Thursday, August 31, 2017

।।शुक्रनीति ।।

।।शुक्रनीति ।।

कितनी भी कोशिश कर लें, ये 6 चीज़ें हमेशा नहीं टिकती।
कई चीजें ऐसी होती हैं, जो मनुष्य को बहुत प्रिय होती है। उन्हें पाने या उस पर हमेशा अधिकार बनाए रखने के लिए वह बहुत कोशिश करता है, लेकिन एक समय आने पर वह वस्तु उससे दूर हो ही जाती है। शुक्रनीति में ऐसी ही 6 वस्तुओं के बारे में बताया गया हैं, जिन्हें हमेशा अपने पास बनाए रखना किसी के लिए भी संभव नहीं है। शुक्रनीति एक प्रसिद्ध नीतिग्रन्थ है। इसकी रचना दानवों के गुरु शुक्राचार्य ने की थी।
।। श्लोक ।।
"यौवनं जीवितं चित्तं छाया लक्ष्मीश्र्च स्वामिता।
चंचलानि षडेतानि ज्ञात्वा धर्मरतो भवेत्।।"
1. यौवन और रूप
हर कोई चाहता हैं कि उसका रूप-रंग हमेशा ऐसे ही बना रहे, वो कभी बूढ़ा न हों, लेकिन ऐसा होना किसी के लियेे भी संभव नहीं होता है। यह प्रकृति का नियम है कि एक समय के बाद हर किसी का युवा अवस्था उसका साथ छोड़ती ही है। अब हमेशा युवा बने रहने के लिए मनुष्य चाहे कितनी ही कोशिशें कर ले, लेकिन ऐसा नहीं कर पाता।
2. जीवन
जन्म और मृत्यु मनुष्य जीवन के अभिन्न अंग है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित ही है। कोई भी मनुष्य चाहे कितने ही पूजा-पाठ कर ले या दवाइयों का सहारा ले, लेकिन एक समय के बाद उसकी मृत्यु होगी ही। इसलिए, अपने या अपने किसी भी प्रियजन के जीवन से मोह बांधना अच्छी बात नहीं है।
3. मन
हर किसी का मन बहुत ही चंचल होता हैं, यह मनुष्य की प्रवृत्ति होती है। कई लोग कोशिश करते हैं कि उनका मन उनके वश में रहे, लेकिन कभी न कभी उनका मन उनके वश से बाहर हो ही जाता है और वे ऐसे काम कर जाते हैं, जो उन्हें नहीं करना चाहिए। कुछ लोगों का मन धन-दौलत में होता है तो कुछ लोगों का अपने परिवार में। मन को पूरी तरह से वश में करना तो बहुत ही मुश्किल है, लेकिन योग और ध्यान की मदद से काफी हद तक मन पर काबू पाया जा सकता है।
4. परछाई
मनुष्य की परछाई उसका साथ सिर्फ तब तक देती है, जब तक वह धूप में चलता है। अंधकार आते ही मनुष्य की छाया भी उसका साथ छोड़ देती है। जब मनुष्य की अपनी छाया हर समय उसका साथ नहीं देती ऐसे में किसी भी अन्य व्यक्ति से इस बात की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वे हर समय हर परिस्थिति में आपका साथ देंगे।
5. लक्ष्मी ( धन)
धन-संपत्ति हर किसी की चाह होती है। हर मनुष्य चाहता है कि उसके पास धन-दौलत हो, जीवन की सभी सुख-सुविधाएं हों। ऐसे में कई लोग धन से अपना मोह बांध लेते हैं। वे चाहते हैं कि उनका धन हमेशा उन्हीं के पास रहें, लेकिन ऐसा हो पाना संभव नहीं होता। मन की तरह ही धन का भी स्वभाव बड़ा ही चंचल होता है। वह हर समय किसी एक जगह पर या किसी एक के पास नहीं टिकता। इसलिए धन से मोह बांधना ठीक नहीं होता।
6. सत्ता या अधिकार
कई लोगों को पॉवर यानि अधिकार पाने का शौक होता है। वे लोग चाहते हैं कि उन्हें मिला पद या अधिकार पूरे जीवन उन्हीं के साथ रहें, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है। जिस तरह परिवर्तन प्रकृति का नियम है, उसी तरह पद और अधिकारों का परिवर्तन भी समय-समय पर जरूरी होता है। ऐसे में अपने वर्तमान पद या अधिकार को हमेशा अपने ही पास रखने की इच्छा मन में नहीं होनी चाहिये |

