Saturday, June 10, 2017

कुंडली का नवम भाव

कुंडली का नवम भाव

जन्मकुंडली का नौवां घर सर्वाधिक शुभ घरों में गिना जाता है | इस घर का अपना विशेष महत्व है | मैंने जीवन में इस घर का प्रभाव स्वयं अनुभव करके देखा
है |अक्सर हम राजयोग के बारे में बात करते हैं | हर व्यक्ति की कुंडली में राजयोग और दरिद्र योग मिल जायेंगे | हर योग की कुछ समय अवधि रहती है | दो तीन साल से लेकर पांच छह साल तक ही ये योग प्रभावशाली रहते हैं | जिस राजयोग के विषय में मैं सोच रहां हूँ अलग है | नवम भाव से बनने वाला योग पूरे जीवन में प्रभाव कारी रहता है |

कुछ लोगों को आगे बढ़ने के अवसर ही नहीं मिल पाते और कुछ लोग अवसर मिलते ही बहुत दूर निकल जाते हैं | बदकिस्मती जो जीवन बदल दे इसी घर की देन होती है | खुशकिस्मती जो अगली पीढ़ियों के लिए भी रास्ता साफ़ कर दे नवम भाव का प्रबल होना दर्शाती है |

मनपसंद जीवनसाथी पाने की आस में पूरा जीवन गुजर जाता है उसके साथ जिसे कभी पसंद किया ही नहीं |  जिन्दगी के साथ समझौता कर लेना या यह मान लेना कि यही नसीब था इन घटनाओं के लिए नवम भाव ही उत्तरदायी है |

आस लगाकर बैठे हजारों हजार लोग भाग्य के पीछे भागते रहते हैं और यह भी सच है कि इस दौड़ में हम सब हैं |

प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हर कोई भाग्य की और देख रहा है | किस्मत का यह ताना बाना अपने आप में विचित्र है | भाग्य को समझ पाना आसान नहीं परन्तु जन्मकुंडली के द्वारा एक कोशिश की जा सकती है | तो आइये जानते हैं कैसे आपकी जन्मकुंडली का नवम भाव आपके जीवन को प्रभावित करता है |

*नवम भाव और राज योग*

नवम भाव किस्मत का है | यहाँ बैठे ग्रह आपके भाग्य को बहुत हद तक प्रभावित करते हैं | यदि यहाँ कोई भी ग्रह न हो तो भी यहाँ स्थित राशी के स्वामी को देखा जाता है | नवम भाव भाग्य का और दशम भाव कर्म का है | जब इन दोनों स्थानों के ग्रह आपस में किसी भी प्रकार का सम्बन्ध रखते हैं तब राजयोग की उत्पत्ति होती है | राजयोग में साधारण स्थिति में व्यक्ति सरकारी नौकरी प्राप्त करता है |

नवम और दशम भाव का आपस में जितना गहरा सम्बन्ध होगा उतना ही अधिक बड़ा राज व्यक्ति भोगेगा | मंत्री, राजनेता, अध्यक्ष आदि राजनीतिक व्यक्तियों की कुंडली में यह योग होना स्वाभाविक ही है |

*नवम भाव और दुर्भाग्य*

यदि नवम भाव का स्वामी ग्रह सूर्य के साथ १० डिग्री के बीच में हो तो निस्संदेह व्यक्ति भाग्यहीन होता है |

यदि नवमेश नीच राशी में हो तो व्यक्ति चाहे करोडपति क्यों न हो एक न एक दिन उसे सड़क पर आना पड़ ही जाता है |

यदि नवमेश १२वे भाव में हो तो व्यक्ति का भाग्य अपने देश में नहीं चमकता | विदेश में जाकर वहां कष्ट उठाकर जीना पड़ता है।

उसकी यही मेहनत उसके भाग्य का निर्माण करती है |

नवम भाव का स्वामी बलवान हो या निर्बल, उसकी दशा अन्तर्दशा में व्यक्ति को अवसर खूब मिलते हैं |

यदि नवमेश अच्छी स्थिति में होगा तो व्यक्ति अवसर का लाभ उठा पायेगा | अन्यथा अवसर पर अवसर ऐसे ही निकल जाते हैं जैसे मुट्ठी में से रेत |

