उदय+अस्त+वक्री ग्रह एवं
उनकी अवस्थायों का प्रभाव
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कोई भी ग्रह कितने ही अंशों का क्यूँ
न हो लेकिन प्रत्येक ग्रहों के ३०-००-०० अंश होते हैं.और
इन्ही से ग्रहों की उदय-अस्त-
वक्री तथा अवस्थाओं का ज्ञान होता है.
अवस्थाओं में ३-९ अंशों के बीच ग्रह बालक
होता है.९-१५ के बीच अंशों के ग्रह कुमार
की श्रेणी में आते हैं. १५-२१ अंशों के
ग्रह युवा कहलाते हैं.२१-२७ के बीच में ग्रह
वृद्ध हो जाते हैं तथा २७-०३ के अंशों में ग्रह मृत्यु को प्राप्त
होते हैं.अगर इसे अस्त कहा जाए तो गलत न होगा.ऐसे
ग्रहों का प्रभाव बहुत ही सूक्ष्म
होता है.प्रत्येक ग्रह में अवस्थाओं के अनुसार फल करते
हैं.
सूर्य के पास के ग्रह अगर सूर्य के अंशों के बराबर हुए
तो ग्रह अस्त हो जाता है
उसकी सारी ताकत सूर्य में
समा जाती है.लेकिन सूर्य से ८ अंशों से आगे ग्रह
आधा अस्त माना जाता है.अगर ग्रह सूर्य से १५ अंशों से
अधिक है तो ग्रह उदय कहलाता है.
वक्री ग्रह सीधे चलते चलते
थोड़ा रास्ते से हटकर चलते हैं.जैसे कोई लक्ष्य पर घूमकर
आता है.लेकिन रुकता नहीं है.जबकि देखने में
लगता है मानों उल्टा चल रहा है हालांकि ऐसा है
नहीं.
कोई भी ग्रह अगर २९-०१ अंश का है तो वह
बहुत ही हानिकारक होता है.अगर लग्न
इसी अंश पर है तो शारीरिक कष्ट मिलते
हैं.इसी के साथ अगर लग्नेश कमजोर हुआ
या ६-८-१२ में चला गया तो मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट होता है.
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