Wednesday, August 30, 2017

चाणक्य नीति- पुरुषों को ये 4 बातें कभी भी किसी को बतानी नहीं चाहिए

चाणक्य नीति- पुरुषों को ये 4 बातें कभी भी किसी को बतानी नहीं चाहिए

आचार्य चाणक्य द्वारा बताई गई नीतियों में सफल और सुखी जीवन के कई सूत्र बताए गए हैं। यदि कोई व्यक्ति चाणक्य की नीतियों का पालन करता है तो निश्चित ही वह कई प्रकार की परेशानियों से बच सकता है। अक्सर जाने-अनजाने कुछ लोग ऐसी बातें दूसरों को बता देते हैं, जो भविष्य में किसी बड़े संकट का कारण बन जाती हैं। चाणक्य ने मुख्य रूप से चार ऐसी बातें बताई हैं, जिन्हें हमेशा राज ही रखना चाहिए। जो लोग ये बातें अन्य लोगों के सामने जाहिर कर देते हैं, वे परेशानियों का सामना करते हैं।
आचार्य कहते हैं कि-
अर्थनाशं मनस्तापं गृहिणीचरितानि च।
नीचवाक्यं चापमानं मतिमान्न प्रकाशयेत् ..
गुप्त रखने योग्य प्रथम बात
इस श्लोक में पहली बात ये बताई गई है कि हमें कभी अर्थ नाश यानी धन की हानि से जुड़ी बातें किसी पर जाहिर नहीं करनी चाहिए। यदि हमें धन की हानि का सामना करना पड़ रहा है और हमारी आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है तो यह स्थिति किसी के सामने प्रकट नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जब ये बात सभी को मालूम हो जाएगी तो धन संबंधी मामलों में कोई भी मदद नहीं करेगा। समाज में गरीब व्यक्ति को धन की मदद आसानी से प्राप्त नहीं पाती है हो। अत: इस बात को सदैव राज ही रखना चाहिए।
गुप्त रखने योग्य दूसरी बात
चाणक्य ने गुप्त रखने योग्य दूसरी बात यह बताई है कि हमें कभी भी मन संताप यानी दुख की बातें किसी पर जाहिर नहीं करनी चाहिए। यदि हम मन का संताप दूसरों पर जाहिर करेंगे तो लोग उसका मजाक बना सकते हैं, क्योंकि समाज में ऐसे लोग काफी हैं, जो दूसरों के दुखों का मजाक बनाते हैं। ऐसा होने पर दुख और बढ़ जाता है।
गुप्त रखने योग्य तीसरी बात
यहां दिए गए श्लोक में तीसरी गुप्त रखने योग्य बात है गृहिणी (पत्नी) का चरित्र। समझदार पुरुष वही है, जो अपनी पत्नी से जुड़ी सभी बातें गुप्त रखता है। घर-परिवार के झगड़े, सुख-दुख आदि बातें समाज में जाहिर नहीं करनी चाहिए। जो पुरुष ऐसा करते हैं, उन्हें भविष्य में भयंकर परिणाम झेलने पड़ सकते हैं।
गुप्त रखने योग्य चौथी बात
यहां दिए गए श्लोक में चौथी गुप्त रखने योग्य बात यह है की यदि जीवन में कभी भी किसी नीच व्यक्ति ने हमारा अपमान किया हो तो वह घटना भी किसी को बतानी नहीं चाहिए। ऐसी घटनाओं की जानकारी अन्य लोगों को मालूम होगी तो वे भी हमारा मजाक बनाएंगे और हमारी प्रतिष्ठा में कमी आएगी।
चाणक्य नीति: इन 5 के बीच में से कभी नहीं निकलना चाहिए
चाणक्य ने सुखी और श्रेष्ठ जीवन के लिए कई नीतियां बताई हैं, आज भी यदि इन नीतियों का पालन किया जाए तो हम कई परेशानियों से बच सकते हैं। यहां जानिए चाणक्य की एक नीति, जिसमें बताया गया है कि हमें किन लोगों या चीजों के बीच में से नहीं निकलना चाहिए ..
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चाणक्य कहते हैं कि-