पाप ग्रह इस स्थान में बैठकर भाग्य की हानि करते हैं और शुभ ग्रह मुसीबतों से बचाते हैं | इस स्थान पर बुध, शुक्र, चन्द्र और गुरु का होना व्यक्ति के उज्ज्वल भविष्य को दर्शाता है | मंगल, शनि, राहू और केतु इस स्थान में बैठकर व्यक्ति को दुर्भाग्य के अवसर प्रदान करते हैं | सूर्य का यहाँ होना निस्संदेह एक बहुत बड़ा राजयोग है | सूर्य स्वयं ग्रहों का राजा है और जब राजा ही भाग्य स्थान में बैठ जाए तो राजयोग स्पष्ट हो जाता है |

कोई भी ग्रह चाहे वह पाप ग्रह मंगल, शनि ही क्यों न हों, इस स्थान में यदि अपनी राशी में हो तो व्यक्ति बहुत भाग्यशाली हो जाता है |

पाप ग्रहों से अंतर केवल इतना पड़ता है कि उसके अशुभ कर्मों में भाग्य उसका साथ देता है |

*दुर्भाग्य को नष्ट करने के उपाय*

चाहे आपको ज्योतिष का ज्ञान हो या न हो, अपने भाग्य की स्थिति का ज्ञान तो हर व्यक्ति को होता है |

अब यदि दुर्भाग्य पीछा न छोड़ रहा हो तो क्या ऐसा करें कि दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाए |

यह संभव है क्योंकि नवम भाव का स्वामी मारक नहीं होता इसलिए उसका रत्न अधिकतर फायदा ही देता है |

नवम भाव के उपाय हमेशा काम करते हैं | यदि नवमेश का गहराई से अध्ययन करके उसके बलाबल का पता लगाया जाये तो आसान से उपायों से सौभाग्य को आमंत्रित किया जा सकता है |

नवम भाव धर्म का भाव है | धर्म कर्म में व्यक्ति की रूचि तभी होगी जब यह स्थान शुभ ग्रहों से विभूषित होगा | यदि यहाँ पाप ग्रहों का साया हो तो व्यक्ति नास्तिक होता है |

बुद्धिजीवी होने के फायदे हों न हों परन्तु धर्म कर्म के प्रभाव को समझना बुद्धिजीवियों के वश की बात नहीं | इसीलिए वे प्रकृति के इस वरदान से वंचित रह जाते हैं |

धर्म के रास्ते में चमत्कार अक्सर देखे सुने जाते रहे हैं परन्तु धर्म में रूचि ही नहीं होगी तो क्या लाभ |

मैं बात कर रहा हूँ उन मन्त्रों की जो व्यक्ति के दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने की क्षमता रखते हैं |

नीचे लिखे मन्त्र से आप भी अपने दुर्भाग्य को नष्ट करके उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं |

*देहि में सौभाग्यमारोग्यं देहि में परम सुखं*
*धनं देहि, रूपम देहि यशो देहि द्विषो जहि*

उपरोक्त मन्त्र से केवल २१ दिन के भीतर आप अपने भीतर एक ऊर्जा को अनुभव करने लगेंगे |

यदि इस मन्त्र को गुरु के मुख से लिया जाए तो और भी कम समय में अधिक फल प्राप्त होता है |

केवल इस एक मन्त्र में धन, रूप और ऐश्वर्य प्रदान करने की क्षमता है |

दुर्भाग्य में क्षण सौभाग्य में बदल जाते हैं | केवल उच्चारण सटीक व् सौम्य होना आवश्यक है

Wednesday, June 7, 2017

अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें ।

अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें ।

1) रात को सिरहाने एक लोटे मैं पानी भर कर रखे और इस पानी को गमले मैं लगे या बगीचे मैं लगे किसी छोटे पौधे मैं सुबह डाले । 3 दिन से एक सप्ताह मे वो पौधा सूख जायेगा है ।

2) रात्रि को सोते समय एक हरा नीम्बू तकिये के नीचे रखे और प्रार्थना करे कि जो भी नेगेटिव क्रिया हूई इस नीम्बू मैं समाहित हो जाये । सुबह उठने पर यदि नीम्बू मुरझाया या रंग काला पाया जाता है तो आप पर तांत्रिक क्रिया हुई है।

3) यदि बार बार घबराहट होने लगती है, पसीना सा आने लगता हैं, हाथ पैर शून्य से हो जाते है । डाक्टर के जांच मैं सभी रिपोर्ट नार्मल आती हैं।लेकिन अक्सर ऐसा होता रहता तो समझ लीजिये आप किसी तान्त्रिक क्रिया के शिकार हो गए है ।

4) आपके घर मैं अचानक अधिकतर बिल्ली,सांप, उल्लू, चमगादड़, भंवरा आदि घूमते दिखने लगे ,तो समझिये घर पर तांत्रिक क्रिया हो रही है।

