[03/12, 12:27 p.m.] SWAMI: कपूर के 10 चमत्कारिक टोटके...
💥पुण्य प्राप्ति हेतु : शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं के समक्ष कपूर जलाने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है, अत: प्रतिदिन सुबह और शाम घर मे कपूर जरूर जलायें !
💥पितृदोष और कालसर्पदोष से मुक्ति हेतु : कपूर जलाने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है, दरअसल यह राहु और केतु का प्रभाव मात्र है, इसको दूर करने के लिए घर के वास्तु को ठीक करें, यदि ऎसा नहीं कर सकते तो प्रतिदिन सुबह, शाम और रात्रि को तीन बार घी में भिगोया हुआ कर्पूर जलायें, घर के बाथरूम में कर्पूर की 2-2 टिकिया रख दें,बस इतना उपाय ही काफी है.
💥आकस्मिक घटना या दुर्घटना से बचाव : आकस्मिक घटना या दुर्घटना का कारण राहु, केतु और शनि होते हैं, इसके अलावा हमारी तंद्रा और क्रोध भी दुर्घटना का कारण बनते हैं, इसके लिए रात्रि में हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद कर्पूर जलायें !
💥सकारात्मक उर्जा और शांति के लिए : प्रतिदिन सुबह और शाम कर्पूर को घी में भिगोकर जलाएं और संपूर्ण घर में उसकी खुशबू फैलायें, ऎसा करने से घर की नकारात्मक उर्जा नष्ट हो जाएगी, दु:स्वप्न नहीं आएंगे और घर में अमन शांति बनी रहेगी, वैज्ञानिक शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इसकी सुगंध से जीवाणु, विषाणु आदि बीमारी फैलाने वाले जीव नष्ट हो जाते हैं जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है तथा बीमारी होने का भय भी नहीं रहता !
💥अचानक धन प्राप्ति का उपाय : गुलाब के फूल मे कपूर का टुकड़ा रखें, शाम के समय फूल में एक कपूर जला दें और फूल को देवी दुर्गा को चढ़ा दें, इससे आपको अचानक धन मिल सकता है, यह कार्य आप कभी भी शुरू करके कम से कम 43 दिन तक करेंगे तो लाभ मिलेगा, यदि यह कार्य नवरात्रि के दौरान करेंगे तो और भी ज्यादा असरकारक होगा !
💥वास्तु दोष मिटाने के लिए : यदि घर के किसी स्थान पर वास्तु दोष निर्मित हो रहा है तो वहां एक कर्पूर की 2 टिकियां रख दें, जब वह टिकियां गलकर समाप्त हो जाए तब दूसरी दो टिकिया रख दें, इस तरह बदलते रहेंगे तो वास्तुदोष निर्मित नहीं होगा !
💥भाग्य चमकाने के लिए : पानी में कर्पूर के तेल की कुछ बूंद डालकर नहायें, यह आपको तरोताजा तो रखेगा ही आपका भाग्य भी चमकेगा यदि इस में कुछ बूंदें चमेली के तेल की भी डाल देंगे तो इससे राहु, केतु और शनि का दोष नहीं रहेगा,लेकिन ये सिर्फ शनिवार को ही करें !
💥पति-पत्नी के बीच तनाव को दूर करने हेतु : रात को सोते समय पत्नी अपने पति के तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और पति अपनी पत्नी के तकिये में कपूर की 2 टिकियां रख दे, प्रातः होते ही सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर कहीं उचित स्थान पर फेंक दें तथा कपूर को निकाल कर शयन कक्ष में जला दें, यदि ऎसा नहीं करना चाहते हैं तो प्रतिदिन शयनकक्ष में कर्पूर जलाएं और कर्पूर की 2 टिकियां शयनकक्ष के किसी कोने में रख दें, जब वह टिकियां गलकर समाप्त हो जाए तो दूसरी रख दें !
💥धनवान बनने के लिए : रात्रि काल के समय रसोई समेटने के बाद चांदी की कटोरी में लौंग तथा कपूर जलायें, यह कार्य नित्य प्रतिदिन करेंगे तो धन-धान्य से आपका घर भरा रहेगा, धन की कभी कमी नहीं होगी !