"विप्रयोर्विप्रवह्नेश्च दम्पत्यो: स्वामिभृत्ययो :.
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्य च .. "
इस श्लोक में आचार्य ने 5 ऐसे लोग और चीजें बताई हैं जिनके बीच में निकलना नहीं चाहिए ... जानिए ये 5 कौन हैं ...
दो ज्ञानी लोग
जब दो ब्राह्मण या ज्ञानी लोग बात कर रहे हों तो उनके बीच में से निकलना नहीं चाहिए। एक पुरानी कहावत है ज्ञानी से ज्ञानी मिलें करें ज्ञान की बात। यानी जब दो ज्ञानी लोग मिलते हैं तो वे ज्ञान की बातें ही करते हैं। अत: ऐसे समय में उनकी बातचीत में बाधा उत्पन्न नहीं करना चाहिए।
ब्राह्मण और अग्नि
यदि किसी स्थान पर कोई ब्राह्मण अग्नि के पास बैठा हो तो इन दोनों के बीच में से भी नहीं निकलना चाहिए। ऐसी परिस्थिति में यह संभव है कि वह ब्राह्मण हवन या यज्ञ कर रहा हो और हमारी वजह से उसका पूजन अधूरा रह सकता है।
मालिक और नौकर
जब स्वामी और सेवक बातचीत कर रहे हों तो उनके बीच में से भी निकलना नहीं चाहिए। हो सकता है कि स्वामी अपने सेवक को कोई जरूरी काम समझा रहा हो। ऐसे समय पर यदि हम उनके बीच में निकलेंगे तो मालिक और नौकर के बीच संवाद बाधित हो जाएगा।
पति और पत्नी
यदि किसी स्थान पर कोई पति-पत्नी खड़े हों या बैठे हों तो उसके बीच में नहीं निकलना चाहिए। यह अनुचित माना गया है। ऐसा करने पर पति-पत्नी का एकांत भंग होता है। हो सकता है पति-पत्नी, घर-परिवार की किसी गंभीर समस्या पर चर्चा कर रहे हों या निजी बातचीत कर रहे हों तो हमारी वजह से उनके निजी पलों में बाधा उत्पन्न सकती है हो।
हल और बैल
कहीं हल और बैल, एक साथ दिखाई दें तो उनके बीच में से नहीं निकलना चाहिए। यदि इनके बीच में निकलने का प्रयास किया जाएगा तो चोट लग सकती है। अत: हल और बैल से दूर रहना चाहिए।
आचार्य चाणक्य का संक्षिप्त परिचय
भारत के इतिहास में आचार्य चाणक्य का महत्वपूर्ण स्थान है। एक समय जब भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था और विदेशी शासक सिकंदर भारत पर आक्रमण करने के लिए सीमा तक आ पहुंचा था, तब चाणक्य ने अपनी नीतियों से भारत की रक्षा की थी। चाणक्य ने अपने प्रयासों और अपनी नीतियों के बल पर एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त को भारत का सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य बना दिया और अखंड भारत का निर्माण किया।
चाणक्य के काल में पाटलीपुत्र (वर्तमान में पटना) बहुत शक्तिशाली राज्य मगध की राजधानी था। उस समय नंदवंश का साम्राज्य था और राजा था धनानंद। कुछ लोग इस राजा का नाम महानंद भी बताते हैं। एक बार महानंद ने भरी सभा में चाणक्य का अपमान किया था और इसी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए आचार्य ने चंद्रगुप्त को युद्धकला में पारंगत किया। चंद्रगुप्त की मदद से चाणक्य ने मगध पर आक्रमण किया और महानंद को पराजित किया।
आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। जो भी व्यक्ति इन नीतियों का पालन करता है, उसे जीवन में सभी सुख-सुविधाएं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