5) आपको अचानक भूख लगती लेकिन खाते वक्त मन नही करता ।

6) भोजन मैं अक्सर बाल, या कंकड़ आने लगते है ।

7) घर मे सुबह या शाम मन्दिर का दीपक जलाते समय विवाद होने लगे या बच्चा रोने लगे ।

8) घर के मन्दिर मैं अचानक आग लग जाये ।

9) घर के किसी सदस्य की अचानक मौत ।

10) घर के सदस्यों की एक के बाद एक बीमार पढ़ना ।

11) घर के जानवर जैसे गाय, भैंस, कुत्ता अचानक मर जाना।

12) शरीर पर अचानक नीले रंग के निशान बन जाना ।

13) घर मे अचानक गन्दी बदबू आना ।

14) घर मैं ऐसा महसूस होना की कोई आसपास है ।

15) आपके चेहरे का रंग पीला पड़ना ये भी एक कारण हैं की जितना प्रबल तन्त्र प्रयोग होगा आपके मुह का रंग उतना ही पिला पड़ता जायेगा आप दिन प्रतिदिन अपने आपको कमज़ोर महसूस करेंगे।

16) आपके पहने नए कपड़े अचानक फट जाए, उस पर स्याही या अन्य कोई दाग लगने लग जाए, या जल जाए।

17) घर के अंदर या बाहर नीम्बू, सिंदूर, राई , हड्डी आदि सामग्री बार बार मिलने लगे।

18) चतुर्दशी या अमावस्या को घर के किसी भी सदस्य या आप अचानक बीमार हो जाये या चिड़चिड़ापन आने लग जाये ।

19) घर मैं रुकने का मन नही करे, घर मे आते ही भारीपन लगे,जब आप बाहर रहो तब ठीक लगे ।

Monday, June 5, 2017

पेड़ों की जड़ करें धारण

पेड़ों की जड़ करें धारण

पेड़ों की जड़ करें धारण
ग्रहों से शुभ फल प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न पहनना एक उपाय है। असली रत्न काफी मूल्यवान होते हैं जो कि आम लोगों की पहुंच से दूर होते हैं।
इसी वजह से कई लोग रत्न पहनना तो चाहते हैं, लेकिन धन अभाव में इन्हें धारण नहीं कर पाते हैं।
ज्योतिष के अनुसार रत्नों से प्राप्त होने वाला शुभ प्रभाव अलग-अलग ग्रहों से संबंधित पेड़ों की जड़ों को धारण करने से भी प्राप्त किया जा सकता है।
सूर्य ग्रह के लिए
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो सूर्य के लिए माणिक रत्न बताया गया है। माणिक के विकल्प के रूप में बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करना चाहिए। इससे सूर्य से शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
चंद्र ग्रह के लिए
चंद्र से शुभ फल प्राप्त करने के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।
मंगल ग्रह के लिए
मंगल के लिए अनंतमूल की जड़ धारण करे मंगल के लिए अनंतमूल की जड़ धारण करे
मंगल ग्रह को शुभ बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में डालकर मंगलवार को धारण करें।
बुध ग्रह के लिए
बुध के लिए विधारा की जड़ धारण करे
बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधी झाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।
गुरु ग्रह के लिए
गुरु के लिए केले की जड़ धारण करे
गुरु ग्रह अशुभ हो तो केले की जड़ को पीले कपड़े में बांधकर पीले धागे में गुरुवार को धारण करें।
शुक्र ग्रह के लिए
शुक्र के लिए गुलर की जड़ धारण करे
गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
शनि ग्रह के लिए
शनि के लिए शमी की जड़ धारण करे
शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले कपड़े में बांधकर नीले धागे में धारण करना चाहिए।
राहु ग्रह के लिए
राहू के लिए सफ़ेद चन्दन का टुकड़ा धारण करे
कुंडली में यदि राहु अशुभ स्थिति में हो तो राहु को शुभ बनाने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करना चाहिए।
केतु ग्रह के लिए
केतु के लिए अश्वगंधा की जड़ का टुकड़ा धारण करे
केतु से शुभ फल पाने के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।

