Monday, March 20, 2017

काम वासना और ज्योतिष

काम वासना और ज्योतिष
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मनुष्य में काम वासना एक जन्मजात प्रवृति और वह इससे आजीवन प्रभावित -संचालित होता है। किसी व्यक्ति में इस भावना का प्रतिशत कम हो सकता है किसी में ज्यादा हो सकता है । ज्योतिष के विश्लेषण के अनुसार यह पता लगाया जा सकता है की व्यक्ति में काम भावना किस रूप में विद्यमान है और वह उसका प्रयोग किन क्षत्रों में कितने अंशों में कर रहा है ।

  लग्न / लग्नेश
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1👉  यदि लग्न और बारहवें भाव के स्वामी एक हो कर केंद्र /त्रिकोण में बैठ जाएँ या एक दूसरे से केंद्रवर्ती हो या आपस में स्थान परिवर्तन कर रहे हों तो पर्वत योग का निर्माण होता है । इस योग के चलते जहां व्यक्ति भाग्यशाली , विद्या -प्रिय ,कर्म शील , दानी , यशस्वी , घर जमीन का अधिपति होता है वहीं अत्यंत कामी और कभी कभी पर स्त्री गमन करने वाला भी होता है ।

2👉 यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो ,तो ऐसे व्यक्ति की रूचि विपरीत सेक्स के प्रति अधिक होती है । उस व्यक्ति का पूरा चिंतन मनन ,विचार व्यवहार का केंद्र बिंदु उसका प्रिय ही होता है ।

3👉 यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो और सप्तमेश लग्न में हो , तो जातक स्त्री और पुरुष दोनों में रूचि रखता है , उसे समय पर जैसा साथी मिल जाए वह अपनी भूख मिटा लेता है । यदि केवल सप्तमेश लग्न में स्थित हो तो जातक में काम वासना अधिक होती है तथा उसमें रतिक्रिया करते समय पशु प्रवृति उत्पन्न हो जाती है और वह निषिद्ध स्थानों को अपनी जिह्वा से चाटने लगता है ।

4👉 यदि लग्नेश ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो जातक अप्राकृतिक सेक्स और मैस्टरबेशन आदि प्रवृतियों से ग्रसित रहता है और ये क्रियाएँ उसे आनंद और तृप्ति प्रदान करती हैं ।

5👉 लग्न में शुक्र की युति 2 /7 /6 के स्वामी के साथ हो तो जातक का चरित्र संदिग्ध ही रहता है ।

6👉 मीन लग्न में सूर्य और शुक्र की युति लग्न/चतुर्थ भाव में हो या सूर्य शुक्र की युति सप्तम भाव में हो और अष्टम में पुरुष राशि हो तो स्त्री , स्त्री राशि होने पर पुरुष अपनी तरक्की या अपना कठिन कार्य हल करने के लिए अपने साथी के अतिरिक्त अन्य से सम्बन्ध स्थापित करते हैं ।

सप्तम भाव और तुला राशि
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1👉 सातवें भाव में मंगल , बुद्ध और शुक्र की युति हो इस युति पर कोई शुभ प्रभाव न हो और गुरु केंद्र में उपस्थित न हो तो जातक अपनी काम की पूर्ति अप्राकृतिक तरीकों से करता है ।

2👉 मंगल और शनि सप्तम स्थान पर स्थित हो तो जातक समलिंगी {होमसेक्सुअल } होता है , अकुलीन वर्ग की महिलाओं के संपर्क में रहता है । अष्टम /नवम /द्वादश भाव का मंगल भी अधिक काम वासना उत्पन्न करता है , ऐसा जातक गुरु पत्नी को भी नही छोड़ पाता है ।

3👉 तुला राशि में चन्द्रमा और शुक्र की युति जातक की काम वासना को कई गुणा बड़ा देती है । अगर इस युति पर राहु/मंगल की दृष्टि भी तो जातक अपनी वासना की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ।

4👉 तुला राशि में चार या अधिक ग्रहों की उपस्थिति भी पारिवारिक कलेश का कारण बनती है ।

