षिण ध्रुव (दाएँ हाथ) के पारस्परिक मिलन से बाएँ हाथ में
स्थित सभी बारह राशियों का, दाहिने हाथ में स्थित
सभी बारह राशियों से संपर्क होते
ही एक चक्र पूर्ण होता है।
और इस प्रकार
दोनों हाथों की खुली हुई
हथेलियों को आपस
में जोड़कर, साथ ही साथ अपने सिर को सामने
की ओर झुकाते
हुए इन हाथों को जब भृकुटि से स्पर्श किया जाता है तो पूर्ण
प्रणाम-मुद्रा बनती है। प्रणाम-मुद्रा से मन में
शांति एवं
चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होती है।
अतः आईए, हेलो, हाय, टाटा, बाय को छोड़कर प्रणाम
मुद्रा अपनाएँ और चित्त को प्रसन्न रखें। करके देखिये। सच
में अच्छा लगेगा।

Wednesday, September 20, 2017

शाबर-मन्त्र-अनुभूत-प्रयोग

शाबर-मन्त्र-अनुभूत-प्रयोग
        हनुमान रक्षा-शाबर मन्त्र
“ॐ गर्जन्तां घोरन्तां, इतनी छिन
कहाँ लगाई ? साँझ क वेला, लौंग-सुपारी-पान-फूल-
इलायची-धूप-दीप-रोट॒लँगोट-फल-
फलाहार मो पै माँगै। अञ्जनी-पुत्र ‌प्रताप-रक्षा-क
ारण वेगि चलो। लोहे की गदा कील, चं चं
गटका चक कील, बावन भैरो कील,
मरी कील, मसान कील,
प्रेत-ब्रह्म-राक्षस कील, दानव कील,
नाग कील, साढ़ बारह ताप कील,
तिजारी कील, छल कील, छिद
कील, डाकनी कील,
साकनी कील, दुष्ट कील,
मुष्ट कील, तन कील, काल-
भैरो कील, मन्त्र कील, कामरु देश के
दोनों दरवाजा कील, बावन वीर
कील, चौंसठ जोगिनी कील,
मारते क हाथ कील, देखते क नयन
कील, बोलते क जिह्वा कील, स्वर्ग
कील, पाताल कील,
पृथ्वी कील, तारा कील,
कील बे कील,
नहीं तो अञ्जनी माई
की दोहाई फिरती रहे। जो करै वज्र
की घात, उलटे वज्र उसी पै परै। छात
फार के मरै। ॐ खं-खं-खं जं-जं-जं वं-वं-वं रं-रं-रं
लं-लं-लं टं-टं-टं मं-मं-मं। महा रुद्राय नमः।
अञ्जनी-पुत्राय नमः। हनुमताय नमः। वायु-पुत्राय
नमः। राम-दूताय नमः।”
विधिः- अत्यन्त लाभ-दायक अनुभूत मन्त्र है। १००० पाठ करने
से सिद्ध होता है। अधिक कष्ट हो,
तो हनुमानजी का फोटो टाँगकर, ध्यान लगाकर लाल
फूल और गुग्गूल की आहुति दें। लाल लँगोट, फल,
मिठाई, ५ लौंग, ५ इलायची, १
सुपारी चढ़ा कर पाठ करें।