शनि ग्रह

शनि ग्रह

शनि ग्रह और महिलाएं ..
शनि ग्रह तमोगुणी और पाप प्रवृत्ति का है। यह
सबसे धीमा चलने वाला , शीतल , निस्तेज , शुष्क ,
उदास और शिथिल ग्रह है। इसे वृद्ध ग्रह माना गया है। इसलिए इसे दीर्घायु प्रदायक या आयुष्कारक ग्रह कहा गया है।यह कुंडली में कान , दांत , अस्थियों , स्नायु , चर्म,शरीर में लोह तत्व व वायु तत्व , आयु , जीवन , मृत्यु ,जीवन शक्ति , उदारता , विपत्ति , भूमिगत
साधनों और अंग्रेजी शिक्षा का कारक है।
किसी भी स्त्री की कुंडली में अच्छा शनि उसे
उदार , लोकप्रिय बनता है और तकनीकी ज्ञान में
अग्रणी रखता है। वह हर क्षेत्र में अग्रणी हो कर
प्रतिनिधित्व करती है। राजनीति में भी उच्च पद
प्राप्त करती है।
दूषित शनि विवाह में विलम्ब कारक भी है। और
निम्न स्तर का जीवन साथी की प्राप्ति की
ओर भी संकेत करता है।
दूषित शनि स्त्री को ईर्ष्यालु और हिंसक भी
बना देता है।यह स्त्री में निराशा ,उदासीनता
और नीरसता का समावेश कर उसके दाम्पत्य जीवन
को कष्टमय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता। और
धीरे - धीरे स्त्री अवसाद की तरफ बढ़ने लग जाती
है।
स्त्रियों में कमर -दर्द , घुटनों का दर्द या किसी
भी तरह का मांसपेशियों का दर्द दूषित शनि
का ही परिणाम है। चंदमा के साथ शनि स्त्री
को पागलपन का रोग तक दे सकता है। इसके लिए
स्त्री को काले रंग का परहेज़ और अधिक से अधिक
हलके और श्वेत रंगों का प्रयोग करना चाहिए।
शनि को अनुकूल बनाने के लिए स्त्री को ना केवल
अपने परिवार के ही बल्कि सभी वृद्ध जनो का
सम्मान करना चाहिए। अपने अधीनस्थ
कर्मचारियों और सेवकों के प्रति स्नेह और उनके हक़
और हितों की रक्षा भी करें। देश के प्रति सम्मान
की भावना रखे। शनि इम्मंदारी और सच्चाई से
प्रसन्न रहता है।
क्यूंकि शनि को न्यायाधीश भी माना गया है
तो यह अपनी दशा -अंतर दशा में अपना सुफल या
कुफल जरुर देता है कर्मो के अनुसार।
शनि अगर प्रतिकूल फल दे रहा हो तो हनुमान जी
की आराधना करनी चाहिए। मंगलवार को
चमेली के तेल का दीपक हनुमान जी के आगे करना
चाहिए। शनि चालिसा , हनुमान चालीसा का
पाठ विशेष लाभ देगा। अगर शनि के कारण हृदय
रोग परेशान करता हो तो सूर्य को जल और
आदित्य -ह्रदय स्त्रोत का पाठ लाभ देगा और
अगर मानसिक रोग के साथ सर्वाइकल का दर्द हो
तो शिव आराधना विशेष लाभ देगी। काले और
गहरे नीले रंग का परित्याग शनि को अनुकूल बना
सकता है।
नीलम का धारण भी शनि को अनुकूल बनता है पर
किसी अच्छे ज्योतिषी से पूछ कर ही।