5👉 दूषित शुक्र और बुद्ध की युति सप्तम भाव में हो तो जातक काम वासना की पूर्ति के लिए गुप्त तरीके खोजता है ।

    शुक्र
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1👉 यदि शुक्र स्वक्षेत्री ,मूलत्रिकोण राशि या अपने उच्च राशि का हो कर लग्न से केंद्र में हो तो मालव्य योग बनता है । इस योग में व्यक्ति सुन्दर,गुणी , संपत्ति युक्त ,उत्साह शक्ति से पूर्ण , सलाह देने या मंत्रणा करने में निपुण होने के साथ साथ परस्त्रीगामी भी होता है । ऐसा व्यक्ति समाज में अत्यंत प्रतिष्ठा से रहता है तथा आपने ही स्तर की महिला/पुरुष से संपर्क रखते हुए भी अपनी प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देता है । समाज भी सब कुछ जानते हुए उसे आदर सम्मान देता रहता है ।

2👉 सप्तम भाव में शुक्र की उपस्थिति जातक को कामुक बना देती है ।

3👉 शुक्र के ऊपर मंगल /राहु का प्रभाव जातक को काफी लोगों से शरीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए उकसाता है ।

4👉 शुक्र तीसरे भाव में स्थित हो और मंगल से दूषित हो , छठे भाव में मंगल की राशि हो और चन्द्रमा बारहवें स्थान पर हो तो व्यभिचारी प्रवृतियां अधिक होती है ।

5👉 शुक्र के ऊपर शनि की दृष्टि/युति /प्रभाव जातक में अत्याधिक मैस्टरबेशन की प्रवृति उत्पन्न करते हैं

     गुरु
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1👉 गुरु लग्न/चतुर्थ /सप्तम/दशम स्थान पर हो या पुरुष राशि में छठे भाव में हो या द्वादश भाव में हो , जातक अपनी वासना की पूर्ति के लिए सभी सीमाओं को तोड़ डालता है

2👉 छठे भाव में गुरु यदि पुरुष राशि में बैठा हो तो जातक काम प्रिय होता है

    शनि
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1👉 यदि शनि स्वक्षेत्री ,मूलत्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि का होकर लग्न से केंद्रवर्ती हो तो शशः योग बनता है । ऐसा व्यक्ति राजा ,सचिव, जंगल पहाड़ पर घूमने वाला ,पराये धन का अपहरण करने वाला ,दूसरों की कमजोरियों को जानने वाला ,दूसरों की पत्नी से सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा करने वाला होता है ।कभी कभी अपने इस दुराचार के लिए उसकी प्रतिष्ठा कलंकित हो सकती है , वह दूसरों की नज़रों में गिर सकता है और समाज में अपमानित भी हो सकता है ।

2👉 शनि लग्न में हो तो जातक में वासना अधिक होती है,पंचम भाव में शनि अपनी से बड़ी उम्र की स्त्री से आकर्षण , सप्तम में होने से व्यभिचारी प्रवृति,चन्द्रमा के साथ होने पर वेश्यागामी, मंगल के साथ होने पर स्त्री में और शुक्र के साथ होने पर पुरुष में कामुकता अधिक होती है ।

3👉 दशम स्थान का शनि विरोधाभास उत्पन्न करता है , जातक कभी कभी ज्ञान वैराग्य की बात करता है तो कभी कभी कामशास्त्र का गंभीरता से विश्लेषण करता है , काम और सन्यास के बीच जातक झूलता रहता है ।

4👉 दूषित शनि यदि चतुर्थ भाव में उपस्थित हो तो जातक की वासना उसे इन्सेस्ट की और अग्रसर करती है ।

5👉 शनि की चन्द्रमा/शुक्र/मंगल के साथ युति जातक में काम वासना को काफी बड़ा देती है ।

    चंद्र
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1👉 चन्द्रमा बारहवें भाव में मीन राशि में हो तो जातक अनेकों का उपभोग करता है ।