            गोरख शाबर गायत्री मन्त्र
“ॐ गुरुजी, सत नमः आदेश।
गुरुजी को आदेश। ॐकारे शिव-
रुपी, मध्याह्ने हंस-रुपी,
सन्ध्यायां साधु-रुपी। हंस, परमहंस दो अक्षर। गुरु
तो गोरक्ष, काया तो गायत्री। ॐ ब्रह्म,
सोऽहं शक्ति, शून्य माता, अवगत पिता, विहंगम जात, अभय
पन्थ, सूक्ष्म-वेद, असंख्य शाखा, अनन्त प्रवर, निरञ्जन
गोत्र, त्रिकुटी क्षेत्र, जुगति जोग, जल-स्वरुप रुद्र-
वर्ण। सर्व-देव ध्यायते। आए श्री शम्भु-जति गुरु
गोरखनाथ। ॐ सोऽहं तत्पुरुषाय विद्महे शिव गोरक्षाय
धीमहि तन्नो गोरक्षः प्रचोदयात्। ॐ
इतना गोरख-गायत्री-जाप सम्पूर्ण भया।
गंगा गोदावरी त्र्यम्बक-क्षेत्र कोलाञ्चल अनुपान
शिला पर सिद्धासन बैठ। नव-नाथ, चौरासी सिद्ध,
अनन्त-कोटि-सिद्ध-मध्ये श्री शम्भु-जति गुरु
गोरखनाथजी कथ पढ़, जप के सुनाया। सिद्धो गुरुवरो,
आदेश-आदेश।।”
साधन-विधि एवं प्रयोगः-
प्रतिदिन गोरखनाथ
जी की प्रतिमा का पंचोपचार से पूजनकर
२१, २७, ५१ या १०८ जप करें। नित्य जप से भगवान् गोरखनाथ
की कृपा मिलती है, जिससे साधक और
उसका परिवार सदा सुखी रहता है। बाधाएँ स्वतः दूर
हो जाती है। सुख-सम्पत्ति में
वृद्धि होती है और अन्त में परम पद प्राप्त
होता है।

              दुर्गा शाबर मन्त्र
“ॐ ह्रीं श्रीं चामुण्डा सिंह-
वाहिनी। बीस-
हस्ती भगवती, रत्न-मण्डित सोनन
की माल। उत्तर-पथ में आप बैठी, हाथ
सिद्ध वाचा ऋद्धि-सिद्धि। धन-धान्य देहि देहि, कुरु कुरु
स्वाहा।”
विधिः- उक्त मन्त्र का सवा लाख जप कर सिद्ध कर लें। फिर
आवश्यकतानुसार श्रद्धा से एक माला जप करने से
सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
लक्ष्मी प्राप्त होती है,
नौकरी में उन्नति और व्यवसाय में
वृद्धि होती है।
           
             लक्ष्मी शाबर मन्त्र
“विष्णु-प्रिया लक्ष्मी, शिव-
प्रिया सती से प्रकट हुई।
कामाक्षा भगवती आदि-शक्ति, युगल मूर्ति अपार,
दोनों की प्रीति अमर, जाने संसार। दुहाई
कामाक्षा की। आय बढ़ा व्यय घटा। दया कर माई।
ॐ नमः विष्णु-प्रियाय। ॐ नमः शिव-प्रियाय।
ॐ नमः कामाक्षाय।
ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट्
स्वाहा।”
विधिः- धूप-दीप-नैवेद्य से पूजा कर सवा लक्ष जप
करें। लक्ष्मी आगमन एवं चमत्कार प्रत्यक्ष दिखाई
देगा। रुके कार्य होंगे।
लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।

Wednesday, September 13, 2017

दिशाशूल क्या होता है ?

दिशाशूल क्या होता है ?