चांडाल ( राहू-केतु ) योग

चांडाल
( राहू-केतु ) योग

चांडाल शब्द का अर्थ होता है क्रूर कर्म करनेवाला,
नीच कर्म करनेवाला
राहू और केतु दोनों छाया ग्रह है. पुराणों में यह
राक्षस है. राहू और केतु
के लिए बड़े सर्प या अजगर की कल्पना करने में आती
है. राहू सर्प का मस्तक
है तो केतु सर्प की पूंछ. ज्योतिषशास्त्र में राहू -केतु
दोनों पाप ग्रह
है. अत: यह दोनों ग्रह जिस भाव में या जिस ग्रह के
साथ हो उस भाव या उस
ग्रह संबंधी अनिष्ठ फल दर्शाता है. यह दोनों ग्रह
चांडाल जाती के है. इसलिए इनकी युति को चांडाल
( राहू-केतु ) योग कहा जाता है.
कैसे होता है चाण्डाल योग
जब कुण्डली में राहु या केतु जिस गृह के साथ बैठ जाते
है तो उसकी युति को
ही चाण्डाल योग कहा जाता है ये मुख्य रूप से सात
प्रकार का होता है
1- रवि-चांडाल योग -सूर्य के साथ राहू या केतु हो
तो इसे रवि चांडाल योग
कहते है. इस युति को सूर्य ग्रहण योग भी कहा जाता
है. इस योग में जन्म
लेनेवाला अत्याधिक गुस्सेवाला और जिद्दी होता
है. उसे शारीरिक कष्ठ भी
भुगतना पड़ता है. पिता के साथ मतभेद रहता है और
संबंध अच्छे नहीं होते.
पिता की तबियत भी अच्छी नहीं रहती.
2- चन्द्र-चांडाल योग - चन्द्र
के साथ राहू या केतु हो तो इसे चन्द्र चांडाल योग
कहते है. इस युति को
चन्द्र ग्रहण योग भी कहा जाता है. इस योग में जन्म
लेनेवाला शारीरिक और
मानसिक स्वास्थ्य नहीं भोग पाता. माता संबंधी
भी अशुभ फल मिलता है. नास्तिक
होने की भी संभावना होती है.
3- भौम-चांडाल योग - मंगल के साथ राहू
या केतु हो तो इसे भौम चांडाल योग कहते है. इस
युति को अंगारक योग भी कहा
जाता है. इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक
क्रोधी, जल्दबाज, निर्दय और
गुनाखोर होता है. स्वार्थी स्वभाव, धीरज न
रखनेवाला होता है. आत्महत्या या
अकस्मात् की संभावना भी होती है.
4- बुध-चांडाल योग -बुध के साथ
राहू या केतु हो तो इसे बुध चांडाल योग कहते है.
बुद्धि और चातुर्य के ग्रह
के साथ राहू-केतु होने से बुध के कारत्व को हानी
पहुचती है. और जातक
अधर्मी. धोखेबाज और चोरवृति वाला होता है.
5- गुरु-चांडाल योग -
गुरु के साथ राहू या केतु हो तो इसे गुरु चांडाल योग
कहते है.ऐसा जातक
नास्तिक, धर्मं में श्रद्धा न रखनेवाला और नहीं करने
जेसे कार्य करनेवाला
होता है.
6- भृगु-चांडाल योग - शुक्र के साथ राहू या केतु हो
तो इसे
भृगु चांडाल योग कहते है. इस योग में जन्म लेनेवाले
जातक का जातीय चारित्र
शंकास्पद होता है. वैवाहिक जीवन में भी काफी
परेशानिया रहती है. विधुर या
विधवा होने की सम्भावना भी होती है.
7- शनि-चांडाल योग - शनि के साथ
राहू या केतु हो तो इसे शनि चांडाल योग कहते है. इस
युति को श्रापित योग
भी कहा जाता है. यह चांडाल योग भौम चांडाल
योग जेसा ही अशुभ फल देता है.
जातक झगढ़ाखोर, स्वार्थी और मुर्ख होता है. ऐसे
जातक की वाणी और व्यव्हार
में विवेक नहीं होता. यह योग अकस्मात् मृत्यु की तरफ
भी इशारा करता है.
अस्तु आप भी देखे कहीं आपकी कुण्डली में भी
चाण्डाल योग तो नहीं है यदि हो
तो इसकी शांति अवश्य करवाएं क्योंकि कहा जाता
है की शान्ति का उपाय करके
जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है

Sunday, June 4, 2017

सूर्य-शनि युति : जीवन को संघर्षमय बनाती ह

**सूर्य-शनि युति : जीवन को संघर्षमय बनाती है******

सूर्य और शनि पिता-पुत्र होने पर भी परस्पर शत्रुता रखते हैं। वैसे भी प्रकृति का विचार करें तो ज्ञान और अंधकार साथ मिलने पर शुभ प्रभाव अनुभूत नहीं होते। सूर्य-शनि युति प्रतियुति जीवन को पूर्णत: संघर्षमय बनाते हैं।

विशेषत: जब यह युति लग्न, पंचम, नवम या दशम में हो व दोनों (सूर्य-शनि) में से कोई ग्रह इन भावों का कारक भी हो तो यह योग जीवन में विलंब लाता है। बेहद मेहनत के बाद, समय बीत जाने पर सफलता आती है। पिता-पुत्र में मतभेद हमेशा बना रहता है और दूर रहने के भी योग बनते हैं।

सतत संघर्ष से ये व्यक्ति निराश हो जाते हैं, डिप्रेशन में भी जा सकते हैं। यदि शनि उच्च का हो व कारक हो तो 36वें वर्ष के बाद, अपनी दशा-महादशा में सफलता जरूर देता है।

यह युति होने पर व्यक्ति को सतत परिश्रम के लिए तैयार रहना चाहिए, पिता से मतभेद टालें, ज्ञानार्जन करें, आध्यात्मिक साधना से अपना मनोबल मजबूत करना चाहिए। सूर्य व शनि शांति के अन्य उपाय करते रहें।