💥विवाह हेतु : विवाह में आ रही बाधा को दूर करना चाहते हैं तो यह उपाय बहुत ही कारगर है, 36 लौंग और 6 कपूर के टुकड़े लें, इसमें हल्दी और चावल मिलाकर इससे मां दुर्गा को आहुति दें
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[03/12, 12:30 p.m.] SWAMI: ज्योतिष विशेष राहु
द्वादश भावों में राहुफल
1...लग्न में राहु हो तो जातक साहसी, हाजर जवाब कई वार स्वार्थी राजद्वेशी, होता है।
2......दुसरे भाव में हो तो परदेशप्रवासी कम से कम क्रोधी, कामी, संग्रहशील होता है।
3. तीसरे भाव में हो तो भ्रमणशील दृढ़ विवेकी, व्यवसायी होता है।
4...... चतुर्थ भाव में हो तो असंतोषी, दुखी, मातृ क्लेष युक्त, क्रूर कपटी, मुख व उदर रोगी होता है।
5......पंचम भाव में हो तो मतिमंद, धनहीन, कुलनाशक, कायकर्ता, झूठ बोलने वाला, शस्त्र प्रिय होता है।
6..... छठवें भाव में हो तो पराक्रमी, अरिष्ठनाशक, कमरदर्द से पीडि़त होता है।
7..... सातवें भाव में हो तो स्त्री नाशक भ्रमणशील व दुराचारी, दुष्कर्मी होता है।
8........आठवें भाव में हो तो पुष्ट शरीर गुप्तरोगी क्रोधी व्यर्थभाषी मुख व उदर रोगी होता है।
9.......नवम भाव में हो तो आलसी, वाचाल, अपव्ययी,
10.......दसवे भाव में हो तो राजनेता कूत्नितिग
11.....ग्यारहवें भाव में हो तो मंद मति, लाभ हीन, परिश्रमी, संतान कम होता है।
12........ बारहवें भाव में हो तो विवेकहीन, मतिमंद मूर्ख, परिश्रमी, सेवक व हमेषा चिंताशील रहता है।
राहु शांति हेतु उपाय
यदि राहु अशुभ फल प्रदान कर रहा हो तो निम्न उपाय करें -
यदि जन्म कुण्डली या वर्ष में राहु अषुभ हो तो शांति के लिए राहु के बीजमंत्र का 18000 की संख्या में जप करें।
राहु का बीज मंत्र-
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः
राहु के निमित्त दान वस्तुएं
सप्तधान्य, तेल, स्वर्ण व रजत, नाग, उड़द, तलवार, काला वस्त्र व तिल, गोमेद, नारियल, पुष्प, मिठाई, दक्षिणा इत्यादि।
काले व नीले वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए।
प्रतिदिन चपाती पर दही चीनी रखकर कौए व काले कुत्ते को खिलायें।
सात कच्चे कोयले राहु का बीजमंत्र बोलते हुए बहते जल में बहायें।
गोमेद परीक्षण विधि
गोमेद रत्न शनिवार को अथवा स्वाति, शतभिषा व रवि पुष्य योग आद्र्रा नक्षत्र में पंचधातु अथवा लोहे की अॅंगूठी में धारण करना चाहिए। गोमेद मध्यमा अॅंगुली में धारण करना चाहिए। धारण करने के बाद बीजमंत्र का जाप व सप्तधान्य कम्बल का दान करना चाहिए।
गोमेद धारण करने के लाभ
गोमेद धारण करने से मुकदमा वाद-विवाद व धन सम्पत्ति की वृद्धि होती है मुकदमा अपने पक्ष में आता है।
विशेष- जिन जातकों को कुण्डली में राहु 1,4,5,7,9,10,वें भाव में हो उन्हें गोमेद धारण करने से लाभ की प्राप्ति होती है।
।।शुभम भवतु । ।
[03/12, 12:31 p.m.] SWAMI: *🏵शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए 10 ज्योतिष उपाय🏵*
धार्मिक मान्यता के अनुसार शनिवार को कुछ विशेष उपाय करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों का कल्याण करते हैं ।
मान्यता के अनुसार, मनुष्य को उसके अच्छे-बुरे कामों का फल शनिदेव ही देते हैं, इसलिए अच्छे काम करने के साथ ही शनिदेव को प्रसन्न रखना भी आवश्यक है। जिस पर शनिदेव प्रसन्न हो जाएं, उसके सब कष्ट दूर हो जाते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय इस प्रकार हैं, ये उपाय किसी भी शनिवार को कर सकते हैं।
शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय
1. शनिवार को इन 10 नामों से शनिदेव की पूजा करें-
कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम :.
सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत: ..
अर्थात: 1. कोणस्थ, 2. पिंगल, 3. बभ्रु, 4. कृष्ण, 5. रौद्रान्तक, 6. यम, 7. सौरि, 8. शनैश्चर, 9. मंद व 10 पिप्पलाद। इन दस नामों से शनिदेव का स्मरण करने से सभी दोष दूर हो जाते हैं।
2. शनिवार को पीपल के वृक्ष की पूजा विधि-विधान से करें। भागवत के अनुसार पीपल, भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप है। शनि दोषों से मुक्ति के लिए पीपल की पूजा ऐसे करें ...