Tuesday, August 29, 2017

उदय+अस्त+वक्री ग्रह एवं उनकी अवस्थायों का प्रभाव

उदय+अस्त+वक्री ग्रह एवं
उनकी अवस्थायों का प्रभाव
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कोई भी ग्रह कितने ही अंशों का क्यूँ
न हो लेकिन प्रत्येक ग्रहों के ३०-००-०० अंश होते हैं.और
इन्ही से ग्रहों की उदय-अस्त-
वक्री तथा अवस्थाओं का ज्ञान होता है.
अवस्थाओं में ३-९ अंशों के बीच ग्रह बालक
होता है.९-१५ के बीच अंशों के ग्रह कुमार
की श्रेणी में आते हैं. १५-२१ अंशों के
ग्रह युवा कहलाते हैं.२१-२७ के बीच में ग्रह
वृद्ध हो जाते हैं तथा २७-०३ के अंशों में ग्रह मृत्यु को प्राप्त
होते हैं.अगर इसे अस्त कहा जाए तो गलत न होगा.ऐसे
ग्रहों का प्रभाव बहुत ही सूक्ष्म
होता है.प्रत्येक ग्रह में अवस्थाओं के अनुसार फल करते
हैं.
सूर्य के पास के ग्रह अगर सूर्य के अंशों के बराबर हुए
तो ग्रह अस्त हो जाता है
उसकी सारी ताकत सूर्य में
समा जाती है.लेकिन सूर्य से ८ अंशों से आगे ग्रह
आधा अस्त माना जाता है.अगर ग्रह सूर्य से १५ अंशों से
अधिक है तो ग्रह उदय कहलाता है.
वक्री ग्रह सीधे चलते चलते
थोड़ा रास्ते से हटकर चलते हैं.जैसे कोई लक्ष्य पर घूमकर
आता है.लेकिन रुकता नहीं है.जबकि देखने में
लगता है मानों उल्टा चल रहा है हालांकि ऐसा है
नहीं.
कोई भी ग्रह अगर २९-०१ अंश का है तो वह
बहुत ही हानिकारक होता है.अगर लग्न
इसी अंश पर है तो शारीरिक कष्ट मिलते
हैं.इसी के साथ अगर लग्नेश कमजोर हुआ
या ६-८-१२ में चला गया तो मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट होता है.

अशोक पत्तों के चमत्कारी उपाय :

अशोक पत्तों के चमत्कारी उपाय :
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1) यदि कोई व्यक्ति धन की कमियों से परेशान है तो उसकी समस्याओं का समाधान अशोक के वृक्ष से किया जा सकता है। अशोक के वृक्ष की जड़ को आमंत्रण देकर अपने घर ले आएं और तिजोरी में या दुकान में या किसी पवित्र स्थान पर रखने से पैसों की समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।

2) यदि किसी घर में पति-पत्नी के बीच तनाव रहता हो, लड़ाई-झगड़े अधिक होते हो तो अशोक के 7 पत्ते घर में देवी-देवताओं की प्रतिमा के सामने रखें। जब भी पत्ते मुरझा जाए तो दूसरे सात पत्ते रख दें। जो पत्ते सुख जाते हैं या मुरझा जाते हैं उन्हें पीपल के वृक्ष की जड़ों में डाल देना चाहिए। इस उपाय से पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है।

3) जब भी घर में कोई मांगलिक उत्सव मनाया जाए या कोई त्यौहार हो या कोई विवाह आदि कार्यक्रम हो तो अशोक के पत्तों की वंदनवार लगाएं। वंदनवार ऐसे लगाए कि उसके नीचे से निकलने वाले लोगों के सिर पर वह स्पर्श होती रहे। वंदरवार अधिक ऊपर नहीं लगाई जाना चाहिए। इसके प्रभाव से घर परिवार में सुख और शांति बढ़ती है। कार्यों में सफलता मिलती है।

4) अशोक के वृक्ष की वंदनवार बहुत चमत्कारी होती है। वंदनवाल के हरे पत्ते ही नहीं बल्कि सुखे पत्ते भी घर को नकारात्मक ऊर्जा से बचाए रखते हैं। इसी लिए इसकी वंदनवार को एक बार बांधने के बाद तब तक नहीं उतारा जाता है जब तक कि कोई दूसरा मांगलिक अवसर न आ जाए।