: ग्रहों की प्रकृति और स्वभाव

ज्योतिष में कुल 9 ग्रहों की गणना की जाती है। इनमें सूर्य, चंद्र, बृहस्पति (गुरु), शुक्र, मंगल, बुध, ‍श‍िन मुख्य ग्रह तथा राहु-केतु छाया ग्रह माने जाते हैं। इन ग्रहों में सूर्य-मंगल क्रूर ग्रह तथा शनि, राहु व केतु पाप ग्रह माने जाते हैं। सूर्य हमारे नेत्र, सिर और हृदय पर प्रभाव रखता है। मंगल पित्त, रक्त, कान, नाक पर और शनि हड्डियों, मस्तिष्क, पैर-पिंडलियों पर प्रभुत्व रखता है। राहु-केतु का स्वतंत्र प्रभाव नहीं होता है। वे जिस राशि में या जिस ग्रह के साथ बैठते हैं, उसके प्रभाव को बढ़ाते हैं।

बृहस्पति, शुक्र, बुध शुभ ग्रह माने जाते हैं। पूर्ण चंद्रमा शुभ कहा गया है। मगर कृष्ण पक्ष की तरफ बढ़ता चंद्रमा पापी हो जाता है। बृहस्पति शरीर में चर्बी, गुर्दे, व पाचन को नियंत्रित करता है। शुक्र वीर्य, आँख व कामशक्ति को नियंत्रण में रखता है। बुध का वर्चस्व वाणी (जीभ) पर होता है। चंद्रमा छाती, फेफड़े व नेत्रज्योति पर अपना प्रभाव रखता है।

ग्रहों का कारकत्व : जन्मकुंडली में 12 भाव होते हैं। भावों के नैसर्गिक कारक निम्नानुसार है-
सूर्य- प्रथम भाव, दशम भाव चंद्र- चतुर्थ भाव शनि- षष्ठ, व्यय, अष्टम भाव शुक्र- सप्तम भाव मंगल- तृतीय, षष्ठ भाव

गुरु- द्वितीय, पंचम, नवम, एकादश भाव बुध- चतुर्थ भाव
विशेष- यदि भाव का कारक उस भाव में अकेला हो तो भाव की हानि ही करता है।

ग्रहों का स्थान व दृष्टि परिणाम : चंद्र, शुक्र व बुध जिस स्थान पर बैठते हैं, उसकी वृद्धि करते हैं। गुरु ग्रह जिस घर में बैठता है, उसकी हानि करता है मगर जिस घर को देखता है, उसकी वृद्धि करता है। मंगल जहाँ बैठता है व जहाँ देखता (अपने घर के अलावा), सभी को हानि पहुँचाता है।

सूर्य अपने स्थान बल के अनुसार लाभ (दशम में सर्वाधिक) देता है, अन्यथा हानि पहुँचाता है। शनि, जिस घर में बैठता है उस घर में फलों की वृद्धि लाता है मगर जहाँ देखता है वहाँ हानि करता है।

ग्रहों की दृष्टि : सभी ग्रह अपने से सातवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। गुरु की पाँचवीं व नौवीं दृष्टि भी होती है। शनि तृतीय व दसवें स्थान को भी देखता है। मंगल चौथे व आठवें स्थान को देखता है। राहु-केतु भी क्रमश: पाँचवें और नौवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं।

फलादेश के सामान्य नियम
1. कुंडली में त्रिकोण के (5-9) के स्वामी सदा शुभ फल देते हैं।
2. केंद्र के स्वामी (1-4-7-10) यदि शुभ ग्रह हों तो शुभ फल नहीं देते, अशुभ ग्रह शुभ हो जाते हैं।
3. 3-6-11 भावों के स्वामी पाप ग्रह हों तो वृद्धि करेगा, शुभ ग्रह हो तो नुकसान करेगा।
4. 6-8-12 भावों के स्वामी जहाँ भी होंगे, उन स्थानों की हानि करेंगे।
5. छठे स्थान का गुरु, आठवाँ शनि व दसवाँ मंगल बहुत शुभ होता है।
6. केंद्र में शनि (विशेषकर सप्तम में) अशुभ होता है। अन्य भावों में शुभ फल देता है।
7. दूसरे, पाँचवें व सातवें स्थान में अकेला गुरु हानि करता है।
8. ग्यारहवें स्थान में सभी ग्रह शुभ होते हैं। केतु विशेष फलदायक होता है।
9. जिस ग्रह पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होती है, वह शुभ फल देने लगता है।