नहाने के बाद साफ व सफेद कपड़े पहनें। पीपल की जड़ में केसर चंदन, चावल, फूल मिला पवित्र जल अर्पित करें। तिल के तेल का दीपक जलाएं। यहां लिखे मंत्र का जाप करें।
*मंत्र:*"आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं सर्वसम्पदम्।
देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गत: ..
विश्वाय विश्वेश्वराय विश्वसम्भवाय विश्वपतये गोविन्दाय नमो नम :."
मंत्र जाप के साथ पीपल की परिक्रमा करें। धूप, दीपक जलाकर आरती करें। पीपल को चढ़ाया हुआ थोड़ा-सा जल घर में लाकर भी छिड़कें। ऐसा करने से घर का वातावरण पवित्र होता है।
3. शनिवार के एक दिन पहले यानी शुक्रवार को सवा-सवा किलो काले चने अलग-अलग तीन बर्तनों में भिगो दें। अगले दिन नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर शनिदेव का पूजन करें और चनों को सरसो के तेल में छौंक कर इनका भोग शनिदेव को लगाएं और अपनी समस्याओं के निवारण के लिए प्रार्थना करें। इसके बाद पहला सवा किलो चना भैंसे को खिला दें। दूसरा सवा किलो चना कुष्ट रोगियों में बांट दें और तीसरा सवा किलो चना मछलियों की खिला दें। इस उपाय से शनिदेव के प्रकोप में कमी होती है।
4. शनिवार को श्रद्धापूर्वक शनि यंत्र की प्रतिष्ठा करके प्रतिदिन इस यंत्र के सामने सरसो के तेल का दीपक जलाएं। नीला या काला फूल चढ़ाएं, ऐसा करने से लाभ होगा। साथ ही इस यंत्र के सामने बैठकर प्रतिदिन शनि स्त्रोत या ऊं शं शनैश्चराय नम: मंत्र का जाप भी करें।
*लाभ :*
कर्ज, मुकद्दमा, हानि, पैर आदि की हड्डी तथा सभी प्रकार के रोग से परेशान लोगों के लिए शनि यंत्र की पूजा बहुत फायदेमंद होती है। नौकरी पेशा लोगों को उन्नति भी शनि द्वारा ही मिलती है, अत: यह यंत्र बहुत उपयोगी है।
5. शनिवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठ जाएं। सामने शनिदेव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें व पंचोपचार से विधिवत पूजन करें। इसके बाद रूद्राक्ष की माला से नीचे लिखे किसी एक मंत्र की कम से कम पांच माला जाप करें तथा शनिदेव से सुख-संपत्ति के लिए प्रार्थना करें। यदि प्रत्येक शनिवार को इस मंत्र का इसी विधि से जप करेंगे तो शीघ्र लाभ होगा।
*वैदिक मंत्र :*
ऊं शं नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शं योरभिस्त्रवन्तु न :.
लघु मंत्र
ऐं ह्रीं नम :. श्रीशनैश्चराय ऊं
6. शनिवार को सुबह स्नान आदि करने के बाद शनिदेव का विधि-विधान से पूजन करें। इसके बाद सरसो के तेल से अभिषेक करें। तेल में काले तिल भी डालें। इसके बाद शनिदेव के 108 नामों का स्मरण करें। इस प्रकार शनिदेव का पूजन करने से भक्त के संकट टल जाते हैं और मनोकामना पूरी होने के योग बनते हैं।
7. शनिवार को कुष्ठ रोगियों को भोजन कराएं। साथ ही जरूरी चीजों का दान करें जैसे- जूते, चप्पल, छतरी, कपड़े, पलंग आदि। दान के साथ कुछ दक्षिणा (रुपए) भी अवश्य दें।
8. शनिवार को हनुमानजी का पूजन करें। चमेली के तेल से सिंदूर का चोला चढ़ाएं। गुलाब के फूल अर्पित करें। चूरमे का भोग लगाएं व केवड़े का इत्र हनुमान के दोनों कंधों पर छिड़कें। इसके बाद हनुमानजी से सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें। ये उपाय आप किसी अन्य शनिवार को भी कर सकते हैं।
9. काले घोड़े की नाल या समुद्री नाव की कील से लोहे की अंगूठी बनवाएं। उसे तिल के तेल में रखें तथा उस पर शनि मंत्र का जाप करें 23000। शनिवार को इसे धारण करें। यह अंगूठी मध्यमा (शनि की उंगली) में ही पहनें।