5) यदि कोई व्यक्ति तांबे के ताबीज में अशोक के बीज को धारण करें तो उसे सभी प्रकार के कार्यों में सफलता मिलती है। धन संबंधी कामों में आ रही रुकावटें दूर हो जाती हैं और समाज में मान-सम्मान मिलता है। जो लोग देवी मां के भक्त हैं और माता की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं वे अशोक के वृक्ष में प्रतिदिन जल चढ़ाएं। जल चढ़ाते समय देवी मंत्रों का जप करना विशेष लाभदायक रहता है। इस उपाय से देवी कृपा प्राप्त होती है और किस्मत साथ देने लगती है।

6) यदि कोई स्त्री अशोक के वृक्ष की छाल को पानी में उबालकर पीए तो कई रोगों में यह फायदेमंद होता है। अशोकारिष्ट इस वृक्ष से बनने वाली प्रमुख औषधि है।

7) यदि कोई व्यक्ति अशोक के वृक्ष के फूल को पीसकर शहद के साथ सेवन करें तो उसे स्वास्थ्य संबंधी कई लाभ मिलते हैं ।यदि कोई व्यक्ति अशोक के पत्तों को सिर पर धारण करें या अपने पास रखें तो उसे सभी कार्यों में सफलता मिलती है।

Saturday, August 26, 2017

संतान प्राप्ति का समय :निःसंतान योग

संतान प्राप्ति का समय :निःसंतान योग

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ज्योतिषीय विश्लेषण के लिए हमारे शास्त्रों मे कई सूत्र दिए हैं।कुछ प्रमुख सूत्र इस प्रकार से हैं।ज्योतिषीय नियम हैं जो घटना के समय बताने में सहायक होते हैं .
संतान प्राप्ति का समय :