2👉 नवम भाव में दूषित चन्द्रमा की उपस्थिति गुरु/ शिक्षक /मार्गदर्शक के साथ व्यभिचार करने के उकसाते हैं ।

3👉 सप्तम भाव में क्षीण चन्द्रमा किसी पाप ग्रह के साथ बैठा हो तो जातक विवाहित स्त्री से आकर्षित होता है ।

4👉 नीच का चन्द्रमा सप्तम स्थान पर हो तो जातक आपने नौकर /नौकरानी से शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं ।

   मंगल
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1👉 मंगल की उपस्थिति 8 /9 /12 भाव में हो तो जातक कामुक होता है

2👉 मंगल सप्तम भाव में हो और उसपर कोई शुभ प्रभाव न हो तो जातक नबालिकों के साथ सम्बन्ध बनाता है ।

3👉 मंगल की राशि में शुक्र या शुक्र की राशि में मंगल की उपस्थित हो तो जातक में कामुकता अधिक होती है ।

4👉 जातक कामांध होकर पशु सामान व्यवहार करता है यदि मंगल और एक पाप ग्रह सप्तम में स्थित हो या सूर्य सप्तम में और मंगल चतुर्थ भाव हो या मंगल चतुर्थ भाव में और राहु सप्तम भाव में हो या शुक्र मंगल की राशि में स्थित होकर सप्तम को देखता हो ।

Sunday, March 19, 2017

गुंजा(Coral Bead)

गुंजा(Coral Bead)

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गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं।

अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी के स्थान में भी प्रयुक्त होती है

इसको चिरमिटी, धुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसे आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं। इसका वजन एक रत्ती होता है, जो सोना तोलने के काम आती है। यह तीन रंगों में मिलती है।

सफेद गुंजा का प्रयोग तंत्र तथा उपचार में होता है, न मिलने पर लाल गुंजा भी प्रयोग में ली जा सकती है। परंतु काली गुंजा दुर्लभ होती है।

गुंजा का प्रयोग अनेक तांत्रिक कार्यों में होता है. यह एक लता का बीज होता है. जो लाल रंग का होता है. सफ़ेद और काले रंग की गुंजा भी मिल सकती है.

काली गुंजा बहुत दुर्लभ होती है और वशीकरण के कार्यों में रामबाण की तरह काम करती है. गुंजा के बीजों के अलावा उसकी जड़ को बहुत उपयोगी मन गया है.

गुंजा की महिमा कुछ इस प्रकार है -

वर-वधू के लिए :

विवाह के समय लाल गुंजा वर के कंगन में पिरोकर पहनायी जाती है। यह तंत्र का एक प्रयोग है, जो वर की सुरक्षा, समृद्धि, नजर-दोष निवारण एवं सुखद दांपत्य जीवन के लिए है।

गुंजा की माला आभूषण के रूप में पहनी जाती है। भगवान श्री कृष्ण भी गुंजामाला धारण करते थे। पुत्र की चाह वाली स्वस्थ स्त्री, शुभ नक्षत्र में गुंजा की जड़ को ताबीज में भरकर कमर में धारण करें। ऐसा करने से स्त्री पुत्र लाभ करती है।

विद्वेषण में प्रयोग :

किसी दुष्ट, पर-पीड़क, गुण्डे तथा किसी का घर तोड़ने वाले के घर में लाल गुंजा - रवि या मंगलवार के दिन इस कामना के साथ फेंक दिये जाये -

'हे गुंजा !