10 शनिवार को एक कांसे की कटोरी में तिल का तेल भर कर उसमें अपना चेहरा देख कर डाकोत (शनि का दान लेने वाला) को दान कर दें। साथ ही एक काले कपड़े में काले उड़द, सवा किलो अनाज, दो लड्डू, फल, काला कोयला और लोहे की कील रख कर उसे भी डाकोत को दे दें। साथ ही कुछ दक्षिणा भी दें। ये उपाय अन्य किसी शनिवार को भी कर सकते है।
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[03/12, 12:33 p.m.] SWAMI: नव ग्रहो का दह से परिचय पुनः
सूर्य - सूर्य प्रकाश और प्रभाव से सम्बंधित ग्रह है।इसलिए जन्म कुंडली में सूर्य जिस स्थान का स्वामी है और जहाँ बैठा होगा और जहाँ देख रहा होगा वहां से प्रकाश और प्रभाव प्राप्त करेगा।
चन्द्रमा - चंद्र मन की शक्ति से सम्बंधित ग्रह है।इसलिए जन्म पत्री में चंद्र जिस स्थान का स्थाई स्वामी है, और जहाँ बैठा है और जहाँ देख रहा है उन स्थानों पर मनोयोग का काम करता है।
मंगल - मंगल खून और शक्ति का संबंधी ग्रह है।इसलिए जन्म पत्री में मंगल जिस स्थान का स्थाई स्वामी है व् जहाँ बैठा है और जिस स्थान को देख रहा है वहां अपनी शक्ति और तेजी का कार्य करता है।
बुध - बुध ग्रह विवेक शक्ति का स्वामी है।इसलिए जन्म कुण्डली में जिस-जिस स्थान का स्वामी है और जहाँ बैठा है एवं जिन स्थानों को देखता है,उन सभी में विवेक शक्ति के सहित कार्य करता है।
गुरु - गुरु ह्रदय की शक्ति का स्वामी है, ये जन्म कुंडली में जिन स्थानों का स्वामी है और जिस स्थान पर बैठा है व् जहाँ देख रहा है उन स्थानों में ह्रदय की शक्ति के योग से कार्य करता है।
शुक्र - शुक्र महान चतुराई का स्वामी है।इसलिए जन्म पत्री में जिन स्थानों का स्वामी है एवं जिस स्थान में बैठा है और जिस स्थान को देख रहा है, वहां वहां महान् चतुराई के योग से कार्य करता है।
शनि - शनि महान दृढ़ता शक्ति का अधिकारी है। इसलिए यह जन्म पत्री में जिन स्थानों का स्वामी है, और जहाँ बैठ है तथा जिन स्थानों को देखता है उन स्थानों में दृढ़ता शक्ति के साथ काम करता है।
राहु - राहु गुप्त युक्ति बल तथा कमी और कष्टनके अधिकारी है। ये जन्म कुंडली में जिस स्थान पर बैठते है वहां गुप्त युक्तिबल का प्रयोग तथा कमी और कष्ट का कार्य करते है।
केतु - केतु गुप्त शक्तिबल,कठिन कर्म और कमी व् भय के अधिपति है। ये जन्म कुण्डली में जिस स्थान पर बैठते है वहां कठिन कर्म शक्ति, कमी व् भय की प्राप्ति का कार्य करते है।और जन्म कुण्डली या गोचर में जिस ग्रह के सामने केतु आ रहे है वह ग्रह भी भय युक्त हो जाता है।
ध्यान योग्य जानकारी- उपरोक्त ग्रहो का हर संबंधो में विचार करके ही फलादेश करना श्रेयस्कर है।
[03/12, 2:34 p.m.] SWAMI: सूर्यादि नवग्रह जनित पीड़ा एवं उपाय
सूर्य गृह पीड़ित होने पर परेशानियाँ.......पिता से मनमुटाव, सरकारी कार्यो मे परेशानी / सरकारी नौकरी मे परेशानी, सिरदर्द, नेत्र रोग, ह्रदयरोग, चर्मरोग, अस्थि रोग, रक्तचाप आदि।
उपाय.......... आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करे, सुबह-सवेरे सूर्य भगवान को जल चढ़ाएँ, लाल पूष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल, माणिक रत्न धारण करे ।
चन्द्रमा गृह पीड़ित होने पर परेशानियाँ......माता से सम्बन्धो में मनमुटाव, मानसिक परेशानियाँ, नींद का ना आना, कफ, सर्दी, जुकाम आदि रोग मासिक धर्म संबंधी रोग, पित्ताशय में पथरी,निमोनिया, रक्त विकार आदि।
उपाय............माता का सम्मान करे, चांदी, चावल और दूध का दान करे, पूर्णिमा में चन्द्र को अर्क दे व चांदनी रात मे घूमे, मोती रत्न धारण करे।