लग्न और लग्नेश को देखा जाता है।
घटना का संबंध किस भाव से है
भाव का स्वामी कौन है ।
भाव का कारक ग्रह कौन है।
भाव में कौन कौन से ग्रह हैं।
भाव पर किस ग्रह की दृष्टि।
कौन से ग्रह महादशा ,अंतर्दशा, प्रत्यंतर्दशा, सूक्ष्म एवं प्राण दशा चल रही है।
भाव को प्रभावित करने वाले ग्रहों की गोचर स्थिति भी देखना चाहिये।
इन सभी का अध्ययन करने से किसी भी घटना का समय जाना जा सकता है।
संतान प्राप्ति के समय को जानने के लिए पंचम भाव, पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी, पंचम कारक गुरु, पंचमेश, पंचम भाव में स्थित ग्रह और पंचम भाव ,पंचमेश पर दृष्टियों पर ध्यान देना चाहिए। जातक का विवाह हो चुका हो और संतान अभी तक नहीं हुई हो , संतान का समय निकाला जा सकता है।
पंचम भाव जिन शुभ ग्रहों से प्रभावित हो उन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के शुभ रहते संतान की प्राप्ति होती है।
गोचर में जब ग्रह पंचम भाव पर या पंचमेश पर या पंचम भाव में बैठे ग्रहों के भावों पर गोचर करता है तब संतान सुख की प्राप्ति का समय होता है।यदि गुरु गोचरवश पंचम, एकादश, नवम या लग्न में भ्रमण करे तो भी संतान लाभ की संभावना होती है। जब गोचरवश लग्नेश, पंचमेश तथा सप्तमेश एक ही राशि में भ्रमण करे तो संतान लाभ होता है।
संतान कब (साधारण योग):
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पंचमेश यदि पंचम भाव में स्थित हो या लग्नेश के निकट हो, तो विवाह के पश्चात् संतान शीघ्र होती है दूरस्थ हो तो मध्यावस्था में, अति दूर हो तो वृद्धावस्था में संतान प्राप्ति होती है। यदि पंचमेश केंद्र में हो तो यौवन के आरंभ में, पणफर में हो तो युवावस्था में और आपोक्लिम में हो तो अधिक अवस्था में संतान प्राप्ति होती है।
पुत्र और पुत्री प्राप्ति का समय कैसे जानें?
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संतान प्राप्ति के समय के निर्धारण में यह भी जाना जा सकता है कि पुत्र की प्राप्ति होगी या पुत्री की। यह ग्रह महादशा, अंतर्दशा और गोचर पर निर्भर करता है। यदि पंचम भाव को प्रभावित करने वाले ग्रह पुरुष कारक हों तो संतान पुत्र और यदि स्त्री कारक हों तो पुत्री होगी।पुरुष ग्रह की महादशा तथा पुरुष ग्रह की ही अंतर्दशा चल रही हो एवं कुंडली में गुरु की स्थिति अच्छी हो तो निश्चय ही पुत्र की प्राप्ति होती है। विपरीत स्थितियों में कन्या जन्म की संभावनाएं होती हैं।
जन्म कुंडली में संतान योग जन्म कुंडली में संतान विचारने के लिए पंचम भाव का अहम रोल होता है। पंचम भाव से संतान का विचार करना चाहिए। दूसरे संतान का विचार करना हो तो सप्तम भाव से करना चाहिए। तीसरी संतान के बारे में जानना हो तो अपनी जन्म कुंडली के भाग्य स्थान से विचार करना चाहिए भाग्य स्थान यानि नवम भाव से करें।
१ पंचम भाव का स्वामी स्वग्रही हो
२.पंचम भाव पर पाप ग्रहों की दॄष्टि ना होकर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो अथवा स्वयं चतु सप्तम भाव को देखता हो.
३.पंचम भाव का स्वामी कोई नीच ग्रह ना हो यदि भावपंचम में कोई उच्च ग्रह हो तो अति सुंदर योग होता है.
४.पंचम भाव में कोई पाप ग्रह ना होकर शुभ ग्रह विद्यमान हों और षष्ठेश या अष्टमेश की उपस्थिति भावपंचम में नही होनी चाहिये.
५. पंचम भाव का स्वामी को षष्ठ, अष्टम एवम द्वादश भाव में नहीं होना चाहिये. पंचम भाव के स्वामी के साथ कोई पाप ग्रह भी नही होना चाहिये साथ ही स्वयं पंचमभाव का स्वामी नीच का नही होना चाहिये.
६. पंचम भाव का स्वामी उच्च राशिगत होकर केंद्र त्रिकोण में हो.
७ पति एवम पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करना चाहिए |
८ सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में :बलवान ,शुभ स्थान ,सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त |
८ एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो |
संतान सुख मे परेशानी के योग :
ऊपर बताये गये ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है |
पंचम भाव: राशि ( वृष ,सिंह कन्या ,वृश्चिक ) हो तो कठिनता से संतान होती है |
निःसंतान योग
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पंचम भाव में क्रूर, पापी ग्रहों की मौज़ूदगी
पंचम भाव में बृहस्पति की मौजूदगी
पंचम भाव पर क्रूर, पापी ग्रहों की दृष्टि
पंचमेश का षष्ठम, अष्टम या द्वादश में जाना
पंचमेश की पापी, क्रूर ग्रहों से युति या दृष्टि संबंध
पंचम भाव, पंचमेश व संतान कारक बृहस्पति तीनों ही पीड़ित हों
नवमांश कुण्डली में भी पंचमेश का शत्रु, नीच आदि राशियों में स्थित होना
पंचम भाव व पंचमेश को कोई भी शुभ ग्रह न देख रहे हों संतानहीनता की स्थिति बन जाती है।
पुत्र या पुत्री :
सूर्य ,मंगल, गुरु पुरुष ग्रह हैं |
शुक्र ,चन्द्र स्त्री ग्रह हैं |
बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं |
संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र होता है।
संतान योग कारक स्त्री ग्रह होने पर पुत्री होती है |
शनि और बुध योग कारक हो पुत्र व पुत्री होती है|
ऊपर बताये गये ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों तो , पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी |
बाधक ग्रहों की क्रूर व पापी ग्रहों की किरण रश्मियों को पंचम भाव, पंचमेश तथा संतान कारक गुरु से हटाने के लिए रत्नों का उपयोग करना होता है।
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Thursday, August 24, 2017

सर्वाअष्टक वर्ग द्वारा जातक की आर्थिक स्थिति का विवेचन !!