आप मेरे कार्य की सिद्धि के लिए इस घर-परिवार में कलह (विद्वेषण) उत्पन्न कर दो' तो आप देखेंगे कि ऐसा ही होने लगता है।

विष-निवारण :

गुंजा की जड़ धो-सुखाकर रख ली जाये।

यदि कोई व्यक्ति विष-प्रभाव से अचेत हो रहा हो तो उसे पानी में जड़ को घिसकर पिलायें। इसको पानी में घिस कर पिलाने से हर प्रकार का विष उतर जाता है।

सम्मान प्रदायक :

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शुद्ध जल (गंगा का, अन्य तीर्थों का जल या कुएं का) में गुंजा की जड़ को चंदन की भांति घिसें। अच्छा यही है कि किसी ब्राह्मण या कुंवारी कन्या के हाथों से घिसवा लें। यह लेप माथे पर चंदन की तरह लगायें। ऐसा व्यक्ति सभा-समारोह आदि जहां भी जायेगा, उसे वहां विशिष्ट सम्मान प्राप्त होगा।

पुत्रदाता :

पुत्र की चाह वाली स्वस्थ स्त्री, शुभ नक्षत्र में गुंजा की जड़ को ताबीज में भरकर कमर में धारण करें। ऐसा करने से स्त्री पुत्र लाभ प्राप्त करती है।

शत्रु में भय उत्पन्न :

गुंजा-मूल (जड़) को किसी स्त्री के मासिक स्राव में घिस कर आंखों में सुरमे की भांति लगाने से शत्रु उसकी आंखों को देखते ही भाग खड़े होते हैं।

अलौकिक तामसिक शक्तियों के दर्शन :

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भूत-प्रेतादि शक्तियों के दर्शन करने के लिए मजबूत हृदय वाले व्यक्ति, गुंजा मूल को रवि-पुष्य योग में या मंगलवार के दिन- शुद्ध शहद में घिस कर आंखों में अंजन (सुरमा/काजल) की भांति लगायें तो भूत, चुडैल, प्रेतादि के दर्शन होते हैं। ज्ञान-

बुद्धि वर्धक :
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गुंजा-मूल को बकरी के दूध में घिसकर हथेलियों पर लेप करे, रगड़े कुछ दिन तक यह प्रयोग करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि, स्मरण-शक्ति तीव्र होती है, चिंतन, धारणा आदि शक्तियों में प्रखरता व तीव्रता आती है।

गुप्त धन दर्शन : अंकोल या अंकोहर के बीजों के तेल में गुंजा-मूल को घिस कर आंखों पर अंजन की तरह लगायें। यह प्रयोग रवि-पुष्य योग में, रवि या मंगलवार को ही करें। इसको आंजने से पृथ्वी में गड़ा खजाना तथा आस पास रखा धन दिखाई देता है।

शत्रु दमन प्रयोग : काले तिल के तेल में गुंजामूल को घिस कर, उस लेप को सारे शरीर में मल लें। ऐसा व्यक्ति शत्रुओं को बहुत भयानक तथा सबल दिखाई देगा।

फलस्वरूप शत्रुदल चुपचाप भाग जायेगा।

कुष्ठ निवारण प्रयोग :

गुंजा मूल को अलसी के तेल में घिसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) के घाव ठीक हो जाते हैं।

अंधापन समाप्त :

गुंजा-मूल को गंगाजल में घिसकर आंखों मे लगाने से आंसू बहुत आते हैं। देशी घी (गाय का) में घिस कर लगाते रहने से इन दोनों प्रयोगों से अंधत्व दूर हो जाता है।

१. आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रु भी वशीभूत हो जाते हैं.

यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.

२. गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.

३. जिस व्यक्ति को नजर बहुत लगती हो उसको गुंजा का ब्रासलेट कलाई पर बांधना चाहिए. किसी सभा में या भीड़ भाद वाली जगह पर जाते समय गुंजा का ब्रासलेट पहनने से दूसरे लोग प्रभावित होते हैं.

४. गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.

काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।🙏

क्या महत्व है चन्द्र कुंडली का

क्या महत्व है चन्द्र कुंडली का

जन्म समय में पूर्व दिशा में जिस राशि का उदय हो रहा होता है वह राशि जातक की जन्म लग्न राशि कहलाती है. प्रथम भाव में उसी राशि को लिख कर लग्न बनाया जाता है .उस समय विशेष में चंद्रमा जिस भी राशि में भ्रमण कर रहा होता है वो ही जातक की जन्म राशि कहलाती है. लग्न कुंडली के बाद जिस राशि में चंद्रमा होता है उसे लग्न मानकर एक और
कुंडली का निर्माण होता है जो चन्द्र कुंडली कहलाती है.अब लग्न कुंडली और चन्द्र कुंडली में क्या अंतर होता है ये एक ऐसा विषय है जिस पर विद्वान ज्योतिषियों को मतभेद रह सकता है. मेरा मत यह है की जन्म कुंडली जातक के लिए ईश्वर द्वारा निर्धारित फैसलों का प्रतिबिम्ब होती है .उन विशेष परिस्थितियों ,उन विशेष नियमों से जातक को मिलना ही होता है .इस पर जातक का कोई नियंत्रण नहीं होता .ये पूर्वार्ध है. आपके किये गए कर्मों का लेखा जोखा .किन्तु चन्द्र कुंडली वो है जिसकी सहायता से जातक उन नियमों , सिद्धांतों ,उन पूर्व निर्धारित फैसलों में लूप होल खोजने का प्रयास करता है. यहाँ से हम देखते हैं की कहाँ और कैसे किस ग्रह के साथ कोई डील की जा सकती है.कैसे ले- दे कर अपना काम चलाया जा सकता है .कैसे अपनी रुकी हुई गाडी को गतिवान किया जा सकता है. यकीन कीजिये मैंने कई बार समस्या को लग्न कुंडली से पकड़कर ,उपचार चन्द्र
कुंडली द्वारा करने का प्रयास किया और सफलता पाई .कई ज्योतिषियों को चन्द्र कुंडली को अनदेखा करते पाया है. यकीन मानिए एक बार चन्द्र कुंडली को लग्न मान कर फलित करने का प्रयास कीजिये ,मजा आ जाता है. ऐसे ऐसे
तथ्य जातक के बारे में मालूम होने लगते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की होगी आपने .आइये इसे दूसरी तरह से कहने का प्रयत्न करते हैं.किन्तु कहूंगा सामान्य भाषा में ही . बावजूद इसके कि एक बार मेरी एक पाठिका ने और अभी कुछ दिन पहले मेरे एक क्लाइंट ने मुझसे एक ही शिकायत की .दोनों का कहना था की आप की भाषा शैली कहीं से भी पंडितों वाली नहीं है .मैं फिर स्पष्ट कर देना चाहूँगा की मेरा ब्लॉग उस आम जिज्ञासु पाठक के लिए है जो ज्योतिष का रुझान रखता है या जो अपनी किसी समस्या को मुझ से साझा करना चाहता है. मेरे किसी भी लेख को किसी प्रकार की प्रतियोगिता में भेजने की मेरी कोई मंशा नहीं है .ये मात्र मेरे पाठकों के लिए है .अपने इसी साधारण अंदाज से मैंने उनका स्नेह -आदर प्राप्त किया है।भाषा के भ्रमजाल में