मंगल गृह पीड़ित होने पर परेशानियाँ.........क्रोध की अधिकता, भाइयो से संबंध में मनमुटाव, समय - समय पर छोटी मोटी दुर्घटनाये, रक्त विकार, फोड़ा फुंसी, बवासीर, चेचक आदि रोगो का प्रकोप।
उपाय........... भाई का सम्मान करे, हनुमान चालीसा पढ़े, लाल मसूर की दाल बहते पानी में बहाये, मूंगा रत्न धारण करे।
बुध गृह पीड़ित होने पर परेशानियाँ...........विद्या / बुद्धि सम्बन्धी परेशानी, गले के रोग, नाक के रोग, उन्माद की स्थिति, मती भ्रम, व्यवसाय में हानि, विचारो में द्वन्द / अस्थिरता ।
उपाय.............बेटी,बुआ, मौसी,बहन का सम्मान करे, सुराख़ वाला तांबे का पैसा बहते पानी में बहाये, माँ दुर्गा/गणेश जी की आराधना करे, पन्ना रत्न धारण करे ।
गुरु गृह पीड़ित होने पर परेशानियाँ........पूजा पाठ में मन न लगना, आय में कमी होने लगना, संचित धन का व्यय होना, विवाह में देरी, संतान में देरी, पेट के रोग, कान के रोग, गठिया, कब्ज, अनिद्रा आदि से पीड़ित होना।
उपाय.........दादा का सम्मान करे, गरीब व जरुरत मंद बच्चो को पुस्तको का दान करे, गुरु का आशीर्वाद ले,
चने की दाल धरम स्थान मे दे, पुखराज रत्न धारण करे।
शुक्र गृह पीड़ित होने पर परेशानियाँ........जीवन की सुखसुविधा मे कमी, वाहन/मकान कष्ट, पत्नी से मनमुटाव, नपुंसकता, धातु एवं मूत्र संबंधी रोग, गर्भाशय रोग, मधुमय आदि से पीड़ित होना।
उपाय.......... पत्नी/स्त्रियों का सम्मान करे, देशी घी, मिस्री मंदिर मे दे, लक्ष्मी माता की उपासना करे, वाइट ओपल या हीरा रत्न धारण करे।
शनि गृह पीड़ित होने पर परेशानियाँ......फैक्ट्री या व्यवसाय में नौकरो से कलेश, नौकरी में परेशानी, वायु विकार, पैरो की तकलीफ, भूत प्रेत का भय, रीड की हड्डी में दिक्कत आदि ।
उपाय...........नौकरो को गाली न दे व उनके पैसे न मारे, शनि देव की उपासना करे, काली उड़द, लोहा, तेल, तिल आदि का दान करे, नीलम रत्न धारण करे।
राहु गृह पीड़ित होने पर परेशानियाँ.....त्वचा रोग, कुष्ठ रोग, भूत प्रेत, जोड़ो मे दर्द, बिना वजह मन मे भय, अहंकार हो जाना आदि ।
उपाय............भैरो बाबा के दर्शन करे, दुर्गा माता का पूजन करे, गोमेद रत्न धारण करे ।
केतु गृह पीड़ित होने पर परेशानियाँ.......... जादू टोने से परेशानी, छूत की बीमारी, रक्त विकार, चेचक, हैजा व फोड़े फुंसी, स्किन इन्फेक्शन, एक्सीडेंट अधिक होने आदि ।
उपाय............. लंगड़ा व्यक्ति को भोजन खिलाये, कोडियों को खिचड़ी दान करे, लहसुनिया रत्न धारण करे ।
[03/12, 2:35 p.m.] SWAMI: ज्योतिष विशेष राहु
द्वादश भावों में राहुफल
1...लग्न में राहु हो तो जातक साहसी, हाजर जवाब कई वार स्वार्थी राजद्वेशी, होता है।
2......दुसरे भाव में हो तो परदेशप्रवासी कम से कम क्रोधी, कामी, संग्रहशील होता है।
3. तीसरे भाव में हो तो भ्रमणशील दृढ़ विवेकी, व्यवसायी होता है।
4...... चतुर्थ भाव में हो तो असंतोषी, दुखी, मातृ क्लेष युक्त, क्रूर कपटी, मुख व उदर रोगी होता है।
5......पंचम भाव में हो तो मतिमंद, धनहीन, कुलनाशक, कायकर्ता, झूठ बोलने वाला, शस्त्र प्रिय होता है।
6..... छठवें भाव में हो तो पराक्रमी, अरिष्ठनाशक, कमरदर्द से पीडि़त होता है।
7..... सातवें भाव में हो तो स्त्री नाशक भ्रमणशील व दुराचारी, दुष्कर्मी होता है।
8........आठवें भाव में हो तो पुष्ट शरीर गुप्तरोगी क्रोधी व्यर्थभाषी मुख व उदर रोगी होता है।
9.......नवम भाव में हो तो आलसी, वाचाल, अपव्ययी,