क्यों बड़े बुजुर्ग तिथि देख कर आने-जाने की रोक-टोक करते हैं ?
युवा पीढ़ी भले हि उन्हें पुराने सोच वाले कहे लेकिन बड़े सदा बड़े ही रहते हैं !
इसलिए आदर करे उनकी बातों का l
दिशाशूल समझने से पहले हमें दस दिशाओं के विषय में ज्ञान होना आवश्यक है|
हम सबने पढ़ा है कि दिशाएं ४ होती हैं |१ पूर्व २ पश्चिम
३ उत्तर ४ दक्षिण !
परन्तु जब हम उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं तो ज्ञात होता है कि वास्तव में दिशाएँ दस होती हैं |
१ पूर्व
२ पश्चिम
३ उत्तर
४ दक्षिण
५ उत्तर - पूर्व
६ उत्तर - पश्चिम
७ दक्षिण – पूर्व
८ दक्षिण – पश्चिम
९ आकाश १० पाताल l
हमारे सनातन धर्म के ग्रंथो में सदैव १० दिशाओं का ही वर्णन किया गया है,जैसे हनुमान जी ने युद्ध में इतनी आवाज की कि उनकी आवाज दसों दिशाओं में सुनाई दी हम यह भी जानते हैं कि प्रत्येक दिशा के देवता होते हैं |
दसों दिशाओं को समझने के पश्चात अब हम बात करते हैं वैदिक ज्योतिष की |
ज्योतिष शब्द ज्योति से बना है जिसका भावार्थ होता है प्रकाश | वैदिक ज्योतिष में अत्यंत विस्तृत रूप में मनुष्य के जीवन की हर परिस्तिथियों से सम्बन्धित विश्लेषण किया गया है कि मनुष्य यदि इसको तनिक भी समझ ले तो वह अपने जीवन में उत्पन्न होने वाली बहुत सी समस्याओं से बच सकता है और अपना जीवन सुखी बना सकता है |
दिशाशूल क्या होता है ?
दिशाशूल वह दिशा है जिस तरफ यात्रा नहीं करना चाहिए
हर दिन किसी एक दिशा की ओर दिशाशूल होता है।
१ सोमवार और शुक्रवार को पूर्व !
२ रविवार और शुक्रवार को पश्चिम !
३ मंगलवार और बुधवार को उत्तर !
४ गुरूवार को दक्षिण !
५ सोमवार और गुरूवार को दक्षिण-पूर्व !
६ रविवार और शुक्रवार को दक्षिण-पश्चिम !
७ मंगलवार को उत्तर-पश्चिम
८ बुधवार और शनिवार को उत्तर-पूर्व !
परन्तु यदि एक ही दिन यात्रा करके उसी दिन वापिस आ जाना हो तो ऐसी दशा में दिशाशूल का विचार नहीं किया जाता है |
परन्तु यदि कोई आवश्यक कार्य हो ओर उसी दिशा की तरफ यात्रा करनी पड़े, जिस दिन वहाँ दिशाशूल हो तो यह उपाय करके यात्रा कर लेनी चाहिए !
रविवार दलिया और घी खाकर !
सोमवार दर्पण देख कर !
मंगलवार गुड़ खा कर !
बुधवार तिल, धनिया खा कर !
गुरूवार दही खा कर !
शुक्रवार जौ खा कर !
शनिवार अदरक अथवा उड़द की दाल खा कर !
साधारणतया दिशाशूल का इतना विचार नहीं किया जाता परन्तु यदि व्यक्ति के जीवन का अति महत्वपूर्ण कार्य है तो दिशाशूल का ज्ञान होने से व्यक्ति मार्ग में आने वाली बाधाओं से बच सकता है |
आशा करता हूँ कि आपके जीवन में भी यह उपयोगी सिद्ध होगा तथा आप इसका लाभ उठाकर अपने दैनिक जीवन में सफलता प्राप्त करेंगे |