विशेष : लग्न की स्थिति के अनुसार ग्रहों की शुभता-अशुभता व बलाबल भी बदलता है। जैसे सिंह लग्न के लिए शनि अशुभ मगर तुला लग्न के लिए अतिशुभ माना गया है।

ज्योतिष रोग और उपाय:-

ज्योतिष रोग और उपाय:-

हर बीमारी का समबन्ध किसी न किसी ग्रह से है जो आपकी कुंडली में या तो कमजोर है या फिर दुसरे ग्रहों से बुरी तरह प्रभावित है | यहाँ सभी बीमारियों का जिक्र नहीं करूंगा केवल सामान्य रोग जो आजकल बहुत से लोगों को हैं उन्ही का जिक्र संक्षेप में करने की कोशिश करता हूँ | यदि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है तो आज धनवान कोई नहीं है | हर व्यक्ति की कोई न कोई कमजोरी होती है जहाँ आकर व्यक्ति बीमार हो जाता है | हर व्यक्ति के शरीर की संरचना अलग होती है | किसे कब क्या कष्ट होगा यह तो डाक्टर भी नहीं बता सकता परन्तु ज्योतिष इसकी पूर्वसूचना दे देता है कि आप किस रोग से पीड़ित होंगे या क्या व्याधि आपको शीघ्र प्रभावित करेगी |

सूर्य से रोग:-

सूर्य ग्रहों का राजा है इसलिए यदि सूर्य आपका बलवान है तो बीमारियाँ कुछ भी हों आप कभी परवाह नहीं करेंगे | क्योंकि आपकी आत्मा बलवान होगी | आप शरीर की मामूली व्याधियों की परवाह नहीं करेंगे | परन्तु सूर्य अच्छा नहीं है तो सबसे पहले आपके बाल झड़ेंगे | सर में दर्द अक्सर होगा और आपको पेन किलर का सहारा लेना ही पड़ेगा |

चन्द्र से मानसिक रोग:-

चन्द्र संवेदनशील लोगों का अधिष्ठाता ग्रह है | यदि चन्द्र दुर्बल हुआ तो मन कमजोर होगा और आप भावुक अधिक होंगे | कठोरता से आप तुरंत प्रभावित हो जायेंगे और सहनशक्ति कम होगी | इसके बाद सर्दी जुकाम और खांसी कफ जैसी व्याधियों से शीग्र प्रभावित हो जायेंगे | सलाह है कि संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में न आयें क्योंकि आपको भी संक्रमित होते देर नहीं लगेगी | चन्द्र अधिक कमजोर होने से नजला से पीड़ित होंगे | चन्द्र की वजह से नर्वस सिस्टम भी प्रभावित होता है |

सुस्त व्यक्ति और मंगल:-

मंगल रक्त का प्रतिनिधित्व करता है परन्तु जिनका मंगल कमजोर होता है रक्त की बीमारियों के अतिरिक्त जोश की .कमी होगी | ऐसे व्यक्ति हर काम को धीरे धीरे करेंगे। आपने देखा होगा कुछ लोग हमेशा सुस्त दिखाई देते हैं और हर काम को भी उस ऊर्जा से नहीं कर पाते | अधिक खराब मंगल से चोट चपेट और एक्सीडेंट आदि का खतरा रहता है |

बुध से दमा और अन्य रोग:-

बुध व्यक्ति को चालाक और धूर्त बनाता है | आज यदि आप चालाक नहीं हैं तो दुसरे लोग आपका हर दिन फायदा उठाएंगे | भोले भाले लोगों का बुध अवश्य कमजोर होता है | अधिक खराब बुध से व्यक्ति को चमड़ी के रोग अधिक होते हैं | साँस की बीमारियाँ बुध के दूषित होने से होती हैं | बेहद खराब बुध से व्यक्ति के फेफड़े खराब होने का भय रहता है | व्यक्ति हकलाता है तो भी बुध के कारण और गूंगा बहरापन भी बुध के कारण ही होता है |

मोटापा और ब्रहस्पति:-

गुरु यानी ब्रहस्पति व्यक्ति को बुद्धिमान बनता है परन्तु पढ़े लिखे लोग यदि मूर्खों जैसा व्यवहार करें तो समझ लीजिये कि व्यक्ति का गुरु कुंडली में खराब है | गुरु सोचने समझने की शक्ति को प्रभावित करता है और व्यक्ति जडमति हो जाता है | इसके अतिरिक्त गुरु कमजोर होने से पीलिया या पेट के अन्य रोग होते हैं | गुरु यदि दुष्ट ग्रहों से प्रभावित होकर लग्न को प्रभावित करता है तो मोटापा देता है | अधिकतर लोग जो शरीर से काफी मोटे होते हैं उनकी कुंडली में गुरु की स्थिति कुछ ऐसी ही होती है |