10.......दसवे भाव में हो तो राजनेता कूत्नितिग
11.....ग्यारहवें भाव में हो तो मंद मति, लाभ हीन, परिश्रमी, संतान कम होता है।
12........ बारहवें भाव में हो तो विवेकहीन, मतिमंद मूर्ख, परिश्रमी, सेवक व हमेषा चिंताशील रहता है।
राहु शांति हेतु उपाय
यदि राहु अशुभ फल प्रदान कर रहा हो तो निम्न उपाय करें -
यदि जन्म कुण्डली या वर्ष में राहु अषुभ हो तो शांति के लिए राहु के बीजमंत्र का 18000 की संख्या में जप करें।
राहु का बीज मंत्र-
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः
राहु के निमित्त दान वस्तुएं
सप्तधान्य, तेल, स्वर्ण व रजत, नाग, उड़द, तलवार, काला वस्त्र व तिल, गोमेद, नारियल, पुष्प, मिठाई, दक्षिणा इत्यादि।
काले व नीले वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए।
प्रतिदिन चपाती पर दही चीनी रखकर कौए व काले कुत्ते को खिलायें।
सात कच्चे कोयले राहु का बीजमंत्र बोलते हुए बहते जल में बहायें।
गोमेद परीक्षण विधि
गोमेद रत्न शनिवार को अथवा स्वाति, शतभिषा व रवि पुष्य योग आद्र्रा नक्षत्र में पंचधातु अथवा लोहे की अॅंगूठी में धारण करना चाहिए। गोमेद मध्यमा अॅंगुली में धारण करना चाहिए। धारण करने के बाद बीजमंत्र का जाप व सप्तधान्य कम्बल का दान करना चाहिए।
गोमेद धारण करने के लाभ
गोमेद धारण करने से मुकदमा वाद-विवाद व धन सम्पत्ति की वृद्धि होती है मुकदमा अपने पक्ष में आता है।
विशेष- जिन जातकों को कुण्डली में राहु 1,4,5,7,9,10,वें भाव में हो उन्हें गोमेद धारण करने से लाभ की प्राप्ति होती है।
।।शुभम भवतु । ।
[03/12, 2:36 p.m.] SWAMI: पूजा तो सब करते हैं परन्तु यदि इन नियमों को ध्यान में रखा जाये तो उसी पूजा पथ का हम फल प्राप्त कर सकते हैं. वे नियम कुछ इस प्रकार हैं.
1 सूर्य, गणेश,दुर्गा,शिव एवं विष्णु ये पांच देव कहलाते हैं. इनकी पूजा सभी कार्यों में गृहस्थ आश्रम में नित्य होनी चाहिए. इससे धन,लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है.
2 गणेश जी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए.
3 दुर्गा जी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए.
4 सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए.
5 तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोडना चाहिए. जो लोग बिना स्नान किये तोड़ते हैं,उनके तुलसी पत्रों को भगवान स्वीकार नहीं करते हैं.
6 रविवार,एकादशी,द्वादशी ,संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए
7 दूर्वा( एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए.
8 केतकी का फूल शंकर जी को नहीं चढ़ाना चाहिए.
९ कमल का फूल पाँच रात्रि तक उसमें जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं.
10 बिल्व पत्र दस रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं
.11 तुलसी की पत्ती को ग्यारह रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं.
12 हाथों में रख कर हाथों से फूल नहीं चढ़ाना चाहिए.
13 तांबे के पात्र में चंदन नहीं रखना चाहिए.
14 दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए जो दीपक से दीपक जलते हैं वो रोगी होते हैं.
15 पतला चंदन देवताओं को नहीं चढ़ाना चाहिए.
16 प्रतिदिन की पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए. दक्षिणा में अपने दोष,दुर्गुणों को छोड़ने का संकल्प लें, अवश्य सफलता मिलेगी और मनोकामना पूर्ण होगी.
17 चर्मपात्र या प्लास्टिक पात्र में गंगाजल नहीं रखना चाहिए.