Sunday, September 10, 2017

अस्ठ्म भाव

अस्ठ्म भाव

अस्ठ्म भाव जो हमारी आयु को मापता है यानी की मृत्यु का भाव है जो छुपे हुवे रहस्यों खजानों गुप्त शक्तियों अँधेरे का भाव होता है उस भाव में रौशनी का कारक ग्रह सूर्य कुछ सीमा तक कमजोर अवस्य हो जाता है | ऐसे में अस्ठ्म भाव वाले सूर्य के जातक को आंखों से सम्बन्धित समस्या का सामना करना पड़ता है लेकिन ये बात भी होती है की ऐसा जातक अँधेरे में भी किसी वस्तु का अन्य जातकों के मुकाबले सही अनुमान लगा लेता है याने अधेरे में किसी वस्तु को खोजना उसके लिय आसान होता है | इसी तरह ऐसे जातक जमीन में छुपे हुवे खजानों वस्तु भूगर्भ विज्ञान आदि में आसानी से सफल हो सकते है | सूर्य जो हमारी आत्मा का कारक माना जाता है ऐसे में इस भाव में शुभ सिथ्ती में यदि सूर्य अकेला हो तो ऐसे जातक के सामने किसी प्राणी की आत्मा उसका साथ नही छोडती इसिलिय ऐसा माना जाता है की यदि कोई गम्भीर संकट से गुजर रहा हो तो ऐसे जातक को उसके सामने से हट जाना चाहिए ताकि वो इस नश्वर संसार से मुक्ति पा सके | सूर्य यहाँ यदि शुभ फल देने वाला सिद्ध हो रहा ह तो जातक उजड़े हुवे मकानों को भी बसा देने वाला होता है | पथ्थर से आग और आग से पानी बना लेने की पैदा कर लेने की ताकत का मालिक होता है यानी की जातक को गुप्त शक्तियाँ भी मिल सकती है | ये मारक भाव होता है जहां बिच्छू का स्वरूप विर्स्चिक राशि आती है और इस बिच्छु से मौत के मौत के डंक से बचा लेने की सिफ्फ्त का मालिक यहाँ का सूर्य बन जाता है यानी की किसी मरते हुवे को भी बचा लेने की शक्ति का मालिक लेकिन साथ ही ये शर्त होती है की जातक ससुराल का कुता न बने यानी की घर जमाई न बने और अपने बड़े भाई की सेवा करे |
सूर्य शुभ होने की निशानी होगी की अंगूठे की सबसे निचली पोरी पर साखदार रेखा होगी और सूर्य का बुर्ज हाथ में उंचा होगा और सूर्य रेखा अच्छी हालत में हाथ में कायम कर लेगी |
अस्ठ्म भाव हमारे विवाह के भाव सप्तम से दूसरा होता है इसिलिय ऐसे जातकों को शादी के बाद धन लाभ मिलता है और उसकी आर्थिक सिथ्ती में सुधार होता है | वैसे समान्य तोर पर यहाँ के सूर्य का जातक की आर्थिक हालत पर शुभ प्रभाव नही पड़ता क्योंकि उसकी सप्तम दृष्टी दुसरे धन भाव पर होती है |
पुराने ज्योतिष ग्रंथो में अस्ठ्म भाव को विदेश यात्रा का भी माना जाता था इसिलिय इस भाव के सूर्य वाले जातक का विदेश से लाभ मिलने के योग प्रबल हो जाते है |
दुनियावी प्राप्ति के तोर पर यहाँ का सूर्य शुभ फल नही देता क्योंकि पूरी दुनिया को रौशनी देने वाला पते पते को हरा कर देने वाला सूर्य यहाँ खुद एक सूखे हुवे पेड़ की तरह हो जाता है ऐसे में जातक के जीवन में दुनियावी सुख की कंही न कंही कमी रह जाती है और वो उन्हें पूर्ण रूप से प्राप्त नही कर पाता|
ऐसा माना जाता है की सूर्य चन्द्र को अस्ठ्म का दोष नही लगता लेकिन ज्योतिष के सभी ग्रंथो में इनके अशुभ फल इन भावों में कुछ न कुछ अवस्य बताये है |
यहाँ सूर्य होने पर जातक अपनी सन्तान के प्रति कुछ न कुछ चिंतित अवस्य रहता है | सूर्य पर यदि पापी ग्रह शनी राहू की दृष्टी आ रही हो साथ ही कुंडली का चोथा भाव भी पीड़ित हो तो जातक को ह्दय रोग होने की सम्भवना बन जाती है |
सूर्य अस्ठ्म भाव वाले जातक को सफेद गाय की सेवा न करके काली या लाल गाय की सेवा करनी चाहिए | अस्ठ्म भाव सूर्य के लिय माना जाता है की जन्म चाहे वीराने में हो लेकिन गुरु की गद्दी पाने की सिफ्फ्त का मालिक होता है | किस्मत की हार बेशक चाहे न मिले लेकिन अपने हाथो से किस्मत की हार होगी यानि की ऐसा जातक यदि मांगकर खाने की आदत पाल ले या दुसरो के रहमों कर्म पर जीना सुरु कर दें , दूसरों से सहयता की उम्मीद रखे तो वो गरीबी के बोझ तले दब के मर जाता है यानी की गरीबी उसे उभरने ही नही देती | ऐसा जातक जब तक अपने खून के रिश्तेदारों से लड़ाई झगड़ा न करे उसे सूर्य उत्तम फल ही देगा |
यदि सूर्य अस्ठ्म के अशुभ फल मिल रहे हो तो सूर्य की कारक वस्तु गेहू को मन्दिर में 43 दिन लगातार दान करना चाहिए |
मित्रों ये आंशिक विवेचना है जैसा की आपको पता है की पूर्ण फल कुंडली में अन्य ग्रहों की सिथ्ती पर निर्भर करता है |