Sunday, December 4, 2016

कालभैरव की पूजाप्राय

👏👏 कालभैरव की पूजाप्राय: पूरे देश में होती है, और अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग नामों से वह जाने-पहचाने जाते हैं, महाराष्ट्र में खण्डोबा उन्हीं का एक रूप है, और खण्डोबा की पूजा-अर्चना वहाँ ग्राम-ग्राम में की जाती है, दक्षिण भारत में भैरव नाम से जाने जाते है।

वैसे हर जगह एक उग्र देवता के रूप में ही उनको मान्यता मिली हुई है, और उनकी अनेक प्रकार की मनौतियां भी स्थान-स्थान पर अलग-अलग प्रचलित हैं, भूत, प्रेत, पिशाच, पूतना, कोटरा और रेवती आदि की गणना भगवान शिव के अन्यतम गणों में की जाती है, दूसरे शब्दों में कहें तो विविध रोगों और आपत्तियों विपत्तियों के वह अधिदेवता हैं।

शिव प्रलय के देवता भी हैं, अत: विपत्ति, रोग एवं मृत्यु के समस्त दूत और देवता उनके अपने सैनिक हैं, इन सब गणों के अधिपति या सेनानायक हैं महाभैरव, सीधी भाषा में कहें तो भय वह सेनापति है, जो बीमारी, विपत्ति और विनाश के पार्श्व में उनके संचालक के रूप में सर्वत्र ही उपस्थित दिखायी देता है।

शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है, पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था।

यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा. तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई, कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी, यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है।

सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे, अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई, और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी।

स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े, शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह बात शांत हो सकी, रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला, बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया, ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था।

इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा, भैरव अष्टमी काल का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग कालभैरव की उपासना करते हैं, कालान्तर में भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं।

जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं, वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए, तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है,असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव।

भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:।
मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया।।

कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है, जिसका वाहन कुत्ता है, ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रुद्र भैरव, कालभैरव, क्रोध भैरव, ताम्रचूड़ भैरव तथा चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है, इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है, शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताया गया है।

भैरवाय् नमः!!!

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