18 स्त्रियों और शूद्रों को शंख नहीं बजाना चाहिए यदि वे बजाते हैं तो लक्ष्मी वहां से चली जाती है.
[03/12, 2:39 p.m.] SWAMI: ज्योतिष ज्ञान:ज्योतिष को जानिये:
शुभ कार्य करने के लिये अशुभ योग से बचें :-(1)
कुयोग: (अशुभ) वार, तिथि एवं नक्षत्रों के संयोग से अथवा केवल नक्षत्र के आधार पर कुछ ऐसे अशुभ योग बनते हैं जिन्हें, कुयोग कहा जा सकता है। इन कुयोगों में कोई शुभ कार्य प्रारंभ किया जाए तो वह सफल नहीं होता अपितु उसमें हानि, कष्ट एवं भारी संकट का सामना करना पड़ता है।
कुयोग-सुयोग: यदि किन्हीं कारणों से एक कुयोग तथा एक सुयोग एक ही दिन पड़ जाए तो भी उस दिन को त्याग देना चाहिये ।
दग्ध नक्षत्र: रविवार को भरणी, सोमवार को चित्रा, मंगलवार को उत्तराषाढ़ा, बुधवार को धनिष्ठा, गुरुवार को उत्तरा फाल्गुनी, शुक्रवार को ज्येष्ठा, शनिवार को रेवती नक्षत्र दग्ध नक्षत्र कहलाते हैं। इनमें कोई भी शुभ कार्यनहीं किया जाना चाहिए।
मास-शून्य नक्षत्र: चैत्र में अश्विनी और रोहिणी, वैशाख में चित्रा और स्वाति, ज्येष्ठ में उत्तराषाढ़ा और पुष्य, आषाढ़ में पूर्वा फाल्गुनी और धनिष्ठा, श्रवण में उत्तराषाढा़ और श्रवण, भाद्रपद में शतभिषा और रेवती, अश्विनी में पूर्वा भाद्रपद, कार्तिक में कृतिका और मघा, मार्गशीर्ष में चित्रा और विशाखा, पौष में आर्द्रा और अश्विनी, माघ में श्रवण और मूल तथा फाल्गुन में भरणी और ज्येष्ठा मास-शून्य नक्षत्र होते हैं। इनमें शुभ कार्य करने से धन नाश होता है।
जन्म नक्षत्र: जातक का जन्मनक्षत्र, 10 वां अनु जन्म नक्षत्र तथा 19 वां त्रिजन्म नक्षत्र कहलाते है। ये तीनों समान रूप से जन्म नक्षत्र की श्रेणी में आते हैं। शुभ कार्य प्रारंभ करने हेतु जन्म नक्षत्र त्यागना चाहिए।
चर योग- रविवार को उत्तराषाढा, सोमवार को आर्द्रा,
मंगल को विशाखा, बुध को रोहिणी, गुरू को शतभिषा
शुक्रवार को मघा तथा शनिवार को मूल नक्षत्र हो तो चर योग बनता है ।इस योग में कार्य की अस्थिरता रहती है ।
दग्ध योग- रविवार को 12, सोमवार को 11, मंगल को 5,बुध को 3,गुरू को 6,शुक्र को 8, और शनिवार को 9,
तिथि होने पर दग्ध योग अशुभ कारक होता है ।
मृत्युदा तिथियां - रविवार को 1,6,11, सोमवार को 2,7,12, मंगल को 1,6,11, बुध को 3,8,13, गुरू को 4,9,14, शुक्र को 2,7,12, शनिवार 5,10,15 तिथियां
होने पर मृत्युकारक होती हैं ।
मृत्यु योग- रविवार को अनुराधा, सोमवार को उत्तराषाढा, मंगल को शतभिषा, बुध को अश्विनी, गुरूवार को मृगशिरा, शुक्रवार को अश्लेषा , तथा शनिवार को हस्त नक्षत्र मृत्युयोग बनाते हैं ।शुभ कार्य करने से जनहानि होती है ।
यमघंट योग- रविवार को मघा , सोम को विशाखा ,मंगल को आर्द्रा , बुक को मूल , गुरू को कृतिका , शुक्र को रोहिणी तथा शनिवार को हस्त नक्षत्र के होने पर यमघंट योग अशुभ कारक होगा ।
यमदंष्ट्रा योग- रविवार को मघा व धनिष्ठा, सोम को मूल व विशाखा, मंगल को भरणी व कृतिका , बुध को पुनर्वसु व रेवती ,गुरू को अश्विनी व उत्तराषाढा, शुक्र को रोहिणी व अनुराधा , तथा शनिवार को श्रवण व धनिष्ठा नक्षत्र होने पर यह योग बनता है ,आय्यंत पीडादायक होता है ।
वज्र मुसल योग- रविवार+भरणी,सोमवार+चित्रा,