उलझाकर मैं अपने पांडित्य का झूठा आभामंडल तो रच
सकता हूँ ,अपने गैरजरूरी हव्वे को भी बुन सकता हूँ ,जिस की आड़ में आराम से अपनी फीस बढ़ा सकता हूँ ,लेकिन अपने पाठक के स्नेह से वंचित हो जाउंगा ,उसके विश्वास को खो बैठूँगा ,उस आस को तोड़ दूंगा जिस आस के साथ वो बेहिचक मेरे पास अपनी व्यथा कहने का अधिकार पाता है,कुसमय में मेरे काँधे को तलासने के लिए चुपके से देखता है. मैं इस सुख से ,इस गर्व के एहसास से वंचित नहीं होना चाहता ,इसलिए अपना अंदाज अपनी भाषाशैली नहीं बदल
सकता . थोडा भावुक हो गया तो विषय से ही भटक गया. क्या करूँ आखिर साधारण मनुष्य ही तो हूँ.खैर वापस विषय पर आता हूँ. समस्त ग्रहों में सर्वाधिक अस्थिर या कहें गतिशील चंद्रमा ही होते हैं .अततः जल्दी से किसी परिवर्तन की आस इन्ही के दरबार से की जा सकती है. अपनी समस्त सोलह कलाओं का जादू बिखेरकर ये नित्य नयी अवस्था, नए रूप में हमारे सामने होते हैं .पूरे माह में हम किसी भी दिन इन्हें समान रूप में नहीं पाते . अतः ये निरंतर बदलाव
का प्रतीक हैं . इसी लिए तो मन के कारक हैं .ये सन्देश देते हैं की स्थितियों में परिवर्तन संभव है .यही कारण है की लग्न
कुंडली के बाद चन्द्र कुंडली अपना विशेष स्थान रखती है.हर रोज अपने आश्रित स्थान से इनका प्रभाव हर ग्रह पर अलग होता है.तत्व के जानकार जानते ही हैं की सारा खेल मन का है. मन यानि चंद्रमा .नवग्रहों में चंद्रमा को धरती के सर्वाधिक निकट माना गया है .इसी कारण सबसे अधिक उपचार चन्द्र को लेकर ही किये जाते हैं.इसी कारण इसे माँ का कारक कहा गया है.जातक के जन्म से लेकर उसके जीवन भर सर्वाधिक निकट यदि कोई है तो माँ ही है. पहला स्पर्श पहला सम्बन्ध ,पहला प्रभाव इंसान के ऊपर माँ का ही है .माँ का है अर्थात चन्द्र का है. हर समस्या हर परेशानी का निदान माँ है.
इसी प्रकार जातक के जीवन की हर समस्या का निदान चंद्रमा के पास है. तभी तो शिव के माथे का अलंकार है.