सर्वाअष्टक वर्ग द्वारा जातक की आर्थिक स्थिति का विवेचन !!
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सर्वाअष्टक वर्ग का उपयोग सम्बंधित भाव/भावेशो के बल के निर्धारण करने के लिए प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है!!मुख्यतः जन्मपत्रिका के लग्न को प्रथम भाव मानते हुए द्वितीय,पंचम,नवम,दशम और एकादश भाव/भावेशों के सम्बन्ध से बनने वाले योगो को धनयोगो को रूप से देखा जाता है!!जबकि इंदु लग्न से धन-संपत्ति एवं समृधि का निर्णय जन्मपत्रिका में द्वितीय एवं एकादश भाव/भावेशों की स्थिति से होता है!! यदि सर्वाअष्टक वर्ग में इन भावों में प्राप्त बिन्दुओं को भी इसमें शामिल कर के देखा जाये तो धन समृधि और आर्थिक स्थिति के स्तर की करीब करीब सही स्थिति ज्ञात की जा सकती है!!
1) यदि लग्न,नवम,दशम और एकादश भावों में 30 अथवा अधिक बिंदु है तो जातक अवश्य धनवान होता है! यदि इसके विपरीत इन भावो में 25 से कम बिंदु हो तो जातक दरिद्र नहीं तो दरिद्रता के बहुत करीब होता है!!
2)यदि लग्न एवं चतुर्थ भावों में 33 या अधिक बिंदु हो और इनके स्वामी भाव परिवर्तन करें तो जातक अचल संपत्ति के रूप में धनवान होता है!!
3)लग्न(प्रथम) से द्वितीय,चतुर्थ,नवम,दशम और एकादश भावों के बिन्दुओं का योग अगर 164 या अधिक होता है तो जातक सम्रद्ध एवं धनवान होता है!!
4) सभी द्वादश भावों को निम्न चार भागों में बाटा गया है!!
क) बन्धु :: 1,5,9वा भाव
ख) सेवक :: 2,6,10वा भाव
ग) पोषक :: 3,7,11व भाव
घ) घातक :: 4,8,12व भाव
प्रत्येक समूह के भावों के बिन्दुओं का योग करें यदि पोषक समूह के बिन्दुओं की संख्यां, घातक समूह के बिन्दुओं की संख्या से अधिक होती है तो जातक धनवान होगा!!
यदि सेवक समूह के बिन्दुओं की संख्यां, बन्धु समूह के बिन्दुओं से अधिक होती है तो जातक दूसरों के आधीन कार्य ( नौकरी ) करता है!!
5) यदि लग्नेश चतुर्थेश से राशी परिवर्तन करता है अथवा लग्नेश का संबंध चतुर्थ भाव से होता है तो जातक राजा समान और अत्यधिक धनवान होता है!!
6)यदि सभी ग्रह(सातो) अपने अपने अष्टकवर्ग में 6 से 8 बिन्दुओं के साथ हो तो जातक की अपार धन-संपत्ति में और बढ़ोतरी करते है ! यदि ग्रह उच्च,स्वराशी अथवा मित्रराशी में भी हो तो परिणाम अत्यधिक शुभ फलकारी होते है!!
7) यदि गुरु का राशीश शुभ स्थिति में केंद्र या त्रिकोण में ही और गुरु 4 से अधिक बिन्दुं के साथ हो तो यह जातक की धन-संपत्ति में वृद्धिकारक होता है!!
यदि गुरु अपने अष्टकवर्ग में 4 से अधिक बिन्दुओं के साथ शुक्र से युति करे जिसके खुद अपने 4 से अधिक बिंदु हो तो जातक उच्चस्तरीय समृद्धि प्राप्त करता है!!
9) यदि मेष या वृश्चिक राशी में स्थित शुक्र 5 से अधिक बिन्दुओं के साथ और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो यह जातक को अत्यधिक धन-संपत्ति ,समृद्धि और वाहन सुख देने वाला होता है!!
यदि केंद्र अथवा त्रिकोण में हो तो परिणाम और अत्यंत अधिक सुख देने वाले होते है !!

विशेष ध्यान रखें ::::::::: गोचर में ग्रह किस राशी और किस भाव में जाता है उस राशी और भाव के बिन्दुओं का फर्क स्थिति पर अवश्य आता है !!