मंगल+उत्तराषाढा, बुध+धनिष्ठा, गुरू+उत्तराफाल्
गुनी
, शुक्रवार+ज्येष्ठा , तथा शनिवार +रेवती नक्षत्र से यह योग भी अशुभ कारक होता है जोकि कार्य में विवाद उत्पन्न करता है
[03/12, 2:40 p.m.] SWAMI: "चित्रगुप्त देवता" की वास्तविकता : [ प्राणियों को 'कर्म-फल' कैसे मिलता है ]
1. हम जिस इच्छा से, जिस भावना से जो काम करते हैं- उस इच्छा या भावना से ही हमारे पाप-पुण्य का नाप होता है। जीव जितना ही ईश्वरीय नियमों पर चलता है अथवा उन्हें तोड़ता है, उतनी ही तोल के अनुसार उसे अच्छा या बुरा कर्मफल मिलता है। इसलिए ईश्वर में और उसके न्याय में विश्वास रखना मनुष्य और समाज के लिए परम कल्याणकारी है।
2. गरूड़ पुराण में वर्णित अलंकारिक विवरण 'यमलोक में चित्रगुप्त नामक देवता' प्रत्येक प्राणी के भले-बुरे कर्मों का विवरण प्रत्येक समय लिखते रहते हैं। मृत्यु के बाद प्राणी को इसी के आधार पर शुभ कर्मों के लिए स्वर्ग और दुष्कर्मों के लिए नर्क प्रदान किया जाता है।
3. उक्त वर्णन वास्तविक स्थिति का एक सांकेतिक सारांश मात्र है। जिसे जन - सामान्य सरलता से समझ कर तदनुसार दुष्कर्मों से दूर रहने का प्रयास कर सकें।
4. अब यह सर्वविदित वैज्ञानिक तथ्य है कि जो भी भले-बुरे कार्य ज्ञान वान प्राणियों द्वारा किए जाते हैं- उनका सूक्ष्म चित्रण अन्तःचेतना में होता रहता है। भले-बुरे कर्मों का "ग्रे मैटर" के परमाणुओं पर यह चित्रण पौराणिक चित्रगुप्त की वास्तविकता को सिद्ध कर देता है।
5. गुप्त चित्र, गुप्त मन, अन्तःचेतना, सूक्ष्म मन आदि शब्दों के भावार्थ को ही चित्रगुप्त शब्द प्रकट करता हुआ जान पड़ता है ।
6. यह चित्रगुप्त निःसन्देह हर प्राणी के हर कार्य को हर समय विना विश्राम किए अपनी बही में लिखता रहता है। सबका अलग-अलग चित्रगुप्त होता है। जितने प्राणी हैं- उतने ही चित्रगुप्त हैं।
7. स्थूल शरीर के कार्यों की सुव्यवस्थित जानकारी सूक्ष्म चेतना में अंकित होती रहे तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
8. जैसे बगीचे की वायु, गन्दे नाले की वायु आदि स्थान भेद के कारण अनेक नाम वाली होते हुए भी मूलतः विश्व व्यापक वायु तत्व एक ही है- वैसे ही अलग-अलग शरीरों में रहकर भी अलग-अलग काम करने वाला चित्रगुप्त देवता भी एक ही तत्व है।
9. हमारे पाप-पुण्य का निर्णय काम के बाहरी रूप से नहीं वरन् कर्ता की इच्छा और भावना के अनुरूप होता है। हम जिस इच्छा से, जिस भावना से जो काम करते हैं- उस इच्छा या भावना से ही हमारे पाप-पुण्य का नाप होता है।
10. यह इच्छा जितनी तीव्र होगी उतना ही पाप-पुण्य भी अधिक एवं बलवान होगा। हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग कानून व्यवस्था होती है।
11. अशिक्षित, अज्ञानी, असभ्य व्यक्तियों को कम पाप लगता है। ज्ञान वृद्धि के साथ-साथ भला-बुरा समझने की योग्यता बढ़ती जाती है, विवेक प्रबल हो जाता है। ज्ञान वान, विचार वान और भावना शील ह्रदय वाले व्यक्ति जब दुष्कर्म करते हैं - तो उनका चित्रगुप्त उस करतूत को 'बहुत भारी पाप' की श्रेणी में दर्ज कर देता है।
30 सेकंड में देखें चमत्कार। कपूर के 10 चमत्कारिक टोटके |
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