तीन ग्रहों की युति के फल

तीन ग्रहों की युति के फल

1. सूर्य+चन्द्र+बुध = माता-पिता के लिये अशुभ। मनोवैज्ञानिक।
सरकारी अधिकारी। ब्लैक मेलर । अशांत।
मानसिक तनाव। परिवर्तनशील।
2 सूर्य+चन्द्र +केतू = रोज़गार के लिये परेशान। न दिन को चैन न
रात को चैन। बुद्धि काम ना दे, चाहे लखपति भी हो
जाये। शक्तिहीन।
3. सूर्य+शुक्र+शनि = पति/पत्नी में विछोह। तलाक
हो। घर में अशांति। सरकारी नौकरी में गड-
बड़।
4. सूर्य+बुध+राहू = सरकारी नौकरी।
अधिकारी। नौकरी में गड-बड़। दो विवाह का
योग। संतान के लिये हल्का। जीवन में अन्धकार।
तीन ग्रहों की युति के फल :-
5 चन्द्र+शुक्र+बुध = सरकारी अधिकारी।
कर्मचारी। घरेलू अशांति। बहू -सास का झगड़ा। व्यापार
के लिये बुरा। लड़कियाँ अधिक। संतान में विघ्न।
6. चन्द्र +मंगल+बुध = मन, साहस , बुद्धि का सामंजस्य।
स्वास्थ अच्छा। नीतिवान साहसी ,सोच-
विचार से काम करे। पाप दृष्टी में होतो, डरपोक /.
दुर्घटना /ख्याली पुलाव पकाए।
7. चन्द्र+मंगल+शनि = नज़र कमजोर।
बीमारी का भय। डॉक्टर , वै ज्ञानिक ,
इंजीनियर , मानसिक तनाव। ब्लड प्रेशर कम या अधिक।
8. चन्द्र+मंगल+राहू = पिता के लिए अशुभ। चंचलता। माता तथा भाई
के लिए हल्का।
9. चन्द्र+बुध +शनि= तंतु प्रणाली में रोग। बेहोश हो
जाना। बुद्धि की खराबी से अनेक दुःख हो।
अशांत, मानसिक तनाव। बहमी।
10. चन्द्र +बुध+राहू = माँ के लिए अशुभ। सुख हल्का। पिता पर
भारी। दुर्घटना की आशंका।
तीन ग्रहों की युति के फल :-
11. चन्द्र+शनि+राहू = माता का सुख काम। दिमागी
परेशानियाँ। ब्लड प्रेशर। दुर्घटना का भय। स्वास्थ हल्का।
12. शुक्र+बुध+शनि = चोरियां हो। धन हानी।
प्रॉपर्टी डीलर। जायदाद वाला।
पत्नी घर की मुखिया।
13. मंगल+बुध+शनि = आँखों में विकार। तंतु प्रणाली में
विकार। रक्त में विकार। मामों के लिये अशुभ। दुर्घटना का भय।
14. मंगल+बुध+गुरू = अपने कुल का राजा हो। विद्वान। शायर। गाने
का शौक। ओरत अच्छी मिले।
15. मंगल+बुध +शुक्र = धनवान हो। चंचल स्वभाव। हमेशा
खुश रहे। क्रूर हो।
16. मंगल+बुध+राहू = बुरा हो। कंजूस। लालची।
रोगी। फ़कीर। बुरा काम करे।
.17. मंगल+बुध+केतू = बहुत अशुभ। रोगी हो।
कंजूस हो। दरिद्र। गंदा रहे। व्यर्थ के काम करे।
18. गुरू+सूर्य+बुध = पिता के लिए अशुभ। विद्या विभाग में
नौकरी।
19. गुरू+चन्द्र+शुक्र = दो विवाह। रोग। बदनाम
प्रेमी। कभी धनी ,
कभी गरीब।
20. गुरू+चन्द्र+मंगल = हर प्रकार से उत्तम।
धनी। उच्च पद। अधिकारी। गृहस्थ सुख।
21. गुरू+चन्द्र+बुध = धनी। अध्यापक। दलाल। पिता
के लिये अशुभ। माता बीमार रहे।
22. गुरू+शुक्र+मंगल = संतान की और से
परेशानी। प्रेम संबंधों से दुःख। गृहस्थ में असुख।
23. गुरू+शुक्र+बुध = कुटुंब अथवा गृहस्थ सुख बुरा। पिता के लिये
अशुभ। व्यापारी।
24. गुरू+शुक्र+शनि = फसादी। पिता-पुत्र में तकरार।
25. गुरू+मंगल+बुध = संतान कमजोर। बैंक एजेंट।
धनी। वकील।
26. चन्द्र+शुक्र+बुध+शनि = माँ- पत्नी में अंतर ना
समझे।
27. चन्द्र+शुक्र+बुध+सूर्य = आज्ञाकारी। अच्छे
काम करे। माँ -बाप के लिये शुभ। भला आदमी।
सरकारी नौकरी विलम्ब से मिले।,,,,,,,,,,

बुध और केतु

बुध और केतु :