शुक्र और शुगर:-

शुक्र मनोरंजन का कारक ग्रह है | शुक्र स्त्री, यौन सुख, वीर्य और हर प्रकार के सुख और सुन्दरता का कारक ग्रह है | यदि शुक्र की स्थिति अशुभ हो तो जातक के जीवन से मनोरंजन को समाप्त कर देता है | नपुंसकता या सेक्स के प्रति अरुचि का कारण अधिकतर शुक्र ही होता है | मंगल की दृष्टि या प्रभाव निर्बल शुक्र पर हो तो जातक को ब्लड शुगर हो जाती है | इसके अतिरिक्त शुक्र के अशुभ होने से व्यक्ति के शरीर को बेडोल बना देता है | बहुत अधिक पतला शरीर या ठिगना कद शुक्र की अशुभ स्थिति के कारण होता है |

लम्बे रोग और शनि:'

शनि दर्द या दुःख का प्रतिनिधित्व करता है | जितने प्रकार की शारीरिक व्याधियां हैं उनके परिणामस्वरूप व्यक्ति को जो दुःख और कष्ट प्राप्त होता है उसका कारण शनि होता है | शनि का प्रभाव दुसरे ग्रहों पर हो तो शनि उसी ग्रह से सम्बन्धित रोग देता है | शनि की दृष्टि सूर्य पर हो तो जातक कुछ भी कर ले सर दर्द कभी पीछा नहीं छोड़ता | चन्द्र पर हो तो जातक को नजला होता है | मंगल पर हो तो रक्त में न्यूनता या ब्लड प्रेशर, बुध पर हो तो नपुंसकता, गुरु पर हो तो मोटापा, शुक्र पर हो तो वीर्य के रोग या प्रजनन क्षमता को कमजोर करता है और राहू पर शनि के प्रभाव से जातक को उच्च और निम्न रक्तचाप दोनों से पीड़ित रखता है | केतु पर शनि के प्रभाव से जातक को गम्भीर रोग होते हैं परन्तु कभी रोग का पता नहीं चलता और एक उम्र निकल जाती है पर बीमारियों से जातक जूझता रहता है | दवाई असर नहीं करती और अधिक विकट स्थिति में लाइलाज रोग शनि ही देता है |

ब्लड प्रेशर और राहू:-

राहू एक रहस्यमय ग्रह है | इसलिए राहू से जातक को जो रोग होंगे वह भी रहस्यमय ही होते हैं | एक के बाद दूसरी तकलीफ राहू से ही होती है | राहू अशुभ हो तो जातक की दवाई चलती रहती है और डाक्टर के पास आना जाना लगा रहता है | किसी दवाई से रिएक्शन या एलर्जी राहू से ही होती है | यदि डाक्टर पूरी उम्र के लिए दवाई निर्धारित कर दे तो वह राहू के अशुभ प्रभाव से ही होती है | वहम यदि एक बीमारी है तो यह राहू देता है | डर के मारे हार्ट अटैक राहू से ही होता है | अचानक हृदय गति रुक जाना या स्ट्रोक राहू से ही होता है |

प्रेत बाधा और केतु:-

केतु का संसार अलग है | यह जीवन और मृत्यु से परे है | जातक को यदि केतु से कुछ होना है तो उसका पता देर से चलता है यानी केतु से होने वाली बीमारी का पता चलना मुश्किल हो जाता है | केतु थोडा सा खराब हो तो फोड़े फुंसियाँ देता है और यदि थोडा और खराब हो तो घाव जो देर तक न भरे वह केतु की वजह से ही होता है | केतु मनोविज्ञान से सम्बन्ध रखता है | ओपरी कसर या भूत प्रेत बाधा केतु के कारण ही होती है | असफल इलाज के बाद दुबारा इलाज केतु के कारण होता है }

निष्कर्ष:-

ज्योतिष और रोग इस सम्बन्ध में गम्भीरता से विचार करके अधिक से अधिक कुंडलियों का अध्ययन करने के पश्चात् एक किताब लिखी जा सकती है | ज्योतिष के जानकारों को इस पर काम करना चाहिए | मैं तो प्रयास कर ही रहा हूँ परन्तु पाठकों से अपेक्षा है कि यदि किसी शारीरिक व्याधि के पीछे आप भी ग्रहों को उत्तरदायी मानते हैं तो अवश्य अपने विचार प्रकट करे।