ज्योतिष के साइलेंट किलर ज्योतिष में यदि सबसे कम चर्चा किन्ही ग्रहों की होती है तो वो हैं बुध व केतु. इनपर सबसे कम लिखा गया है,सबसे कम ध्यान दिया जाता है , सबसे कम इन्ही से डरा जाता है.मंगल, राहू, शनि,अदि ग्रहों का नाम सुनकर ही आम आदमी की बोलती बंध जाती है,किन्तु बुध और केतु को बेचारे समझ कर इन्हें भाव ही नहीं दिया जाता.इस कारण ये अन्दर ही अन्दर कितना नुकसान कर जाते हैं पता ही नहीं चल पाता.आपने कभी किसी घुन्ने इंसान को देखा है?अरे वही जो बस मन ही मन जलना ,चिढना जानता है. पर कभी आपके सामने आपके लिए अपनी फितरत को प्रदर्शित नहीं करता.आपकी गाडी से लिफ्ट मांगकर आता है और मौका देखकर उसी की हवा निकाल देता है और वापसी में आपको बिना बताय किसी और के
साथ निकल जाता है.या जाते जाते आपकी गाडी पर पत्थर से निशान मार जाता है. जिसे बात बात पर आँख मारने की आदत होती है जैसे कह रहा हो की बेटा मुझे क्या समझा रहे हो,मुझे तो सब पहले से ही पाता हैवो तो बस मैं तुम्हारी बातों से मजे ले रहा हूँ.आप उसकी मीठी मीठी बातों से
कभी कभी समझ तो सब जाते हैं लेकिन उसके चापलूसी भरे व्यवहार के कारण उसे कह कुछ नहीं पाते.और वह समय समय पर आपके ऊपर गुप्त प्रहार करने से नहीं चूकता.बस तो साहब यही हाल ज्योतिष में केतु और बुध
का है.बुध की दोनों राशियाँ द्विस्वभाव हैं अततः नैसर्गिक
रूप से इसका व्यवहार भी द्विस्वभाव है.जहाँ यह सूर्य को छोड़ कर आगे निकला ,या सूर्य की आँख बचाकर उससे पीछे रह गया तो तब आप इसकी खुरापातों को ढंग से समझ लेंगे.यह आपको परेशान करने से नहीं चूकेगा.जातक की या तो बुआ(पिता की बहन)होती नहीं है,या जातक के अपनी बुआ से सम्बन्ध ठीक नहीं रह पाते.जिस कारण वह व्यवसाय में सदा धोखा खाता है या पर्याप्त परिश्रम के के बाद भी फल प्राप्त नहीं करता.केतु विश्वासघात करने वाला ग्रह है .ये जहाँ अकेला होगा उस भाव से आपको निश्चिन्त करने का प्रयास करेगा.आपको उस भाव से सम्बंधित कमी नहीं खलने देगा किन्तु जब उस भाव के फलित की आवश्यकता पड़ेगी तो आपको वहां से कोई सहायता प्राप्त नहीं होगी. उदाहरण के लिए आपको घर से निकलते हुए अपने बटुए के भरे होने का अहसास होगा किन्तु मौके पर आपका बटुआ खाली होगा.इसी प्रकार केतु यदि पंचम भाव
में अकेला होगा तो आपको कभी अपनी शिक्षा का लाभ
जीवन में नहीं मिल पायेगा.यह आपको पहले तो खुद ही बेफिक्र करेगा उसके बाद आपकी लापरवाही का फायदा उठाकर आपको धोखा दे देगा,और आप अपनी ही आत्मुग्हता में डूबे रहेंगे .और इसी कारण सदा पीछे रह जायेंगे.कारण कभी आपकी समझ में नहीं आएगा. आपको सदा विश्वास रहेगा की ससुराल से आपको बहुत मदद मिलने
वाली है किन्तु समय पर आपको एक फुग्गा भी वहां से नहीं मिलेगा.कहा यह जायेगा की हम चाहते तो बहुत हैं तुम्हारी मदद करना किन्तु मजबूर हैं.ये खेल केतु महाराज का होता है.होकर भी वस्तु का न होना.मरीचिका,दृष्टिभ्रम कुछ भी कहिये.ज्योतिष शाश्त्र में बताये गए छह गंडमूल में से क्या आपने ध्यान दिया की तीन का स्वामी बुध है और तीन का केतु.देखा इन के व्यवहार के कारण इस और ध्यान ही नहीं जाता न?इसी कारण मैं इन्हें साइलेंट किलर कहता हूँ .
कई स्थापित ज्योतिषियों को इस मामले में धोखा खाते देखता हूँ.सच कहूँ तो स्वयं भी कई बार इन दोनों ग्रहों की शरारत कुंडली में भांपने से चूका हूँ.आप उपाय बदनाम ग्रहों का कर रहे होते है जबकि उनका रोल उस समस्या में कहीं नहीं होता,अततः न ही सही रिजल्ट आता है न ही अगले की समस्या का हल निकलता है. जातक परेशान होता है, ज्योतिषी हैरान होता है और ये दोनों ग्रह दूर बैठे तिरछा मुंह करके हँसते हुए मजा ले रहे होते हैं.